राजस्थान के प्रशासन में जो सबसे बड़ी कमी नजर आई.
‘अभिनव नागौर अभियान’ में. फाइलों को खंगालते हुए.
१. राजस्थान के किसी भी विभाग का शीर्ष अधिकारी फील्ड में नहीं जाता है. हमने अभी तक किसी भी विभाग के मुखिया को जिले में नहीं देखा है. न राजस्व विभाग का, न पुलिस का, न शिक्षा-स्वास्थ्य का, न कृषि-उद्योग का और न बिजली-पानी-सड़क का मुखिया इधर दिखाई दिया है. कमाल है. फील्ड विजिट के बिना भी किसी विभाग की क्षमता में सुधार के बारे में कैसे सोचा जा सकता है ?
२. जिले के किसी भी शीर्ष अधिकारी को हमने उपखंडों में नियमित विजिट और मीटिंग करते नहीं देखा है. सभी अधिकारी मुख्यालय में टाईमपास करते हैं. पांच साल में एक बार प्रशसन गाँवों या शहरों के संग इसीलिये दिखाना पड़ता है !
केवल जिला कलेक्टर और अन्य राजस्व अधिकारियों को सभी तरह की पंचायती सौप दी गई है. वे दौड़भाग, हाँ केवल दौड़भाग कर रहे हैं. कभी कभी डांट फटकार का मजा जरूर ले लेते हैं, रौब मार लेते हैं पर सभी विभागों का काम वे कैसे कर पायेंगे ? और इस चक्कर में ये लोग अपने राजस्व विभाग के काम को ठीक से नहीं कर पा रहे हैं. कई विकास कार्य उनके विभाग के असहयोग के कारण रुके पड़े रहते हैं और जमीनों के विवाद में माथे फूटते रहते हैं. अतिक्रमण और जमीन माफिया की समस्या भी इसी वजह से रहती है.
हम समझते हैं कि प्रत्येक विभाग के मुखिया को एक हफ्ते में एक जिले में और जिले के मुखिया को एक हफ्ते में एक उपखंड पर जाना ही चाहिए ताकि संवाद बढे, समझ बढे और काम बढे.
वैसे इनकी रिपोर्टों में और गाड़ियों की लोगबुकों में कई यात्राओं का जिक्र रहता है ! बस थोड़ी सी ये यात्राएं विभाग की मोनिटरिंग में व्यवस्थित ढंग से हो जाएँ तो काम बन जाए.
हमने नागौर के सभी जिला अधिकारियों को इस सम्बन्ध में पत्र लिखे हैं और अगले महीने से उनके निरीक्षण प्रतिवेदनों का संकलन हमारे मित्र करने वाले हैं. प्रदेश स्तर पर यह काम हम नवम्बर के समागम के बाद करेंगे.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का ‘अभिनव शासन’.
जिम्मेदार शासन, चलता शासन, अपना शसन.
वन्दे मातरम !