(अभिनव राजस्थान का अभिनव समाज कैसा होगा ?)
अभिनव विवाह !
हिन्दू विवाह की मूल परम्परा क्या है ?
और समाज ने अज्ञानता में इसे क्या बना दिया है ?
वैदिक जीवन व्यवस्था के अनुसार विवाह व्यक्ति के जीवन का 15 वां संस्कार हुआ करता है, जो अग्नि के समक्ष सूर्यदेव की उपस्थिति में सभी देवताओं की स्तुति में मन्त्रों के साथ संपन्न होता है.
इस यज्ञ के दौरान परिजन और इष्टमित्र उपस्थित होकर इस सांस्कृतिक घटना को सामाजिक स्वीकार्यता(social sanction) देते हैं. फिर सभी साथ खुशी में नाचते हैं, गाते हैं और साथ बैठकर भोजन करते हैं. और कन्यादान के साथ विदाई हो जाता है. (लगभग ऐसा ही सभी संप्रदायों में हैं.)
लेकिन अब विवाह खुशी की बजाय परेशानी का संस्कार बन गया है ! क्यों ? क्योंकि परम्परा के नाम पर इस संस्कार में गलत और अवांछित परम्पराएं जुड़ गई हैं. उच्च आय वर्ग के दिखावे को मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोग परम्परा मानकर निभाते हैं और फिजूल खर्ची और कर्ज की चक्की में बेवजह पिसते हैं. गलत परम्पराओं को अपना भाग्य मानकर कहते हैं कि हम क्या कर सकते हैं.
वैसे अब मूल संस्कार कहीं पीछे छूट गया है.उसमें अब केवल महिलाओं की रुचि रह गई है, पुरुष तो अग्नि वेदी के पास नहीं बैठते हैं और न ही मन्त्रों को सुनते-समझते हैं. सारा ध्यान अब भोजन, सोना और दहेज पर है. ऐसे लगता है कि जैसे यह समारोह भोजन और लेन देन के लिए होता है जिसमें विवाह भी शामिल हो जाता है ! संगीत अब शोर हो गया है और नाचने के ढंग में उत्तेजना अधिक है, आनंद कम है.
अभिनव राजस्थान में हम सामाजिक परम्पराओं में परिवर्तन को व्यवस्था परिवर्तन का मूल हिस्सा मानते हैं. इनमें परिवर्तन के बिना आर्थिक विकास संभव ही नहीं है. समाज की फिजूलखर्ची परिवार और प्रदेश में पूँजी को बनने से रोक रही है.जीवन भर की कमाई और मेहनत एक बकवास दिखावे में खर्च हो जाती है. कौनसी सभ्यता, कौनसी परम्परा, कौनसा संस्कार, जो परिवार को दुःख दे. और हम कहाँ कह रहे हैं कि धर्म और संस्कृति को भूल जाओ ? बल्कि हम तो मूल और शुद्ध संस्कृति के पालन की ही बात कर रहे हैं. हाँ, इससे स्वार्थी-शोषण करने वाली ताकतों को जरूर अस्थाई हानि होगी. बाद में बाजार के ये तत्व भी समझ जायेंगे कि पेड़ को एक ही बार में काटने की बजाय उसके फल पकने पर हर साल खाना स्थाई लाभ है.
अभिनव समाज में हम सभी सामाजिक वर्गों यानि जातियों को सम्पूर्ण राजस्थान में एक साथ आव्हान करेंगे कि वे अपने स्वजनों के हित में आगे आयें. बहुत बड़े स्तर पर माहौल बनाएंगे. मीडिया का जमकर इस्तेमाल होगा. किसी एक परिवार या गाँव या जाति में परिवर्तान कठिन भी होता है और वह ज्यादा टिकता नहीं है. भारतीय मानस बड़े माहौल के साथ चलने वाला है. सब कर रहे हैं तो हम भी कर लेंगे ! जैसे अभी सब गलत कर रहे हैं तो हम भी कर रहे हैं. यहाँ ‘खुद सुधरो तो दुनिया सुधरेगी’ वाली कहावत केवल समस्या को टालने वाली ही सिद्ध होती आई है. केवल कहने में आदर्शवादी लगती है पर व्यावहारिक नहीं है. इसलिए हम व्यावहारिक रास्ता अपनाएंगे और प्रदेशभर में माहौल बनाएंगे. लेकिन कोई कानूनी या शासकीय दबाव नहीं होगा. समाज शासन और कानूनों से एक सीमा तक ही नियंत्रित हो सकता है.
अपने अभिनव समाज में विवाह में ये पांच मूल बातें होंगी.
1. विवाह के मूल संस्कार यानि यज्ञ का महत्व पुनः स्थापित किया जायेगा और इसके आयोजन को केन्द्रीय भूमिका दी जायेगी. सभी परिजन और आमंत्रित मेहमान इस अवसर के साक्षी बनेंगे. जिनको इस अवसर के लिए समय नहीं होगा, वे न परिजन होंगे और न मित्र. वे केवल भोजन या दिखावे के लिए आने वाले लोग होंगे ! जैसे अभी हैं.
2. अभिनव विवाह में भोजन में केवल नजदीकी रिश्तेदार और अभिन्न मित्र भाग लेंगे. हर जान पह्चानवाला नहीं शामिल होगा. सीमित संख्या में आमंत्रण. यह समारोह पारिवारिक-सामाजिक होगा, ‘सार्वजनिक’ नहीं होगा. साथ ही भोजन जमीन पर बैठाकर परिजनों-मित्रों द्वारा परोसकर करवाया जाएगा. मेहमानों की संख्या कम होगी तो बैठाकर खिलाना संभव होगा. मेहमान(?) भोजन के लिए भिखारियों की तरह थालियाँ लेकर घूमते नजर नहीं आएंगे ! यह भी ध्यान रखा जायेग कि मिलावटी घी-तेल काम में न लिया जाये और स्थानीय उत्पादों से ही भोजन बने. इससे खर्च किया गया पैसा स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाएगा. पर यह खेल भी कम संख्या का है.
3. अभिनव विवाह में लेन देन का दिखावा नहीं होगा. अपनी क्षमता के अनुसार माता पिता बच्चों को गुप्त रूप से जो देना होगा, दे देंगे. आवश्यक लेन देन नकद में होंगे, अनावश्यक सामग्री को परम्परा मानकर नहीं दिया-लिया जाएगा.
4. पारम्परिक संगीत होगा, जो शोर शराबे से दूर होगा. नाचना गाना खूब होगा, क्योंकि यह आनंद का उत्सव जो है पर शालीनता बनाई रखी जायेगी.
5. कम मेहमान होंगे तो हफ्ते भर रूकेंगे, नाचेंगे-गायेंगे- खुशी-दर्द बाँटेंगे. नए रिश्ते नाते भी इस अवसर पर हो जायेंगे. यानि समाज का संगठन मजबूत होगा और सार्थक भी. जिनके पास रूकने को एक दो दिन भी नहीं होंगे, वे दिखावे के रिश्तेदार कम हो जायेंगे.
क्या यह संभव है ?
हमारे द्वारा चलाए गए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन अभियान के आंशिक सफलता के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि यह सफल होगा. उसी अभियान के आधार पर यह रणनीति होगी. जैसे कि हम समझ गए- क़ानून से यह संभव नहीं, एक परिवार या जाति के तैयार होने पर संभव नहीं. बड़े स्तर पर माहौल का अपना जादू होता है. तब यह नई परम्परा या फेशन बन जायेगी.
और शासन में जिम्मेदारी संभल रहे लोगों और धनी वर्ग की इसमें विशेष भूमिका रहेगी. शासन में बैठे लोगों की अपनी सामाजिक ‘अपील’ होती है तो धनी वर्ग को अन्य वर्ग ‘फोलो’ करते हैं. धनी वर्ग समाज को इन आयोजनों से अपनी हस्ती या स्टेटस जताने के लिए ये दिखावे करता है. लेकिन जब माहौल सादगी और मूल परम्परा के पक्ष में बन जायेगा तो वे भी समाज के साथ चल देंगे. वे इस मामले में तेज होते हैं !
अभी क्या कर सकते हैं ? अभी हम सोशल मीडिया के माध्यम से एक बड़ी बहस छेड़ सकते हैं. बहस होगी तो माहौल अभी से बनना शुरू होगा. दूसरे जो कोई व्यक्ति या जाति-सामजिक वर्ग किसी सकारात्मक परिवर्तन का प्रयास करता है, हम उस अच्छाई की मार्केटिंग कर सकते हैं. कर भी रहे हैं.
अभिनव राजस्थान का हमारा सुन्दर सपना साकार होकर रहेगा. वंदे मातरम हम करके रहेंगे.