राजस्थान के औसत किसान परिवार की Economics.
तीस-चालीस वर्ष के एक कार्यकारी जीवन का हिसाब. कष्टों की राह, टूटते सपने.
और अभिनव राजस्थान का समाधान.
राजस्थान में औसत किसान के पास सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 25 बीघा (4 Hactare) जमीन उपलब्ध है. आंकड़े तो यह भी कहते हैं कि आधे से ज्यादा किसानों के पास दो हेक्टेयर या लगभग बारह-तेरह बीघा जमीन खेती के लिए उपलब्ध है.
पांच व्यक्तियों का एक औसत परिवार मान लेते हैं. इस परिवार को अपनी जमीन से कितना रूपया एक साल में मिल सकता है ? पचास हजार से एक लाख रूपया. अगर किस्मत बहुत अच्छी हो तो. यानि छः हजार रूपया एक महीने का. अगर यह परिवार मजदूरी भी कर ले तो महीने में चार हजार और जोड़ सकते हैं. नरेगा के सौ दिन भर दें तो उसे भी इस मजदूरी में जोड़ लें. कुल मिलाकर एक महीने के इन दस हजार रूपयों में से पांच व्यक्तियों का खर्च निकालकर बचत कर भी लें (जो अक्सर हो नहीं पाता है) तो दो हजार बचा लें. तीन हजार बचा लो. वर्ष में तीस से पैंतीस हजार बचा लें. पांच वर्ष में डेढ़ लाख और दस वर्ष में तीन लाख रूपये आदर्श स्थिति में जमा हो सकते हैं. अधिकतम.
तीस से चालीस वर्ष के कार्यकारी जीवन में आठ से दस लाख रूपये पास हो भी जाएँ तो क्या हो जाएगा ? आज की महंगाई में ? मान लीजिये कि इस दौरान दो विवाह करने पड़ गए तो गए पांच लाख रूपये, कम से कम. जो कुरीति चल रही है, उसके हिसाब से दो परिजन(माता-पिता) की मौत हो गई तो क्रियाकर्म में गए तीन लाख. लोग जीमे बगैर मानेंगे नहीं. हो गई बचत पूरी ?
यह सब खर्च तथाकथित इज्जत के नाम पर अनिवार्य लगते हैं. अब ईश्वर न करे कि कोई बड़ी बीमारी आ जाये. फिर समीकरण बिगड़ना ही है. और ऐसे हालात में बच्चों की मनचाही पढ़ाई और अच्छा घर बनाने के बारे में क्यों सोचेगा कोई ? आई ए एस में जाने के लायक बच्चे पटवारी बन जाते हैं तो डॉक्टर बनने लायक बच्चे नर्सिंग करते हैं.
हाँ, कोई परिजन सरकारी या निजी नौकरी में चढ़ जाए तो राहत हो सकती है. या कोई दो या एक नम्बर का काम हाथ लग जाये तो किस्मत बदल सकती है. लेकिन वर्तमान खेती की पद्धति और समाज की कुरीतियों के चलते औसत राजस्थानी किसान का जीवन बहुत ही कठिन है. ऐसे में उसे ‘विकास’ या ‘राष्ट्र’ के उपदेश अक्सर पराये लगते हैं. वह सब नारे बहरा सा सुनता है और हाँ भी भर देता है पर अंदर से कराह रहा होता है.
अभिनव राजस्थान इसी economics को दुरस्त करेगा. लेकिन खोखली योजनाओं से नहीं, जो अक्सर नौकरशाहों द्वारा बिना अनुभव और बिना ठीक नीयत के बनाई जाती हैं. अभिनव राजस्थान की योजना व्यवहारिक है. कैसे ?
कदम दर कदम अभिनव राजस्थान में समाज और शासन एक साथ चलेंगे. समाज के सुधारों के बगैर पूँजी कभी भी नहीं बचेगी, यह हम मानते हैं. कितनी भी सब्सिडी दे दो, कितना भी लोन दे दो, बेहिसाब सामाजिक खर्च और झूठी शान के लिए दिखावा सब लील जाता है. अपने गंगानगर को ही देख लीजिये. कितना कुछ धरती ने पैदा किया. कहाँ गया ? इसलिए सामाजिक कायदों को दुरस्त करना हमारा पहला कदम होगा. हम इसके लिए सभी सामाजिक वर्गों को तैयार करेंगे कि वे अपने सामाजिक समारोह सादे और सुसंस्कृत करें. तब पूँजी बचना शुरू होगी, जो खेती और परिवार को आगे बढ़ाने के काम आएगी. हम इसके लिए भारी माहौल बनायेंगे और यह मिशन पक्का सफल होगा क्योंकि सभी परिवार अंदर से यह चाहते हैं.
फिर दूसरे कदम के रूप में एक सम्पूर्ण कृषि की योजना होगी जो समाज और शासन मिलकर बनायेंगे, मिलकर लागू करेंगे. किसान ही योजना बनायेंगे और शासन उसे लागू करेगा. खुलकर संवाद होगा, खुलकर चर्चा होगी. तभी योजना सफल होगी. तभी खेती और पशुपालन का उत्पादन बढ़ेगा.
हम खेत और फेक्ट्री को सीधे गाँव और कस्बे में ही जोड़ देंगे ताकि उपज का मूल्य बढ़े. पशुपालन की भी हमारी विस्तृत योजना है जो खेती को पंख लगा देगी. कृषि उपज के विक्रय की पारदर्शी व्यवस्था होगी ताकि किसान और उपभोक्ता दोनों लाभ में रहें. तब यह 25 बीघा खेत वाला परिवार पांच से दस लाख रूपये कमाने लगेगा. तब यह परिवार सही मायने में समृद्ध भारत का रास्ता खोलेगा.
तीसरा कदम अभिनव शिक्षा और अभिनव स्वास्थ्य के माध्यम से किसान परिवारों की सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध करवाना होगा. इन सेवाओं के लिए किसानों को ही नहीं, किसी भी राजस्थानी परिवार को अपनी गाढ़ी कमाई फूंकनी नहीं पड़ेगी पांचवां कदम हमारी प्रकृति के अनुकूल खेती करना होगा ताकि खेती की लागत कम आये.
और छठा कदम सांस्कृतिक मूल्यों और परम्पराओं की पुनः बलवती करने का होगा ताकि किसान परिवार आनंद से भरें और उनका खोया आत्मविश्वास जगे. यह सर्वांगीण दृष्टि ही औसत किसान परिवार को देश के आर्थिक धारा से जोड़ सकती है. जटिल समस्याओं के समाधान टुकड़ों में (piecemeal) या असमन्वित नहीं हुआ करते हैं. समाज और शासन के सभी अंगों को समन्वय से काम करना होता है. समाज सुधार, शासन सुधार, शिक्षा-स्वास्थ्य सुधार, उद्योग-बाजार सुधार, सभी एक साथ करने से ही कृषि व्यवस्था उत्पादक हो पाएगी.
और यह हम कर देंगे. क्योंकि तीन चौथाई परिवारों के आगे बढ़े बगैर देश आगे नहीं बढ़ेगा.
और यह हम कर देंगे, क्योंकि हमें वन्दे मातरम करना ही है.
कब ? 2020 में. समय तो लगना है.
बीमारी बड़ी है, लम्बी है. और ईलाज पक्का करना है, स्थाई करना है.
2017 में काम शुरू हो जाएगा.
सुखद अनुभव की फुहारें बरसने लगेंगी.
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