प्रारंभिक शिक्षा (कक्षा 10 तक) में जानकारियों की अनिवार्यता रहती है। एक सामान्य जागरूक नागरिक को लोकतंत्र की मजबूती के लिए और आर्थिक विकास के लिए इतना ज्ञान होना चाहिये। इस अनिवार्यता से विद्यार्थी की विभिन्न क्षेत्रों में क्षमता, अभिरुचि एवं उपयोगिता का भी अंदाज लग जाया करता है। यह अंदाज लगाना ही किसी देश के नीतिकारों की परीक्षा होती है, ताकि वे देश में वांछित ज्ञान के सृजन का वातावरण निर्मित कर सकें।
यह वातावरण बनते हीं विकास की दशाएँ बन जाती हैं। विकास की दिशा सकारात्मक हो जाती है। लेकिन आजादी के बाद से हमारे नीतिकार इस प्रयास में असफल रहे हैं या कहें कि उन्होंने प्रयास ही पूरे मन से नहीं किये हैं। मैकाले के मैट्रिक सिस्टम से आगे उच्च शिक्षा का ढाँचा उनसे ठीक से खड़ा नहीं हुआ है। मैट्रिक (10) के सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) की तरह उच्च शिक्षा में भी डिग्री या प्रमाण पत्र रख दिये, वैसी ही परीक्षाएँ रख दीं, जैसी प्रारंभिक शिक्षा में होती हैं। पाठ्यक्रम भी वैसा ही रख दिया। अब 6 वीं कक्षा में जिस रूप में अकबर, शाहजहाँ विद्यार्थी पढ़ते हैं, उसी रूप में कक्षा 12 से 14 तक पढ़ते हैं। उतनी ही समझ की अपेक्षा रखी जाती है। लगभग सभी विषयों में यही हाल है। और इसका परिणाम यह हुआ कि उच्च शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षा का विस्तार मात्र हो गयी। उच्च शिक्षा की जानकारियों का ढेर हो गयी, विचारों का, असली ज्ञान का मार्ग उसमें नहीं बन पाया।
यह वातावरण बनते हीं विकास की दशाएँ बन जाती हैं। विकास की दिशा सकारात्मक हो जाती है। लेकिन आजादी के बाद से हमारे नीतिकार इस प्रयास में असफल रहे हैं या कहें कि उन्होंने प्रयास ही पूरे मन से नहीं किये हैं। मैकाले के मैट्रिक सिस्टम से आगे उच्च शिक्षा का ढाँचा उनसे ठीक से खड़ा नहीं हुआ है। मैट्रिक (10) के सर्टिफिकेट (प्रमाण पत्र) की तरह उच्च शिक्षा में भी डिग्री या प्रमाण पत्र रख दिये, वैसी ही परीक्षाएँ रख दीं, जैसी प्रारंभिक शिक्षा में होती हैं। पाठ्यक्रम भी वैसा ही रख दिया। अब 6 वीं कक्षा में जिस रूप में अकबर, शाहजहाँ विद्यार्थी पढ़ते हैं, उसी रूप में कक्षा 12 से 14 तक पढ़ते हैं। उतनी ही समझ की अपेक्षा रखी जाती है। लगभग सभी विषयों में यही हाल है। और इसका परिणाम यह हुआ कि उच्च शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षा का विस्तार मात्र हो गयी। उच्च शिक्षा की जानकारियों का ढेर हो गयी, विचारों का, असली ज्ञान का मार्ग उसमें नहीं बन पाया।
धीरे-धीरे उच्च शिक्षा के केन्द्र, कॉलेज-यूनिवर्सिटी अपना स्तर खोने लगे, क्योंकि गतिशीलता, जीवंतता के बिना परिपक्व होता विद्यार्थी बोर होने लगा, उसकी रूचि उच्च शिक्षा में कम होने लगी। शोध बंद हो गये और प्रोफेसर होना गर्व का विषय नहीं रह गया। रही सही कसर नेताओं ने पूरी कर दी। वे तो वैसे भी उच्च शिक्षा का विकास नहीं चाहते थे, क्योंकि इससे उनकी अक्षमताएँ उजागर होने का डर रहता था। आज परिणाम यह है कि उच्च शिक्षा के केन्द्र लगभग बंद हो गये हैं। यहाँ तक कि मेडिकल – इंजीनियरिंग – कृषि विज्ञान के केंद्रों का भी बुरा हाल है। ठीक वैसा ही जैसा देश का। लेकिन अभिनव राजस्थान में इस स्थिति को पलट दिया जायेगा। नयी रचना की जायेगी।
कनिष्ठ महाविद्यालय (कक्षा 11 से 12)
कक्षा 10 की राज्य स्तरीय परीक्षा के बाद उच्च शिक्षा के इस केन्द्र में प्रवेश होगा। विद्यार्थी की मेरिट (योग्यता) एवं अभिरुचि (एप्टीट्यूड) के अनुसार उसे ऐच्छिक विषयों के वर्ग में प्रवेश मिलेगा। वर्तमान में हम जिन्हें उच्च माध्यमिक या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कहते हैं, वही जूनियर कॉलेज या कनिष्ठ महाविद्यालय कहलायेंगे। अब इन विद्यालयों में कक्षा 9 व 10 के विद्यार्थी नहीं होंगे, क्योंकि उनको पढ़ाने का तरीका (शिक्षण विधि) अलग होती है, जबकि कक्षा 11 व 12 के ऐच्छिक विषयों को अलग ढंग से पढ़ाना होता है। इन ऐच्छिक विषयों में से दो को एक समूह के रूप में रखा जायेगा। वर्तमान में तीन ऐच्छिक विषयों के साथ हिन्दी – अंग्रेजी के अनिवार्य विषय भी होते हैं। अब नयी व्यवस्था में तीन की जगह दो विषय होंगे, तथा हिन्दी-अंग्रेजी के विषय नहीं होंगे। इन विषयों में कला, वाणिज्य एवं विज्ञान का प्रतिशत क्रमश: 40 : 20 : 40 होगा। इस पर विस्तृत चर्चा अगले पेज (6) पर की गयी है। वहीं इन उच्च शिक्षा के प्राथमिक केंद्रों पर अलग से अध्यापकों की व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी। वैसे भी इन विद्यालयों में पढ़ा रहे अध्यापकों को कनिष्ठ व्याख्याता का तमगा सरकार द्वारा दिया जा चुका है। वे जब लेक्चरर कहलाते हैं, तो उनके कार्य भी वैसे ही होने चाहिए।
वरिष्ठ महाविद्यालय (कक्षा 13 से 15)
अभिनव राजस्थान की प्रशासनिक रचना में पंचायत समिति या ब्लॉक (विकास खण्ड) का विशेष स्थान रहेगा। पुलिस, स्वास्थ्य, बिजली – सड़क – पानी आदि व्यवस्थाओं का स्थानीय नियंत्रण इस स्तर पर नये रूप में होगा। ऐसा ही उच्च शिक्षा के संदर्भ में होगा। प्रत्येक समिति स्तर पर एक महाविद्यालय होगा, जिसे हम वरिष्ठ महाविद्यालय या सीनियर कॉलेज कहेंगे। इसके लिए अलग से किसी व्यवस्था की आवश्यकता नहीं होगी। समिति मुख्यालय पर स्थित उच्च माध्यमिक विद्यालय को ही वरिष्ठ महाविद्यालय का दर्जा दे दिया जायेगा। अलग से व्याख्याताओं की आवश्यकता भी नहीं होगी, क्योंकि कनिष्ठ व्याख्याताओं में से ही वरिष्ठता के आधार पर वरिष्ठ व्याख्याताओं के रूप में पदोन्नत कर दिया जायेगा। वे निश्चित रूप से कक्षा 15 तक या कहें स्नातक स्तर तक अपने विषय पढ़ाने में सक्षम हैं। और जब नीतिकार इसमें योग्यता का पेंच अड़ायें कि यह कैसे हो सकता है, तो दो बातें उनसे पूछी जा सकती हैं। क्या वर्तमान कॉलेजों के व्याख्याता नियमित रूप से विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं? और क्या निजी कॉलेजों में पढ़ाने वाले ‘तथाकथित व्याख्याता’ उच्च शिक्षण की योग्यता रखते हैं? या फिर दो कमरों में चल रहे निजी कॉलेज को आपने कैसे मान्यता दे रखी है? अगर ऐसा है, तो उन्हें कहना होगा कि आपने आज तक जिस टाँग अड़ाई की आदत से परिवर्तनों को रोके रखा है, वह आदत अब बदल लो। उच्च शिक्षा को और बर्बाद मत करो। खेत-खेत में चल रहे, दो-दो कमरों में चल रहे कॉलेजों को आपने मान्यता दे रखी हैं, उनके द्वारा दी गयी कागजी डिग्रियों को मान रहे हो, तो इन कनिष्ठ महाविद्यालयों को खुलने दो। गाँवों के, ग़रीबों के बच्चे कॉलेज देख लेंगे, वरन् वे स्कूल से आगे कम ही बढ़ पा रहे हैं। आप आँकड़े देखिए। 10 वीं की परीक्षा 12 लाख बच्चे राजस्थान में देते हैं, तो 12 वीं की परीक्षा 6 लाख बच्चे ही देते हैं। कॉलेज में 4 लाख बच्चे पहुँच रहे हैं और स्नातकोत्तर शिक्षा में 1 लाख भी नहीं बचते। और नीतिकार कॉलेज खोलने में टाँग अड़ाकर निजी संस्थाओं को लूटने का मार्ग बता रहे हैं। पैसा नहीं है, कहकर वे हमेशा एक पासा फेंकते हैं, जिसका अक्षम नेताओं और नींद में पड़े बुद्धिजीवियों के पास जवाब नहीं होता। उस पर हमारे छात्र संगठन चुनावों के उद्देश्य आगे नहीं बढ़ते हैं और अभिभावक जाति से ऊपर वोट देना सीखे नहीं।
इन वरिष्ठ महाविद्यालयों में कला, वाणिज्य एवं विज्ञान विषयों का प्रतिशत क्रमश: 40 : 20 : 40 होगा। अभी यह लगभग 70 : 10 : 20 के अनुपात में है। कब तक हम बच्चों को इतिहास पढ़ा – पढ़ा कर बेरोज़गारी का प्रतिशत बढ़ाते रहेंगे? समय की माँग विज्ञान एवं वाणिज्य की अधिक है। आने वाले पाँच वर्षों में धीरे-धीरे इस अनुपात को सुधार लिया जायेगा। विशेष रूप से कृषि एवं वाणिज्य विषयों की उपेक्षा बंद करने पर अभिनव राजस्थान में विशेष जोर दिया जायेगा।
इस प्रकार राजस्थान में बड़े शहरों के अलावा लगभग 250 कॉलेज होंगे, जो उच्च शिक्षा के नये आयाम स्थापित करेंगे। स्पष्ट है कि इन कॉलेजों में उपस्थिति की अनिवार्यता रहेगी और वर्तमान निष्क्रियता किसी भी हालत में खत्म की जायेगी। हमारी शिक्षा व्यवस्था का उच्च शिक्षा के प्रति जो गैर ज़िम्मेदाराना रवैया अपना लिया है, उसे और बर्दाश्त नहीं किया जायेगा।
व्यावसायिक महाविद्यालय
यहाँ पहले आपको चेता दें कि इतना धन कहाँ से आयेगा, इतने शिक्षक कहाँ से लायेंगे, जैसे तर्कों को आराम दे दें। इच्छा शक्ति के आगे सब बाधाएँ गौण होती हैं। वर्तमान संसाधनों से ही परिवर्तन हो जायेंगे। अभिनव राजस्थान के प्रत्येक जिले में एक कृषि महाविद्यालय, एक वाणिज्य महाविद्यालय, एक संगीत महाविद्यालय, एक ललित कला महाविद्यालय, एक खेल महाविद्यालय, एक नर्सिंग महाविद्यालय और एक तकनीकी महाविद्यालय (पोलीटेक्निक) होगा। प्रत्येक संभाग पर एक आयुर्विज्ञान (मेडिकल) महाविद्यालय, एक अभियांत्रिकी महाविद्यालय (इंजीनियरिंग), एक फार्मेसी (भेषज) महाविद्यालय तथा एक पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय होगा। विशेष बात यह रहेगी कि इन महाविद्यालयों में प्रवेश स्थानीय स्तर पर होगा। 12 वीं परीक्षा की मेरिट के आधार पर होगा। कोई प्रतियोगी परीक्षा अलग से नहीं होगी। लेकिन 12 वीं की परीक्षा की मेरिट जिला एवं संभाग स्तर पर बनेगी। जिले के महाविद्यालयों में प्रवेश जिला मेरिट से और संभागीय व्यावसायिक महाविद्यालयों में प्रवेश संभागीय मेरिट (योग्यता क्रम) से होगा। इसके दो लाभ होंगे। एक तो क्षेत्रीय असंतुलन कम होगा। वरन् अभी कई पिछड़े जिलों के विद्यार्थी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं पा सक रहे हैं। धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, बारां, झालावाड़, चित्तौडगढ़, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमन्द, सिरोही, जालोर, पाली, नागौर, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और चुरू जिलों का प्रतिनिधित्व 60 वर्षों की शिक्षा के बाद भी अपेक्षाकृत कम है। वहीं दूसरे गाँवों के ग़रीबों के विद्यार्थी भी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में स्थनीयता के कारण प्रवेश पा सकेंगे। अभी शहरी बच्चों और अमीरों के बच्चों के ही प्रवेश इन पाठ्यक्रमों में अधिक हो रहे हैं। शिक्षा के समान अवसर न होने से ऐसा हो रहा है। गाँव का मेधावी छात्र, गरीब माँ-बाप का छात्र महंगी कोचिंग कक्षाओं में कैसे जा पायेगा? लेकिन 12 वीं की मेरिट का आधार होगा और स्थानीयता को प्रवेश में तरजीह मिलेगी, तो उसके प्रवेश के अवसर बढ़ेंगे। आप इसे राष्ट्रीयता की नजर से भी देखिये। जब तक हमारी चयन प्रक्रियाओं में समूह छोटा होगा, प्रतिभाओं का स्तर भी नीचा रहेगा। जितना समूह बड़ा होगा, प्रतिभा का स्तर बढ़ेगा। इसीलिए तो हम ओलम्पिक में पिछड़े बैठे हैं। एक नगण्य से आकार के समूह से राष्ट्रीय स्तर पर चयन हो रहा है। ओलंपिक जीतने लायक बच्चे तो गाँव-कस्बे में ही रह जाते हैं।
विश्वविद्यालय
अभिनव राजस्थान के विश्वविद्यालय, वाकई में विश्वविद्यालय होंगे। विश्व के विकसित देशों की स्तर के होंगे और विश्व भर से इनमें विद्यार्थी अध्ययन के लिए आयेंगे। तभी तो ये ‘विश्वविद्यालय’ होंगे! अभी तो विश्व की छोड़ो, राजस्थान के प्रतिभाशाली छात्र भी इनसे दूर हैं और जैसे-तैसे नौकरी पाकर विश्वविद्यालय में जाने से पहले ही शिक्षा को अलविदा कह देते हैं। लेकिन अभिनव राजस्थान में तस्वीर बदलेगी। हमारी व्यवस्था में प्रत्येक संभाग में एक विश्वविद्यालय होगा! परन्तु ध्यान रहे कि इन विश्वविद्यालयों में केवल शोध करने के लिए छात्र प्रवेश लेंगे। यानि केवल पी.एच.डी. यहाँ पर होगी। स्नातक या स्नातकोत्तर का यहाँ क्या काम? वैसे भी हमारी व्यवस्था में यह दोनों स्तर कॉलेज में ही समाहित कर दिये जायेंगे। नये पाठ्यक्रम में बी.ए., एम.ए. या बी.एस.सी., एम.एस.सी. जैसे विभेद नहीं होंगे। प्रत्येक विषय में विशेषज्ञता की एक ही डिग्री होगी। जो कॉलेजों में ही पूरी हो जायेगी। यूनिवर्सिटी में तो विद्यार्थी शोध के लिए आयेंगे।
प्रशासनिक नियंत्रण
राज्यपाल पदेन कुलपति रहेंगे। वे उपकुलपतियों के परामर्श पर कार्य करेंगे। उच्च शिक्षा के लिए कोई मंत्री नहीं होगा। न्यायपालिका की तरह यह तंत्र भी स्वतंत्र रूप से कार्य करेगा। राज्य की उच्च शिक्षा की नीति यही सब मिलकर बनायेंगे और उसे लागू करेंगे। उच्च शिक्षा का प्रशासनिक नियंत्रण संभागीय विश्वविद्यालयों के पास होगा। यानि कक्षा 11 से 15 तक के सभी केन्द्र (जूनियर व सीनियर कॉलेज) तथा व्यावसायिक कॉलेज इन विश्वविद्यालयों के सीधे अधीन होंगे। परीक्षा, पाठ्यक्रम और निरीक्षण का कार्य उपकुलपति के निर्देशन में ही होगा। हो भी क्यों न्। तभी तो उच्च शिक्षा के वे मापदंड तय होंगे, जिन पर राजस्थान और भारत के वास्तविक विकास का भवन खड़ा होगा। मानकर चलिये, देश को अगर वाकई में विकसित करना है, तो प्रोफेसरों को जिम्मेदारी ओढ़ानी ही पड़ेगी।