उधार लिए पैसों का कोई ऐसे उपयोग करता है ?
क्या किसी भी जिम्मेदार देश में यह हो सकता है ?
लेकिन यहाँ हुआ है इतना गन्दा खेल कि आप सोच भी नहीं सकते.
भारत में, राजस्थान में, नागौर में. (share)
जापान से हम अरबों रूपये उधार लाये यह कहकर कि हमें पेड़ लगाने हैं, अरावली को बचाना है. दे दाता पर्यावरण के नाम पर ! बड़े सुहावने प्लान बनाकर जापानियों को बताये और पैसा ले आये. न अरावली हरी हुई और न ही गाँव गाँव पेड़ लगे. कागज हरे हो गए, बस. कर्जा चढ़ गया, बस. नेता-अधिकारी जीम गए, जनता को मालूम ही नहीं था कि यहाँ जीमण चल रहा है ! वना नरेगा के नाम पर जनता भी साथ में जीम लेती !
जापान से हम पैसे लाये कि नागौर जिले की प्यास मिटानी है. हमने कूबड़े लोगों के फोटो बताये, पीले दांतों वाले बच्चे दिखाए. जापान के अधिकारी पसीजे, उधार दे दिया, 3 हजार करोड़ रूपया. इधर पैसा आते ही कईयों की आँखों में चमक आ गई ! भाड़ में जाएँ कूबड़े और पीले दांतों वाले बच्चे. तीन साल से पैसा बैंक में पड़ा है और पाइप नहीं डले हैं. सुविधाजनक टेंडर के चक्कर में. जनता ? बापड़ी को नहीं पता यह सब. उसे तो नेताजी कहते हैं कि पानी जल्दी आ रहा है ! कब आ रहा है यह अखबार भी नहीं पूछ रहे हैं.
विश्व बैंक ने पैसा दिया था कि हम पानी को सहेज कर रखें. हमने उन्हें बताया था कि हमारे यहाँ पानी बहुत नीचे चला गया है. कई अधिकारी यह बताने के चक्कर में विदेश हो आये ! अंग्रेजी में कई सौ पेज की रिपोर्ट तैयार कर दी. जैसे कि हम मरे जा रहे हैं ! हमारी रिपोर्ट पर विश्व बैंक से रहा नहीं गया और अरबों उधार दे दिए. अकेले नागौर जिले में पिछले पांच वर्षों में 421 करोड़ रूपये खर्च किये जा चुके हैं ! कई वर्षों से यह पैसा पानी की तरह बहाया गया, मगर पानी सहेजा हुआ कहीं नहीं दिखाई दे रहा है.
विश्व बैंक को हमने और भी बुरी तरह से ठगा है. हमने कहा कि हमारे यहाँ गरीबी बहुत है. लोगों के पास खाने के पैसे नहीं हैं. गजब की गरीबी का चित्रण हमारे अफसरों ने किया. बैंक पसीजा और पूर्वी राजस्थान में 500 करोड़ रूपये आ गए. पैसा खर्च होकर उसकी रिपोर्ट भी विश्व बैंक के पास पहुंचा दी गई. कागजों में गरीबे ख़त्म ! और इधर मजाल कि एक भी गरीब को कोई राहत मिली हो. मामला यहीं नहीं रूका. इस प्रोग्रेस रिपोर्ट के हवाले से हमारे अधिकारी पश्चिमी राजस्थान के लिए 500 करोड़ और उधार मांग लाये. इन दिनों यह योजना MPOWER के नाम से गरीबी ख़त्म करने पर तुली है.
हमने कहा कि हम बिजली की स्थिति में सुधार करके जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं. विश्व बैंक ने कहा कि पहले अपना ढांचा ठीक करो. हमने कर लिया. वर्ष 2000 में बिजली विभाग के जगह पांच कम्पनियाँ बना दी. पैसा आ गया अरबों में. सुधार शुरू. लेकिन यह कैसा सुधार ? ये कम्पनियां आज 14 साल बाद 75 हजार करोड़ रूपये के घाटे में चले गईं. तो दोष किसको दें. बेचारे किसान को जिम्मेदार बता दो, बिजली चोर बता दो. अखबार भी सवाल नहीं करेंगे और नेताओं-अफसरों की बेईमानी छुप जाएगी. वाह रे INDIA.
अंत में एक कहानी यह भी मजेदार. हमने शहरों का आधारभूत ढांचा (पेयजल-सीवरेज-सड़क-पुल) ठीक करने के लिए एशियन विकास बैंक को पकड़ा. इधर सुदूर पूर्व में नया बैंक बना था. शहरी ढांचा तो अभी तक नहीं सुधरा पर कई नेताओं-अफसरों के घर जरूर सुधर गए.
आज भारत पर लाखों करोड़ रूपये का ऐसा उधार ब्याज पर है तो राजस्थान पर सवा लाख करोड़ रूपये उधार है. यह फ़ोकट में नहीं है. राजस्थान को हर साल भारी ब्याज के रूप में दस हजार करोड़ रूपये के लगभग चुकाना पड़ता है. लेकिन किसके बाप का नुकसान है ? एक गैर जिम्मेदार देश के गैर जिम्मेदार नेताओं और गैर जिम्मेदार नागरिकों को इसकी कोई चिंता नहीं है. जनता को चिंता तब हो जब इन बातों का पता हो.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’
जनजागरण के लिए, ताकि विकास की बातें शुरू हों, ताकि लोकतंत्र स्थापित हो.
वन्दे मातरम !