अभिनव राजस्थान के निर्माण के लिए हमने सात क्षेत्र महत्त्वपूर्ण माने हैं। इन्हें हमने विकास राग के सात सुर माने हैं, विकास के इंद्रधनुष के सात रंग माने हैं। ये हैं – समाज, शिक्षा, शासन, कृषि, उद्योग, प्रकृति और संस्कृति। इस अंक से हम क्रमश: एक-एक विषय पर चिंतन करेंगे। कार्ययोजना को सामने रखेंगे, जिस पर चलकर हम अपने उद्देश्य को पूरा कर सकें। ध्यान रहे, अभिनव राजस्थान अभियान में केवल आलोचना या चिंता को आधार नहीं बनाया जायेगा। प्रत्येक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की मूल समस्या का हम विश्लेषण करेंगे, समस्या के निदान की व्यावहारिक कार्ययोजना पर विचार करेंगे और इस कार्ययोजना से लक्ष्य प्राप्त करने की विस्तृत रणनीति तैयार करेंगे।
हमारा पहला सुर, पहला रंग अभिनव समाज है। अलग-अलग चिंतक हमारी समस्याओं के समाधान के अलग-अलग समाधान बताते हैं। कोई शिक्षा को सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मानता है, कोई भ्रष्टाचार के खात्मे को, तो किसी को चरित्र निर्माण में हल नजर आता है। हमारे शोध और अध्ययन में समाज में आवश्यक सुधार पहला महत्त्वपूर्ण कदम लगता है। समाज-सुधार किसी जमाने में सन्तों और सुधारकों ने देश की परम अवश्यकता बताया था, परन्तु अब यह दकियानूसी कार्य लगने लगा है। फैशनेबल नहीं रह गया है। अब शिक्षा को सबसे महत्त्वपूर्ण और आवश्यक क्षेत्र बताया गया है। शिक्षा को गाँव-गाँव फैला दो, समाज स्वत: सुधर जायेगा। जबकि वास्तविकता तो यह है कि ज्यों-ज्यों वर्तमान शिक्षा फैली है, समाज नई-नई कुरीतियों से घिरने लगा है। शिक्षितों ने दहेज प्रथा व भ्रूण हत्या से सामाजिक सम्बन्धों को जहरीला बना दिया है। ज्ञान व कला की जगह पद और धन का मूल्य बढ़ गया है। इसलिए हम कहते हैं-पहले समाज में कुछ आवश्यक परिवर्तन करो, तभी अन्य परिवर्तन फलदायी होंगे, सार्थक होंगे। वरन् परिवर्तनों से उल्टा नुकसान ही होगा।
समाज को हम विकास के लिए आवश्यक जमीन मानते हैं। जैसे किसी खेत में बीज डालने से पहले जमीन तैयार करना पड़ता है, वैसे ही एक राष्ट्र के, एक प्रदेश के विकास के लिए वहाँ के समाज की जमीन को तैयार करना पहली आवश्यकता होती है। अगर यह जमीन तैयार नहीं होगी, तो क्या होगा? बीज या तो उगेंगे ही नहीं या कम उगेंगे। पौधों में बीमारियाँ अधिक होंगी, क्योंकि पौधों को पोषण बराबर नहीं मिलेगा। खरपतवार अधिक उगेगी, जो पौधों के विकास में बाधक बनेगी। इसलिए उपज भी कम होगी। आप कहते रहिये कि हमने बीज तो अच्छे बोये थे, खाद भी दी, वर्षा भी पर्याप्त थी, सिंचाई भी ठीक की थी। परन्तु उपज कम कैसे हुई? आप इसके लिए जमीन के अलावा बाकी सभी जगह कमियाँ ढूंढ़ेंगे। नजर-टोटकों में उत्तर ढूंढ़ेंगे। बीज-खाद की गुणवत्ता पर सवाल उठायेंगे। लेकिन जमीन की बात नहीं करेंगे।
इसी बात को प्रदेश-देश की व्यवस्था से जोडक़र देखिये। बड़ी रोचक समानता लगेगी। प्रामाणिक भी और वास्तविक भी। केवल तर्क या तुक्का नहीं। समाज की तैयारी नहीं है और आपने शिक्षा के, लोकतंत्र के बीज डाल दिये। आपके इरादे नेक थे, परन्तु परिणाम वे नहीं आये, जिसकी अपेक्षा देश की आजादी के समय की थी। अपेक्षित परिणाम नहीं आये तो हम कारण ढूंढऩे चले हैं। ऐसे में दिशा से भटक गये हैं। मृग मरीचिका की तरह रेत को पानी समझकर भटक रहे हैं। प्रचार तंत्र इस भटकन को भी यात्रा बता रहे हैं। कारण तक हम नहीं पहुँच पा रहे हैं। कुतर्क शास्त्रियों की भी जिद है कि कुछ भी करके अपने कुतर्कों को साबित करेंगे। चाहे देश बर्बाद हो जाये। शिक्षा के आगे समाज सुधार का मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं बनने देंगे। क्या कारण है कि हम शिक्षा के बीज डालते हैं, तो बेरोजगारी निकलती है। लोकतंत्र के बीज डालते हैं, तो राजतंत्र निकलता है। संचार माध्यमों के बीज डालते हैं, तो अश्लीलता निकलती है। फिर इन समस्याओं से निपटने के लिए नये समाधान ढूंढ़ते हैं, वे नयी समस्याएँ पैदा करते हैं। जब धारणा ही गलत है, तो समाधान कहाँ से निकलेगा? स्पष्ट है कि समाज की जमीन को तैयार करना हमारा पहला लक्ष्य होगा। तभी हम प्रदेश के विकास का वास्तविक रास्ता बना पायेंगे।
अभिनव समाज के उद्देश्य
अभिनव राजस्थान में समाज के क्षेत्र में परिवर्तन के हमारे उद्देश्य क्या हैं? क्रमश: इन पर विचार करते हैं। यह बातें नई लग सकती है, क्योंकि इन पर ठीक से ध्यान ही नहीं दिया गया है।
1. प्रदेश के लिए पूंजी का निर्माण
अक्सर यह देखने में आता है कि राजस्थान के अधिकांश परिवार अपनी कमाई का लगभग 60 से 80 प्रतिशत हिस्सा सामाजिक परम्पराओं को निभाने में खर्च कर देते हैं। बच्चों के जन्म पर, विवाह पर, परिजनों के मरने पर, मकान बनाने पर, बहनों-बुआओं के बच्चों के विवाह पर, उनके परिजनों के मरने पर। पता नहीं कितने अवसर हैं, जिन पर न चाहते हुए भी एक आम राजस्थानी परिवार को कमाई फूंकनी पड़ती है। इससे परिवार के पास बचत कम रह जाती है, पूंजी कम बन पाती है। पूंजी नहीं तो कुछ नहीं। विकास की सारी बातें गौण, बेकार। और जब राजस्थान के परिवारों के पास पूंजी नहीं बचेगी, तो प्रदेश में पूंजी कहाँ से बचेगी। आखिर यह बड़ा परिवार, हमारा प्रदेश राजस्थान, डेढ़ करोड़ परिवारों का जोड़ ही तो है। इसलिए समाज सुधार को आर्थिक दृष्टि से देखने की आदत डालिये। कुरीति की बात छोडिय़े, पैसे का नुकसान देखिये। आज पैसा अधिक महत्वपूर्ण है। तो क्या, सामाजिक परम्पराओं से किनारा कर लें। समाज से अलग हो जायें। नहीं, परम्पराएँ निभाएँ पर उन पर होने वाले अनावश्यक खर्च को कम करें। यह बचत, पूँजी बनेगी जो परिवार के रहन-सहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के काम आयेगी। इसलिए पूँजी निर्माण पहला उद्देश्य है। यहाँ पर यह भी महत्त्वपूर्ण है कि हमारे सामाजिक समारोहों में हम जिन वस्तुओं पर भी खर्च करते हैं, उनमें से अधिकांश प्रदेश के बाहर से आती हैं। चूंकि राजस्थान में उत्पादन अत्यन्त कम है, अधिकांश वस्तुएँ बाहर से आती हैं। घी-तेल-शक्कर-लकड़ी-कपड़ा आदि वस्तुएँ अन्य प्रदेशों से आती हैं। इन पर खर्च पैसा बाहर जाता है। यहाँ की पूँजी बाहर चली जाती है। इस धन के प्रदेश से एकतरफा बहाव को भी रोकना है।
2. विकास की अभिवृत्ति
जब पैसा पास रहता है, तो विकास का मन या एटीट्यूड बन जाता है। लेकिन जब पैसा पास न हो या कर्ज चढ़ा हो तो कोई भी परिवार जैसे-तैसे समय काटता है। इससे आगे सोचता ही नहीं है। सपने देखना ही बंद कर देता है। कभी मोबाइल में, कभी टी.वी. में तो कभी गुटखे में मन रमाने की कोशिश में परिवार के लोग लग जाते हैं। या फिर धन दुगुने करने वाली फर्जी स्कीम में पैसा तलाशते हैं। विकास के लिए वांछित मन:स्थिति या अभिवृत्ति पैदा करना हमारा दूसरा उद्देश्य होगा।
3. विकास की सोच
विकास की सोच, तब बनती है, जब अभिवृत्ति (एटीट्यूड) सकारात्मक हो। जैसे ही पूँजी बननी शुरू होती है, परिवार के सदस्यों का मन बदलता है और वे विकास की सोच पालने लगते हैं। दिल-दिमाग के घोड़े परिवार को आगे बढ़ाने के लिए दौड़ते हैं। उन्हें फिर कोई नहीं रोक पाता है। पश्चिमी विकसित देशें की यही कहानी है, अपने गुजरात में भी यही होता है। इतना सा राज है विकसित परिवार का, विकसित प्रदेश-देश का। पूंजी पास में होगी, तो शिक्षा स्वत: ही परिवार की प्राथमिकता बन जायेगी। परिवार का सदस्य तब शिक्षित होकर सरकारी नौकर बनने के लिए भागता नहीं फि रेगा, अपना धन्धा करने की सोचेगा।
4. भ्रष्टाचार का खात्मा
समाज में जब परम्पराओं के नाम पर दिखावा और फिजूलखर्ची नहीं होगी, तो धन का महत्व कम हो जायेगा। तब अधिकांश मध्यम या निम्र वर्गीय परिवार के व्यक्ति सामाजिक मजबूरियों के लिए येन-केन-प्रकरेण पैसा जुटाने के प्रपंच में नहीं पड़ेंगे। भ्रष्टाचार के खात्मे की यह पहली सफल शुरूआत होगी। भ्रष्ट होने का आकर्षण ही इस स्थिति में कम हो जायेगा। जब परिवार की आवश्यकताएँ कम हो जायेगी, तो कौन बेवकूफ चोरियाँ करता फिरेगा? अभी तो वह समाज के दोगलेपन के बीच फंस रखा है। एक तरफ तो परम्पराओं पर दिखावा करो, तो दूसरी तरफ चोरियाँ मत करो। दोनों काम एक साथ नहीं होंगे। दूसरी तरफ अनावश्यक खर्च करने पर और दिखावा करने पर जब समाज शाबासी नहीं देगा, तो अधिकांश अधिकारी-कर्मचारी-व्यापारी भी रिश्वत और कर-चोरी से बचने लगेंगे। उनके मन परिवर्तित होने लगेंगे। भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति कम होगी।
5. भ्रूण हत्या में कमी
शादियों पर बढ़ा खर्च भ्रूणहत्या का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। अब इससे हालात विकट होते जा रहे हैं। महिलाओं की घटती संख्या से कई नई समस्याएँ पनप रहीं हैं। समाज के वर्तमान ढाँचे में महिलाओं की कम संख्या से उनमें असुरक्षा और पनप रही है। असुरक्षा से पुन: बच्ची का पालन कठिन लगने से बच्ची की चाहत कम हो जाती है। कुचक्र जारी है। शादियों पर खर्चे कम होंगे, तो बच्चियों की पढ़ाई पर अधिक ध्यान होगा, उनका पालन ज्यादा आसान होगा। उन्हें सुरक्षा का अहसास होगा।
लेकिन शादी पर व्यर्थ खर्च की पीड़ा इतनी गंभीर बन गयी है कि माएँ अपनी कोख से औलाद को बेदखल करने में नहीं हिचक रही हैं। उसी औलाद को, जिसके लिए वे कभी अपनी जान दे देती थीं। उन्हें बचाने को कुएं में कूद पड़ती थी, करंट से चिपक जाती थी। लेकिन अब लगता है, हमने उन्हें दहेज के नाम पर इतनी पीड़ा दे दी है कि लड़कियों के प्रति उनकी ममता के बीज ही खत्म हो रहे हैं। जब तक उस पीड़ा से उन्हें मुक्ति नहीं देंगे, भ्रूण हत्या जारी रहेगी। आप कितने भी कड़े कानून बना लें, समस्या कम नहीं होगी। पेट में औलाद को मारना ही भ्रूण हत्या नहीं है। पहली संतान लडक़ा होने पर दूसरी औलाद को दुनिया में नहीं आने देना भी भ्रूण हत्या का दूसरा रूप है। फिर लड़कियाँ कहाँ से आयेंगी।
आवश्यक सामाजिक परिवर्तन
अब हम उन परिवर्तनों के बारे में विचार करते हैं, जो व्यावहारिक हों और जिन्हें लागू करने में आसानी हो। हमने मृत्युभोज के विरूद्ध हमारे सफल आन्दोलन में स्थानीय स्तर पर इनमें से कुछ को लागू करके भी देखा है। अभिनव राजस्थान में हम ये परिवर्तन करेंगे।
1. सामाजिक समारोहों का सरलीकरण
इसके लिए धार्मिक शास्त्रों को आधार बनाकर किसी भी समारोह की पुन: व्याख्या करेंगे, ताकि स्वार्थी लोग कुतर्कों को आधार बनाकर बहाने ना करें। मेहमानों की संख्या सीमित करेंगे और समारोह को रिश्तेदारों तक सीमित रखेंगे। पारिवारिक समारोह को सार्वजनिक नहीं बनायेंगे। दूसरे भोजन में बनने वाले व्यंजनों की संख्या सीमित करेंगे। मिलावटी सामान से अधिक वस्तुएँ बनाने की जगह शुद्ध सामान से कम वस्तुएँ बनायेंगे। तीसरे, पैसे व वस्तुओं के लेन-देन को भी सीमित करेंगे। कपड़े की जगह पैसा दिया जा सकता है। दहेज के सामान को पाँच शगुन के बर्तनों तक सीमित कर दहेज प्रथा को तो जड़ से ही खत्म कर राजस्थानी परिवारों को राहत की साँस दिलवायेंगे। मृत्युभोज का नामोंनिशान मिटा देंगे।
2. सामाजिक मूल्यों में बदलाव
सादगी को दिखावे से अधिक महत्त्व होगा। बचत को खर्च से अधिक महत्तवपूर्ण माना जायेगा। सम्पूर्ण राजस्थान में सादगी और बचत के पक्ष में प्रचार मध्यमों के उपयोग से लहर पैदा करेंगे। इसके साथ ही समाज में कला और ज्ञान का मूल्य पुन: स्थापित किया जायेगा। धन एवं पद का अपना महत्त्व है, परन्तु ज्ञान एवं कला भी समाज के विकास के लिए आवश्यक है। तभी ‘कैसे भी’ धन अर्जित कर प्रतिष्ठा प्राप्त करने की प्रवृत्ति नहीं होगी।
3. सामाजिक सुरक्षा
परिजनों की गम्भीर बीमारी, कमाऊ मुखिया की मौत, विकलांगता या प्राकृतिक आपदा से आर्थिक हानि की स्थिति में समाज के प्रत्येक परिवार को अभिनव राजस्थान में सम्पूर्ण मानसिक-आर्थिक सुरक्षा दी जायेगी। केवल दिखावटी सहायता न कर, उस परिवार को समाज की मुख्यधारा में चलने लायक बनाया जायेगा।
अभिनव समाज की इस रचना से ही हम हम विकास का पहला सफल कदम रख पायेंगे। इस हकीकत को हमारे बुद्धिजीवी मित्रों तथा नीति निर्धारकों को मान लेना होगा। वरन् हमारी सभी योजनाएँ कभी भी अपने लक्ष्यों तक नहीं पहुँचेंगी। न नरेगा की, न सर्व शिक्षा की, न बैंक सहायता की और न ही कृषि-उद्योग की।