अभिनव राजस्थान पर हमारे पाठकों ने कई बार पढ़ा है। अवधारणा को हमने पुस्तक के माध्यम से भी राजस्थान के बुद्धिजीवियों के सामने रखा है। विद्वान मित्रों ने अपनी प्रतिक्रिया से हमारा उत्साह भी बढ़ाया है। एक बार पुन: उसी अवधारणा पर नये सिरे से लिखना आवश्यक लग रहा है, क्योंकि अब हमारा अभियान सतत प्रवाह से चलेगा। सैकड़ों नये पाठक भी पहली बार जुड़ेंगे, उनके लिए भी अभियान को स्पष्ट करना है।
विकास की अवधारणा अभिनव राजस्थान से हमारा तात्पर्य वास्तविक रूप से विकसित राजस्थान से है। वास्तविक रूप से विकास हमारी दृष्टि में तब होगा जब अधिकांश नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार होगा। जीवन स्तर में सुधार का अर्थ होगा, रहन-सहन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि पक्षों में समग्रता से सुधार। केवल रहन-सहन सुधर जाये, परन्तु तनावग्रस्त मन और परिवार हाँ, तो भी सुधार अपना अर्थ खो देता है। रोजगार मिल जाये, परन्तु हँसना-खेलना बंद हो जाये, तो भी यह रोजगार औचित्यहीन होगा। यानि समग्रता से सुधार होना ही हमारे लिए वास्तविक विकास होगा।
इस वास्तविक विकास के लिए हमारा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य होगा, प्रत्येक परिवार की आमदनी में वृद्धि। यह वृद्धि हमारी कृषि और उद्योग का उत्पादन बढ़ने से आयेगी। इस आमदनी से ही हमारे परिवार और हमारा प्रदेश मजबूत होंगे। हमें नीति बनाने वाले अधिकारी और नेता कितना ही झाँसा देते रहें, बिना उत्पादन के कोई भी समाज, प्रदेश या देश विकास नहीं कर सकता। उधार के पैसों से बन रही सड़कें, इससे चल रही स्कूलों और अस्पताल, हमारे देश-प्रदेश के साथ बहुत बड़ी साजिश है। इस साजिश का अंत एक दिन हमारे फिर विदेशियों के गुलाम बन जाने के रूप में होगा।
इस वास्तविक विकास के लिए हमारा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य होगा, प्रत्येक परिवार की आमदनी में वृद्धि। यह वृद्धि हमारी कृषि और उद्योग का उत्पादन बढ़ने से आयेगी। इस आमदनी से ही हमारे परिवार और हमारा प्रदेश मजबूत होंगे। हमें नीति बनाने वाले अधिकारी और नेता कितना ही झाँसा देते रहें, बिना उत्पादन के कोई भी समाज, प्रदेश या देश विकास नहीं कर सकता। उधार के पैसों से बन रही सड़कें, इससे चल रही स्कूलों और अस्पताल, हमारे देश-प्रदेश के साथ बहुत बड़ी साजिश है। इस साजिश का अंत एक दिन हमारे फिर विदेशियों के गुलाम बन जाने के रूप में होगा।
समृद्धि, संस्कृति, प्रकृति का संगम आर्थिक विकास की इस धारणा में हम एक सावधानी जरूर रखेंगे। यह विकास स्थायी हो, समग्र हो और समेकित हो, यह भी आवश्यक होगा। हम विकास के लिए हमारी प्रकृति व संस्कृति का विनाश नहीं करेंगे। बल्कि हमारी योजना में समृद्धि, संस्कृति और प्रकृति के संगम पर विशेष जोर रहेगा। आर्थिक प्रगति के चक्कर में हमने प्रकृति का विनाश कर दिया, तो वह स्थिति अधिक भयावह होगी और पश्चिमी विकास से यह दिखाई भी पड़ रहा है। हमारी सारी योजनाएँ प्रकृति के मित्रवत् उपयोग पर रहेगी और इनसे समृद्धि बढ़ेगी, तो प्रकृति भी समृद्ध होगी। यही बात हम संस्कृति के बारे में सोचते हैं। विकास कर लें और संस्कृति नष्ट कर दें, तो भी हम पहचान खोने के संकट में फसेंगे। बिना सांस्कृतिक परिवेश के मानव जीवन और जानवरों के जीवन में क्या अंतर है? हमारे श्रेष्ठ मूल्यों को खोकर हम कितना भी धन अर्जित कर लेंगे, मानसिक रूप से व्याकुल ही रहने वाले हैं।
सात क्षेत्र – सात सुर हमारी कार्य योजना में राजस्थान के सात क्षेत्रों में मुख्य रूप से कार्य होगा। इन क्षेत्रों में हमारे लक्ष्य होंगे – अभिनव समाज, अभिनव शिक्षा, अभिनव शासन, अभिनव कृषि, अभिनव उद्योग, अभिनव प्रकृति और अभिनव संस्कृति। हमारे लिए ये क्षेत्र संगीत के सात सुरों (सा रे गा मा पा धा नि) की तरह होंगे, जिन्हें हम एक साथ बजायेंगे, ताकि विकास का संगीत बज सके। हमारा मानना है कि इन सात मूलभूत क्षेत्रों में से किसी एक की उपेक्षा से भी वांछित परिणाम नहीं आयेंगे और न ही किसी एक पर ही प्राथमिकता से जोर देने से अपेक्षित सफलता मिलेगी। इसे ठीक से समझ लें। अगर हम शिक्षा पर अधिक जोर दें, परन्तु कृषि और उद्योग के क्षेत्र का उत्पादन नहीं बढ़ायेंगे, तो शिक्षितों को कहाँ पर काम देंगे, उन्हें वेतन कहाँ से देंगे। अगर हम उत्पादन पर जोर दें और प्रकृति का अंधाधुंध दोहन शुरू कर दें, तो भी परिणाम बुरे होने हैं। आप सातों क्षेत्रों पर मनन करके देखियेगा, एक सुखद चिंतन बनेगा। स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल, संचार आदि को हमने अभिनव शासन में शामिल कर रखा है। इन सातों क्षेत्रों का चयन भी लम्बे चिंतन-मंथन के बाद शुरू हुआ है। यह बात यहाँ इसलिए कह रह हैं क्योंकि हमारे कई विद्वान मित्र शिक्षा को ही मूल कुंजी मानते हैं, तो कई दूसरे मित्र अन्य पक्षों पर अधिक चिंतित हैं। लेकिन समग्रता हमारे लिए उसी प्रकार आवश्यक है, जैसे स्वस्थ शरीर के लिए विभिन्न तंत्रों का तारतम्य।
अभिनव समाज अभिनव समाज हमारे माने विकास के लिए आवश्यक जमीन है। गांधी जी इसको लेकर अत्यधिक चिंतित थे। जमीन तैयार नहीं है और आप शिक्षा के, लोकतंत्र के, या धर्म के बीज डालेंगे, तो नहीं उगेंगे। खरपतवार जरूर उग जायेगी। इसलिए समाज की जमीन को पहले तैयार करना है। समाज में दो मूल सुधार करने हैं। एक सुधार सामाजिक मूल्यों में तो दूसरा गलत परम्पराओं या विकृतियों में। हमें धन व पद की अपेक्षा ज्ञान व कला का मूल्य अधिक रखना होगा। तभी नया चिंतन नई सोच पैदा होगी, जो विकास के लिए आवश्यक है। जड़ता तभी खत्म होगी। हमें नव सामन्तों या धनाढ्यों की अपेक्षा वैज्ञानिक, लेखक, पत्रकार, कवि, अध्यापक, चित्रकार आदि का सम्मान अधिक बढ़ाना होगा। यही लोग समाज को नये परिवर्तनों के लिए तैयार करेंगे। दूसरे हमें कुछ गलत परम्पराओं को बंद करना होगा। दिखावे और खर्च की प्रतिष्ठा पर आधारित परम्पराओं के स्थान पर सादगी और बचत पर आधारित परम्पराओं को स्थापित करना है। हमारे समारोहों व रहन-सहन में सादगी की पूँजी तो बढ़ेगी ही, हमारे मन की विकृतियां भी कम होगी।
अभिनव शिक्षा अभिनव शिक्षा में हमारे दो लक्ष्य होंगे – समाज को आवश्यक ज्ञान का सृजन और इस सृजित ज्ञान का उपयोग। हमें मैकाले की आलोचना से आगे बढ़ना है। वर्तमान ज्ञान सृजन पर एक नजर डालकर देखें। राजस्थान की कॉलेजों में पढ़ने वाले 4 लाख से अधिक छात्र-छात्राओं में से 70 प्रतिशत इतिहास, राजनीति शास्त्र और हिन्दी साहित्य पढ़ रहे हैं। हम यह नहीं कहते कि इस ज्ञान की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है, परन्तु इतनी अधिक आवश्यकता भी अब इस ज्ञान की नहीं है। बदलते जमाने में हमें विज्ञान और वाणिज्य में 70-80 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को शिक्षित करना है। अभिनव राजस्थान में 40 प्रतिशत विद्यार्थी विज्ञान, 30 प्रतिशत वाणिज्य और 30 प्रतिशत कला एवं साहित्य के विषय पढ़ेंगे। दूसरा महत्वपूर्ण प्रयास जो हम करेंगे, वह होगा, इस सृजित ज्ञान का उपयोग। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो ज्ञान की व्यर्थता कुंठाओं को जन्म देगी। प्रशिक्षित मानव संसाधन हमारी पूँजी हैं। इसका उपयोग हमें करना चाहिये। लेकिन इसके लिए हमें दो दूसरे क्षेत्रों में भी कार्य करना होगा – कृषि एवं उद्योग के क्षेत्रों में। कृषि और उद्योग में उत्पादन बढ़ेगा, तभी हम सृजित ज्ञान का उपयोग कर पायेंगे। केवल सेवा के क्षेत्र से कब तक काम चलेगा? या फिर हम पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिभाएँ तैयार कर कब तक भेजते रहेंगे? स्पष्ट है कि उत्पादन बढ़ेगा, तो स्वत: ही स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञों के ज्ञान के उपयोग के अवसर बढ़ जायेंगे। हमारी व्यवस्था में प्राथमिक (कक्षा 1 से 5), माध्यमिक (कक्षा 6 से 10) और उच्च माध्यमिक (11 से 15) स्तर होंगे, जो समान रूप से पूरे प्रदेश में लागू होंगे। कोई भी विषय कम या अधिक महत्वपूर्ण नहीं होगा। विद्यार्थी की रुचि व क्षमता के अनुसार 10 वीं के बाद उसके भविष्य का स्पष्ट निर्णय होगा। उसे क्या बनना है, यह तय हो जायेगा, कोई भ्रम नहीं रहेगा। कक्षा 15 या कहिये 21 वर्ष के पूरा होते ही अभिनव राजस्थान का नागरिक समाज की सेवा के लिए पूर्णतया तैयार होगा। खेल एवं कला कक्षा 10 तक अनिवार्य विषय होंगे और उनका मूल्यांकन भी अन्य विषयों की तरह होगा। हमारे सर्व शिक्षा के ढाँचे में यह निश्चित किया जायेगा कि प्रत्येक ढाणी व गाँव में रहने वाले छात्र-छात्रा को कक्षा 1 से 15 तक की शिक्षा की सुविधा मिल जाये। गाँव-गाँव में स्कूलों के जाल बिछाने की बजाय हम परिवहन की उम्दा व्यवस्था करेंगे परन्तु मुफ्त शिक्षा जैसे लोक लुभावने नारों से बचेंगे। कॉलेजों की सुस्ती को भी हमारी व्यवस्था में पूरी तरह तोड़ दिया जायेगा और हमारे युवा मोबाइल, गुटखे और क्रिकेट को छोड़कर कक्षाओं का रूख कर लेंगे।
अभिनव शासन अभिनव शासन में हमारा पहला लक्ष्य शासन और जनता के बीच की दूरी को कम करना होगा। 65 वर्षों के बाद भी देश के लोगों का सरकारी व्यवस्थाओं से लगाव पैदा नहीं होना चिंता का विषय है। इसके लिए हम हमारी सरकारी शब्दावली बदलेंगे, प्रक्रियाओं को सरल बनायेंगे और शासन प्रशासन में पारदर्शिता लायेंगे। दूसरे हम सभी विभागों को बराबर महत्वपूर्ण बनायेंगे। कोई कारण नहीं होगा कि आईएएस की सेवा ही ब्राह्मणों की तरह सरकारी समाज के शिखर पर रहे। हमारे लिए ज़िले का कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योग या अन्य विभाग का अधिकारी भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा, जितना राजस्व विभाग का अधिकारी, जिसे हम कलक्टर कहा करते हैं।
अभिनव शासन में प्रवेश भी विषय की जानकारी के आधार पर होगा। विभिन्न विभागों में विशेषज्ञ ही नीचे से लेकर शीर्ष स्थान तक होंगे। वहीं अभिनव शासन में हम योजना निर्माण और उसके मूल्यांकन पर अत्यन्त सतर्क रहेंगे। हमारी योजनाएँ और बजट व्यापक चिंतन मनन के बाद बनेंगे और इनके निर्माण में विषयों के जानकार सक्रिय रहेंगे। हम संभाग स्तर की व्यवस्था को प्रशासन में रीढ़ की हड्डी बनायेंगे, ताकि स्थानीय संसाधनों को प्रकृति के अनुसार बेहतर उपयोग हो सकें।
अभिनव शासन में प्रवेश भी विषय की जानकारी के आधार पर होगा। विभिन्न विभागों में विशेषज्ञ ही नीचे से लेकर शीर्ष स्थान तक होंगे। वहीं अभिनव शासन में हम योजना निर्माण और उसके मूल्यांकन पर अत्यन्त सतर्क रहेंगे। हमारी योजनाएँ और बजट व्यापक चिंतन मनन के बाद बनेंगे और इनके निर्माण में विषयों के जानकार सक्रिय रहेंगे। हम संभाग स्तर की व्यवस्था को प्रशासन में रीढ़ की हड्डी बनायेंगे, ताकि स्थानीय संसाधनों को प्रकृति के अनुसार बेहतर उपयोग हो सकें।
अभिनव कृषि अभिनव कृषि में हम असिंचित क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देंगे। कृषि क्षेत्र के इस 70 प्रतिशत भाग की उपेक्षा बंद करेंगे। इन असिंचित क्षेत्रों में हम प्रत्येक खेत को इकाई मानकर उसके लिए संसाधन उपलब्ध करवायेंगे। उचित बीज, खाद एवं दवाई का प्रबन्ध प्रत्येक गाँव में होगा। साथ ही जमीन मिट्टी का परीक्षण और खेत की वार्षिक योजना भी सुनिश्चित होंगे। किसानों को अनुदान या ब्याज माफी जैसे ढकोसलों की बजाय उन्हें संसाधन उपलब्ध करवाये जायेंगे। कृषि से जुड़े उद्योग गाँव-गाँव में होंगे, ताकि किसानों को उपज का अधिक मूल्य मिल सके। जल संरक्षण को हम ‘धर्म’ मान कर उस पर काम करेंगे। इस सम्बन्ध में भी विस्तार से योजना ‘अभिनव राजस्थान’ पुस्तक में है।
अभिनव उद्योग अभिनव उद्योग में हमारा अधिकांश ध्यान छोटे और कुटीर उद्योगों पर होगा, जो राजस्थान की प्रकृति के सर्वथा अनुकूल हैं। प्रत्येक संभाग में कुछ उद्योग चिह्नित होंगे, जिन पर विशेष योजनाएँ बनेंगी। साथ ही उस सम्भाग के सुनारों, कुम्हारों, सुथारों, जुलाहों, दर्जियों, लुहारों, चर्मकारों आदि को ‘श्रमिक’ से पुन: ‘कलाकार’ बनाया जायेगा। इन तबक़ों के लिए विशेष योजनाएँ बनेंगी, जिससे पीढ़ियों से चला आ रहा हुनर व्यर्थ न जाये और हम उद्योग के साथ हमारी संस्कृति को भी बचा सकें। हम इनके उत्पादों को आधुनिक प्रबन्ध वाला बाजार उपलब्ध भी करवायेंगे। छोटे उद्योगों को गुणवत्ता युक्त उत्पाद बनाने के लिए सहयोग करने में हमारे प्रत्येक संभाग के तकनीकी संस्थान लगेंगे।
अभिनव प्रकृति अभिनव प्रकृति में हम सम्पूर्ण प्रदेश की सम्भाग के अनुसार योजना पर अमल करेंगे। प्रत्येक क्षेत्र की पहाड़ियों, नदियों व वनों को युद्ध स्तर पर संरक्षित किया जायेगा। वन विभाग की निष्क्रियता तोडक़र इस विभाग के प्रत्येक कर्मचारी को फिर से क्षेत्र में खड़ा किया जायेगा। यही नहीं, हम राजस्थान की प्रकृति को अभिशाप कहना बंद करेंगे और इसी प्रकृति को हमारी समृद्धि का स्रोत बना देंगे।
अभिनव संस्कृति अभिनव संस्कृति, हमारा सातवाँ सुर होगा। प्रत्येक ज़िले और प्रत्येक गाँव-क़स्बे की सांस्कृतिक परम्पराओं को पुन: जीवंत कर हम राजस्थान को फिर एक आनंददायक माहौल देंगे। उत्सवों के दौरान विशाल कार्यक्रम होंगे और ख्याल, नौटंकी, रम्मत, गैर, गींदड़ आदि की फिर से धूम होगी। हमारा रहन-सहन, पहनावा, खान-पान आदि भी हमारी स्थानीय संस्कृति के रंग में रंगा होगा। राजस्थान फिर से अपनी गौरवशाली संस्कृति में डूबेगा।
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