इस वर्ष जिस समय बुवाई हुई थी, तब तारामीरा का भाव लगभग 7 और चने का भाव लगभग 13 हजार रूपये क्विंटल था. आज तारामीरा 3 और चना 4 हजार के भाव में बिक रहा है.
किसानों की आमदनी दुगुनी करने में लगे प्रधानमन्त्री की बात को इस तथ्य पर परखा जा सकता है.
आमदनी हकीकत में आधी या एक तिहाई हो गई है.
कौन कर रहा है यह सब ?
ये दिल्ली-मुंबई में बैठे दलाल होते हैं जो सरकार में बैठे गुर्गों के माध्यम से खेल करते हैं. फसल बोने से पहले महंगे भाव में बीज बेचते हैं और फसल आने से पहले बाहर से आयात कर लेते हैं. बाजार को विदेशी किसानों के माल से भर देते हैं. दलाली में खूब पैसा मिलता है. सरकार असल में इन्हीं की हुआ करती है, कॉंग्रेस या भाजपा से इनको फर्क नहीं पड़ता है. दोनों को महंगे चुनाव लड़ने होते हैं और चुनाव पैसों से लड़े जाते हैं. ये दलाल उनको पैसे दे देते हैं. अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे दलाल हैं.
तो इनको किसान का डर नहीं है ?
नहीं, इनको पता है कि ‘किसान’ नाम की चिड़िया अब भारत में बची ही नहीं है. दूसरे देशों के किसानों की तरह भारत के किसानों में जागरूकता नहीं है. वे जातियों में बंटे हुए हैं और राजनीति की अफीम में झूमते हैं. उनके हित की बात करने वाले से दूर भागते हैं और झूठे छल कपट से उनको भरमाने वाले उन्हें अच्छे लगते हैं.
ईलाज इसका कोई ?
अभी तो नहीं है. अभी सोशल मीडिया से उम्मीद थी पर किसान पुत्र भी जाति, संप्रदाय, पाकिस्तान और उलजुलूल के मुद्दों में ‘बीजी’ हैं. कभी उसकी जाति संकट में है, कभी संप्रदाय पर खतरा है और कभी देश संकट में है ! ऐसे में किसी छद्म अवतार के वह कशीदे पढ़ता है. या कोई ‘वीडीओ’ देखने में व्यस्त है. अनपढ़ किसान भी ब्याह-मौसर-मायरे में डूबा हुआ है. गंभीर बात का समय उनके पास नहीं है. नाउम्मीद भी हैं, पुराने धोखे भी डराते हैं. आजादी से पहले वाले हाल में है.
हम क्या करेंगे ?
अभिनव राजस्थान अभियान में हम राजनीति को विदा करके लोकनीति स्थापित करेंगे. हमें आन्दोलन, धरने या प्रदर्शन से समाधान नजर नहीं आया है. इसलिए हमने किसान-कारीगर-व्यापारी को जोड़कर नई व्यवस्था की योजना बनाई है. उसका प्रचार प्रसार कर रहे हैं. पारदर्शिता से अपने आपको प्रस्तुत कर रहे हैं. वही अंतिम समाधान है. देखते हैं कि हम कितना कामयाब होते हैं.
हमारे पास बदलाव करने का मन है, शब्द हैं, ऊर्जा है, नीयत है.
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