एक तरफ अन्ना हजारे का आंदोलन चल रहा था, तिरंगा लहरा रहा था, वंदे मातरम् गूँज रहा था। एक शानदार मार्केटिंग हो रही थी। सभी चैनल प्रतियोगिता कर रहे थे। वहीं बीच-बीच में विज्ञापन के नाम पर एक दूसरी मार्केटिंग हो रही थी। वही मार्केटिंग, जिसके लिए चैनल वालों ने पहली वाली मार्केटिंग को प्रयोजित किया था। एक विज्ञापन मेनफोर्स कण्डोम (निरोध) का था, दूसरा मेनकाइण्ड डिअड्रेन्ट (स्त्रियों को प्रभावित करने वाला इत्र)था। आपको राष्ट्रपे्रम के बीच-बीच में कामलोक की यात्रा भी करवायी जा रही थी। तभी अनचाहे गर्भ को रोकने के तरीके बालिकाओं को बताये जा रहे होते हैं। घर पर ही बच्ची टेस्ट कर सकती है कि वह गर्भवती है या नहीं। बाल विवाह नहीं करने हैं, क्योंकि वह एक कुरीति है। बालविवाह से बच्चियों का ध्यान पढ़ाई से भटक जाता है, लेकिन टी.वी. पर जिस तरह से फ्री सैक्स को प्रमोट किया जा रहा है, उससे ध्यान नहीं भटकेगा। छोटी उम्र में विवाह करने तथा माँ बनने से बच्चियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, लेकिन इस फ्री सैक्स से बार-बार गर्भवती होने से उनके स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं होता है।
गर्भनिरोधक गोलियाँ या फिर गर्भपात कराने वाली दवाईयों से उनके शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। ऐसा यह आधुनिक या मॉर्डन विचारधारा वाले व्यक्ति हमको बताते हैं। बड़े-बड़े कॉरपोरेट के हाथ में खेलते ये गुलाम बुद्धिजीवी अब भी भारत के चिन्तन आकाश पर धब्बे बनकर खड़े हैं और ज्ञान की रोशनी को हम तक पहुँचने नहीं दे रहे हैं। इतने में ही एयरटेल कम्पनी का विज्ञापन कहता है कि जिंदगी में एक फ्रे ण्ड जरूरी है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें, फ्रेण्ड जरूरी है।
गर्भनिरोधक गोलियाँ या फिर गर्भपात कराने वाली दवाईयों से उनके शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। ऐसा यह आधुनिक या मॉर्डन विचारधारा वाले व्यक्ति हमको बताते हैं। बड़े-बड़े कॉरपोरेट के हाथ में खेलते ये गुलाम बुद्धिजीवी अब भी भारत के चिन्तन आकाश पर धब्बे बनकर खड़े हैं और ज्ञान की रोशनी को हम तक पहुँचने नहीं दे रहे हैं। इतने में ही एयरटेल कम्पनी का विज्ञापन कहता है कि जिंदगी में एक फ्रे ण्ड जरूरी है। बच्चे पढ़ें या न पढ़ें, फ्रेण्ड जरूरी है।
इधर अखबार उठाइये, तो हमारे आदर्शवादी गुलाबजी कोठारी के अखबार में आपको जापानी तेल से ताकत बढ़ाने का भ्रमित विज्ञापन प्रमुखता से दिख जायेगा। यहाँ पर आपको वे सारे नम्बर भी मिलेंगे जिन पर आप महिलाओं से सैक्सी बातें कर सकते हैं। लिंगवद्र्धक यंत्रों के लिए भी आप राजस्थान पत्रिका, भास्कर या नवज्योति अखबारों में छपे विज्ञापनों का सहारा ले सकते हैं।
मित्रों, क्या यह तमाशा देश को कमजोर करने के लिए प्रायोजित किया गया है? नहीं, ऐसा नहीं है। जब किसी देश के, समाज के जागरूक नागरिक अपनी जिम्मेदारियों से भागने लगते हैं, तो कई शक्तियाँ उस देश या समाज के शोषण पर स्वत: उतर जाती है। हकीकत तो यह है कि हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर गाडक़र बैठ गये हैं। हमीं हैं, जो निष्क्रिय होकर ‘चिंताएँ’ करने के काम में लगे बैठे हैं। ‘हम क्या कर सकते हैं’ का बहाना करने में लगे हैं। वरन् क्या मजाल कि हमारे घर में टी.वी., अखबार और इन्टरनेट पर खुले आम अश£ीलता परोस दी जाये। क्या मजाल कि सिनेमा के पर्दे पर मुन्नियाँ बदनाम होती रहें और शीलाएँ अपनी जवानियों का प्रदर्शन नंगेपन के साथ करती फिरें। पुरानी फिल्मों में कोठों पर नाचती वेश्याओं पर हमारे धर्मशास्त्री नाक-भौं सिकोड़ते थे। उन्हें लगता था कि कोठों पर जाना नैतिक पतन की निशानी थी, लेकिन अब पतन का स्तर कहाँ तक पहुँचा है?ï अब तो उन वेश्याओं का नाच भी सभ्यता से भरा लगता होगा? उनसे तो अश्लील नाच आप अपने घर के भीतर सुबह-शाम देखते हो। ऐसे दृश्य, जिन्होंने हमारे एक परिवार के रूप में एक साथ बैठने पर अनकही पाबंदी लगा दी है। मोबाइल और इन्टरनेट के दुरूपयोग ने तो सारी हदें पार कर ली हैं। सस्ते मनोरंजन के नाम पर यह प्रदूषण एक पूरी पीढ़ी को निगलता लग रहा है। हो सकता है कि ‘खुलेपन’ और ‘ब्रॉड माइंडेड’ के समर्थकों के लिए यह बड़ी उपलब्धि हो। उनके लिए भी यह गर्व का विषय होगा, जो आदमी-आदमी (गे), औरत-औरत (लेस्बियन) के सम्बन्धों को स्त्री-पुरूष के प्राकृतिक सम्बन्धों से श्रेष्ठ मानते हों। वे लोग भी खुश होंगे, जो भाई-बहिन की शादी (सगोत्र) को ‘क्रांतिकारी’ मानते हों। आने वाले समय में यही लोग माँ-बेटे या पिता-पुत्री की शादी का कोई कुतर्क ढूंढ लायेंगे और हमारे न्यायालयों से समर्थन भी पा लेंगे।
यह सब जानते हुए भी परिवारों के मुखिया सहमे-सहमे, डरे-डरे बैठे हैं। टी.वी. के सामने न्यूज देखते-देखते ही मुँह फेरना पड़ता है। बच्चों से वे नजरें झुकाते हैं, तो बच्चे भी बगले झाँकते हैं। क्या समाधान है? समाधान है- अभिनव राजस्थान, जिसमें इस सांस्कृतिक प्रदूषण को जड़ से मिटाकर प्राचीन संस्कृति के पौधे को फिर से सींचा जायेगा।
अगर सुधार हो सका तो हमारी संस्कृति बच जायेगी।