‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का मूल मन्त्र
आज की हमारी समस्याओं के दो ही कारण हैं, एक तो सदियों की गुलामी और दूसरा वर्तमान सिस्टम या तंत्र के बारे में जानकारी का अभाव. इन दोनों कारणों के मारे हमारा शासन से एक दुराव हो गया है, शासन अपना सा नहीं लगता है. हमें शासन से शिकायतें तो खूब हैं, पर हिम्मत नहीं जुटा पाने के कारण हम इसमें सुधार नहीं करवा पा रहे हैं. पिछले कई दशकों से, 1947 के बाद से ही हम इस ताक में बैठे हैं कि कोई अवतार कहीं से आ जाए और हमारी तकदीर बदल दे. हमने गुलामी के प्रभाव और लोकनीति की जानकारी के अभाव में मान लिया है कि हम अपने दम पर कुछ कर ही नहीं सकते. ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ इस मनोभाव को तोड़ कर अपने हाथों से नया राजस्थान खड़ा करने की कोशिश है. इसीलिये यह नारा है, मंत्र है- आपां नहीं तो कुण ? आज नहीं तो कद ? राजस्थान में हम जब इस विधि से कामयाब हो जायेंगे, और निश्चित ही होंगे, तो यह प्रयोग भारतवर्ष में दोहराया जा सकेगा. यही हमारा लक्ष्य है. आइये इसी पर आगे बढ़ते हैं.
स्वीकार करें कि ‘राज’ से डर लगता है
पहले हमें कुछ बातें स्वीकार कर लेनी चाहिए. इन्हें स्वीकार किये बगैर काम आगे नहीं बढ़ेगा. हमें स्वीकार कर लेना चाहिए कि हमें शासन का या ‘राज’ का डर लगता है. यह मान लेना चाहिए. हमें सरकारी कार्यालयों का,पुलिस का, मंत्रियों का डर लगता है, यह मान लेना चाहिए. जब स्वीकार करेंगे तो बीमारी का इलाज हो पायेगा. झूठी अकड़ में बीमारी को छुपाने से बीमारी बढ़ती ही है, यह आप जानते हैं न ? अभी तक यह बीमारी गंभीर हो चुकी है. छुपाने के कारण. इस डर को छुपाने के कारण ही हम निराश हो चले हैं, उदासीन हो चले हैं. इसलिए अब इस डर को कम करने और बाद में भगाने के लिए साफ़ मन से स्वीकार कर लें. स्वीकार कर लें कि हां, हमें डर लगता है, हिम्मत नहीं पड़ती कि किसी कार्यालय में जायें और वहां के अधिकारी से हिसाब किताब पूछ सकें. ऐसा है न ? तो स्वीकार कर लें.
स्वीकार करें कि जानकारी का अभाव है
‘राज’ के डर को स्वीकार करने के बाद एक कदम और बढ़ जायें. ईमानदारी के साथ. मान लें कि शासन के विभिन्न अंग (विभाग) कैसे काम करते हैं, इसकी विस्तृत जानकारी हमें नहीं है. सुनी सुनाई बातों से या अखबारी या चैनलिया जानकारी से ज्यादा नहीं पता. नहीं पता कि हमारे घर के सामने की, गांव या शहर के रास्ते की सड़क किसने बनाई है, किन शर्तों पर और कितने रुपये में बनाई है. नहीं पता कि हमारे घर में आने वाली बिजली सरकार को कितने रुपये में पड़ती है और न ही पानी की व्यवस्था की पुख्ता जानकारी है. हमें नहीं पता कि पुलिस का तामझाम कैसे काम करता है. हमें तो यही पता है कि पुलिस सही काम नहीं कर रही है, बात-बात पर पैसे ले रही है. और हमें यह भी नहीं मालूम कि इस साल के राजस्थान सरकार के बजट में क्या-क्या लिखा था और किन योजनाओं पर पैसा खर्च होना था. हमें तो यह भी नहीं पता कि हमारा विधायक या सांसद कितनी गंभीरता से अपने काम को अंजाम देता है, हम तो उसे भाषण देते या साफा बांधते ही देखते रहते हैं. अगर ऐसा ही है तो स्वीकार कर लीजिए. अहंकार का बोझ फेंक दीजिए. मुझे सब पता है, मालूम है, की रट छोड़ दीजिए. खाली गिलास में पानी भरा जा सकेगा ! आपकी स्वीकार करने की घोषणा के बाद ही ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ की गति बढ़ेगी. तभी इस ‘अभियान’ में आप काम कर पायेंगे और एक बार इस काम में पड़ गए तो पीछे नहीं देखेंगे.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में क्या करेंगे ?
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में यह स्पष्ट माना गया है कि आमजन को और यहां तक कि तथाकथित पढ़े लिखे लोगों को भी सरकार का खौफ है. वैसा ही खौफ है, जैसा अंग्रेजी ‘राज’ में था. तभी तो लोग अभी भी शासन को ‘राज’ ही कहते हैं. तभी तो लोग लोकनीति नहीं जानते, राजनीति पर ज्यादा चर्चा करते हैं. यह हकीकत है. वे अभी भी मानसिक रूप से ‘राजतंत्र’ में जी रहे हैं, लोकतंत्र उन्हें अभी समझ नहीं आया है, रास नहीं आया है. वोट तो वे केवल जाति से बंधे होने के कारण या यूं ही मजे लेने के लिए दे रहे हैं, वरना उनका वोट में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं है, रुचि नहीं है. गिरता वोट प्रतिशत देखिये न. ऐसे डरे हुए लोगों को आप एकदम से यह कह दो कि जाओ और ‘राज’ से हिसाब पूछो, तो वह नहीं जायेंगे. आप उन्हें कितने ही वीर रस के गीत उन्हें सुनाएं ! वे टस से मस नहीं होंगे. आप भले उन्हें क़ानून बता दें, सूचना का अधिकार बता दें, वे इन कानूनों या अधिकारों के उपयोग से बचेंगे.
इसलिए सबसे पहले यह डर दूर करना होगा, लेकिन एकदम उन्हें डरावनी चीजों में धकेलना नहीं है. वे और घबरा जायेंगे. जैसे यह डर बैठा है, वैसे ही निकलेगा. तरकीब से. हमने वे तरकीबें निकाली हैं. वे बिना शोर किये, डर निकाल देंगी. डर निकला नहीं कि बात बननी शुरू होगी.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हम यह भी मानकर चल रहे हैं कि जानकारी के अभाव में शासन और जनता के बीच की दूरी बढ़ी हुई है. जितनी ज्यादा यह दूरी है, उतनी ही समस्याओं की संख्या बढ़ी है. इस दूरी को कम करने का प्रयास न तो अभी तक नेता कर रहे हैं और न ही अफसर कर रहे हैं. करेंगे भी क्यों ? फिर नेता या अफसर बनने का मतलब ही क्या रह जाएगा. कई संस्थाओं ने भी इस काम को करने का बीड़ा उठाया था, पर उनकी भी नीति या नीयत में कमियां रह गई होंगी. उनसे भी यह काम नहीं हो पाया है. हमें ऐसी विचित्र स्थिति में काम करना है. एक डरे हुए नागरिक का डर कम करना है. उसको आत्मविश्वास से, आत्मसम्मान से भरना है. उसका विश्वास जितना है. उसे जिम्मेदार बनाना है. और यह काम इस भाव से करना है कि वह अवतारवाद और चमत्कारों से दूर होकर अपने दम पर आगे बढ़ने के बारे में सोच सके. और अंतिम बात यह कि इन डरे हुए, जानकारी के अभाव से ग्रस्त नागरिकों में हम सब शामिल हैं. कोई भी नहीं बचा हुआ है. इसलिए उपदेश देने की यह बात नहीं है, बल्कि सबको मिलकर स्वीकार करने और साथ साथ आगे बढ़ने की जरूरत है.
शासन को समझेंगे
पहला चरण होगा यह. हमारा शासन के बारे में ज्ञान बढ़े, इसके लिए हम अपनी योजना के अनुसार प्रमुख विभागों के मूल कार्यों और उनके काम करने के तरीकों को समझेंगे. 30 दिसम्बर के हमारे सम्मेलन में इस पर विस्तार से रणनीति बनेगी. प्रदेश के 33 जिलों में यह काम एक साथ शुरू होगा. एक जिले में एक कस्बे में और एक गांव में यह काम होगा. हमारे साथी ग्यारह प्रमुख विभागों के बारे में जानकारियाँ इकट्ठी करेंगे और पता लगाएंगे कि ये विभाग क्षेत्र की प्रगति में क्या योगदान कर रहे हैं. सम्मेलन में हम अपने साथियों को आसान और सुगम तरीकों से यह काम करने के बारे में बताएंगे और साथियों के सुझावों पर भी अमल करेंगे. ये दस विभाग या कार्यालय होंगे-
पंचायत समिति, नगरपालिका, पुलिस, राजस्व, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पेयजल, सिंचाई, सड़क और समाज कल्याण विभाग.
इस काम को बहुत ही सावधानी से करना होगा. हमारी काम करने की शैली और भाषा जिम्मेदारी से युक्त होगी. कहीं ऐसा न लगे कि हम अधिकारियों या कर्मचारियों के खिलाफ काम कर रहे हैं. हम किसी के खिलाफ नहीं बल्कि अपने हक में और जनता के हक में काम कर रहे हैं, ऐसा लगना चाहिए. लेकिन बिना सावधानी के या प्रशिक्षण के यह काम वैसे परिणाम नहीं देगा, जैसे हम चाहते हैं. इसलिए 30 दिसम्बर को विस्तार से इन सभी पहलुओं पर हमारे विशेषज्ञ विचार रखेंगे.
योजनाओं को परखेंगे
अभी तक बनी योजनाओं और कई कानूनों का हाल यह है कि उनको बनाते वक्त जमीनी हकीकतों का कम ही ध्यान रखा गया है. इस कारण इन योजनाओं से समाज को फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो जाता है. शिक्षा की, खेती की, उद्योग की या रोजगार की योजनाओं का बुरा हाल है. पता नहीं किन शिक्षकों और अभिभावकों से पूछकर यह तय किया गया कि किसी भी विद्यार्थी को आठवीं तक फेल नहीं करना है. कुछ सिरफिरे लोगों ने अपनी सीमित बुद्धि से यह तय कर लिया और करोड़ों बच्चों के भविष्य पर कालिख पोत दी है. बिना पढ़े बच्चे को आठवीं पास घोषित करने से क्या हासिल होने वाला है ? ऐसे ही गरीबों से बिना पूछे उनके लिए नरेगा और आवास की योजनाएं बनी हैं. कैसे मात्र दस हजार में साल भर गरीब का घर चलेगा और कैसे मात्र पचास हजार में घर बनेगा ? किसानों से बिना पूछे बीज बांटा जा रहा है. बीज किसको बांट रहे हैं? गरीबों को, जिनके पास पांच बीघा जमीन है. अब यह किसान क्या बोएगा और क्या काटेगा. वह थैली तो ले जाता है, पर हाथों हाथ किसी ज्यादा जमीन वाले को दे देता है. बस, सभी योजनाओं का ऐसा ही हाल है. आप सबसे वाकिफ हैं.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के साथी अपने अपने क्षेत्रों में विस्तार से और गंभीरता से सर्वे करेंगे और सार्थक योजनाएं बनाएंगे. हमारे साथी, शिक्षकों से, किसानों से, कर्मचारियों से, डॉक्टरों आदि से मिलकर उनके क्षेत्रों से जुड़ी योजनाओं की समीक्षा करेंगे. यह काम जयपुर या दिल्ली में बैठे अफसरों के भरोसे थोडा ही छोड़ दिया जाएगा. शासन हमारा है, जनता का है. योजनाएं हमें ही बनानी होगी. अफसरों को तो इन्हें लागू करना है.
इन योजनाओं पर हमारे अगले सम्मेलन में चर्चा होगी. इन योजनाओं को लागू कौन करेगा ? सरकार करेगी. लेकिन वह तब करेगी, जब हमारा काम पक्का होगा,तथ्यों पर आधारित होगा और जनसमर्थन हमारे साथ होगा, इन योजनाओं के पक्ष में होगा. अरुणा राय और उनके साथियों ने सूचना का अधिकार लागू करवाया ही है न. ऐसा ही अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियों ने लोकपाल के मामले में करवाया है. भले लोकपाल एकदम अन्ना-अरविन्द के सुझावों पर नहीं बना हो, पर बनाना तो पड़ा है न. यही तो लोकतंत्र है और हमें इसे ही तो राजस्थान में और भारत में मजबूत करना है.
अंत में यह भी जान लें 30 दिसम्बर के सम्मेलन में बहुत सी बातों पर नए अंदाज में चर्चा होगी. लेकिन ‘अभियान’ के बारे में कुछ बातें स्पष्ट कर दी जायें, तो अच्छा है.
अंत में यह भी जान लें 30 दिसम्बर के सम्मेलन में बहुत सी बातों पर नए अंदाज में चर्चा होगी. लेकिन ‘अभियान’ के बारे में कुछ बातें स्पष्ट कर दी जायें, तो अच्छा है.
१. इस ‘अभियान’ का कोई औपचारिक संगठन नहीं होगा. इसमें कोई पद नहीं होगा. कोई अध्यक्ष, सचिव या कोषाध्यक्ष नहीं होगा. सभी मित्रों की हैसियत बराबर की होगी.
२. ‘अभियान’ का कोई कोष नहीं होगा. किसी भी संस्था या व्यक्ति से कोई चंदा वंदा नहीं लिया जाएगा. सभी मित्र अपनी इच्छा से और अपनी सीमा में अपने स्थान पर काम करेंगे. जो भी खर्च होगा, वे अपनी जेब से और खुद ही खर्च करेंगे. इसके लिए सभी कार्यक्रम अत्यंत सादगी से आयोजित होंगे.
३. किसी भी व्यक्ति के पोस्टर ‘अभियान’ के नाम पर नहीं लगेंगे. किसी मुखौटे का इस्तेमाल नहीं होगा और न ही उल्टी सीधी टोपियां पहनी जायेंगी ! यह सस्ती लोकप्रियता का अभियान नहीं होगा. यह जिम्मेदार नागरिकों का मंच होगा.
४. ‘अभियान’ के सदस्य किसी भी पार्टी (दल) के सदस्य हो सकते हैं. वे किसी भी दल से किसी भी पद के लिए चुनाव लड़ सकते हैं. वे ‘अभियान’ में काम करने का पूरा फायदा अपनी राजनीति (लोकनीति) के लिए ले सकेंगे. इससे अभियान को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बल्कि इससे अभियान को फायदा ही होगा, क्योंकि जागरूक नागरिकों की उपस्थिति हर तरफ दिखाई पडेगी. लेकिन ‘अभियान’ किसी भी राजनैतिक दल को समर्थन नहीं देगा. ‘अभियान’ की तरफ से किसी दल के पक्ष में घोषणा नहीं होगी. ‘अभियान’ एक स्वस्थ और स्वतंत्र विचार मंच के रूप में कार्य करेगा. न ही ‘अभियान’ कभी किसी क्षेत्रीय दल को खड़ा करने के बारे में सोचेगा. हमारा यह मानना है कि भारत की एकता और अखंडता के लिए दो ही दल काफी हैं. हमारा प्रयास यह हो कि ये दोनों दल भाजपा और कांग्रेस,ठीक ढंग से काम करें.
५. सदस्य अपने विचार स्वतंत्र रूप से रख सकेंगे. परन्तु यह ध्यान रखा जाएगा कि ‘अभियान’ के नाम पर कोई सदस्य ऐसा काम न करे जो अभियान की मूल भावना के विरुद्ध हो. अगर ऐसा काम कोई सदस्य करेगा तो ‘अभियान’ अपने आपको उस सदस्य से अलग समझेगा.
कुल मिलाकर पद और पैसे के घन चक्करों से दूर यह एक सीधा साफ़ ‘अभियान’ है, जिसमें बातों और उपदेशों की बजाय स्वयं के हाथों काम करने पर अधिक जोर है. आप सभी पाठकों से अपेक्षा है कि इस सम्मेलन में पधारें और राजस्थान के वास्तविक विकास के लिए समर्पित इस ‘अभियान’ में सहयोग करें. ध्यान रहे कि यह एक ‘अभियान’ है जो एक निश्चित उद्धेश्य के लिए है. यह किसी व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध कोई ‘आंदोलन’ नहीं है. अभियान और आन्दोलन के इस फर्क में ही अभियान की भावना छुपी है.