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अभिनव प्रकृति

हमारे लक्ष्य
 

1.        पाँच वर्षों में पाँच करोड़ पौधों का वास्तविक रोपण।
2.        प्रदेश की पहाड़ियों, नदियों, झीलों एवं तालाबों को 50 प्रतिशत तक मौलिक स्वरूप में लेकर आना।

हमारे उद्देश्य
 
1          स्थाई एवं सुन्दर विकास का मार्ग प्रशस्त करना,
                                    प्राकृतिक संसाधनों के न्यायोचित उपयोग से।
2.                  उत्पादन की लागत कम करना,
                                    स्थानीय कच्चे माल को विकास का आधार बनाकर।
3.                  स्वस्थ जीवन के लिए वातावरण को शुद्ध रखना,
                                    प्रदूषण मुक्त राजस्थान की रचना करके।
4.                  पारिस्थितिकी का संतुलन बनाना,
                                    जल, जंगल, जमीन, हवा, पौधों, जानवरों तथा मनुष्यों में समन्वय बनाकर। 
5             प्रकृति का सम्मान करना,
                                    राजस्थान की जलवायु को अभिशाप नहीं वरदान मानकर।
 
इसके लिए हम ये आवश्यक परिवर्तन करेंगे
 
1          नए सिरे से योजनाओं का निर्माण करेंगे,
                                    प्रदेश की प्रकृति के संवर्द्धन और संरक्षण के सरल कार्यक्रम बनायेंगे।
2.                  वृक्षारोपण को एक जन आंदोलन का रूप देंगे,
                                    केवल औपचारिकताओं से काम नहीं बनेगा।
3.                  कृषि वानिकी के कार्यक्रम पर जोर देंगे,
                                    ताकि किसानों की आमदनी और प्रकृति के संरक्षण का जोड़ बन सके।
4.                  खनन और प्रकृति में समन्वय बनायेंगे,
                                    विकास के नाम पर विनाश नहीं होने देंगे।
5.                  प्रदेश को प्राकृतिक प्रदूषण से मुक्त करेंगे,
                                    विश्व के लिए राजस्थान इस दृष्टि से एक आदर्श बनेगा।
 
हमारी रणनीति
  
  1. मुख्यमंत्री एवं वन मंत्री के साथ प्रदेश के वन अधिकारियों एवं खनन अधिकारियों की बैठक में गंभीर मंत्रणा होगी कि राजस्थान की प्रकृति को बचाने के लिए कौनसे प्रभावी उपाय किये जाएँ।
  2. वनों के साथ पारंपरिक रूप से जुड़ी जातियों के महा सम्मेलन कर योजना निर्माण और उसके क्रियान्वयन में उनकी भागीदारी बढ़ायी जायेगी। भील, गरासिया, सहरिया, कथौडिया, वनबावरिया, जंगलिया, कंजर, सांसी, बनजारा आदि इन जातियों को विशेष ज़िम्मेदारियाँ दी जायेंगी। उनके जंगल से जुड़े रहने की प्रवृत्ति को एक योग्यता मन जायेगा।
  3. प्रत्येक खेत, गाँव, कस्बा, शहर, पहाड़ी, नदी, झील, तालाब एवं सड़क की एक विशिष्ट योजना बनेगी, जिसको स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार बनाया जायेगा। इस योजना को सिंचाई, सड़क, पर्यटन, स्थानीय शासन, कृषि, लघु-कुटीर उद्योग तथा सामाजिक-आदिवासी कल्याण विभागों की योजनाओं के साथ जोड़ कर एक सरल कार्यक्रम बनाया जायेगा, जिसे लागू करना आसान हो और जिसके परिणामों का आकलन पारदर्शी हो।
  4. प्रदूषण करने वाले वाहनों और फैक्ट्रियों को उनकी मशीनों में सुधार के लिए प्रदेश के तकनीकी संस्थान आवश्यक सस्ते तकनीकी संसाधन उपलब्ध करवाएंगे। इसके बाद भी अगर वे प्रदूषण फैलाएंगे, तो उनको सीधे जब्त किया जायेगा। चालान जैसा बीच का रास्ता नहीं होगा। दूसरी ओर कोयले और लिग्नाइट के स्थान पर सौर एवं पवन आधारित ऊर्जा संयंत्रों को बढ़ावा दिया जायेगा।
  5. शिक्षण संस्थानों को प्रकृति संरक्षण के कार्य से सीधे तौर पर जोड़ेंगे। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के वनस्पति एवं जंतु विज्ञान विभागों को विभिन्न कार्यक्रमों की जिम्मेदारी एन जी ओ की तरह देंगे, जिससे युवाओं को सीखने के साथ कमाने के अवसर मिलेंगे  और उनमें प्रकृति से जुड़ाव भी पैदा होगा। इससे इन संस्थानों को अनुसंधान के अवसर भी उपलब्ध होंगे।
वर्तमान स्थिति
 
  1. 100 से भी अधिक भारतीय वन सेवा के अधिकारियों की उपस्थिति का असर प्रदेश में नहीं दिखाई पड़ रहा है। अधिकांश गीली लकड़ियाँ पकड़ने की कार्रवाई पुलिस ही कर रही है। वन अधिकारी तो केवल सेमीनारों और गेस्ट हाउसों में ही दिखाई दे रहे हैं। वन विभाग में किसी भी पद का अर्थ केवल वेतन लेकर मौज करना रह गया है। न ही शासन की प्राथमिकता में अभी तक यह विषय ठीक से आ पाया है। केवल बाहरी सहायता के भरोसे औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं। बंजर और व्यर्थ भूमि के विकास में उदासीनता बरती जा रही है।
  2. पहाड़, नदियां, झीलें, तालाब और गोचर शासन की लापरवाही और मिली भगत के कारण खनन और अतिक्रमणों की भेंट चढ़ रहे हैं। जनता भी जागरण के अभाव में इनके दूरगामी नुकसानों को लेकर चिंतित नहीं है।
  3. वृक्षों को आमदनी से नहीं जोड़ने से भी वृक्षारोपण आंदोलन नहीं बन पाया है। खाली पड़ी जमीन पर वृक्ष उगाने का माहौल नहीं बन पाया है। केवल भाषण और अखबारों में खानापूर्ति के विज्ञापनों से यह माहौल नहीं बनेगा। राजनैतिक नेतृत्व की गंभीरता भी जनता को दिखाई नहीं दे रही है। वहीं गैर सरकारी संस्था ने भी कागज में ही वृक्ष उगाए हैं।
  4. जंगलों से जुड़ी जातियों के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा गया है। जंगल से उन्हें बेदखल कर दिया गया, खेती की जमीन उनके पास है नहीं और न पूँजी है, जिससे वे कारोबार कर सकें। शासन में उनको प्रवेश नहीं मिल रहा, क्यों कि इसके लिए आवश्यक योग्यता वे प्राप्त नहीं कर पाए। ऐसे में कुछ जातियों ने अपराध शुरू कर दिए, तो कुछ ने जंगल काटने में व जानवरों को मरने में माफियों की मदद कर दी। अन्य जातियां खेतों में मजदूर बन गयीं।
  5. जानवरों के शिकार के विरुद्ध भी शासन गंभीर नहीं है. कछुओं, मगरमच्छों, साँपों, मोरों और हिरणों का शिकार जारी है। हिरणों का शिकार करने वालों को तो प्रदेश का ब्रांड एम्बेसडर बनाया जा रहा है। जबकि पेड़ों के लिए बलिदान देने वाले खेजडली के शहीदों का स्मारक शासन को विशेष महत्व का नहीं लगता है। विश्व में इस तरह का बलिदान कभी भी और कहीं भी नहीं हुआ है, फिर भी विश्व के पर्यावरण कार्यक्रम की राजधानी यह स्थान नहीं बन पाया है।
प्रशासनिक ढाँचा
 
    वन मंत्री
    खान मंत्री
    महा निदेशक (वन)- प्रदेश स्तर पर -उदयपुर में
    महा निदेशक (वन्यजीव)-प्रदेश स्तर पर- उदयपुर में  
    महा निदेशक (खान)- प्रदेश स्तर पर- उदयपुर में
    अतिरिक्त महा निदेशक (वन)- संभाग स्तर पर
    अतिरिक्त महा निदेशक (वन्यजीव)-संभाग स्तर पर  
    अतिरिक्त महा निदेशक (खान)- संभाग स्तर पर
    निदेशक (वन)- जिला स्तर पर
    निदेशक (वन्यजीव)-जिला स्तर पर
    निदेशक (खान)- जिला स्तर पर
    अतिरिक्त निदेशक (वन)- ब्लॉक (पंचायत समिति) स्तर पर
    अतिरिक्त निदेशक( खान)- ब्लॉक  स्तर पर

यह भी होगा

 
  1. वन व खान विभागों के भीतर कोई निगम नहीं होगा। विभागों के कार्यों का भी फिर से सरल वर्गीकरण किया जायेगा।
  2. पुलिस का दखल वन विभाग या खान विभाग के कार्यों में बिलकुल नहीं होगा। अवैध खनन को रोकने या अवैध वृक्ष कटाई रोकने का कार्य मूल विभाग करेंगे। अगर पुलिस ये कार्य करेगी,  तो मूल विभाग के कर्मचारियों को वेतन किस लिए दिया जा रहा है ?
  3. वन विभाग की जमीन का भौतिक सत्यापन एक मुहिम के तहत होगा। सभी आंकड़े भी दुरुस्त किये जायेंगे। वन विभाग को व्यर्थ पड़ी जमीन का बड़े स्तर पर एक मुश्त आवंटन किया जायेगा, जिस पर व्यापक वृक्षारोपण किया जायेगा। साथ ही राजस्थान के वनों एवं खनिजों के बारे में विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी जनता के सामने रखी जायेगी, ताकि उसकी रुचि इस विषय में बढ़े और लोग खनिजों और वृक्षों के आर्थिक महत्व को समाज सकें।

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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