अब इस छद्म अवतारवाद को भारत से विदा हो जाना चाहिए.
यह पुरानी आदत है. गजनवी ने सोमनाथ लूटा तो हजारों लोग किसी चमत्कार की आशा में ही बैठे रह गए थे. भगवान इसका कुछ करेंगे, इसे पाप लगेगा, ऐसा वे कहते रहे, जपते रहे. चंगेज खान, तेमूर, मुग़ल, नादिरशाह, अंग्रेज आये तो भी यही जपते रहे – जब जब धर्म की हानि होती है, ईश्वर अवतार लेते हैं. वही कुछ करेंगे, हम क्या कर सकते हैं. माना कि ईश्वर अवतार लेते रहे हैं पर ईश्वर अवतार उसी भूमि पर लेते हैं, जहां के नागरिक इस काबिल होते हैं ! नाकारा लोगों के यहाँ ईश्वर क्यों अवतार लेंगे ?
यही आदत आज भी बनी हुई है. मैं क्या कर सकता हूँ, सब धीरे धीरे होगा, सब जागरूक होंगे तो कुछ होगा, आदि बहानों में जवाब ढूंढें जा रहे हैं. या फिर किसी व्यक्ति विशेष पर टकटकी लगाकर उसमें अवतार खोजा जा रहा है, देखा जा रहा है. कभी महात्मा गांधी, कभी इंदिरा गाँधी, कभी जे.पी., कभी वी.पी., कभी राजीव तो कभी अन्ना-अरविन्द-बाबा-मोदी. माना कि मोदीजी लाबहादुर शास्त्री जी की तरह जनता से संवाद कायम करने में और विश्वास जीतने में कायम हो रहे हैं, पर अकेले वे देश को नहीं बदल पायेगें.
समाधान का रास्ता एक ही है- आपां नहीं तो कुण ? आज नहीं तो कद ? और कोई रास्ता है ही नहीं. न भारत में कभी और कोई रास्ता हुआ है और न विश्व के किसी समाज या देश में बैठे बिठाए सफलता मिली हो. जिम्मेदारी लेनी होगी, मेहनत करनी होगी, हीनभावना को त्यागना होगा, घर से बाहर निकलना होगा. और एक बार हिम्मत हो गई तो फिर पीछे देखने का मन नहीं करेगा.
आइये ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ से जुड़िये और इसी संकल्प के साथ काम पर लग जाइए. समाज और देश के असली विकास के लिए, लोकतंत्र के लिए.
30 नवम्बर को जयपुर के संगम में आपका इन्तजार रहेगा.
वन्दे मातरम !