अभिनव राजस्थान में प्रारंभिक शिक्षा को फिर से नींव मानकर कार्य शुरू किया जायेगा। नींव कमजोर हो तो मकान कैसे मजबूत हो सकता है। अभी तक तो स्वतंत्र भारत में यह कहा जा रहा था कि कई सरकारी भवनों की नींवें कमजोर रहने से वे जल्दी मरम्मत मांग लेते हैं, सड़कों का आधार कमजोर छूट जाने से वे जल्दी उखड़ जाती है, बीज अच्छे न होने के कारण फसली उत्पादन कम होता है, कुपोषण के कारण बीमारियाँ बढ़ रही हैं, आदि-आदि। लेकिन प्रारंभिक शिक्षा से समाज और देश के कमजोर होने पर मौन क्यों? अब जब प्रारंभिक शिक्षा की घोर उपेक्षा पर नीतिकार उतर आये हैं, और देश के गर्त में चले जाने की सम्भावनाएँ बढ़ गयी हैं।
तो मौन क्यों? क्या बात हुई कि जो बालक-बालिका न पढ़े उसको भी पास कर दो? क्या चाहते हैं, हमारे नीति निर्माता? क्या लक्ष्य हैं उनके कि वे यह अक्षम्य अपराध भी करने लगे हैं। क्या यह देशद्रोह नहीं है? हां है और इसका हम विरोध करेंगे। जो उपेक्षा प्रारंभिक शिक्षा की वर्तमान में हो रही है, अभिनव राजस्थान में उस पर विराम लगेगा। अभिनव राजस्थान में शिक्षा के ढाँचे में आवश्यक परिवर्तन किये जायेंगे, संरचनात्मक और कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन। शिक्षक और अभिभावक और बच्चों की सक्रिय भागीदारी से परिवर्तन। प्रबल जनसमर्थन से परिवर्तन।
तो मौन क्यों? क्या बात हुई कि जो बालक-बालिका न पढ़े उसको भी पास कर दो? क्या चाहते हैं, हमारे नीति निर्माता? क्या लक्ष्य हैं उनके कि वे यह अक्षम्य अपराध भी करने लगे हैं। क्या यह देशद्रोह नहीं है? हां है और इसका हम विरोध करेंगे। जो उपेक्षा प्रारंभिक शिक्षा की वर्तमान में हो रही है, अभिनव राजस्थान में उस पर विराम लगेगा। अभिनव राजस्थान में शिक्षा के ढाँचे में आवश्यक परिवर्तन किये जायेंगे, संरचनात्मक और कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन। शिक्षक और अभिभावक और बच्चों की सक्रिय भागीदारी से परिवर्तन। प्रबल जनसमर्थन से परिवर्तन।
नया स्कूली ढाँचा
अभिनव शिक्षा में केवल दो प्रकार की शालाएं होंगी। प्राथमिक और द्वितीयक या माध्यमिक, प्राइमरी और सैकण्डरी। बस दो ही प्रकार की शालाएं पूरे प्रदेश में होंगी। प्राथमिक शाला 1 से 5 तक और माध्यमिक शाला 6 से 10 तक। प्राथमिक शाला में कम से कम 100 बच्चों की अनिवार्यता होगी तथा अधिकतम 200 बच्चे होंगे। माध्यमिक शाला में कम से कम 200 बच्चे होंगे और अधिकतम 300 बच्चे। यानि प्राथमिक शाला में एक कक्षा में कम से कम 20 और अधिकतम 40 बच्चे होंगे, तो माध्यमिक में कम से कम एक कक्षा में 40 और अधिकतम 60 बच्चे होंगे। पूरे प्रदेश की स्कूलों का इसी हिसाब से पुनर्गठन किया जायेगा।
प्रत्येक कक्षा पर एक अध्यापक होगा। एक कक्षा एक अध्यापक का सिद्धांत ही व्यावहारिक है। वर्तमान 20 बच्चों पर, 40 बच्चों पर एक अध्यापक का फार्मूला अव्यावहारिक है। कैसे एक अध्यापक तीन-तीन कक्षाओं को एक साथ पढ़ा सकता है। नीति बनाने वाले व्यर्थ में शिक्षकों की कमी बता रहे हैं। आप कभी योजना आयोग के आँकड़े देखियेगा। शिक्षकों की कमी नहीं है, विद्यार्थियों की भी कमी नहीं है। केवल गंभीरता की कमी है, संवाद की कमी है। हमारा दावा है कि आपको बड़े-बड़े शिक्षाविदों से पूछने की जरूरत नहीं है। राजस्थान के अलग-अलग जिलों से 20-25 शिक्षकों को लॉटरी से छाँट लो और बिठा दो समस्या का हल निकालने के लिए। वे आपको एक दिन में हल निकालकर बता देंगे। विश्वास करिये। एक आई ए एस जो कभी गाँव की स्कूल में नहीं गया, एक नेता जो एक पेज किसी विषय पर लिख नहीं सकता, कैसे शिक्षा की सही नीति बना सकता है? अभिनव राजस्थान के जनजागरण और जनसमर्थन के बाद देखिये कि कैसी नीति बनती है।
आप कह सकते हैं कि सरकार प्रयास तो कर रही है। शिक्षक-विद्यार्थी के अनुपात को सही करने के लिए ‘समानीकरण’ का प्रयास चल तो रहा है। लेकिन प्रयास सफल क्यों नहीं हुआ? कहा जा रहा है कि शिक्षक विरोध कर रहे हैं। ऐसा नहीं है। अधिकांश शिक्षक तो स्वयं समानीकरण चाहते हैं। निठल्ले शिक्षकों की संख्या 5-10 प्रतिशत ही है। यह समाज के किसी भी वर्ग में हो सकता है। क्या तहसीलों और कलेक्ट्रेट के बाबू अपने काम के प्रति गंभीर हैं? वहाँ तो बल्कि निठल्लों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक निकलेगी। शिक्षकों को दोष देना बंद कर, हमें उन पर विश्वास करना होगा। उन्हें निर्णय और नीति में भागीदार बनाना होगा। मानकर चलिये कि हमारे शासन का यह वर्ग सबसे आगे आकर प्रदेश के विकास में सहयोग करेगा। और जिन्हें आप निठल्ले, कामचोर शिक्षक कहकर नकार रहे हैं या जिनके कारण पूरे शिक्षक वर्ग को बदनाम कर रहे हैं, वे भी माहौल बनने पर योगदान के लिए आगे आ जायेंगे। संवाद, सम्मान और विश्वास का माहौल बनना चाहिये। अभिनव राजस्थान में यही होने वाला है। लेकिन जब समानीकरण का अर्थ यह नहीं होगा कि शिक्षकों को दूर-दूर स्थानों पर तबादले कर परेशान किया जायेगा। उन्हें जितना संभव हो, उनकी इच्छानुसार उनके निवास स्थान के आसपास रखा जाना होगा।
ऊपर हमने यह भी कहा है कि प्राथमिक और माध्यमिक दो ही तरह के स्कूल होंगे। यानि उच्च प्राथमिक या उच्च माध्यमिक विद्यालय, अभिनव राजस्थान में नहीं होंगे। हमारा मानना है कि कक्षा 1 या 2 के बच्चों को आप कक्षा 7 या 8 के बच्चों के साथ मत पढ़ाइये।
अजीब स्कूलें
6-7 वर्ष के बालक और 13-14 वर्ष के बालक के शारीरिक एवं मानसिक स्तर में काफी अंतर होता है। कैसे एक ही शिक्षक विधि दोनों वर्गों पर लागू होगी? 6-7 वर्ष के बच्चों को पढ़ाने का तरीका अलग होगा। तभी तो शिक्षा के बढ़ते स्तर का सही मापन हो पायेगा। इसलिए हमारी प्राथमिक शाला 1 से 5 कक्षा तक होगी और माध्यमिक शाला 6 से 10 की कक्षा तक होगी। उच्च माध्यमिक या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में भी हमारी व्यवस्था में कक्षा 6 से 10 के विद्यार्थी नहीं होंगे। यह अवैज्ञानिक मिश्रण बंद होगा। देखा तो यह भी जा रहा है कि कहीं-कहीं कक्षा 6 से 12 तक विद्यार्थी भी एक साथ पढ़ रहे हैं। आप जानते हैं न कि कक्षा 9 व 10 में कम्पलसरी सबजेक्ट, अनिवार्य विषय हुआ करते हैं। जबकि कक्षा 11 व 12 में ऑप्शनल या ऐच्छिक विषय होते हैं। इन दोनों वर्गों की भी शिक्षण विधि एक नहीं हो सकती। एक जैसे शिक्षक नहीं हो सकते। कक्षा 11 व 12 में उच्च शिक्षा शुरू हो जाती है, जबकि कक्षा 9 व 10 में सभी विषयों की सामान्य जानकारियाँ होती हैं। लेकिन चल रहा है। लक्ष्य स्पष्ट नहीं, नीति स्पष्ट नहीं, दिशा स्पष्ट नहीं, दशा स्पष्ट नहीं। लेकिन परिवर्तन कौन करे? बुद्धिजीवी कहेंगे कि हमने तो सुझाव दिये भी हैं, सरकार नहीं सुनती। एक गैर जिम्मेदाराना बयान। राजतंत्र की मानसिकता का बयान। बुद्धिजीवी हो, लोकतंत्र है और फिर भी अपनी आवाज सुनाने में असफल हो। फिर से विचार करो। और सरकार कौन? मुख्यमंत्री ‘राज’ में रहना चाहते हैं, नेता राज में रहना चाहते हैं। इस पर आंच आये, ऐसा परिवर्तन नहीं करना। मंत्रियों की रातें प्रदेश के चिन्तन में नहीं बीतती हैं। कैसे बीतती हैं, आप जानें। आई.ए.एस. या आर.ए.एस. ‘राज’ के नशे में मस्त हैं। क्या लेना देना शिक्षा की नीति से। उनको तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजना नहीं। इसलिए वे साक्षरता को लक्ष्य बनाकर वाहवाही लूटने में व्यस्त हैं। साक्षर राजस्थान बनाकर अपनी नौकरी में चार चाँद लगा लेंगे, पुरस्कार भी ले लेंगे तो शिक्षक भी क्यों चिंता करें? उन्होंने भी अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में प्रवेश दिला दिया है। अमीर और थोड़े बहुत समृद्ध अभिभावक भी इसी राह पर हैं। तो यह बीड़ा कौन उठाये? कैसे उठाये? क्यों उठाये?
बीड़ा उठाना पड़ेगा मित्रों। बुद्धिजीवियों और शिक्षकों को बीड़ा उठाना पड़ेगा। नहीं तो उनकी जात को अगली पीढ़ियाँ गालियाँ देंगी। जैसे हम अंग्रेजों, गांधियों और नेहरूओं को कोसते रहते हैं, हमें भी कोसा जायेगा, जब भारत दुनिया के सबसे कंगाल देशों में, अफ्रीका से भी नीचे गिना जायेगा। मानव सूचकांक में तो अभी भी 150 देशों से नीचे है। यह जो धनी व्यक्ति, मीडिया से मिलकर भारत को विश्व की ताकत बताने का धोखा कर रहे हैं, उनसे बचिए। एक रिपोर्ट होती है, मानव विकास की। शिक्षा के स्तर, स्वास्थ्य के स्तर की, जीवन स्तर की। उसमें हम 150 देशों से पीछे लगातार चल रहे हैं। जो अमेरिका के गुलाम और बिकाऊ मीडिया हमें आगे बता रहे हैं, वह सही नहीं है। जिस विकास दर की बात कहकर हमारी गिनती ताकतवर देशों में बतायी जा रही है, वह विकास दर देश के चंद धनवानों की है, चंद देशी-विदेशी कम्पनियों की है।
स्कूल प्रशासन
आइये, फिर विषय पर लौटते हैं। हमारी इस व्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा का निदेशालय बीकानेर में ही रहेगा। प्राथमिक शिक्षा का अलग से मंत्री होगा। सरपंचों-प्रधानों को खुश रखने के लिए शिक्षा को पंचायतों को सौंपने की घातक परम्परा अभिनव राजस्थान में नहीं होगी। अभी पंचायत व्यवस्था उस स्तर के आसपास भी नहीं पहुँची है कि शिक्षा जैसा अहम विषय पंचायतों को सौंपा जाये। केवल शिक्षकों के तबादलों का सुख उन्हें सौंपने का गैर जिम्मेदाराना निर्णय ठीक नहीं है। लेकिन हम इस निर्णय में परिवर्तन की माँग नहीं करेंगे, बल्कि प्रबल जनसमर्थन से ऐसा माहौल बनायेंगे कि स्वत: ही बच्चों, अभिभावकों व शिक्षकों के पक्ष में नीति बन जायेगी।
शिक्षा फिर स्वतन्त्र हो सके
तो प्राथमिक शिक्षा के मंत्री की पूरी जिम्मेदारी होगी कि वे प्रदेश भर की इस नींव की मजबूती पर पूरा ध्यान लगायें और देश भर में एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर दे। उनसे अपेक्षा यह रहेगी कि वे अपना अधिकांश समय बीकानेर में या शालाओं के निरीक्षण में गुजारें। फाइलों को जयपुर नहीं मंगवाया जायेगा। प्राथमिक शिक्षा मंत्री की योग्यता भी देखी जायेगी। आप समझ गये होंगे कि उनका व्यक्तित्व कैसा होगा। उनके सहयोग के लिए एक महानिदेशक या डी.जी. (डायरेक्टर जनरल) होंगे, जो शिक्षाविद् ही होंगे। लेकिन डी.जी. की उम्र अधिक नहीं होगी। उनके कम से कम 5 वर्ष सेवानिवृत्ति में शेष होने चाहिये। कम उम्र के योग्य शिक्षाविदों को भी डी.जी. बनने की प्रक्रिया तय की जा सकेगी। संभाग में ए. डी. जी. या अतिरिक्त महानिदेशक (प्राथमिक शिक्षा) होंगे, जिन्हें नीतिगत निर्णयों के कई अधिकार होंगे। वे केवल ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर फाइलें धकेलने का कार्य नहीं करेंगे। फिर जिलों में निदेशक (प्राथमिक शिक्षा) होंगे। ये निदेशक स्वतंत्र रूप से कार्य करेंगे। कलेक्टर के अधीन नहीं होंगे। कलेक्टर से इनका केवल स्वस्थ समन्वय रहेगा। इसी प्रकार प्रत्येक पंचायत समिति या ब्लॉक पर एक अतिरिक्त निदेशक (प्राथमिक शिक्षा) होगा। वे सीधे अपने निदेशक को सहयोग करेंगे, किसी अन्य विभाग के अधिकारी उन्हें अपने अधीन समझने या उन्हें आदेश देने के लिए अधिकृत नहीं होंगे। प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति भी प्राथमिक शिक्षा निदेशालय करेगा जो जिलेवार होगी। इस भर्ती में केवल उस जिले के ही अभ्यार्थी योग्य होंगे।
माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 6 से 10) का सम्पूर्ण नियंत्रण माध्यमिक शिक्षा बोर्ड , के पास होगा। अभी बोर्ड केवल परीक्षाएँ आयोजित करता है, निदेशालय बीकानेर में है और मंत्री एवं विभाग के उच्च अधिकारी जयपुर बैठते हैं। माध्यमिक शिक्षा जैसे क्षेत्र को इससे नुकसान हो रहा है। समन्वय कम रहने से शिक्षा की यह रीढ़ की हड्डी कमजोर हो रही है। अभिनव राजस्थान की रचना में ऐसा नहीं होगा। अभिनव राजस्थान में बोर्ड के कार्य और जिम्मेदारियाँ अधिक होंगे। माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति, उनके तबादले, उनके कार्य का निरीक्षण, पाठ्यक्रम और परीक्षा की जिम्मेदारी इसी बोर्ड की होगी। इस बोर्ड को अमेरिका या योरोप के बोर्डों की शक्ल दी जायेगी, तथा बोर्ड में अध्यक्ष के साथ-साथ शिक्षाविद् सदस्य होंगे। 1 सदस्य कार्यालय को देखेगा, तो अन्य सदस्य प्रत्येक संभाग की जिम्मेदारी लेंगे। माध्यमिक शिक्षा का भी अलग से मंत्री होगा। बोर्ड का मुख्यालय अजमेर ही रहेगा।
यह भी होगा
हमारी व्यवस्था में कक्षा 1 से 10 तक सभी परीक्षाओं को पास करना अनिवार्य होगा। प्राथमिक कक्षा के लिए सौ रूपये प्रति माह की फीस होगी, तो माध्यमिक शिक्षा के लिए दो सौ रूपये प्रतिमाह की फीस होगी। मुफ्त में शिक्षा का चलन अभिनव राजस्थान में नहीं होगा। और वैसे भी मुफ्त में दी गयी घटिया चीज को गरीब माँ बाप भी स्वीकार नहीं करेंगे और स्वीकार कर भी नहीं रहे हैं। वे भी अपने बच्चों को फीस देकर प्राईवेट स्कूलों में भेज रहे हैं। वहीं बालकों को मुफ्त पुस्तकें देने का गोरख धन्धा भी बंद कर दिया जायेगा। पाठशालाओं से मिड-डे-मिल को हटाकर अन्यत्र इसकी व्यवस्था होगी, जब तक इससे छुटकारा न मिले। मिड-डे-मिल पंचायतों के पास होगा। सही मायने में तो यह कार्य पंचायतों को संभालना चाहिये। शिक्षा के कार्य की बजाय मिड-डे-मिल उनके लिए फिलहाल तर्क संगत कार्य होगा। आप निश्चित रहें, प्रारंभिक शिक्षा की यह व्यवस्था कोई कपोल कल्पना नहीं है। शिक्षा और योजना विभाग के सभी आँकड़ों तथा वर्तमान भौतिक एवं मानवीय संसाधनों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। अभिनव राजस्थान में शिक्षकों के तबादले भी किसी ‘डिजाइर’ पर नहीं होंगे, बल्कि शिक्षा अधिकारियों के पारदर्शी आकलन के आधार पर होंगे।
सर्वशिक्षा के लिए परिवहन व्यवस्था
हम यह मानते हैं कि राजस्थान में रहने वाले प्रत्येक बालक-बालिका को शिक्षा के समान अवसर मिलने चाहियें, समान सुविधाएँ उसे मिलनी चाहिये। लेकिन सर्वशिक्षा के हमारे मॉडल में खेत-खेत में स्कूल नहीं होगी। प्रत्येक मानव आबादी को पंचायत समिति के मुख्यालय तक जोड़ने वाली एक आधुनिक परिवहन सुविधा होगी। प्रत्येक पंचायत समिति मुख्यालय पर कॉलेज होगा, जो इस सुविधा से जुड़ा होगा। इस व्यवस्था से किसी बालक-बालिका के गाँव में अगर प्राथमिक शाला चलाने जितनी संख्या नहीं है, तो उसे प्राथमिक शाला तक जाने की सुविधा मिलेगी। अगर माध्यमिक तक सुविधा नहीं है, तो उसे उस शाला तक पहुँचाया जायेगा। इसी प्रकार उसे जूनियर कॉलेज व समिति मुख्यालय स्थित सीनियर कॉलेज तक जाने की सुविधा मिलेगी। इस व्यवस्था से दो फायदे होंगे। शिक्षा पर भवनों एवं अध्यापकों की बजाय परिवहन से खर्च कम आयेगा। 70 प्रतिशत खर्च कम आयेगा। दूसरे प्रत्येक बालक-बालिका कॉलेज तक शिक्षा पूरी कर सकेगा। यही तो सर्व शिक्षा होगी।
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