कुछ चार साल पहले मैंने इसी भाव से नगरपालिका चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाई थी कि मीरां की इस कर्मस्थली को एक आदर्श धार्मिक तीर्थ बनायेंगे. राजस्थान के बीचों बीच स्थित इस नगरी को राजस्थान में एक मॉडल की तरह पेश करेंगे. पर कई कारणों से काम उस दिशा में नहीं जा पाया. राजस्थान में कॉंग्रेस का शासन होने के कारण अधिकारी-कर्मचारी नियंत्रण में नहीं रहे और नए नवेले युवा नेता इस स्थिति में बोर्ड को विकास के लिए समर्पित नहीं कर पाए, जैसी जनता को भारी जनमत देते हुए अपेक्षा थी. मुझे भी अपराध बोध हुआ कि मैं भी इन हालातों में सफल नहीं हो पाया. मैंने इस निराशा में एक स्पष्ट पोस्ट भी लिखी थी. ऐसे में जनता, संगठन और प्रतिनिधियों में संवादहीनता बढ़ती गई और निराशा भी खूब पनपी.
लेकिन मैं समय के इन्तजार में था और आशावादी भी था. अब स्थितियां अनुकूल हैं तो सोचा कि काम पर लगा जाए और लगाया जाए. माना कि अब डेढ़ साल बाकी है पर यह समय कम नहीं होता अगर नीयत साफ़ हो तो.
परसों पहले चरण में अगले तीन महीनों का प्लान बनाया है. अब टीम में कुछ करने का जजब है.मुझे विश्वास है कि इन तीन महीनों में हमने जो सोचा है वह हो जाएगा. फिर आगे के तीन महीनों का प्लान. शहर की जनता और संगठन का दिल जीतने में हमारी टीम कोई कसर नहीं छोड़ेगी. अब साढ़े तीन साल में क्या अच्छा हुआ या गलत, इसके समीक्षा और उस पर बहस के लिए समय नहीं है. भगवान चारभुजा हमें शक्ति दे. हो सकता है कि उन्होंने ही हमें फिर से एक टीम के रूप में खड़ा किया हो !
जो प्लान बना है, वह अगली पोस्टों में शेयर करूँगा. यह किसी भी शहर के लिए रोल मॉडल बन सकेगा.
‘अभिनव मेड़ता’ से ‘अभिनव नागौर’ और ‘अभिनव राजस्थान’ की ओर बढ़ेंगे. हम सब मिलकर. पर यह मत सोच लीजियेगा कि ‘अभिनव नागौर’ की बात करते करते कहाँ ‘अभिनव मेड़ता’ आ गया. ‘अभिनव नागौर’ तो अब तेज गति से चलेगा और नवंबर तक अपने टारगेट पूरे कर लेगा. लेकिन ‘अभिनव मेड़ता’ को जोड़ना इसलिए पड़ा कि जहां के अच्छे शासन के लिए वोट मांगे थे, उस दिशा में भी कुछ करें ताकि अपनी टीम का विश्वास बढे.
आखिर देश और समाज के लिए जो भी कर सकते हैं, हमें करना चाहिए.
वंदे मातरम !