जिले की मोनिटरिंग का हमारा प्रयोग.
क्या कर सकता है ?
बहुत कुछ.
एक जिले में लगभग 20 विभागों को हमें सक्रियता से मोनिटर करना होता है. हर महीने में वे अपने टारगेट्स के प्रति कितने सजग हैं, यह देखना होता है. राजस्थान और केंद्र की योजनाओं का क्रियान्वन कैसे हो रहा है, उन्हें कैसे लागू किया जा रहा है, यह जानना होता है.
एक जिले में जब सौ के लगभग साथी इस विषय को समझ जायेंगे और उनकी रुचि जग जायेगी तो जिले के अधिकारी चेन से नहीं बैठ पायेंगे. उन्हें काम करना ही होगा. वे भूल जायेंगे कि किस पार्टी का शासन है या कौन सांसद-विधयक है. उन्हें वेतन लेना है तो जवाबदेही सीधी जनता के प्रति प्रगट करनी होगी.
और हमारा तरीका सीधा सरल है. हम सूचना के अधिकार से एक महीने में क्या सूचना लेते हैं ?
१. महीने की भौतिक प्रगति. यानि उदहारण के लिए कितने मकान गरीबों के लिए बनाने थे और कितने इस महीने तक बने. कितना बीज किसानों के लिए आया था और कितना बंटा.
२. महीने की वित्तीय प्रगति. यानि कितने रूपये किस काम के लिए केन्द्रीय या राजस्थान के बजट में प्राप्त हुए और उसमें से कितने खर्च हुए. आपको हैरानी होगी कि अधिकारियों और जनता के बीच संवाद में कमी और उदासीनता के चलते पैसा खर्च नहीं हो पा रहा है !
३. जिला अधिकारियों की महीने में की गई विजिट्स. कहाँ गए और क्या देखा. लिखित मन ताकि यह पता लगे कि वे कार्यालय से बाहर भी निकलते हैं.
इसके बाद हम इस सूचना का विश्लेषण करते हैं और जिला अधिकारियों तथा प्रदेश के प्रमुख शासन सचिव को पत्र लिखते हैं, सुझाव के लिए, सुधार के लिए, रफ़्तार के लिए. और इन पत्रों पर की गई कार्रवाई के बारे में पुनः सूचना के अधिकार से रिपोर्ट लेते हैं.
एक विभाग के लिए अब हम पांच सदस्यों की टीम बना देंगे ताकि काम करने का सीधा अनुभव कार्यकर्ताओं को हो. यही हमारा संगठन होगा. यही हमारा मित्र मंडल होगा.
यह तरीका ही भारत को बदलेगा, आगे ले जाएगा. जब 640 जिलों में ऐसी टीमें खड़ी हो जायेंगी तो देश एक नए आयाम को छुएगा. तभी केंद्र और प्रदेशों की बनी योजनाओं का लाभ आमजन तक पहुंचेगा. तभी योजना बनाने का की अर्थ निकलेगा. केवल भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्लाने से देश नहीं संभलता. केवल हवा मारने से भी देश आगे नहीं बढ़ता. सजग नागरिकों की सक्रियता से देश आगे बढ़ता है. आजतक का मानव सभ्यता का इतिहास तो यही कहता है.
लेकिन ध्यान रहे कि यह कार्य थोड़ा जटिल और संवेदनशील है और इसके लिए उचित प्रशिक्षण की आवश्यकता है. हमारा इरादा अधिकारियों को परेशान करना नहीं है बल्कि उनसे जनहित में काम करवाना है. सूचना के अधिकार का यही मकसद था. पर यह जादुई कड़ा ‘भस्मासुरों’ के हाथ में जाता है तो समस्या भी हो जाती है.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हम धीरे धीरे नागौर जिले से आगे बढ़ेंगे. नवंबर में हमारी पुष्कर बैठक के बाद अन्य जिलों में काम करने की योजना है. जिन मित्रों को काम करना है, वे पहले अपने मन को तैयार कर लें. केवल मशानिया बैराग नहीं चाहिए, देश और समाज के लिए काम करने का संकल्प और समर्पण चाहिए.
‘अभिनव नागौर’ से ‘अभिनव राजस्थान’ की ओर.
वंदे मातरम !
(देश की दशा )