अभिनव राजस्थान की कार्ययोजना
पिछले पृष्ठ पर आपने अभिनव राजस्थान की अवधारणा के बारे में पढ़ा है। आदर्शवादी जैसी लगती इस अवधारणा को प्रत्येक पाठक चाहेगा कि अमल होते देखा जाये। लेकिन सदियों से अविश्वास और निराशा से भरे मन को यह सहज नहीं लगता है। हमें तो यह भी एक बड़ी उपलब्धि लगती है, जब कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी रिश्वत नहीं लेता है। जबकि पश्चिमी विकसित देशों में इस पर किसी को अचरज नहीं होता है। यह जो धारणा राजस्थान की आपके सामने रखी है, उसे आप कल्पना कह सकते हैं, परन्तु पश्चिमी जगत का नागरिक को यह कहेगा कि इसमें खास क्या है। वह कहेगा, अभिनव राजस्थान में वर्णित व्यवस्था तो हमारे यहाँ पर पहले से ही है, जबकि हम इसे असंभव बताकर पल्ला झाड़ते हैं। इसलिए यहाँ हम हमारी कार्ययोजना पर प्रकाश डालना चाहेंगे।
सफल अभियान की ज़रूरतें अभिनव राजस्थान की हमारी कार्ययोजना के कुछ बिन्दु पहले स्पष्ट रूप से जान लें :
1. इस कार्ययोजना के केन्द्र में बुद्धिजीवी वर्ग होगा।
2. यह पूर्णतया व्यावहारिक होगी।
3. यह अभियान पूर्णतया सादगी पर आधारित होगा और इसके लिए वित्त व्यवस्था अनूठी होगी।
4. इसमें दायित्व होंगे, परन्तु पदों की महिमा नहीं होगी। प्रत्येक पद और दायित्व महत्वपूर्ण होगा।
5. इसका कोई बंधा हुआ संविधान न होकर इसमें खुलापन रहेगा, और यथा समय परिवर्तनों का समावेश होगा।
सबसे पहले यहाँ पर किसी भी सफल अभियान की प्रक्रिया को समझ लें। शुरू में सभी इसे नजरंदाज करेंगे। फिर इसकी खामियाँ निकालेंगे। तब भी हम नहीं रुके, तो विरोधी भी पैदा होंगे। इस दौर से नहीं घबराये तो, अभियान के समर्थक बढ़ जायेंगे।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह जान लें कि अभियान की सफलता के लिए तीन चरण होते हैं। पहले चरण में जानकारी या धारणा को बाँटना, प्रचारित करना। दूसरे चरण में संगठन खड़ा करना और तीसरे चरण में आंदोलन शुरू करना। आप इस दृष्टि से हमारे स्वतन्त्रता के आंदोलन, जे.पी. की सम्पूर्ण क्रांति या वर्तमान में बाबा रामदेव के आंदोलन को परखिये। शायद आप किसी नतीजे पर पहुँच जायें। अभिनव राजस्थान अभियान अभी प्रारम्भिक दौर में है। अभी केवल ‘अवधारणा’ को समझने और जानकारी बांटने का कार्य चल रहा है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह जान लें कि अभियान की सफलता के लिए तीन चरण होते हैं। पहले चरण में जानकारी या धारणा को बाँटना, प्रचारित करना। दूसरे चरण में संगठन खड़ा करना और तीसरे चरण में आंदोलन शुरू करना। आप इस दृष्टि से हमारे स्वतन्त्रता के आंदोलन, जे.पी. की सम्पूर्ण क्रांति या वर्तमान में बाबा रामदेव के आंदोलन को परखिये। शायद आप किसी नतीजे पर पहुँच जायें। अभिनव राजस्थान अभियान अभी प्रारम्भिक दौर में है। अभी केवल ‘अवधारणा’ को समझने और जानकारी बांटने का कार्य चल रहा है।
बुद्धिजीवी केन्द्र में अत्यन्त गहराई से शोध के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि अगर हमारे प्रदेश-देश का बुद्धिजीवी वर्ग जागृत नहीं होगा, जिम्मेदारी नहीं लेगा, देश वास्तविक विकास के रास्ते पर नहीं चल पायेगा। बुद्धिजीवी वर्ग के मार्गदर्शन के बगैर कोई बाबा रामदेव या नरेन्द्र मोदी देश को मजबूती नहीं दे पायेगा। भले ही वर्तमान में बुद्धिजीवी वर्ग ही इनकी तारीफ़ों के पुल बाँध रहा हो। हमारे माने तो इन लोगों को आगे कर बुद्धिजीवी वर्ग अपनी जिम्मेदारी से भाग ही रहा है। यही देश की त्रासदी है। इसलिए हमारा पूरा ध्यान इसी बुद्धिजीवी वर्ग पर है। अब अगर मान लें कि यह वर्ग आगे नहीं बढ़ता है, तो हम क्या करेंगे? हम और किसी वर्ग से माथापच्ची नहीं करेंगे। हम इस मुगालते में कभी नहीं फसेंगे कि भीड़ इकट्ठी कर कोई परिवर्तन कर लेंगे। इस पाँचवें स्तम्भ के बगैर लोकतन्त्र के भवन की रक्षा के प्रति हम कभी भी नहीं सोच सकते। इसलिए मान लें कि बुद्धिजीवी वर्ग के जागृत होने और जिम्मेदारी लेने से पहले हम एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने वाले हैं।
व्यवहारिकता दूसरी बात हमारी कार्ययोजना के बारे में होगी- इसकी व्यावहारिकता हम आदर्शवादिता से परे रहकर व्यवहार पर अधिक ध्यान देंगे। वैसे तो अभिनव राजस्थान की परिकल्पना ऊपर से कई पाठकों को ‘आदर्श’ मात्र लग रही होगी, लेकिन ऐसा नहीं है। आप जब इसकी गहराई में उतरेंगे, तो धीरे-धीरे सब स्पष्ट हो जायेगा। हम अपनी कार्ययोजना में विभिन्न पक्षों में लागू किये जा सकने वाले परिवर्तनों का ही समावेश करेंगे। उपलब्ध संसाधनों के साथ ही हम यह भी ध्यान रखेंगे कि अराजकता की स्थिति न बन जाये। एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना इतना आसान नहीं होता है। आपके पास विस्तार से नये कार्यक्रमों की बारीकियों का ज्ञान होना चाहिये। मिश्र और ट्यूनीशिया में उमड़े परिवर्तन के जन सैलाब से अधिक उत्साहित ना हों। उनके पास कोई वैकल्पिक समाधान नहीं है, केवल वर्तमान व्यवस्था के प्रति कुंठा है। अगर बिना पूरी तैयारी के वहाँ परिवर्तन हुआ भी तो एक नई अराजकता के दौर में उन्हें जाना है। इससे अधिक कुछ नहीं होगा। हम जे.पी. के आंदोलन को हमारे यहाँ देख चुके हैं। इंदिरा के कुशासन से हम जनता पार्टी के अराजक शासन की तरफ ही बढ़ पाये थे।
इसलिए हमारी कार्ययोजना में प्रत्येक विषय पर गहराई से और जिम्मेदारी से मन्थन होगा। अगर शिक्षा के वर्तमान ढाँचे में हम परिवर्तन सुझाते हैं, तो हमारी वैकल्पिक व्यवस्था विस्तार से स्पष्ट होनी चाहिये। हमें वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों – भवनों, शिक्षकों व बाजार के साथ तर्कसंगत और समन्वित रहना होगा। हमारी पुस्तक में इसके प्रत्येक पहलू पर लिखा गया है। यही बात कृषि क्षेत्र पर भी लागू होगी। कम पानी, वर्तमान किसान मानसिकता, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि विभाग के ढाँचे आदि का हमें ध्यान रखना होगा। लेकिन हमारे यहाँ सावधानी का अर्थ यह नहीं होगा कि हम ‘धीरे-धीरे’ की अकर्मण्य सोच के चक्कर में पड़ जायेंगे। कई बार हमारे तर्कशास्त्री अपनी अक्षमता छुपाने के लिए इस तर्क को प्रभावी ढंग से आगे रख देते हैं। ऐसे में जो भी विचार आगे बढ़ता है, उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है। हम सावधानी से आगे बढ़ेंगे, मगर बैठे-बैठे नहीं चलेंगे।
इसलिए हमारी कार्ययोजना में प्रत्येक विषय पर गहराई से और जिम्मेदारी से मन्थन होगा। अगर शिक्षा के वर्तमान ढाँचे में हम परिवर्तन सुझाते हैं, तो हमारी वैकल्पिक व्यवस्था विस्तार से स्पष्ट होनी चाहिये। हमें वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों – भवनों, शिक्षकों व बाजार के साथ तर्कसंगत और समन्वित रहना होगा। हमारी पुस्तक में इसके प्रत्येक पहलू पर लिखा गया है। यही बात कृषि क्षेत्र पर भी लागू होगी। कम पानी, वर्तमान किसान मानसिकता, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि विभाग के ढाँचे आदि का हमें ध्यान रखना होगा। लेकिन हमारे यहाँ सावधानी का अर्थ यह नहीं होगा कि हम ‘धीरे-धीरे’ की अकर्मण्य सोच के चक्कर में पड़ जायेंगे। कई बार हमारे तर्कशास्त्री अपनी अक्षमता छुपाने के लिए इस तर्क को प्रभावी ढंग से आगे रख देते हैं। ऐसे में जो भी विचार आगे बढ़ता है, उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है। हम सावधानी से आगे बढ़ेंगे, मगर बैठे-बैठे नहीं चलेंगे।
अभियान के लिए पैसा ? अभियान के लिए वित्त व्यवस्था के बारे में कई विद्वान मित्रों ने चिंता व्यक्त की है। हमें इसका आभास है। परन्तु हमारी वित्त व्यवस्था किसी कोष के गठन पर आधारित नहीं होगी। कि हम लोगों से चन्दा लें, रसीदें काटते फिरें या विज्ञापन लेने निकल पड़ें। अभिनव राजस्थान तो हमारे लिए वैसे ही जिम्मेदारी का कार्य बनेगा, जैसे हम अपने बच्चों को बड़ा करते हैं। यह ‘विचार’ एक बच्चे जैसा होगा, जिसे हम अपने हाथों ही बड़ा करने वाले हैं। कोष बनना और कोषाध्यक्ष बना देना तो एक नई बीमारी को जन्म देना है।
वानप्रस्थियों को जिम्मेदारी अब बात करते हैं, उन लोगों की, जो इस अभियान को संभालेंगे। हमने ऊपर बुद्धिजीवी वर्ग की बात कही है। वह वर्ग तो हमारे केन्द्र में ही है, आयु वर्ग का भी थोड़ा विचार कर लें। हमारे शोध में यह तथ्य सामने आया है कि 50 वर्ष के ऊपर के लोगों को सामाजिक या राजनैतिक परिवर्तनों में मुख्य भूमिका निभानी चाहिए। हमारे कई बुद्धिजीवी युवा वर्ग को परिवर्तन की मशाल थमाने की बात करते हैं। कहते हैं कि उनके पास ऊर्जा है, नये विचार है, क्षमता है। दरअसल युवाओं को आगे कर हमारे बुद्धिजीवी बुजुर्ग अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। हम यह मानते हैं कि युवाओं का साथ चाहिये, लेकिन उनके हाथ में नेतृत्व देना ठीक नहीं है। उनको अच्छे-बुरे का इतना ज्ञान नहीं है, जितना अनुभवी व्यक्तियों को है। हमारी प्राचीन वैदिक परम्परा ने पूर्णतया वैज्ञानिक आधार पर वानप्रस्थ आश्रम को समाज के लिए परिवर्तनों का स्रोत माना था। 25 वर्ष तक शिक्षा, 50 वर्षों तक गृहस्थी और फिर समाज को समर्पण। 75 के बाद अध्यात्म को समर्पण। आज भी वही बात सत्य है। युवाओं को पढ़ने दो, परिवार संभालने दो। वर्तमान व्यवस्था को संभालने दो। परिवर्तन बुजुर्ग करें। तो हमारे लिए 50 से 75 वर्ष के आयु वर्ग का बड़ा महत्व होगा। हम उन्हीं पर अभियान की अधिक जिम्मेदारी डालेंगे। ये लोग अब लगभग परिवार की सारी ज़िम्मेदारियाँ निभा चुके होते हैं। हम इन्हें कहेंगे कि अब प्रदेश-देश और समाज के लिए जीओ। अपना जीवन सार्थक करो। ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोगों व घुटनों के दर्द को भूलो। आलस छोड़ो और नई पीढ़ी को कुछ अच्छा दे जाओ। मरना तो अब सामने दिखाई दे रहा है। अपने बरामदे में खांसते-खांसते मरने की बजाय ‘अभिनव राजस्थान’ की रचना करते-करते मरो। अमर हो जाओगे। वरन् एक दिन मोहल्ले वाले श्मशान या कब्रिस्तान में पटक कर आ जायेंगे। क्या बुढ़ापे को अभिशाप मान कर बैठे हो? इसे जीवन के लिए वरदान बना डालो। ज़िम्मेदारियों से परे अपने लिए और समाज-देश के लिए जीओ। जो बातें, 50 वर्षों तक नहीं कर पाये, अब कर लो। नाचो, गाओ और अपने हाथों से नई पीढ़ी का भविष्य संवार दो। मोहल्ले में बैठे-बैठे निन्दाओं की कथाएँ बंद करो। देश की इस हालत के लिए आपकी अक्षमता का ही बड़ा योगदान रहा है। अब प्रायश्चित कर लो और ‘अभिनव राजस्थान’ से इसकी शुरूआत कर लो। घर में भी इज्जत बढ़ जायेगी। नाकारा नहीं समझे जाओगे। पोते-पोतियाँ, बहुएँ और बेटियाँ आपके इस नये अवतार पर नाज करने लगेंगे।
कैसा संगठन होगा ? तो, इन बुजुर्ग करणधारों को जोड़कर हम अभियान का संगठन खड़ा करेंगे। लेकिन यह संगठन बिल्कुल भी औपचारिक नहीं होगा। ध्यान रखें कि हमें कोई संगठन बनाकर उसे राजनैतिक दल का रूप नहीं देना है। प्रदेश की वैचारिक व्यवस्था मात्र बदलनी है। विचार और धारणाएँ बदल जायेंगी, तो बाकी काम स्वत: हो जायेंगे। तब राजस्थान का बजट या योजना बनाने वालों को रातों जागना पड़ेगा। योजनाओं के परिणामों का हिसाब पूछा जाने लगेगा, तो शासन में बैठे लोग बोलने से पहले दस बार सोचेंगे। हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि हमारे जैसे देश में केवल दो ही राजनीतिक दल होने चाहिये, ताकि भाषा-क्षेत्र के चक्कर में देश विखंडित नहीं हो। हमारा मकसद स्पष्ट है कि हम आलोचनाओं से परे जाकर राजनीतिक दलों और शासकों को जगाये रख सकें । एक बार यह जिम्मेदारी भरी सोच विकसित हो जाये, तो काफी है। बुद्धिजीवी वर्ग जब जग जायेगा, तो अनेक समस्याओं की जड़ें स्वत: ही कट जायेगी। अनौपचारिकता, रचनात्मकता, भ्रातृत्व हमारे अभियान में अनौपचारिकता अधिक रहेगी। रचनात्मकता के लिए यह जरूरी है। जैसा कि हमने स्पष्ट भी किया है, हमारा लक्ष्य एक प्रभाव समूह बनाने तक ही है, हम किसी बंधे बंधाये फॉर्मूले में नहीं सिमटेंगे। हमारी कोई सभा मात्र चित्रों की प्रदर्शनी बनकर रह जायेगी, तो कभी यह कवि सम्मेलन बन जायेगी। कभी दो से पाँच वक्ता किसी एक विषय पर गहन अध्ययन पर आधारित विचार रोचकता से रखेंगे। लेकिन बोरियत भरे लम्बे-लम्बे ‘भाषण’ या अनेक वक्ताओं का बोलना हमारे कार्यक्रमों में कतई नहीं होगा।