नागौर में पानी का प्रबंध कौन कौन कर रहा है ?
नागौर ही क्या, राजस्थान में, भारत में.
एक मजाक देखिये.
यह भी कि सरकारें कैसे काम काम करती हैं. (share)
एक विभाग है, जलदाय विभाग. दूसरा सिंचाई विभाग. तीसरा नहर विभाग. चौथा सिंचाई विभाग, पांचवा जलग्रहण विकास विभाग. छठा कृषि विभाग, सातवाँ उद्यानिकी विभाग, आठवाँ नरेगा और नौवें ग्रामीण जो अपने तालाबों को संभालते हैं.
सभी का टारगेट है, नागौर जिले में जल का प्रबंध करना,पीने के लिए, सिंचाई के लिए और उद्योग के लिए. टुकड़ों में बंटे काम का नतीजा यह है कि कहीं भी जल प्रबंध नजर नहीं आ रहा है और पानी की कमी हर तरफ महसूस की जा रही है.पानी का प्रबंध तो नहीं हो रहा है पर पैसा पानी की तरह बह रहा है ! देखिये न, अकेले जल ग्रहण विकास विभाग ने पिछले पांच सालों में नागौर में लगभग 421 करोड़ रूपये खर्च कर दिए ! अब शेष विभागों का खर्च जोड़ेंगे तो एक गाँव में दस करोड़ खर्च होते जान पड़ेंगे. हे प्रभु !
'अभिनव नागौर' और अभिनव राजस्थान' में एक ही विभाग यह काम करेगा- जल संसाधन विभाग. नाम तो अभी भी ऐसा रखा हुआ है पर धरातल पर समन्वय नहीं है. हमारी व्यवस्था में हर छत और हर खेत में गिरी बूंदों को सहेज कर स्थानीय जरूरतों को पूरा किया जाएगा. हर गाँव और शहर का मास्टर प्लान बनेगा जिसमें वहां के तालाब भी शामिल होंगे. इन तालाबों को तो अभी जलदाय विभाग ने नकार ही रखा है, जबकि ये तालाब प्राकृतिक रूप से स्थानीय आबादी की काफी जरूरत पूरी कर सकते हैं.
इस मामले में हम प्रमुख शासन सचिव, जल संसाधन सचिव को पत्र लिखकर समझायेंगे और उनसे इस मामले में पहल करवा लेंगे. राजस्थान के हित में यह बहुत महत्त्वपूर्ण पहल होगी. और हम यह करके रहेंगे. पक्का.
हमें यही करना है. माहौल बनाना है. फिर तो काम को होना ही होता है.
'अभिनव नागौर' से 'अभिनव राजस्थान' होते हुए 'अभिनव भारत' तक.
वन्दे मातरम !
wah kya efficiency hai