या यह मात्र कल्पना है, हवाई किले बनाना है ?
आज यह क्लीयर हो जाए.
और यह भी कि क्या यह काम मैं निःस्वार्थ भाव से कर रहा हूँ ! या कोई छिपा अजेंडा है !
(कई मित्र मन में यह सोचते तो होंगे, भले कहते नहीं हैं)
अपने दस वर्षों के प्रशासनिक और दस वर्षों के सामाजिक-राजनैतिक क्षेत्र में किये गए काम और अर्जित अनुभव के आधार पर 'अभिनव राजस्थान अभियान' की योजना मैंने बनाई है. यहाँ फील्ड में मैंने कई अध्ययन भी किये हैं, चर्चाएँ की हैं. खूब लिखा है, पढ़ा है इसको लेकर. तब जाकर एक conrete, practical योजना और उसके लिए रणनीति बन पाई है. हो सकता हो कि यह भी perfect न हो पर कोशिश में कोई कमी नहीं रखी है.
अब इस तरह का राजस्थान कैसे बन सकता है ? मैंने जो चिंतन किये और जो चर्चाएँ कीं, उनका निष्कर्ष एक ही निकला कि भारत में असली लोकतंत्र और असली विकास का एक ही मार्ग है- असली जागरूकता. (एक व्यक्ति या एक समूह सब कुछ नहीं कर सकता है.) असली लोकतंत्र यानि वोट से आगे तंत्र पर जनता का प्रत्यक्ष नियंत्रण. असली विकास यानि वह विकास जो हमें प्रत्यक्ष अपने घर और गली में महसूस हो. असली जागरूकता यानि जागरूक लोगों का अखबारों में पढ़ी या चेनलों पर देखी ख़बरों से आगे का ज्ञान, जो व्यवस्था के अध्ययन पर आधारित हो.
इस असली जागरूकता के मार्ग से हम लोग आगे बढ़ रहे हैं. मेरा दावा है कि जिस दिन राजस्थान के हर जिले में तीस से पचास लोग अच्छे भाव से, सकारात्मक भाव से, अधिकार भाव से इस काम में लग जायेंगे, असली लोकतंत्र की स्थापना हो जायेगी और असली विकास का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा. सरकार में चाहे जो पार्टी हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आप देख रहे हैं कि नागौर में किया जा रहा एक प्रयोग लोगों के सोच बदल रहा है, प्रशासन की सुस्ती तोड़ रहा है. जल्द ही यह अभियान अन्य जिलों में सक्रिय हो जायेगा. राजस्थान जागरूकता से ही ‘अभिनव’ बनेगा.
और मेरा स्वार्थ ? मानकर चलिए कि मैं निःस्वार्थ भाव से कम नहीं कर रहा हूँ. स्वार्थ तो है. वह स्वार्थ है- कि ईश्वर को कह सकूँ कि मुझे पृथ्वी नामक गृह पर उनके द्वारा भेजा जाना कुछ तो सार्थक रहा. मैं खाने, पीने और सोने से आगे कुछ सृष्टि, समाज और देश के लिए कर सका. नाम हो. लोग मेरे काम को अच्छा कहे यह भी है. पर हाँ, यह भी ध्यान रखिये कि मैं कोई संत महात्मा जैसा व्यक्ति भी नहीं हूँ, मानवीय कमियां अभी भी कई हैं.
लेकिन मेरे ओशो कहते हैं कि तीन स्वार्थ होते हैं. एक जिसमें आप दूसरों का नुकसान करते हैं, एक जिसमें आपकी स्वार्थसिद्धि से दूसरों का नुकसान नहीं होता है और एक जिसमें आपके साथ साथ दूसरों का, समाज का और देश का स्वार्थ भी सिद्ध होता है. मैं इस तीसरे स्वार्थ के वशीभूत हूँ.
और आप क्यों इसमें योगदान दें ? अगर आपको लगता है कि देश और समाज के हित में आप भी कुछ इस दिशा में करना चाहते हैं तो आगे आयें. आपको क्या मिलेगा ? एक संतुष्टि कि आपने भी कुछ पत्थर इधर से उधर किये. व्यवस्था परिवर्तन में अपने योगदान से आप भी कह सकेंगे कि यह आपने किया. और आपका योगदान मुझसे कहीं ज्यदा भी हो सकता है अगर आपको इस काम में रस आ जाये. मैं खुशी खुशी आपके काम की मार्केटिंग करूँगा.
इधर मैं कभी भी नहीं छुपाता कि मैं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से और भाजपा से एक दशक से जुड़ा हूँ. मुझे इस जुड़ाव पर गर्व है. मुझे जब भी भाजपा में कोई काम मिलता है, मैं उसको जिम्मेदारी से निभाता हूँ. मैं जाट समाज से होने पर भी गर्व करता हूँ और तेजाजी महाराज में गहरी आस्था है. पर इस सबके बावजूद मेरे दिमाग और दिल में किसी भी अन्य राजनैतिक या सामाजिक समूह के प्रति घृणा का कोई भाव कभी नहीं आता है. मुझे तो सभी अच्छे लगते हैं, प्यारे लगते हैं. मैं तो सभी की अच्छाई की मार्केटिंग करना चाहता हूँ.
कुछ मित्र कहते हैं कि क्या कल को 'अभिनव राजस्थान' कोई पार्टी बन जायेगा ( जैसे आम आदमी पार्टी बन गई है !) या इससे आप कोई लाभ ले लेंगे या कि इससे भाजपा को लाभ दिलवाया जाएगा. उनके सवाल भी जायज हैं. पर मैं स्पष्ट कर दूँ. यह 'अभिनव राजस्थान' एक basic, minimum जरूरत है, भारत की, राजस्थान की. पार्टियों की राजनीति इससे आगे होनी चाहिए. इतना मूल काम तो हर नागरिक का मूल अधिकार है, भारत में. इस दृष्टि से इस अभियान को एक जनजागरण अभियान से आगे देखने की आवश्यकता नहीं है.
इसीलिये हम कोई औपचारिक संगठन नहीं बना रहे हैं. पदों के झंझट में हम नहीं हैं. न हम देश में नई नई पार्टियां बनाने के पक्ष में हैं. आगे भी क्षेत्रीय पार्टियां देश के विकास में योगदान कर पाई हों, ऐसा हमने नहीं देखा है. नई पार्टी बनाने से ज्यादा आम भारतीय की जागरूकता जरूरी है.
और सूचना का अधिकार हमारे लिए लोकतंत्र और विकास के किनारे तक जाने की नाव है. न्यायपालिका पतवार होगी. आपका सहयोग और समर्पण ऊर्जा देगा.
शायद काफी स्पष्ट हुआ हो ?
वंदे मातरम !