दुनिया भर में दो अरब लोग टेलीविजन सेट के सामने बैठे हों। ब्रिटेन में दस लाख से ज्यादा लोग रात से ही इंतजार कर रहे हों कि दूल्हा-दुल्हन की एक झलक देखने को मिलेगी। ब्रिटेन में एक दिन की छुट्टी घोषित कर दी जाती है। इस शादी का बकायदा अभ्यास किया जाता है। हर जगह कैमरे लगा दिये जाते हैं। 1900 मेहमान बुलाए जाते हैं। निमंत्रण कार्ड पर सोने की परत चढ़ती है और उत्तरापेक्षी महारानी सोने की मुहर से दस्तखत करती है। मंदी से गुजर रहे ब्रिटेन में इस शादी पर सिर्फ पैंतालिस अरब रूपए खर्च किए जाते हैं। इतने तामझाम और खर्चे के बाद कोई भी घटना ग्लोबल हो सकती थी। प्रिंस विलियम और केड मिडलनटन की शादी भी ग्लोबल हो गयी।
एक ऐसे समय में जब दुनिया के ज्यादातर मुल्क लोकतंत्र में जी रहे हों, राजतंत्र के प्रति लोगों का आकर्षण और बंकिघम पैलेस की तरफ से पुराने दौर की तरह अपनी शान-शौकत का प्रदर्शन हमारे भीतर बची हुई सामंतवादी कशिश को उभारने की कोशिश लगती है। कैमरा चाहे तो हर दूसरी शादी को वैभव में बदल सकता है। जब लोगों से राजसी परम्परा को देखने का इतना आकर्षण बचा हुआ है, तो हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं के मौजूदा वारिसों को एक बार फिर से सोचना चाहिए। जिन्होंने अपने महल को होटल में बदला है, उन्हें फिर से महल में बदल कर अपनी राजसी परम्पराओं का रोजना प्रदर्शन कर सकते हैं। इस अभ्यास से जनता उन्हें फिर से राजा मानने लगेगी।
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के पोते प्रिंस विलियम की शादी के लिए ऐसा ही माहौल रच दिया गया। सीएनएन पर एक मशहूर एंकर सवाल करते हैं कि क्या इससे राजशाही को नई ऊर्जा मिलती है। संवाददाता अपना जवाब ‘हाँ’ से देता है। इस शादी को सामंती तमाशे में बदलने में कोई कमी नहीं छोड़ी गयी। विटेंज कारों का प्रदर्शन किया गया। करोड़ों रूपए की ये कारें सडक़ों पर दिखने वाली आम कारों से बिल्कुल अलग हैं। आम हिन्दुस्तानी तो इन कारों के नामों का उच्चारण भी न कर पाए। बेंटले, रॉल्स रॉयस, लिमोजिन, जगुआर जैसी कारें और शादी के जोड़े को सलामी देने के लिए द्वितीय विश्वयुद्ध के समय के विमानों की उड़ान। विलियम और केट का 1902 की बनी बग्घी में बंकिघम पैलेस जाना। कैमरे के जरिए लोकतंत्र वाले लोक की आंखों में राजतंत्र के तमाम तंत्र पहुँचा दिये गये हैं। ब्रिटेन को अपना अतीत कितना प्यारा है? वैसे भी लंदन जाएं, तो आपको लगेगा कि अतीत में चल रहे हैं। जहाँ की इमारतें, गटर के ढक्कन पर लिखी तारीखें बताती हैं कि पूरा शहर एक किस्म का म्यूजियम या संग्रहालय है। जहाँ मकानों पर सन् 1822 और गटर के ढक्कनों पर सन् 1880 लिखा दिखेगा। हाँ, अपने इतिहास को संभाल कर रखना जरूरी है, मगर उसी में जीते रहने की चाह में उन संघर्षों का क्या स्थान है, जो राजशाही के खिलाफ किए गए?
आप किसी भी भाषा में विलियम और केट की शादी के विश्लेषण को पढि़ए या सुनिए। शाही, वैभव, महल, परम्परा जैसे सामंतवादी विश्लेषण मिलेंगे। हमारे बोलने और सोचने के तौर-तरीकों पर राजतंत्र के अवशेष अब भी बचे हुए हैं। बल्कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हर शादी सामंतवादी है। राजा के बेटे की शादी हो या आम लोगों के यहाँ की शादी। हम उसी भव्यता और वैभव की नकल करते हैं, जिसके खिलाफ लडक़र राजतंत्र को खत्म किया गया था। हिन्दुस्तान में गली-गली में दूल्हा घोड़ी और बग्घी पर चढक़र आता है। फर्क यह है कि वो बग्घी बंकिघम पैलेस की नहीं होती, बल्कि पंजाब बैंड और भाईजी घोड़ी वाले की होती है।
शादियों में राजतंत्र बचा हुआ है। विलियम और केट की शादी के बाद से इसे और मजबूती मिलेगी। जल्दी ही अपने महलों में होटल चलाने वाले राजाओं के खानदान की औलादें अपनी पुरानी जीप छोड़ कर बग्घी में शहर की फेरी लगाते हुए शादी के मंडप में पहुँचेगी। दिल्ली और हरियाणा के गुर्जर और जाट समुदाय की शादी में हेलीकॉप्टर से दूल्हे के उतारने का चलन बीमारी का रूप ले चुका है। हेलिकॉप्टर से फूल भी बरसाए जाते हैं, मानो भगवान विष्णु और लक्ष्मी आशीर्वाद देने आ गए हों। दरअसल हम जिन छवियों को देखते हैं, उन्हीं की नकल अपने जीवन में करने लगते हैं। आप ठेके पर शादी का आयोजन करने वाली किसी भी कंपनी से पूछिए, उनके यहाँ इस आइडिया पर काम शुरू हो गया होगा। मुझे हैरानी नहीं होगी कि हमारे यहाँ भी दुल्हनें अब लहंगा और साड़ी छोडक़र गाउन में न आने लगें। वैसे भी टीवी धारावाहिकों और फिल्मों का असर इतना तो हो ही गया है कि मध्यमवर्गीय शादियों में ज्यादातर दुल्हनें अब साड़ी नहीं पहनती। लहंगा पहनती हैं। दूल्हे अब सफारी सूट नहीं पहनते। शेरवानी पहनते हैं। किसी राजकुमार सा दिखने की चाहत में लंहगे में इंतजार कर रही राजकुमारी को जीवन साथी बनाने के लिए। शादियों में राजा-महाराजा की तरह हो जाने की परिकल्पना ने ही ब्रिटेन की इस शादी को दुनिया भर में दर्शनीय बना दिया होगा। जो अपनी शादी में शेरवानी पहनकर राजकुमार सा दिखना चाहता होगा, वो ब्रिटेन के राजकुमार की शादी भला क्यों नहीं देखेगा? हमने सामाजिक परम्पराओं का लोकतांत्रिकरण नहीं किया है, उनका शाहीकरण किया है। तो इसमें अचरज क्या करना कि दो अरब लोग पूरे दिन टीवी पर एक जैसे जोड़े की शादी का सीधा प्रसारण देखते रहे, जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं। केट की बहन गाउन बटोरकर चल रही थी। क्या आपके लिए यह जानना जरूरी है कि उसे मेड ऑफ ऑनर क्यों कहते हैं?
इस शादी का प्रसारण दुनिया भर की शादियों को शाही आइटम बना देगा। मेहमान और पकवान की संख्या सीमित रखने पर होने वाली बहस के दौर में विलियम और केट की शादी ब्रिटेन में पर्यटन को बढ़ाने के लिए नहीं की गयी है। राजा अपनी राजशाही दिखाना चाहता था। लोकतंत्र को अपने नए प्रतीक बनाने होंगे। प्रतीक तभी बनेगा, जब हम उन दूल्हों को बाहर कर देंगे, जो शेरवानी पहनकर बग्घी या घोड़ी पर आते हैं। जब आप राजकुमार नहीं है, तो दिखना क्यों चाहते हैं? अव्वल तो आप राजकुमार या राजकुमारी ही क्यों होना चाहेंगे? शाही की जगह सादी शादी क्यों नहीं हो सकती?