क्यों नहीं चाहती पुलिस कि जनता थाने के नजदीक आये ?
कुछ जागरूक लोगों ने अपने अथक प्रयासों से एक व्यवस्था करवाई थी. संसद के माध्यम से नहीं, न्यायालय के माध्यम से. संसद के माध्यम से तो यह संभव ही नहीं था. व्यवस्था यह करवाई कि प्रत्येक पुलिस थाने के क्षेत्र में आने वाले नागरिकों का एक समूह बनाया जाए. इसे सी एल जी या कम्युनिटी लायजन ग्रुप कहा गया. हिंदी में इसे सामुदायिक संपर्क समूह कह सकते हैं. समूह के दो प्रमुख उद्धेश्य बताए गए हैं-
१. जनता में पुलिस का भय कम करना. अंगरेजी राज से चले आ रहे खौफ को कम करना.
२. अपराधों की रोकथाम में पुलिस की मदद करना. पुलिस और जनता के बीच कड़ी का काम करना. बेहतर संवाद स्थापित कर मुकदमों की संख्या भी कम करना.
और भी बहुत कुछ लिखा है कागजों में. लेकिन यह आदेश सरकार से जारी करवाना कितना टेढ़ा काम था, यह तो वे ‘वीर’ ही जानते हैं जो गाहे बगाहे ऐसी लड़ाईयां तथाकथित आजादी के बाद भी लड़ते रहते हैं. कितने पापड बेले होंगे, कहां कहां पर दस्तक दी होगी, कितनी रातें काली की होंगी और कितने कागज घिसे होंगे. तब कहीं जाकर न्यायपालिका ने ही रास्ता दिया- थाने में घुसने का. वर्ना इस दुर्ग में, इस किले में घुसने कौन देता. पुलिस और थाने का भय ही तो मंत्रियों और सरकार की ताकत रहती है, जिससे जनता को हडकाया जाता है. इसी ताकत से ही तो जनता के शोषण को ढका जाता रहा है. कोई भी शोषण के खिलाफ आवाज उठाये तो पुलिस को कहो कि ‘फिट’ कर दे उसे. आवाज बंद. अंग्रेजों ने इसी पुलिस के दम पर ही दोसौ साल राज कर लिया था और हमारे नए काले अंग्रेज भी इस ताकत का उपयोग करना सीख गए हैं. इस ताकत को कौन नेता या अफसर खोना चाहेगा. लेकिन हमारी न्यायपालिका ने इस ताकत को कम करने का बीड़ा उठाया और सुधारवादियों की मदद को आगे आई.
कानून काफी नहीं, लागू करना जरूरी
लेकिन इतने से क्या होता है. न्यायपालिका और सुधारवादी तो नया क़ानून बनवा सकते हैं, नया आदेश निकलवा सकते हैं. रोज रोज उस क़ानून या आदेश का पालन करवाने का काम तो जनता को ही करवाना होता है. और अक्सर इस तथाकथित आजाद भारत में गाड़ी यहीं आकार अटक जाती है और सुधारवादियों का जोश ठंडा पड़ जाता है. जनता अभी भी गुलामी की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रही है. जनता अभी भी घबराई हुई है. उसे आप लाख बता दो कि डरने की कोई जरूरत नहीं है, नहीं विश्वास करती है. ‘सूचना का अधिकार’ अरुणा राय और उनके साथियों ने कितनी मेहनत से दिलवाया था. कितना सरल काम कर दिया कि मात्र १० रूपये में आप राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तक को कोई भी सवाल पूछ सकते हो और आपको जवाब पाने का अधिकार है. पर जनता कहां यह काम सलीके से सीख पाई है. अभी भी अधिकतर लोग इसके उपयोग से डरते हैं. इक्के दुक्के लोग ही इस काम में रुचि ले पाए हैं या इस काम को जान पाए हैं. वर्ना इस देश में इस अधिकार के बाद भ्रष्टाचार गायब हो जाना चाहिए था. क्या यह रोज रोज चिल्लाना कि भ्रष्टाचार बंद करो, बंद करो. जब सब कुछ साफ़ देख सकते हो तो इस अधिकार का उजाला क्यों नहीं करते हो, क्यों केवल अँधेरे को कोस रहे हो ?
यही बात पुलिस विभाग में सुधारों के साथ हुई है. मानवाधिकार कार्यकर्ता यह तय करवा चुके हैं कि किसी भी व्यक्ति को अनधिकृत रूप से, बिना कागजी कार्रवाई के थाने में नहीं रख सकते. फिर यह बात क्यों है कि पुलिस फलां आदमी को ‘उठाकर’ ले गई है और अब किसी नेता से फोन करवाना पड़ेगा ? क्यों यह नाटक अभी भी जारी है ? और सी एल जी बनने के बाद तो मामला और आसान हो गया है. अगर यह नियम मूल भावना के साथ लागू हो जाते हैं तो पुलिस और जनता के बीच किसी स्वार्थी तत्त्व की आवश्यकता नहीं रहेगी. बल्कि यहीं से ‘जनता के शासन, लोक शासन ’ की शुरुआत हो जायेगी.
क्या हैं सी एल जी के नियम ?
आप में से कई लोग सी एल जी के मेंबर या सदस्य होंगे. थाने में बैठक में गए भी होंगे और चाय-नाश्ता करके भी आये होंगे. लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आपने अभी तक वह कागज नहीं पढ़ा होगा, जिसमें सी एल जी के नियम लिखे हैं. आपने नहीं पढ़ा होगा कि सी एल जी के मेंबर के तौर पर आपके क्या कर्त्तव्य हैं और आपको क्या अधिकार हैं. नहीं पढ़ा होगा. बस आप तो खुश हुए होंगे कि आप थाने में जाकर कुर्सी पर बैठ लिए. जिस थाने के नाम से डर लगता था, उसमें जाकर कुर्सी पर बैठ लिए ! सी एल जी के नियम और कायदे पढ़ने की किसको पड़ी है. मुझे ताज्जुब हुआ जब पूरे राजस्थान में हर मीटिंग में मैंने जब भी मित्रों से पूछा कि आप सी एल जी के नियम जानते हैं तो सबने समान रूप से यही कहा कि उन्हें कुछ नहीं मालूम. तो चलिए पहले कुछ नियमों के बारे में अभी जानते हैं. राजस्थान पुलिस के २००५ के स्थायी आदेश में वर्णित कुछ नियम, ये हैं –
१. पुलिस का कांस्टेबल अपनी ‘बीट’ में, अपने क्षेत्र में जाकर मोहल्ले वालों को या गांव वालों को इकठ्ठा करेगा और उनसे पूछेगा कि थाने की मासिक बैठक में वे किस सम्मानित नागरिक को भेजना चाहेंगे. जब ये लोग नाम सुझा देंगे तो वह व्यक्ति सी एल जी का सदस्य बन जाएगा. लेकिन क्या आपने कभी ऐसे सदस्यों का चुनाव होते देखा है ? नहीं देखा होगा.
२. थाने के सम्पूर्ण क्षेत्र से ऐसे सदस्य चुनकर आयेंगे और वे सी एल जी या सामुदायिक संपर्क समूह बनायेंगे. अपने में से ये सदस्य किसी एक व्यक्ति को संयोजक चुनेंगे. यह संयोजक ही इस सी एल जी की बैठकों का अध्यक्ष होगा. थानेदार या पुलिस स्टेशन इंचार्ज इस समूह का सचिव होगा और संयोजक के निर्देशानुसार काम करेगा. आपने किसी को संयोजक बनते देखा है क्या ? उसको मीटिंग की अध्यक्षता करते देखा है क्या ? यही देखा होगा कि पुलिस और प्रशसन के अधिकारी सामने की कुर्सियों पर बैठे होंगे और जनता सामने बैठी हाँ में हाँ मिलाती है.
३. संयोजक और दो अन्य सदस्य नियमित रूप से थाने का मुआयना करेंगे और देखेंगे कि वहां किसी व्यक्ति को अनधिकृत रूप से बंद तो नहीं कर रखा है. ये लोग अन्य सदस्यों के साथ मिलकर मोहल्ले या गांव के छोटे मोटे झगड़े निपटाने में भी मदद करेंगे. क्या आपने ऐसा काम होते देखा है ? नहीं न ?
४. समूह में राजनैतिक दलों के पदाधिकारी नहीं होंगे. वे अपनी बात अपने दल के माध्यम से रखें, लेकिन इस समूह में वे नहीं होंगे. आप हँसेंगे यह जानकर क्योंकि पूरी की पूरी सी एल जी राजनैतिक लोगों से ही भरी रहती है. सी एल जी में भी वह आम जनता को भागीदार नहीं होने दें चाहते हैं ! यह भी नियम है कि कोई अपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति भी इस समूह में नहीं होगा. यह नियम भी खुलेआम टूट जाता है, क्योंकि कई अपराधी नेता जो बन जाते हैं.
५. सी एल जी के सदस्य अपराधों की रोकथाम में भी मदद करेंगे और अपने गली-गांव-मोहल्ले में हो रही अवांछित गतिविधियों की जानकारी पुलिस को समय रहते देकर अपराध को रोकने में मदद करेंगे. यह भी नहीं हो रहा होगा ? वर्ना कोई आतंकवादी या अपराधी वर्षों तक किसी मोहल्ले में किरायेदार बनकर थोड़े ही रह सकता है. अगर सी एल जी के मेंबर अपना काम करने लगेंगे तो अपराध घटने से पहले ही आवश्यक कार्रवाई हो जायेगी.
कौन टाल रहा है सी एल जी के काम को ?
और भी बहुत लिखा है इस कागज में जो आपको ३० दिसम्बर के मेड़ता सम्मेलन में पढकर सुनाया जाएगा. लेकिन जब सूचना के अधिकार के तहत हमने विभिन्न जिलों के पुलिस अधीक्षकों से इस सम्बन्ध में तथ्य जानने चाहे तो यही जानने में आया कि इन नियमों का पालन नहीं हो रहा है. पुलिस मुख्यालय ने भी इस बारे में मोनिटरिंग करना बंद कर दिया है. हमें कुछ आयोगों की रिपोर्टें भी हाथ लगें, जिनके अनुसार अगर सी एल जी ढंग से काम करती तो, प्रदेश में हुए कई बड़े खूनखराबे टल सकते थे. पुलिस और सी एल जी के बीच संवाद कम होने के कारण ही घड़साना, रायला तथा गुर्जर आंदोलन और गोपालगढ़ की घटना में मौतें हुई थीं. इन्हें रोका जा सकता था, लेकिन पुलिस को चेताने वाला समूह, सी एल जी निष्क्रिय था. आज भी सी एल जी की बैठक केवल किसी उत्सव के दौरान शांति बनाये रखने के लिए ही बुलाई जाती है. बड़ी ही चालाकी से पुलिस ने सी एल जी का अस्तित्त्व खत्म कर इसे मात्र शांति समिति बनाकर दफ़न कर दिया है.
अब आपका सवाल होगा कि इतनी अच्छी सोच है, सी एल जी को बनाने के पीछे, तो फिर सरकार इस पर ध्यान क्यों नहीं देती है. इस सवाल के जवाब के केंद्र में कहीं न कहीं हम लोग, जिनमें से कुछ को जागरूक होने का वहम भी है, शामिल हैं. सी एल जी के नियमों का पालन नहीं होने के ये कारण हैं-
१. राजनेता नहीं चाहते को पुलिस और जनता के बीच दूरी कम हो. यह दूरी कम होने से उन्हें अपने महत्त्व के कम हो जाने का डर है.
२. अफसर भी नहीं चाहते कि जनता सरकारी काम में ज्यादा दिलचस्पी ले. फिर अफसर बनने का क्या फायदा रहेगा. जनता सरकारी दफ्तरों में तांक झाँक करने लगेगी, तो अफसर होने के ठाठ बाट और कईयों की सीधी कमाई के जरिये ही जाते रहेंगे. अब मात्र जनता की सेवा के लिए कौन इतनी मेहनत कर पुलिस या प्रशासन का अधिकारी बनता है ! वो शिक्षक नहीं बन जाएगा.
३. जनता में जागरूकता के प्रयास नहीं हो पाए हैं, जिनसे जनता खुद अपने अधिकार के लिए आवाज उठाये. खुद सुधारवादी ही अधिकार या क़ानून बनवाकर घर में दुबक जाते हैं. इन्हें लागू करवा कर अंजाम तक पहुंचाने का काम बीच में ही छोड़ देते हैं. नतीजन डरी हुई जनता इन अधिकारों या कानूनों को जान ही नहीं पाती है, इस्तेमाल करना तो दूर की बात है. सूचना के अधिकार के साथ भी यही हुआ है. अब न्यायपालिका और मीडिया अपने दम पर कितना कुछ अमल करवा सकते हैं. इनकी भी अपनी सीमाएं होती हैं. जनता निष्क्रिय हो तो वे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. उन्होंने यह अधिकार और क़ानून बनवा दिए, यही बड़ी बात है. वर्ना संसद या विधानसभा में तो ऐसे मुद्दों पर बहस कब की बंद हो गई है.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का जनजागरण हर विषय पर जारी रहेगा और जनता के हित में बने कानूनों एवं अधिकारों को उनके अंजाम तक पहुँचाया जाएगा. सी एल जी का नियमानुसार गठन भी अपने चुने हुए क्षेत्रों में अवश्य करवाया जाएगा. इतना ध्यान जरूर रखा जाएगा कि इन कानूनों या नियमों का दुरूपयोग न हो, वर्ना मूल भावना के साथ ही खिलवाड़ हो जाएगा. हमें अधिक जिम्मेदारी से यह काम करना होगा.