माताओं की वर्तमान राजस्थान में दुर्दशा देखी नहीं जाती,
मानव माता और गाय माता दोनों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में वन्दे मातरम् कैसे होगा ?
शायद यह पक्ष आपने अभी तक नहीं जाना होगा, आज हम बताते हैं.
समूचे राजस्थान में छोटे शहरों और बड़े गाँवों के सरकारी अस्पतालों में आपको अमूमन दो डॉक्टर नहीं मिलेंगे- लेडी डॉक्टर और बच्चों का डॉक्टर. (Obstetrician and Paediatrician).
ऐसे में गर्भवती माताओं को मजबूरी में निजी अस्पतालों में जाकर ईलाज करवाना होता है और दस से पंद्रह हजार रूपये चुकाने होते हैं. ऊपर से सामान्य प्रसव की संभावना के बावजूद निजी चिकित्सकों द्वारा अपने लोभ की खातिर सर्जरी या ओपरेशन कर देने का खतरा भी उठाना होता है. सरकारी अस्पताल में केवल वही माताएं भर्ती होती हैं, जिनका प्रसव सामान्य होने की सम्भावना होती है या वे गरीब होती हैं. इन अस्पतालों की भारी अव्यवस्था और गन्दगी के बीच प्रसव का संवेदनशील कार्य संपन्न होना डरावना अनुभव होता है. जो भुगतते हैं, वही जानते हैं. और ऐसे में अगर प्रसव थोड़ा अटक गया तो भागो किसी बड़े शहर में या लुटवाओ किसी निजी अस्पताल से. यह है हमारी मानव माता की सेवा का आज के राजस्थान का प्रबंध.
फिर मानव माता की संतान जब बीमार हो जाती है तो उसका दर्द माँ संतान से ज्यादा झेलती है. माँ को इसीलिये पूजनीय कहते हैं हम. ऐसे में अपनी संतान के ईलाज के लिए वह मारी मारी फिरती है और हमारे सरकारी अस्पतालों में बच्चों के डॉक्टर कम हैं. बुखार में तपते या दस्त से पीड़ित बच्चे को संभालना माँ ही जानती है और उस माँ के लिए वर्तमान राजस्थान में दिलासे जैसी भी कोई बात नहीं है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान (NHM) का हल्ला बहुत हुआ है, ईरादा भी नेक था पर मानव माँ और उसकी संतान को यह मिशन वैसी relief नहीं दे पाया है, जैसा सोचा गया था. करोड़ों रूपया पानी की तरह बह रहा है पर फ्री दवाइयों और एम्बुलेंस तक ही बात अटकी हुई है. बिना विशेषज्ञ चिकित्सक के इनका फायदा क्या है ?
दूसरी तरफ गाय माता और उसकी संतानें शहरों की गलियों में भटक रही हैं, प्लास्टिक खा रही हैं. कचरा खा रही है. गौशालों में शरण लिए हुए हैं. लेकिन राजस्थान की वर्तमान व्यवस्था में उनके लिए कोई जगह नहीं है. जैसे कि उसे इस व्यवस्था में होना ही नहीं चाहिए था. लुप्त हो जाना चाहिए था, गिद्धों के साथ ही.
आज हमारे पास ऐसे बड़े मुद्दों पर सिवाय चिंता करने के कुछ नहीं है. इतने संसाधन कभी भी निजी तौर पर नहीं जुटाए जा सकते. गौशालों के प्रयास भी नाकाफी रहे हैं. ट्रस्टों के अस्पताल भी निजी रह गए हैं. एक ही समाधान है- अभिनव राजस्थान का निर्माण. जिसमें शासन राजस्थान में रहने वाली मानव आबादी के साथ साथ सभी प्रकार के पशुओं और पेड़ों के सुगम जीवन के लिए व्यवस्था होगी. शासन का अर्थ ही यही होता है. लेकिन अभी शासन सेवा और प्रबंध के लिए न होकर ‘राज’ और ‘शोषण’ के लिए है.
हम अभिनव राजस्थान बनाकर रहेंगे. कृत संकल्प है. वन्दे मातरम् करके रहेंगे. ईरादे नेक और मजबूत हैं