कुछ समय पहले तक हम यह बात सुनते थे और मानते भी थे कि समझदार या अच्छे व्यक्ति का राजनीति में प्रवेश मुश्किल है या फिर यह कि उनके काम करने के लिए यहाँ की राजनीति में स्वस्थ माहौल नहीं है. लोग दारु और पैसे में बिकते हैं, टिकिट जुगाड़ से मिलते हैं. और ये समझदार (?) लोग इस बहाने से आमजन को इम्प्रेस भी करते थे और अपने नाकारा होने को छुपा लेते थे ! और चौपालों और मंचों से अफसरों और नेताओं को कोसने का मजा फोगट में लेते थे. 'हम क्या कर सकते हैं', 'बेईमानों का शासन पर कब्ज़ा है', यह जमा जमाया कुतर्क था. जंच भी जाता था.
अब लो जी, ‘सूचना का अधिकार’ आ गया. अब आपको चुनाव नहीं लड़ना है. पढ़े लिखे लोगों के लायक काम है. करो शासन पर कब्ज़ा. अपने ज्ञान का इस्तेमाल करो और घर बैठे अफसरों की कमियां या अच्छाइयां उजागर करो. अब क्या बहाना है ?
मैं आज एक चर्चा में इस बात पर खूब हंसा. मेरे माने अब यह पढ़ा लिखा, अच्छा आदमी यह बहाने गढ़ेगा. १.सूचना के अधिकार से क्या होगा ? २.देखिये इस अधिकार का प्रयोग करने वालों से अफसर लोग दुश्मनी बांध लेते हैं. ३.या कि यह बहाने कि हम तो नौकरी वाले हैं, धंधे वाले हैं, बीमार रहते हैं, समय नहीं निकाल पाते हैं !
जबकि असलियत में ये लोग डरे हुए, गुलाम मानसिकता के लोग हैं जो कुतर्कों से अपने झूठे अहंकार को बचाने में लगे हैं.
चर्चा का नतीजा यही निकला कि अपने तो माहौल बनाये रखो, जमीन को संवारो, पानी दो. जो बीज काम के हैं वे बाहर निकल आयेंगे और भारत रूपी खेत लहलहा देंगे. जो बीज नाकारा हैं, वे अंकुरित नहीं होने. अंदर पड़े पड़े कुढ़ते रहेंगे कि पानी कम है, बाहर गर्मी ज्यादा है और यह भी कि जो बीज अंकुरित हो भी गए तो कौन गारंटी है कि वे फल दे पायें ! ऐसे बीजों को जमीन में पड़ा रहने दो, कुढ़ने दो.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’
उनके लिए जो वास्तव में व्यवस्था बनाने के लिए काम करना चाहते हैं.
वंदे मातरम !