राजस्थान और भारत के अधिकांश अधिकारियों को लगता है कि वे अपने काम के बारे में सीधे जनता को क्यों बताएं. उनको लगता है कि वे केवल उच्च अधिकारी और राजनेता के प्रति जवाबदेह हैं और उनको ही रिपोर्ट करना है. पुरानी आदत है – राजतंत्र की. उनका प्रशिक्षण भी ऐसे ही होता है. साथ ही अधिकतर जनता को भी यही लगता है कि हम तो प्रजा हैं और राजनेता-अफसर हमारे कल्याण के लिए जमे हैं ! शोषण और अन्याय भी कर लेते हैं क्योंकि उनके पास ‘पावर’ है ! जनता का लोकतंत्र में जीने का प्रशिक्षण भी 1947 के बाद हुआ ही नहीं, न स्कूल में, न कॉलेज में, न मीडिया में, न कहीं और. उसे वोट देने को लोकतंत्र कहना रटा दिया है.
लेकिन अब 2005 में भारत की संसद ने स्पष्ट कह दिया है कि जनता को सीधे जवाब दो, हिसाब दो. क्योंकि भारत में जनता ही असली शासक है, वही अधिकारी का वेतन देती है. अफसर सबसे पहले जनता के प्रति जवाबदेह है, फिर अपने उच्च अधिकारी और राजनेता के प्रति ! शुरू में यह मानना अटपटा लगेगा पर जवाब देना होगा. बाद में आदत हो जाएगी, समझ भी आ जाएगी लोक-तंत्र की.
25 जून से, नागौर से अभियान शुरू- असली लोकतंत्र के लिए. असली विकास के लिए. प्रशिक्षण अधिकारीयों का, जनता का भी. संसद ने जो कहा है, वह कर देना है- व्यवहार में, धरातल पर. भारत में पहली बार. पहले से ही लेट चल रहे हैं- अब अधिक देर नहीं.
इस दिन से नागौर के साथ सभी जिलों में भी असली लोकतंत्र की स्थापना का काम शुरू हो जायेगा- अभिनव राजस्थान अभियान के मित्रों द्वारा. एक साथी एक आवेदन. जनजागरण के यज्ञ में एक आहुति आवेदन की.
संगठित और सुव्यवस्थित आवेदन करने से भय और भ्रम दोनों नहीं रहेंगे- न अधिकारियों को और न जनता को ! सब कुछ साफ़ साफ़ दिखेगा.
सूचना के अधिकार से व्यापक स्तर पर सरकारी योजनाओं और कार्यों की संगठित मोनिटरिंग – स्वस्थ, जिम्मेदार और सकारात्मक भाव से.
प्रेम से, सहयोग से.
पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए.
(असली लोकतंत्र के इस महायज्ञ में पधारें और आहुति दें.)