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कृषि उपज मंडी समिति क्या अपना अर्थ खो चुकी है

किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने में नाकामयाब कैसे हो रही है ?
आप किसी जागरूक किसान से पूछिए कि कृषि उपज मंडी समिति क्या काम करती है. क्यों इन समितियों का गठन किया गया था ? शायद अधिकतर किसान और अन्य जागरूक नागरिक इस सवाल का ठीक जवाब नहीं दे पायेंगे. बरसों से खेती के विषय के उपेक्षा के कारण खेती से जुड़ी संस्थाओं और प्रशासनिक इकाईयों से किसानों का ध्यान हट सा गया है. वे जातिगत राजनीति में इतना उलझ गए हैं कि उनको अपने परिवार और खेत से जुड़े मुद्दों की कोई चिंता फिक्र ही नहीं रह गयी है. वे तो जैसे राजनीति की अफ़ीम के नशे में खो गए हैं ! कार्ल मार्क्स ने दुनिया के मज़दूरों को धर्म की अफीम से बचकर मूल मुद्दों पर ध्यान देने को कहा था, पर शायद उन्हें मालूम न था कि यहां भारत में जाति की अफीम, धर्म की अफीम से ज्यादा नशा देती है. जातियों के इस नशे का हमारे राजनेताओं ने खूब मजा लिया है.
क्या है मूल कार्य और क्या करती है समिति
कृषि मंडी समिति का मूल कार्य है-किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलवाना. यही है मूल कार्य. दूसरा कार्य है, फसल के बेचान से प्राप्त शुल्क से प्रदेश की आमदनी बढ़ाना. लेकिन जब हमने मेड़ता की कृषि उपज मंडी समिति के कार्यालय का निरीक्षण सूचना के अधिकार के तहत किया तो चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. ऐसा लगा जैसे मूल कार्य-किसानों को उचित मूल्य दिलवाना, तो लगभग बंद ही हो गया है. जब हमने समिति के सचिव से पूछा कि आप, समिति और 40  लोगों का स्टाफ मिलकर किसानों के हित में क्या काम करते हैं, तो वे कुछ भी समझाने की स्थिति में नहीं थे. उनसे प्राप्त कागज़ात और उनसे हुई वार्ता में कोई भी कदम उनके द्वारा उठाया गया प्रतीत नहीं हो रहा था, जिससे लगे कि किसानों को लेकर मंडी प्रशासन को कोई चिंता हो. वे एक ही बात दोहराते रहे कि वे अमुक रकम सरकार को राजस्व या शुल्क के रूप में सरकार को जमा करवाते हैं. बस यही काम वे करते हैं. हमें तो वे इतना ही समझा पाए.
                      जब हमने फसल के बेचान की पद्धति के बारे में जानना चाहा तो पता लगा कि किसान की ढेरी पर व्यापारियों का एक समूह बोली लगाने आता है और जो भी ज्यादा बोली लगाता है, उसके नाम ढेरी छूट जाती है. बोली कम है या ज्यादा, यह किसान के हाथ में नहीं है और न ही मंडी प्रशासन इसमें अपनी टाँग अड़ाता है. यह टाँग अड़ाना ही मंडी समिति का मुख्य काम है और इसी काम को समिति नहीं करना चाहती है. वर्ना यह बोली लगाने का काम तो व्यापारी अपनी दुकानों पर पहले से ही करते आये हैं. मंडी समिति बनाने की कहां जरूरत थी. सचिव ने हमें बताया कि शाम को व्यापार हो जाने के बाद एक बाबू जाकर ढेरियों के भाव लिख लाता है और यही स्टेटमेंट आगे भेज दिया जाता है. तो इतने से काम के लिए इतनी मशक्कत क्यों ? क्यों सरकार ने करोड़ों रूपये बनाकर प्लेटफॉर्म बनवाए, गोदाम बनवाए ? जब यह पूछा कि किसान अगर माल न बेचना चाहे तो क्या करे ? सचिव बोले कि या तो वे माल वापस ले जाए और या गोदाम में माल रख दे और उचित भाव आने पर बेचे. जब यह पूछा कि अभी गोदाम में कितने किसानों का माल पड़ा है, तो बताया गया कि गोदामों में तो माल व्यापारियों का पड़ा है.यानि प्लेटफॉर्म पर माल व्यापारियों का और गोदाम भी व्यापारियों के काम आ रहे हैं. वार्तलाप और निरीक्षण में यही सार निकला कि मंडी समिति केवल व्यापारियों के हितों के लिए काम करती है और अपने मूल कार्य से उसे कोई सरोकार नहीं है. किसानों को उचित मूल्य दिलाने के काम से उसे कोई सरोकार नहीं है.
क्या कहते हैं नियम ?
जब हमने कागज़ों को खंगाला तो नियम सामने आये. नियमों में कोई कमी नहीं, लेकिन कौन इन्हें पढ़े और लागू करवाए. कहने तो मंडी समिति में चुने हुए प्रतिनिधि हैं, पर ये प्रतिनिधि भी वैसे ही काम करते हैं, जैसे अन्य संस्थाओं के. ग्राम पंचायत से संसद तक एक सा ही हाल है. पर दोष उन्हें क्यों दें. वे भी तो हमारे बीच से ही निकले हैं. जब हम जिम्मेदारी लेने से बचते हैं तो वे भी पद और पैसे के लोभ में अपनी जिम्मेदारी से बचने लगते हैं.  उन्हें छोड़ें  पहले कुछ नियम जान लें.
१.     मंडी में उपज या माल आने पर मंडी प्रशासन उसकी ग्रेडिंग करेगा. मंडी में कृषि विशेषज्ञ यह काम करेंगे. यानि जो कृषि विज्ञान पढ़े होते हैं, वे अधिकारी बताएँगे कि कौनसा माल किस ग्रेड का या गुणवत्ता का है. उसी ग्रेड के अनुसार विभिन्न ढेरियों पर अलग अलग रंग की झंडियां लग जायेंगी. लाल, हरी और पीली. एक ही ग्रेड के माल के भाव में व्यापारी सौ रूपये से ज्यादा का फर्क बोली में नहीं कर सकता है. ऐसा नहीं हो सकता है कि एक ही ग्रेड के मूंग, कहीं २५०० रूपये प्रति क्विंटल में तो कहीं ३००० रूपये में बिक रहे हों. ऐसा नहीं हो सकता. इस काम में सहायता के लिए प्रत्येक मंडी में एक प्रयोगशाला भी स्थापित की गई है, जो दालों में प्रोटीन की मात्र और तिलहनी फ़सलों में तेल की मात्र बतायेगी.  शायद ही किसानों को  इन सब बातों की जानकारी हो.
२.     बोली शुरु करने का काम मंडी कर्मचारी का होता है. वह सरकार के समर्थन मूल्य से अपना भाव शुरू करेगा. इससे नीचे बोली शुरू नहीं हो सकती है. यही तो पेच है, जिससे मंडी समिति किसान को भाव की सुरक्षा दे सकती है. गुजरात की मंडियों में ऐसा ही होता है. कुछ तो वहां की सरकार किसानों के हितों का ध्यान रखती है और कुछ वहां के किसान भी जागरूक हैं. अपने यहां जागरूकता की कमी हर क्षेत्र में परेशान करती है और मंडी भी उससे अछूती नहीं है.
३.     भावों की राज्य स्तर पर बराबर समीक्षा होगी और अगर ऐसा लगता है कि समर्थन मूल्य का सम्मान नहीं किया जा रहा है, तो सरकार को अपनी ‘ टाँग’ अड़ा देनी होती है. इतना काफी होता है और इससे व्यापारियों को संकेत हो जाता है कि राजस्थान में अब किसानों को मनमाने भाव से नहीं ठगा जा सकता है. असल में समस्या स्थानीय व्यापारियों की नहीं होती है, जो मंडी में दुकानें करते हैं. समस्या इन दुकानदारों से माल खरीदने वाले बड़े व्यापारी करते हैं. वे इस ‘गेम’ में अपनी मनमानी कर ही लेते हैं और कम भावों पर माल खरीदकर ‘मलाई’ खा जाते हैं. थोड़ा दबाव बना नहीं कि वे टूटे नहीं.
४.     किसान को अगर आज के भाव उचित नहीं लगते हैं तो वे अपने माल को सरकारी गोदामों में बहुत ही कम किराए पर रखकर एक सुरक्षित रकम उसकी एवज में प्राप्त कर सकते हैं. जब भाव ठीक आ जायें तो वे अपना माल बेच लें. इतना सा अभ्यास उनको अच्छे भाव दिला सकता है.
ये तो बस कुछ नियम हैं जो यहां बताये गए हैं. आप जब सूचना के अधिकार के तहत अपने अपने क्षेत्रों में जानकारियाँ जुटाएंगे तो सारी जानकारी आपको अपने घर पर आ जायेगी. आपको लग जाएगा कि अभी तक की जो राजनीति आप समझे हैं, उससे कितना आगे बढ़ने की जरूरत है. शायद तब वह राजनीति न होकर लोकनीति बन जायेगी और यही ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का उद्देश्य है.

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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2 comments

  1. very informative and must know facts about कृषि मंडी समिति …
    Ye Jankari to har Kishan tak Pahuchani Hogi……

  2. very informative and must know facts about कृषि मंडी समिति …
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