एक होता है बुद्धिजीवी,
अपने नाम का अनर्थ करता हुआ,
एक हजार वर्ष से भारत को डुबोता हुआ.
भारत को भ्रमित करता हुआ, भारत को छलता हुआ.
आज देश के समाधानों की राह में वह सबसे बड़ा रोड़ा है.
ईश्वर और सरस्वती ने उसे वरदान दे दिया, बुद्धि औसत से थोड़ी ज्यादा दे दी. घर मिल गया ऐसा, जिससे स्वतः ही वंशानुगत मदद मिल गई या वातावरण मिल गया जिसने दिमाग को मांज दिया. जैसे भी हो, उसके पास शब्द ज्यादा हो गए, शब्दों का विश्लेषण करना आ गया. ईश्वर सोचता है कि कि वह इसका उपयोग जनकल्याण के लिए करेगा, सृष्टि और मानवता को समृद्ध बनाने में करेगा. लेकिन एक हजार साल से भारत में यह बुद्धि गुलामी के प्रदूषण में स्वयं के हित को साध रही है और समाज-देश का नुकसान कर रही है.
इस प्रदूषण में बुद्धिजीवी ने इल्तुतमिश को कुछ सोने-चांदी के टुकड़ों के चक्कर में ‘लाखबख्स’ कह दिया तो अकबर को महान कह दिया. और जोर्ज पंचम को भारत भाग्य विधाता कह दिया ! नेहरु को युगपुरुष कह दिया तो इंदिरा को दुर्गा कह दिया. नए नए छद्म अवतार परोसे जा रहा है. और जब मर्जी आये उनकी निंदा तो कभी स्तुति करके भारत को भ्रमित कर रहा है. एक वेदप्रताप वैदिक होते हैं, जो एक बार लेख लिखते हैं- राहुल गांधी जैसा कौन है ? कोई नहीं है वैदिक जी ! एक चेतन भगत होते हैं, जो यह नहीं बता पा रहे हैं कि सही व्यवस्था क्या हो. बस शब्द जोड़ने में माहिर हैं तो छपते हैं.
राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, चाणक्य, कबीर, दयानंद, विवेकानंद और अरविन्द भी यहाँ हुए हैं, पर जाने क्यों उनकी बौद्धिक परंपरा बीच बीच में रुक जाती है, विलुप्त सी हो जाती है. गहरे चली जाती है. तब तक सतह पर यह कीचड़ फ़ैल जाता है और देश को निराश कर देता है. यह कीचड़नुमा बुद्धि शोषण करवाती है, अन्याय बढाती है, एक वकील के रूप में, एक चिकित्सक के रूप में, एक लेखाशास्त्री, व्यापारी या उद्योगपति के रूप में, एक राजनेता या एक अधिकारी के रूप में. एक लेखक के रूप में,
समय आ गया है कि इस बौद्धिक कीचड़ को हटाएँ और भारत की श्रेष्ठ परम्परा को जीवंत करें. बुद्धि का इस्तेमाल समाज और देश के हित में भी हो, फिर भले स्वयं के हित में हो. ईश्वर आपको बुद्धि देता है तो आप उसके उपयोग से दुनिया को निराशा से भर सकते हो, गुलामी के भाव से भर सकते हो या आशा और स्वतंत्रता के साथ लोकतंत्र की त्रिवेणी बना सकते हो.
अभिनव राजस्थान अभियान
बुद्धि का उपयोग समाज और देश हित में.
वंदे मातरम !
हमारे देश मे कर्म से ज्यादा व्यक्ति पूजा को ज्यादा महत्त्व दिया जाता हैं ।