रेल बजट को देखते हुए सपना आया कि
काश ! इसकी जगह कृषि बजट पेश हो रहा होता.
ऐसा नहीं है कि किसान पुत्र होने के कारण मैं खेती और किसान को लेकर ज्यादा आसक्त हूँ. हकीकत यह है कि भारत में रहने वाले दो तिहाई लोगों(59%) का खेती प्रत्यक्ष व्यवसाय है, योजना आयोग और सांख्यिकी विभाग के अनुसार. 15 % लोग खेती पर अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर हैं. कहा यह भी जाता है कि हमारे देश की अर्थव्यवस्था खेती और गाँव पर निर्भर है. खराब मॉनसून से देश के खजाने पर बुरा असर पड़ने की बातें भी होती हैं. पर किसान की बात करना इसके बावजूद भी Out of fashion है. स्वयं किसानों के घर पैदा हुए लोग भी ज्यादा पढ़े लिखे दिखाई देने के चक्कर में खेती की बात करने में शर्म करते हैं या खेती के प्रति अपने कारणों से उदासीन बने रहते हैं. और जो किसान के घर में पैदा नहीं हुए, वे भी अर्थ व्यवस्था में खेती के योगदान और महत्त्व को नकारने के जतन करते हैं और उस जतन के कारण ही आंकड़ों का एक भ्रमजाल देश और समाज को गुमराह करता रहता है. ऐसे में मीडिया भी वही बातें करता है, जो नेता, अफसर और होशियार लोग कहना चाहते हैं.
माना कि रेल्वे भारतीय यातायात में अपना महत्त्व रखता है पर इसको लेकर इतने हल्ले की जरूरत नहीं है. रेल्वे एक सेवा है, जैसे अन्य सेवाएं हैं. जैसे बस सेवा, शिक्षा सेवा, स्वास्थ्य सेवा. सभी सेवाएं महत्त्वपूर्ण हैं. कभी हमने सोचा है कि बस सेवा या ट्रक सेवा को बेहतर बनाने के लिए देश में क्या किया जाये ? जबकि बसें और ट्रक अधिकतर यात्रियों और माल को ढोते हैं. उनको तो परेशान करने का बीड़ा देश के परिवहन और पुलिस विभागों ने उठा रखा है ! फिर रेल्वे को अतिमहत्त्वपूर्ण घोषित करने की क्या जरूरत है ? लेकिन अंग्रेजों की बनाई हुई परिपाटियों को तोड़ना इतना आसान नहीं है. अंग्रेज राज का विस्तार करने और शोषण का माल लन्दन तक पहुंचाने में रेल का अभूतपूर्व योगदान था और इसीलिये रेल को बहुत अधिक महत्त्व था. Mindset बदलना आसान नहीं है. दशकों से खोपड़े में ठूंसी हुई बातें निकालना आसान नहीं है !
आज रेल बजट की जगह अगर भारत के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह कृषि बजट पेश कर रहे होते और कलराज मिश्रा लघु उद्योग बजट पेश कर रहे होते तो देश में उत्पादन की नई आशा जगती. पता लगता कि आखिर हम पैदा क्या कर रहे हैं. देश के तीन चौथाई परिवार उस बजट से अपनी आमदनी के बढ़ने की उम्मीद पालते. आखिर उत्पादन बिना बढाए देश का विकास कैसे होगा, मैं कभी नहीं समझ पाऊंगा, कभी नहीं मान पाऊंगा.
जो भी हो, जिस दिन देश को असली विकास की दरकार होगी, खेती और लघु उद्योग को प्राथमिकता देनी ही होगी.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’
असली विकास और लोकतंत्र के लिए जनजागरण.