भारत का सबसे बड़ा भ्रम, जो है सभी समस्याओं की जड़ में.
आप किसी पुराने से मकान के पास से रोज गुजरते हैं. लोग इसके खिड़की दरवाजे तोड़कर ले जाते हैं, आपको कोई फर्क नहीं पड़ता. लोग यहाँ गन्दगी करते हैं, आपको क्या. आपको लगता है कि मेरा नहीं है तो मैं क्यों परेशान.
एक दिन आपको पता चलता है कि उस मकान का पट्टा आपके दादाजी के नाम है ! यानि मकान आपका है. अरे वाह ! अब आप उसके मालिक हैं. आपका नजरिया बदल जाता है. अब आपकी उसकी सुरक्षा में और उसको सुधारने में लग जाते हैं. मकान अपना जो है.
1947 में एक ऐसे ही मकान भारत को हमारे दादाओं ने अंग्रेजों से ले लिया था. भगत सिंह, सुभाष चन्द्र ने अंग्रेजों को यह मकान छोड़ने को मजबूर कर अपने परिवार के नाम इसे कर दिया था. पर हम उस परिवार के लोग यह नहीं जान पा रहे हैं कि यह हमारे नाम है, हमारा है. कुछ चालाक लोग इस अज्ञानता का, इस भ्रम का फायदा उठाकर इस मकान पर कब्ज़ा करके बैठ गए हैं. वे इसकी ईंटें बेच रहे हैं ! हम सोचते हैं कि हमारा क्या जाता है. हम सोचते हैं कि यह मकान नेताओं और अफसरों का है ! जबकि नेता और अफसर जानते हैं कि यह जनता का है ! इसलिए वे भी चिंता नहीं करते और मकान की लूट में अपना हिस्सा लेकर चुप रहते हैं ! कितना बड़ा भ्रम भारत का.
'अभिनव राजस्थान अभियान'
शासन से अपनेपन का अहसास कराने का अभियान.
काम करने का पक्का मन बना लीजिये ताकि अगली पीढ़ी हमें नाकारा न कहे.
वन्दे मातरम !