(राजस्थान के शासन की वह कड़वी हकीकत जो आप भी जानते समझते हैं पर जो अखबार में नहीं छपती और न चेनल में दिखाई देती है.)
राजस्थान में आज किसका शासन है ? किसी का भी नहीं. पिछले बीस-तीस सालों से मुझे तो वह शासन दिखाई नहीं दिया, जो राजस्थान के विकास को समर्पित रहा हो. ‘राज’ जरूर बदलते रहते हैं. यही वजह है कि आज भी हमारी गिनती पिछड़े और गरीब प्रदेशों में होती है.
इन वर्षों में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे शासन में प्रमुख जिम्मेदारी में रहे हैं. दोनों के जीवन में राजनीति के अलावा कुछ करने का अनुभव नहीं रहा है. इसी वजह से वे IAS पर निर्भर रहे हैं. IAS को वोट की चिंता नहीं होती है, इसलिए वे अपनी ‘मस्ती’ में रहते हैं, जिसके लिए वे इस सेवा में आये हैं. गहलोत और राजे को वे गोल गोल घुमाते रहते हैं ! बस जैसे तैसे ‘राज’ चलते रहते हैं.
दोनों के आसपास टिकिट के कागजों के चक्कर में कई ‘नेता’ मंडराते रहते हैं और पोस्टिंग के लिए अफसर. पर राजस्थान में किसी व्यक्ति को वित्त मंत्री या गृह मंत्री (पूरी शक्ति से) नहीं बनाया जाता. इतने सालों में लायक लोग ही नहीं चुने गए. यह भारत के सबसे बड़े प्रदेश का दुर्भाग्य है. वैसे अब तो मंत्री परिषद् जैसा भी कुछ नहीं रह गया है. सब कुछ CM के यहाँ होता है, मंत्री परिषद् को दस्तखत करने होते हैं.
गहलोत यहीं जाये जन्मे होने के कारण थोड़ा मानवीय पक्ष रखते रहे हैं और जनता को सूचना का, सेवा की गारंटी का, अधिकार देने में उनकी रुचि रही है पर राजे को यह सब में दिलचस्पी नहीं है. राजे जनता का सेवा के नाम पर ‘कल्याण’ करना चाहती हैं.
दोनों चुनाव से पहले एक दूसरे को बेईमान कहते हैं, राजस्थान के पिछड़ेपन के लिए कोसते हैं पर शासन में आने के बाद यह मुद्दा ख़त्म हो जाता है. सलीके से. सत्ता के दलाल और चतुर अफसर ‘सेट’ हो जाते हैं. किसान और युवा सबसे अधिक भावुक हो जाते हैं. जातियां भी ‘जिन्दा’ हो उठती हैं. बदले की राजनीति नहीं करनी. पूरे विश्व में ‘राजनेता’ यही तो करते हैं.
दोनों को लगता है कि जनता के पास कोई option नहीं है और तब तक चिंता नहीं करनी है. अब सचिन पायलट भी इसी मुगालते में राजस्थान में ‘राज’ करना चाहते हैं. उनको भी मालूम है कि गुलाम मानसिकता और जातिवाद में डूबे लोग वोट का खेल तो खेलेंगे ही. टिकटों के भूखे लोग, भीड़ जुटाऊ लोग भारी संख्या में हो गये हैं. ‘राज’ तो ये बनायेंगे ही. किसान और युवा भी सबसे अधिक भावुक हो जाते हैं. जातियां भी ‘जिन्दा’ हो उठती हैं. ऐसे में यह राजनैतिक पर्यटन क्या बुरा है. राजस्थान में आजादी के पहले और बाद में यह पर्यटन वैसे भी खूब विकसित हुआ है ! अभी भी राजस्थान ‘मेहमानों’ के लिए तैयार है. बाहर से आकर यहाँ मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक खूब बने हैं. किसी भी अन्य प्रदेश में यह पर्यटन इतना विकसित नहीं हुआ है. पधारो म्हारे देश !
‘विकास’ राजस्थान के शासन का विषय नहीं रहता है. अक्सर केंद्र से पैसा इस वजह से नहीं मिलता है क्योंकि योजनाओं पर किये गए खर्च का हिसाब दिल्ली नहीं पहुँचता है. विकास में किसी को कोई रुचि भी नहीं है. मुख्यमंत्री भी केवल कलक्टर और SP की कांफ्रेंस करते हैं, हर साल ताकि ‘राज’ चलता रहे, कायम रहे. कभी कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य या पशुपालन अधिकारियों से कोई बात नहीं होती है. कलक्टर ही सभी तालों की चाबी है. वह चाबी जो हर ताले को खोलने का भ्रम पैदा करती है.
आखिर दोष किसका है ? गहलोत का, राजे का या IAS अफसरों का ? इनका किसी का भी नहीं है. क्योंकि शासन इनका नहीं है. हम भारी भूल से गहलोत राज, कॉंग्रेस राज, वसुंधरा राज या भाजपा राज बोलते रहते हैं. संविधान में शासन जनता का होता है और अगर ऐसा है तो इन सभी का कोई दोष नहीं है. दोष जनता का है और जनता में भी उनका जो अपने को जागरूक कहते हैं, बुद्धिजीवी कहते हैं. वे अभी किसी की स्तुति या निंदा में व्यस्त हैं ! किसी के कशीदे पढ़ रहे हैं या किसी की ऐसी तैसी में लगे हैं. दुकान अपनी है और मुनीमों को मालिक मानकर मूर्खतापूर्ण व्यवहार को ‘बुद्धिमानी’ कह रहे हैं.
राजस्थान को अभी एक हजार जिम्मेदार और जागरूक नागरिकों की जरूरत है. किसी एक नेता या छद्म अवतार की नहीं. ये नागरिक ही असली बदलाव की जमीन तैयार करेंगे. ये ही शासन को जवाबदेह और पारदर्शी बनायेंगे. ये नागरिक ही ‘नई’ व्यवस्था के आधार स्तम्भ बनेंगे. यह गंभीर काम है और हमें यह करना होगा अगर अगली पीढ़ी से आँख मिलानी है तो. वर्ना हमारे बेटे बेटियां और पोते पोतियाँ हमें बोलने नहीं देंगे. वे बहुत तेज हैं, तकनीक उनके साथ है.
अभिनव राजस्थान अभियान में राजस्थान के कई जिलों में ऐसे जिम्मेदार और जागरूक नागरिक अपना काम शुरू कर चुके हैं. वे वर्तमान शासन व्यवस्था के कई विभागों को छान रहे हैं, समझ रहे हैं और राजस्थान में एक असली लोकतांत्रिक और विकसित ‘नई’ व्यवस्था की स्थापना के काम में जुट गए हैं.
आप भी इस काम में हाथ बंटा सकते हैं. उनके काम को आमजन तक पहुंचाकर भी सहयोग कर सकते हैं.
www.abhinavrajathan.com पर आप इस अभियान से जुड़ सकते हैं. पहले से काम कर रहे मित्र मंडलों से आप जुड़ सकते हैं.
(हमें गहलोत-वसुंधरा-सचिन से कोई व्यक्तिगत शिकायत नहीं है, वे भी इसी समाज से आते हैं. उनके काम का विश्लेषण आवश्यक है क्योंकि उसका हमारे परिवारों पर असर पड़ता है. हम पांच साल का वोट कुछ काम करने के लिए देते हैं और यह बड़ा विश्वास है. शायद. शायद नहीं भी.)
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