यह मैं यकीनन कह सकता हूँ.
कैसे ?
हम जब छोटे थे तब भी पटवारी, तहसीलदार, चिकित्सक और थानेदार द्वारा रिश्वतें लिए जाने की बातें सुनते थे पर हमारी स्कूल के शिक्षक तब ईमानदारी से हमें पढ़ाई करवाते थे. समय पर स्कूल आते थे, भारत के सपूतों की कहानियां सुनाते थे, खेलकूद के लिए हमें प्रतियोगिताओं में ले जाते थे, स्कूल नहीं आने पर चार लड़कों को भेजकर स्कूल में बुलवा लेते थे. 1990 आने तक तो ऐसा नजारा था.
लेकिन यह नब्बे की साल में उदारीकरण, निजीकरण का जमाना आया तो सभी संस्थाओं की तरह शिक्षा को भी नजर लग गई. देश की अस्मिता को बेचकर मिले कुछ धन को स्कूलों में सर्व शिक्षा अभियान के नाम पर फेंका गया और मिड डे मील के नाम पर भ्रष्टाचार परोस दिया गया. शिक्षा को व्यापार बना दिया गया. आसपास की माया में भी बढ़ोतरी हुई और इस मायावी संसार में भारत का शिक्षक, वह अडिग तपस्वी भी हिल गया.
फिर भी मैं मानता हूँ कि आज भी एक शिक्षक ही है, जिसकी आत्मा उसे झकझोरती है, उसका पेशा ही ऐसा है. अब भी ज्यादातर शिक्षक इस मूड में हैं कि वे अपने मूल कर्त्तव्य की तरफ लौटें और देश को बचाएं. उनके अन्दर आज भी कृष्ण,चाणक्य, महावीर, बुद्ध, दयानंद, विवेकानंद और अरविन्द की आत्मा है, जो उन्हें आंदोलित करती हैं, अन्दर ही अन्दर.
एक दिन फिर देश में बदलाव की बयार केम्पस से ही बहेगी, ऐसा मुझे विश्वास है. हम इस मौन क्रान्ति का माहौल बनने में लगे हैं.
इसी वेबसाइट पर 'अभिनव शिक्षा' के शीर्षक में हमारी सम्पूर्ण कार्ययोजना को देखिये.
'अभिनव राजस्थान अभियान'
शिक्षक के सम्मान को प्रतिबद्ध.
वन्दे मातरम !