हम टैक्स क्यों देते हैं ?
हमें इसकी एवज में शासन के रूप में मिलता क्या है ?
लोकतंत्र का एक मूल सवाल. अभिनव राजस्थान का व्यवहारिक जवाब.
हम जब भी बाजार में कोई भी वस्तु खरीदते हैं, किसी सेवा का उपयोग करते हैं तो हम टैक्स देते हैं. यह अलग बात है कि इस टैक्स का कितना भाग शासन के खजाने में पहुँचता है, पर आमजन तो अपना फर्ज निभा देता है. और जब हमारी आमदनी एक स्तर से ज्यादा हो जाती है तो हम आयकर भी देते हैं. साथ ही हम जमीन या संपत्ति के लेन देन के समय या वाहन खरीद के समय अतिरिक्त शुल्क भी देते हैं. डीजल पेट्रोल और मोबाइल की सेवाओं पर कई सरचार्ज तो कब ले लिए जाते हैं, हमें पता ही नहीं चलता है !
लेकिन मूल सवाल यह है कि हम यह टैक्स क्यों देते हैं ? लोकतंत्र में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को यह पहला पाठ तो याद होना ही चाहिए. तभी हमारे देश की समस्याओं पर हम गंभीर मंथन करने की हालत में होंगे, तभी हम अपने जीवन को बेहतर बना पाएंगे. वरना सतही स्तुति-निंदा से यह देश दशकों से यहीं खड़ा है और आगे भी रहेगा. घाणी के बैल की तरह एक ही जगह घूमने को जादूगर लोग ‘विकास’ कहकर बहलाते रहेंगे और ‘राज’ करते रहेंगे.
हम टैक्स इसलिए देते हैं ताकि शासन से हमें कुछ मूलभूत सेवाएं मिल सकें. मुख्य रूप से हमें कौनसी सेवाएं चाहियें ? शिक्षा-स्वास्थ्य-बिजली-पानी-सड़क-सफाई-सुरक्षा-योजना निर्माण –पर्यावरण संरक्षण-संस्कृति संरक्षण. ये दस प्रकार की सेवाएं हमारे जीवन को बेहतर बना सकती हैं, अगर वे पर्याप्त हों और गुणवत्तायुक्त हों. हम एक नागरिक के रूप में अपने परिवार के साथ मजे में जी सकते हैं. तभी हम अपने परिवार-प्रदेश-देश की आमदनी बढ़ाने का जतन कर पाएंगे. लेकिन वर्तमान में हम भ्रमित व्यवस्था पकड़कर बैठ गए हैं. अंग्रेजों के वारिश अफसरों, दलालों और राजनेताओं ने खजाने को अपना मान लिया है. दूसरी ओर टैक्स या कर का सुविधाओं से सीधा सम्बन्ध टूट गया है. और हम जनता चन्दा देकर अज्ञानता की वजह से उनकी ओर टुकुर टुकुर देख रहे हैं. हमारा पैसा और हम लाचार. टैक्स देकर भी शासन से हमारे बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा का प्रबंध नहीं करवा पा रहे, निजी संस्थाओं को भारी फीस देकर दोहरी मार झेल रहे हैं. अस्पताल का तो और भी बुरा हाल. बिजली इतनी महंगी, पानी तरसा तरसा कर मिलता है तो सड़कें टूटी हुईं. ठीक सड़क पर पैर रखते ही टोल ऊपर से देना होता है. सफाई का क्या कहना. सुरक्षा के लिए पुलिस के पास जाना भी असुरक्षित-असम्मान सी भरा हुआ. योजनाएं हवा में बनती हैं तो पर्यावरण और संस्कृति वेंटिलेटर पर हैं, अंतिम साँसे लेने लगे हैं.
जब हमें अपने द्वारा दिए गए टैक्स से ये मूलभूत सुविधाएं ही नहीं मिल रही हैं तो हम टैक्स किसके लिए देते हैं ? हमें भी नहीं पता. बस टैक्स दे रहे हैं. यानी वैसा ही हुआ कि हम गौशाला के लिए चंदा दे रहे हैं और गाय वहां एक भी नहीं, मंदिर के लिए चन्दा दें और वहां पूजा न हो. वैसा ही हाल है. कह सकते हैं कि अपना शासन या लोकतंत्र कहीं नहीं है. बस व्यवस्था पर कुछ धूर्त किस्म के लोगों ने कई दशकों से कब्जा कर रखा है और वे दोनों हाथों से हमारे खजाने को लूट रहे हैं और गुर्रा भी रहें हैं. नागरिकता और जागरूकता के अभाव में हम केवल वोट-वोट खेलने को लोकतंत्र कहकर इस शब्द का अनर्थ कर रहे हैं. लेकिन अब उनके दिन लदने तय हैं. लोकतंत्र अभिनव राजस्थान के रूप में दस्तक देने लगा है. कदम भरने लगा है.
अभिनव राजस्थान एक सीधी सरल व्यवस्था होगी, जिसमें दिए गए टैक्स को मूलभूत सुविधाओं से जोड़ दिया जाएगा. आकंड़ों और नियम-कायदों की उलझन को सुलझा दिया जाएगा. बड़े आराम से. हमें लगेगा कि बाजार में जो टैक्स हम देकर आये हैं, वह हमारे घर में-गाँव में-शहर में सुविधा के रूप में प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है. एक सप्ताह में यह किया जा सकेगा. क्योंकि नीयत साफ़ होगी, उद्धेश्य स्पष्ट होगा.
असली विकास और असली लोकतंत्र.
वन्दे मातरम् तभी हो पाएगी. (2016 से 2020 के पांच वर्ष अभिनव राजस्थान के निर्माण में लगने हैं.
और यह सपना जल्द ही पूरा होता दिखाई देगा. अपने हाथों से.)
Nice