सरकारी शिक्षा के साथ राजस्थान सरकार के प्रयोग.
एक के बाद एक असफल हो रहे हैं. फिर भी.
अब यह ताजा प्रयोग. व्यापक स्तर पर सीनियर स्कूलों का खोलना.
कभी गहलोत जी ने सस्ती लोकप्रियता के लिए सर्व शिक्षा अभियान को राजीव गांधी के साथ जोड़कर खेत खेत में स्कूल खोल दी. सरपंच भवन बनाने को लेकर इतने उत्साहित थे कि एक एक घर को ‘ढाणी’ बताकर स्कूलें खुलवा दीं. इन स्कूलों में न पूरे टीचर मिले ना स्टूडेंट. एक टीचर कहीं तीन क्लास साथ में पढ़ा रहा है तो कहीं सात टीचर तीन बच्चों को पढ़ा रहे हैं !
फिर पिछली भाजपा की सरकार ने भी लोकप्रियता में एक कदम आगे बढ़ने के चक्कर में हर पंचायत को सेकंडरी स्कूल बना दी. जगह जगह सीनियर स्कूलें भी खोल दीं. लेकिन टीचर और स्टूडेंट रेशियो यहाँ भी उल्टा पुल्टा !
मिड डे मील ने रही सही कसर पूरी कर दी. इस पर लिखने की आवश्यकता ही नहीं. पढ़ाई से ज्यादा खाना खिलाना महत्त्वपूर्ण हो गया. कुछ शिक्षक भी कुछ ‘खाना’ सीख ही गए.
नतीजा यह हुआ कि सर्व शिक्षा की जगह सरकारी शिक्षा का सर्व सत्यानाश हो गया है. सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर सरकारों की गलत नीतियों ने गिरा दिया है और सारा दोष टीचर के माथे जड़ दिया गया.
पिछले दोषों को ढकने के लिए अब एकीकरण करना पड़ रहा है, समानीकरण करना पड़ रहा है. लेकिन जनता के साथ एक दशक का खिलवाड़ किसने और क्यों किया, इस पर कोई नहीं बोल पा रहा है.
अब गाँव गाँव में सीनियर स्कूलें खोल दी गई हैं. ये जो IAS बैठे होते हैं, सचिवालय में, उनके ये प्रयोग होते हैं.उनके बच्चे तो यहाँ पढते नहीं हैं और न ही उनको चुनाव लड़ना होता है, न उनकी कोई सीधी जिम्मेदारी होती है. आगे ही अधिकतर सीनियर स्कूलें बिना टीचर्स के दम तोड़ रही हैं और जो भी स्टूडेंट वहाँ मजबूरी में एडमिशन ले लेता है, वह कहीं का नहीं रहता है. ऐसे में इस पर्योग का क्या अर्थ है ?
लेकिन चलिए कि सरकार यह निर्णय करती भी है तो उसे क्या करना चाहिए था ? मुख्यमंत्री या शिक्षा मंत्री को साफ़ साफ़ शब्दों में इस योजना का मकसद बताना चाहिए और यह भी बताना चाहिए कि अभी टीचिंग स्टाफ की स्थिति क्या है और उसे एक साल या दो साल में सही करने का रोडमेप कैसा है. सीधा संवाद होना चाहिए ताकि अभिभावक, खासकर गाँव-कस्बे के और माध्यम-गरीब वर्ग के, आश्वस्त हो सकें कि उनके बच्चों के लिए सरकार क्या करने का ईरादा रखती है. वर्ना यह खिलवाड़ महंगा पड़ेगा और हमको फिर कोई एकीकरण या समानीकरण करना पड़ेगा .
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हम सरकार की उन फाइलों को सामने लायेंगे जिनमें यह निर्णय दफ़न है.हो सकता है कि इस निर्णय को किसी रोडमेप से ढका गया हो ! और अगर ऐसा नहीं है तो जनहित याचिका !
हमारी 'अभिनव शिक्षा' में इसका समाधान है. एकदम सीधा, सरल. विस्तार के लिए आप इसी साईट पर फुर्सत में इसी शीर्षक से पढियेगा.
वंदे मातरम !