(धारणाएं बदलें ताकि समाधान निकले)
गलत धारणा- राजस्थान में ‘पानी की कमी’ विकास में बड़ी बाधा है.
सही धारणा- ‘राजस्थान में पानी के प्रबंध की कमी’ विकास में बड़ी बाधा है.
बरसों से इस गलत धारणा से निराशा फैलाई जा रही है कि राजस्थान में कम पानी है. इसलिए खेती और उद्योग नहीं पनप रहे हैं.
जबकि प्रकृति के अनुसार जितना पानी धरती के इस भाग पर गिरना चाहिए, उतना कमोबेश पांच साल के औसत में गिर जाता है. कभी ज्यादा तो कभी कम.
समस्या इस कम या ज्यादा पानी के प्रबंध की कमी है. हम छतों पर, गली में, सड़क पर, खेत में या गोचर में बरसे पानी को सहेजने की सटीक व्यवस्था अभी तक कर नहीं पाए हैं. इसलिए कम और ज्यादा पानी, दोनों को हम ‘आफत’ कह देते हैं. दूसरी इसी से जुड़ी हुई बात है, हमारी खेती और हमारे उद्योग का प्रकृति सम्मत नहीं होना. हमें फिर से बाजरा, मक्का, ज्वार, तिल, मूंगफली, मोठ, उड़द और ग्वार के उत्पादन वाला प्रदेश बनना होगा. हम गेहूं, कपास, गन्ने, मूंग और चावल जैसी फसलों को afford नहीं कर सकते. साथ ही हमें छोटे और कुटीर उद्योगों की दुनिया में आधुनिक तकनीक के साथ लौटना होगा. वहीं हमें हमारी अपनी कम पानी की घासों से चारे का प्रबंध करके पशुपालन को cost effective बनाना होगा.
तब हम असल में अपनी प्रकृति को वरदान में बदल देंगे. अभी हम जिसे अभिशाप कहते हैं.
अभिनव राजस्थान उसी व्यवस्था का नाम है, जो राजस्थान की प्रकृति के साथ समृद्धि को एकरूप कर देगी. और यह होने ही वाला है. 2020 में आप इस व्यवस्था को धरातल पर देखेंगे, अपने घर के पास, गाँव में, अपने शहर में. विश्वास रखिये. अपने आप में और हममें.
वन्दे मातरम !
मूंग तो कम पानी में ही हो जाता हैं….