अभिनव राजस्थान में आपके टेक्स का सीधा सम्बन्ध जोड़ा जायेगा, आपके परिवार को मिलने वाली नौ सुविधाओं से. अत्यंत सरल और प्रभावी तरीके से. विश्व में पहली बार ! शिक्षा-स्वास्थ्य-बिजली-पानी-सड़क-परिवहन-सुरक्षा-शुद्ध संस्कृति- शुद्ध प्रकृति तभी तो आपको लगेगा कि आपका अपना शासन है, तभी आपको टेक्स देने में गर्व होगा, संतोष होगा, खुशी होगी.
इस वर्ष(2015-16) राजस्थान की जनता लगभग एक लाख करोड़ रूपये अपनी सरकार के खजाने में जमा करवा रही है. तमाम टेक्स चोरी और रिश्वतखोरी के बावजूद ! लेकिन इस रूपये का भी उपयोग ढंग से न हो पाने के कारण जनता को मूलभूत सुविधाएँ ठीक से मिलती महसूस नहीं हो रही हैं. स्कूल-कॉलेज-अस्पताल का हाल बुरा है, बिजली बहुत महंगी है, सडकें टूटी हुई हैं और अगर सही हैं तो अलग से टोल देना होता है. पीने का पानी की शहरों में घर घर व्यवस्था है पर आधी अधूरी है तो गाँवों में घरों को कनेक्शन आज भी नहीं हैं. उधर राजस्थान रोडवेज कुप्रबंधन की शिकार है. पुलिस एक तरफ आमजन को सुरक्षा का अहसास नहीं दिला पा रही है, तो दूसरी तरफ बेवजह का खौफ पैदा किये हुए है. वहीं सांस्कृतिक और प्राकृतिक प्रदूषण चरम पर है. संस्कृति और प्रकृति धीरे धीरे नष्ट होते जा रहे हैं.
यानि एक लाख करोड़ देकर भी जनता को शासन और सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिलता है. बस, शासन के नाम पर बड़ा एक तमाशा सा चल रहा है.
अभिनव राजस्थान में हम इस एक लाख करोड़ रूपये को खर्च करने का सरल प्लान बनाएंगे. एक पारदर्शी और जवाबदेही व्यवस्था के माध्यम से. जनता को एक एक पैसा खर्च होता नजर आएगा. लोकतंत्र का तकाजा यही है. कर्मचारियों के वेतन के अलावा सारे खर्च व्यवस्थित और सार्थक होंगे. वर्षों पुरानी ‘परम्पराएं’ खत्म होगी. विभागों को 1 अप्रैल को ही सारी राशि जारी हो जायेगी. उनको आवंटित राशि को अपने ढंग से खर्च करनी की पूरी स्वतंत्रता होगी, नियमों के तहत. उनको बात बात पर वित्त मंत्रालय की तरफ नहीं देखना होगा. आज इसी अप्रत्यक्ष और बकवास नियंत्रण ने प्रदेश के प्रशासन को पंगु कर रखा है.
साथ ही हमारी योजनाएं अलग और अनुपम होंगी. राजस्थान का हर गाँव-शहर अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बनी योजनाओं से आगे बढ़ेगा, केंद्र और राज्य की योजनाओं को इन स्थानीय योजनाओं में merge कर दिया जाएगा. किसी गाँव-शहर को अस्पताल या स्कूल को ठीक करना पहला काम लगेगा तो वह उसे पहले पूरा करेगा, काहे को पचास लाख में कोई गौरव सड़क बने. किसी गाँव में बीज खरीदना ज्यादा आवश्यक होगा या नजदीक के स्टेशन से जुड़ना आवश्यक होगा तो वह काम पहले होगा. कहीं कोई सिंचाई योजना तो कहीं कोई उद्योग लगाने का काम होगा. कुल मिलकर, वर्तमान की तरह योजनाओं की औपचारिकता नहीं होगी. कि पैसे को पूरा करना ही है.
हाँ, कुछ कमजोर तबकों और व्यक्तियों का विशेष ध्यान रखना होगा. पर उनकी योजना भी ग्राम स्तर पर होगी. गांव या शहर में कोई भूखा न सोये, कोई बिना छत के न हो, बिना कपड़े न हो, बिना इलाज या शिक्षा के न हो, यह सुनिश्चित करना होगा. विधवाओं, विधुरों और विकलांगों को कोई पेंशन नहीं दी जायेगी बल्कि उनकी योग्यता के अनुसार काम और सम्मानजनक वेतन दिया जाएगा. अनाथों और गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों का विशेष ध्यान रखा जायेगा. लेकिन मिड डे मील, नरेगा और राशन व्यवस्थाएं बंद कर दी जाएँगी. इनके नाम पर गन्दगी से ज्यादा कुछ नहीं फैला है. भाई लोग इनको लेकर हल्ला मचाएंगे, इसलिए इनको गाँव-शहर की स्थानीय योजनाओं में समाहित कर लेंगे ! धीरे से.
राजस्थान में 222 शहर हैं और 35 हजार गाँव हैं (5 हजार गांव तो कागजों में ही हैं). एक एक गाँव, एक एक शहर अपनी विशिष्ट स्थानीय योजना से खिलना चाहिए, हर वर्ष आगे बढ़ता दिखाई देना चाहिए. पंचायती और शहरी स्थानीय निकाय व्यवस्था लागू होने के बाद लगभग 25 हजार करोड़ रूपये इनके लिए अलग से मिलते हैं. काम और सुन्दर हो जायेगा. ऊपर से रिश्वतखोरी बंद होने से यह पैसा और बढ़ेगा तो ऐसे सुखद माहौल में सहयोग करने वाले धनी लोगों की भी राजस्थान में कहाँ कमी है. पर वर्तमान राजनेताओं और राजनैतिक दलों के बस का यह सौदा नहीं है. अभिनव राजस्थान की लोकनीति और लोकतंत्र में ही ऐसा हो पायेगा.
वंदे मातरम तभी हो पायेगा.