अभिनव राजस्थान एक नई व्यवस्था का नाम है.भारत के गौरवशाली इतिहास की टूटी कड़ियाँ जोड़ने का प्रयास है.
मित्रों, कभी इतिहास में आपने पढ़ा होगा कि हम विश्व के श्रेष्ठतम लोग हुआ करते थे. वैदिक और गुप्त काल में जो सोचा गया था, जो बोला गया था और जिसे बाद में लिखा गया था, मूर्त रूप दिया गया था, वह इस पृथ्वी पर मानव जीवन का स्वर्ण काल था. ज्ञान और विज्ञान की वह ऊंचाइयां विश्व में फिर नहीं छूई गईं. बाद में दक्षिण और पश्चिम भारत में 10 वीं से 12 वीं सदी में क्रमशः चोलों और परिहारों-परमारों ने इतिहास की अपनी समृद्ध परम्परा को ज़िंदा रखा था. तभी नजर लग गई. और फिर सब समाप्त हो गया. गुलामी से उपजी निराशा का एक लंबा काल, अँधेरा काल शुरू हुआ जो आज तक जारी है.
बीच में दयानंद-विवेकानंद-अरविन्द-भगत-सुभाष उस खोये स्वाभिमान को जगाने का साहस और प्रयास करते हैं पर इतिहास साथ नहीं देता, समय साथ नहीं देता, संयोग साथ नहीं देता. अँधेरा नहीं छंटता.
देश स्वतंत्र होने पर एक बार उम्मीद बंधी थी कि निराशा की वह रात बीतेगी और उम्मीद का, स्वाभिमान का, गौरव का सवेरा होगा परन्तु थोड़े ही दिनों में नाउम्मीदी ने फिर घेर लिया.
आगे फिर एक बार जे पी यानी जयप्रकाश नारायण ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ का नारा देकर कुछ आस बंधाते हैं पर यह भी ‘सम्पूर्ण भ्रान्ति’ निकलती है. इन दिनों अरविन्द केजरीवाल का ‘स्वराज’ और भाजपा का ‘परम वैभव’ जनता के सामने है. परिणाम आने बाकी हैं.
गैरजिम्मेदारी के इस काल में ज्ञान-विज्ञान-कला के केंद्र सिमटने लगे, जो अब तो बंद ही हो गए. संगीत की जगह शोर है, कलाकार मजदूर है, प्रयोगशाला वीरान है, कॉलेज बंद है. शोध खोजने से भी नहीं मिल रहा है. एक नितान्त भ्रामक, अराजक स्थिति है, जिसमें कुछ राजनेता-दलाल-अफसर छल कपट से कब्ज़ा जमाये बैठे हैं. लोकतंत्र के नाम को कलंकित करते हुए, जनता को डराते हुए, तो कभी बहलाते हुए. जनता ? जनता ही है, अभी नागरिकता में नहीं बदली है. जागरूकता के अभाव में. जनता अंदर से जानती है कि उसे ठगा जा रहा है पर विकल्प नहीं दिखाई देने पर फिर अँधेरे में सो जाती है, मुंह ढँक कर. अँधेरे से डरे हुए शिशु की तरह !
स्थिति इतनी बदतर हुई है कि उसे बयां करने के लिए एक ग़ज़ल की पंक्ति याद आ गई है. “नाउम्मीदी बढ़ गई है इस कदर, कि आरजू की आरजू होने लगी !”
ऐसे माहौल में हम सब मिलकर एक नई व्यवस्था की रचना करने को निकले हैं- अभिनव राजस्थान. हमारी नीयत साफ़ रही, मेहनत संगठित और सतत रही और संयोग फलित हुए तो हम निश्चित ही सफल होंगे. और जब सफल होंगे तो धरती का यह टुकड़ा यानी राजस्थान, विश्व का सबसे सुन्दर और समृद्ध प्रदेश होगा. सृष्टि बचाने का जाम्भोजी का सपना यहीं से सच होगा. कन्हैयालाल सेठिया का भी सपना सच होगा- आ तो सुरगां ने सरमावे, इण पर देव रमण ने आवे, धरती धोरां री.
आइये, आगे बढ़ते हैं. 2016 से 2020 के बीच कड़ी मेहनत करते हैं. वर्तमान व्यवस्था को समझते हैं, नियंत्रित करते हैं और फिर नई व्यवस्था को स्थापित कर देते हैं.
वन्दे मातरम् कर देते हैं. (कई नए मित्र अभिनव राजस्थान अभियान से जुड़ना चाहते हैं. उनको बता दें कि यह कोई औपचारिक संगठन नहीं है. कोई NGONGO नहीं है. इसकी कोई सदस्यता नहीं है. कोई कोष नहीं है.यहाँ कोई धरना-प्रदर्शन-स्तुति-निंदा नहीं करनी है ! यहाँ तो सिर्फ वर्तमान शासन व्यवस्था के किसी अंग को समझना है. यह समझ ही अभियान से जुड़ने के लिए पहली शर्त है. मन हो तो मेसेज कर दीजियेगा. बस इतना ध्यान रहे कि यहाँ काम केवल कलम से होता है और अपनी जेब से खर्च करके होता है.)