हमारा संगठन कैसा होगा ?
हमारा संगठन भी वर्तमान संगठनों से थोड़ा अलग होगा. यह एक खुला खुला सा संगठन होगा, जिसकी हर गतिविधि खुली किताब जैसी होगी. पारदर्शी होगी. इस संगठन में पदों का झंझट भी नहीं होगा, बस कुछ लोग समन्वय का काम करेंगे. प्रत्येक कार्यकर्ता को ऐसा लगेगा कि वह इस संगठन का महत्त्वपूर्ण अंग है. उसके किये गए कार्य को उचित रूप से रेखाँकित किया जाएगा. आध्यात्मिक क्षेत्र में इस तरह के संगठन हैं भी, लेकिन आर्थिक- सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्रों में इस तरह के संगठन नहीं हैं. पदों के अत्यधिक महत्त्व के कारण वहाँ पर काम से अधिक पद की चर्चा रहती है. इससे पद लोलुपता बढ़ी है. काम के प्रति रुचि कम है और पद हथियाने में रुचि अधिक है. ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ इस बीमारी से मुक्त रहेगा. इसके लिए हम सबको एक बड़े, मगर प्रभावशाली, जागरूक और समर्पित समूह के रूप में काम करना होगा. छोटे छोटे स्वार्थों या अहंकारों से परे हटकर काम करना होगा.
संगठन की आर्थिक व्यवस्था कार्यकर्ताओं के भरोसे रहेगी. अपने स्तर पर इसके लिए व्यवस्था की जायेगी. लेकिन सादगी हमारा मूल मंत्र रहेगा. वैसे भी ‘अभिनव राजस्थान’ में सादगी का मूल्य हमारे लिए खर्च और दिखावे से अधिक होगा. तो फिर संगठन तो इस सादगी को अपनाएगा ही.
जैसे जैसे हमारा काम बढ़ेगा, हम पर राजनैतिक होने का अंदेशा भी होगा. कहा जाएगा कि हम कोई मोर्चा-वोर्चा बनाने तो नहीं चलें हैं. यह आज के युग में स्वाभाविक भी है. तो हम क्या कहेंगे ? हम कहेंगे कि हाँ, हम राजनीति करने ही निकले हैं. हम अपराध बोध से कभी भी नहीं कहेंगे कि हम कोई ‘गैर-राजनैतिक’ संगठन है. ऐसा बचाव करने की कोई आवश्यकता नहीं है. हम कहेंगे, कि हम वाक़ई में राजनीति करने वाले हैं, लेकिन वैसी नहीं जैसे आप समझ रहे हो. हम अभी वोटों के फेर में नहीं हैं. वोटों वाली राजनीति के लिए अभी हमारे पास समय नहीं है. अभी तो हम असली राजनीति करेंगे. असली राजनीति यानी ‘राज ‘ की ‘नीति’ को जनता के अनुसार, जनता के हित में चलाने में मदद करना. राजनीति को ‘लोक नीति’ बनाना. अगर नीति सही नहीं तो इसे बदलने के प्रयास करना. इतना बहुत है. रही बात वोट की नीति की, तो उसके लिए दो प्रमुख दल हैं न. उनसे अभी मन थोड़े ही भरा है आपका ! यह जवाब हमने देना है.
इस वर्ष 2012 में हमें इस संगठन और इसके कार्य को संपूर्ण राजस्थान में फैला देना है.आगे की रणनीति पर अभियान के कार्यकर्ता विचार करते रहेंगे. यह सब इस पर भी निर्भर करेगा कि जनजागरण के पहले चरण में हम कितने कामयाब होते हैं. फिर भी यह तय मानिए कि हम मैदान छोड़ कर नहीं भागेंगे. सही समय पर उचित निर्णय लेते रहेंगे.
अभियान से कैसे जुड़ें ?
अब बात आपके इस अभियान से जुडने की. कई मित्रों ने बार बार यह पूछा है कि इस अभियान से कैसे जुड़ा जाए. उनको हम कह रहे थे कि समय आने पर बता देंगे. तो वह समय आ गया है. अब जुड़ जाईये इस अभियान से, मिशन से. बस थोड़ी सी तैयारी चाहिए.
1. इस अभियान की कोई सदस्यता नहीं है. इसमें कोई पद भी नहीं है. बस हमसे संपर्क कीजिये, पत्र से, ई मेल से, फोन से, व्यक्तिगत. और काम शुरू कीजिये. कार्यक्रम तय कर लीजिए.
2. अपने मन को तैयार कर लीजिए. अपने मन को थोड़ा निर्मल भी कर लें. आशंकाएं हों तो अभियान के बारे में फिर से पढ़ लीजिए. हिम्मत नहीं हो रही हो तो हिम्मत जुटने की प्रतीक्षा कीजिये. वहीं अपने सक्रिय न होने पाने के अब तक के नाकारा तर्कों से भी आप मुक्ति पा लें. ये बहाने छोड़ देंगे तो शायद जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी आपको मदद मिलेगी. केवल ‘अच्छे आदमी’ होने का भ्रम पाल कर घर में बैठे रहकर समाज और देश का नुकसान और मत कीजिये. दूसरों को सुझाव देने या उनसे आपकी समस्याओं का निदान करवाने की भी अपेक्षा छोड़ दें. लेकिन जब अभियान से जुडने का निर्णय कर लें तो फिर देर न करें. पहले ही देर बहुत हो चुकी है. सरकारी कर्मचारी हों, तो भी डरिये नहीं. हम सरकार के खिलाफ कोई क्रान्ति नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम तो सरकार की मदद करना चाह रहे हैं.
लेकिन यह भी ख्याल रहे कि यह कोई योग शिविर करने जैसा सरल काम नहीं है, न ही धरने या अनशनों की कोई लीला है. न ही हमको यहाँ बे वजह तालियाँ बजानी है या किसी की जय बोलनी है. यहाँ तो गंभीरता से, जिम्मेदारी से प्रदेश का, देश का निर्माण करने के लिए काम करना है. अपने दम पर. भारत में यह पहली बार हो रहा है, जब हम पूरी व्यवस्था को ‘अपना’ मानकर, अधिकार पूर्वक समझेंगे, उसमें आवश्यक बदलाव अपने प्रभाव से, अपने स्तर पर करेंगे और शासन से करवा कर रहेंगे.
3. अपनी अब तक की देश-प्रदेश के बारे में धारणाओं को फिर से परख लीजिए. अगर ये सुनी सुनायी बातों पर या अखबारों-पत्रिकाओं की सतही, छिछली जानकारी पर आधारित हैं, तो इन्हें तथ्यों पर परख लीजिए. आवश्यक हो तो इन्हें बदल लीजिए. हम आसानी से काम कर पायेंगे. भ्रष्टाचार, लोकपाल, अन्ना-बाबा-अरुणा-अरविन्द-बेदी, विकास, आरक्षण, राहुल गाँधी, वसुंधरा राजे, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका आदि पर आपको फिर से पढ़ना पड़ सकता है. जानकारी पक्की करनी हो सकती है. अपने अब तक के ज्ञान के अहंकार को भी ईमानदारी से कम करना पड़ सकता है. इसमें आपकी भलाई है, देश-प्रदेश की भलाई है. अभी यह अहंकार टूटे तो बुरा भी लग सकता है लेकिन बाद में जब हकीकतें खुलेंगी, तो आपको आनंद आएगा.
4. वर्तमान व्यवस्था की आलोचनाओं को भी थोडा विराम दें. चिंतन की, लेखन की, यह शैली छोड़ दें. मान लें कि देश-प्रदेश में गलत जो हो रहा है, व्यवस्थाएं जिन कारणों से ठीक नहीं हैं, उन कारणों में हम भी शामिल हैं. हमीं सब यानि समाज के, देश के लोग उसके लिए जिम्मेदार हैं. बस रास्ता खुल जाएगा. दिशा मिल जायेगी. आलोचना की जगह समीक्षा आ जायेगी, भाव बदल जाएगा. समस्याओं की जड़ें दिखाई देनी शुरू हो जायेगी, समाधान प्रगट होने लगेंगे. उसके लिए काम करने का मन करेगा.
5. अंत में, सबसे महत्त्वपूर्ण बात. मेरा विश्वास कर लें. बहुतों का विश्वास जीवन में किया होगा, अब मेरा भी कर लें. मैं कोई छोटा मोटा चुनाव लड़ने या पद या धन पाने के फेर में नहीं हूँ. मेरे इरादे बड़े हैं. व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद लिए बरसों से लिख रहा हूँ, पढ़ रहा हूँ, समाज को समझ रहा हूँ, व्यवस्था को जांच रहा हूँ. घर में नहीं बैठा हूँ, बीच बाजार में खड़ा हूँ. यह भी बता दूँ कि मैं बहुत अच्छा या आदर्श व्यक्ति होने का अहम नहीं करता हूँ और न ही ऐसा भ्रम भी पालता हूँ. मैं बिलकुल निःस्वार्थ भाव से भी अभियान नहीं चला रहा हूँ, नाम कमाने का स्वार्थ तो है. लेकिन इतना विश्वास दिलाता हूँ कि ‘अभिनव राजस्थान’ की रचना के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दूंगा. मैं जानता हूँ कि मैं क्या करने जा रहा हूँ, परिवर्तनों का इतिहास भी मैंने पढ़ा है. हत्या, हत्या का प्रयास, झूठे मुकदमे, जेल, चरित्रहनन, आर्थिक- पारिवारिक- शारीरिक और मानसिक परेशानियों, सबके लिए मैंने खुद को तैयार कर लिया है. क्योंकि मैं जानता हूँ कि वर्तमान व्यवस्था का आनंद ले रहे लोग परिवर्तन होने पर हाथ पाँव तो मारेंगे ही. इसका छोटा सा अनुभव मैंने अपने समाज सुधार के अभियान में 2005-07 में कर भी लिया है. इसलिए कोई डर नहीं है. साथ ही यह विश्वास भी दिलाता हूँ कि मेरे प्रत्येक कार्य में पूर्ण पारदर्शिता रहेगी, जिसे आप पग पग पर, पल पल में महसूस करेंगे.
लेकिन मित्रों, अब देर मत करिये. राजस्थान और भारत की स्थिति ठीक नहीं है. आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक स्थिति ठीक नहीं है. केवल भुलावे से काम चल रहा है, हकीकत झुठला कर काम चल रहा है. और यह निराशात्मक बयान नहीं है, वास्तविक स्थिति है. छः दशक व्यर्थ हो चुके हैं, इस दशक (2011-2020) को भी व्यर्थ न करें, बेकार न जाने दें. काम किया तो पीढियां याद करेंगीं, नहीं किया तो श्राप देंगीं. अपनी आत्मा की सुनें और वह अगर झकझोरती है, तो स्वागत है. अभियान में.