कहते हैं कि किसी भी समाज या देश का संचार तंत्र (मीडिया) निराशा का माहौल भी बना सकता है और अगर चाहे तो आशा की किरणें भी बिखेर सकता है. मतलब यह कि अखबार और चेनल चाहें तो दिनभर घटिया ख़बरों से हमें यह अहसास करवा सकते हैं (करवा भी रहे हैं ) कि इस देश और समाज में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. नेता ख़राब, अफसर भ्रष्ट, स्कूल-अस्पताल-सड़क बदहाल. दुष्कर्म-हत्या-आत्महत्या-आतंकवाद चारों तरफ या आरोप-प्रत्यारोप या फिर पाकिस्तान-चीन का हौवा. लेकिन अगर मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे तो ख़बरें अच्छी और उत्साहवर्धक भी हो सकती हैं. ईमानदार अफसरों या नेताओं के बारे में छप सकता है. किसी किसान या शिक्षक की मेहनत का जिक्र भी हो सकता है.किसी वैज्ञानिक की उपलब्धि समाज को बताकर नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है. केवल निष्पक्षता के नाम पर गन्दगी छापने या दिखाए जाने में क्या तुक है ? इससे समाज को क्या लाभ हो रहा है ? बलात्कार या भ्रष्टाचार की खबर में चटकारे लेने जैसा क्या है ? लेकिन मेरा अर्थ यह भी नहीं है कि इन ख़बरों को न छापा जाए या दिखाया जाए. मेरा अर्थ सीधा सा यह है कि बुरी ख़बरों को बहुत ज्यादा प्राथमिकता देने की आवश्यकता नहीं है. घर में कोई बात गलत हो भी जाती है तो उसे ढोल पीटकर बाहर नहीं कहा जाता है. अमेरिका और योरोप के विकसित देश यही कर रहे हैं. वहां का मीडिया समाज और देशहित में ख़बरों के चयन और स्तर को लेकर गंभीर रहता है. हमें भी ऐसा करना चाहिए.
आज यह विषय इसलिए क्योंकि खबर ही कुछ ऐसी है. हमारे भारत के वैज्ञानिकों ने कमाल ही ऐसा किया है कि उस खबर को भारत के बच्चे बच्चे तक पहुंचाने की जरूरत है. होना तो यह चाहिए था कि यह खबर स्वतः ही भारत के प्रमुख और स्थानीय अखबारों और चेनलों की सुर्खियाँ बटोरती. पर ऐसा हुआ नहीं. यह खबर अखबारों के कोनों में कहीं दबकर रह गई. उसी प्रकार जैसे भारत अनेक खासियतों के बावजूद दुनिया की अगली पंक्ति में दिखाई न देकर किसी कोने में दिखाई देता है. लेकिन खबर क्या है ?
खबर यह है कि भारत के वैज्ञानिकों ने इसी मार्च महीने की 20 तारीख को एक पनडुब्बी से सुपर सोनिक क्रुज मिसाइल ‘ब्रह्मोस’दागकर पूरी दुनिया को ठेंगा दिखा दिया. आप ताज्जुब करेंगे और स्वाभाविक प्रश्न भी करेंगे कि क्या अमेरिका या चीन या फ्रांस भी आज तक यह नहीं कर पाए. हाँ जी, वे तथाकथित ताकतवर देश भी यह काम आज तक नहीं कर पाए हैं. वे जमीन या हवा से तो मिसाइलें दागना जानते हैं, पर पानी की गहराई में पनडुब्बी से मिसाइल दागना अभी तक उनको नहीं आया है. भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बार फिर यह बता दिया है कि दिमाग की विश्लेषण क्षमता में इस देश का आज भी कोई सानी नहीं है. थोडा और जान लेते हैं कि यह मिसाइल सिस्टम क्या है.
कभी बन्दूक बड़ा हथियार थी, फिर तोप आ गई. उसके बाद हवाईजहाज से बम गिराने की कला ने युद्ध की परिभाषा ही बदल दी. और इसके बाद मिसाइल आ गई. हजारों किमी तक सटीक निशाने लगाने वाली मिसाइल. इनमें भी वे मिसाइलें ज्यादा लोकप्रिय हुईं जो कम्पूटर से काम करती हैं और उसी के द्वारा तय निशाने को भेद देती है.ये क्रूज मिसाइलें कहलाईं. भारत ने ऐसी मिसाइलें बनाने के लिए 1983 में एक कार्यक्रम शुरू किया था. देश के भीतर कई लोगों ने इस कार्यक्रम का मजाक भी उड़ाया था, पर वैज्ञानिकों की जिद कायम रही. पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम इस प्रोजक्ट के अगुआ थे. उन्हीं के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट धीरे धीरे आगे बढ़ा. इस प्रोजेक्ट में कम दूरी तक मार करने वाली मिसाइलें शुरू में बनीं. पर अमेरिका चौकन्ना था, चीन और पाकिस्तान भी सहमे हुए थे. तभी ‘अग्नि’ जैसी लम्बी दूरी (3000 किमी) तक मार करने वाली मिसाइल बनाकर भारत ने अमेरिका और चीन को बता दिया था कि भारत को कम आंकना महंगा पड़ सकता है. हालांकि 1974 में पोकरण में परमाणु बम का सफलतापूर्वक परीक्षण कर भारत अमेरका को धत्ता बता चुका था, पर अग्नि ने तो अमेरिका और चीन के अहंकार को चूर कर दिया था.
इसी क्रम में भारत ने रूस के साथ फरवरी 1998 में समझौता कर आवाज से भी तेज गति (सुपरसोनिक) मिसाइलें बनाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया. इन मिसाइलों को ‘ब्रह्मोस’ नाम दिया गया. भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मास्कोस नदियों के नाम पर यह नाम रखा गया था. इस साझा उपक्रम का नेतृत्व भारतीय वैज्ञानिक डॉ. ए. शिवथानु पिल्लई को सौंपा गया. पिल्लई जी और उनकी टीम ने कड़े परिश्रम और लगन के बल पर जल्दी ही सफलता पा ली. 12 जून 2001 को ब्रह्मोस का पहला परीक्षण सफल हो गया. ऐसे कई परीक्षणों के बाद 2005 में भारतीय नौसेना और थल सेना को ये मिसाइलें सौंपकर इस टीम ने देश की सुरक्षा को नई मजबूती दे दी. वहीं दुनिया में भारत को एक मात्र ऐसा देश बना दिया, जिसकी नौसेना और थलसेना दोनों के पास इतनी तेज क्रूज मिसाइल व्यवहार में है. यानी हमारी ब्रह्मोस आज दुनिया की सबसे तेज गति से चलने वाली मिसाइल है. अमेरिका और चीन के पास भी मिसाइलें हैं पर वे इतनी तेज गति से नहीं चलती हैं. है न गर्व की बात ? लेकिन इससे कहाँ मन मान रहा था. हमारे वैज्ञानिक तो कुछ अद्भुत ही करना चाह रहे थे.
इस मार्च महीने की 20 तारीख को ही पिल्लई जी की टीम ने पानी के भीतर गहराई में खड़ी पनडुब्बी से ब्रह्मोस का सफल परीक्षण कर इतिहास रच दिया है. अभी तक कोई भी देश पानी के भीतर से मिसाइल दागने की कला नहीं जान पाया है. पानी के भीतर से यह मिसाइल सीधी आसमान की तरफ निकलती है और पानी से बाहर आते ही अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाती है. इस मिसाइल की क्षमता 290 किमी तक वार करने की है. यानि अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में कोई दुश्मन आने की हिम्मत करेगा तो पानी के भीतर चलती पनडुब्बी से ब्रह्मोस अचानक वार कर देगी और दुश्मन के जहाज को तहसनहस कर देगी. आपको यह भी बता दें कि यह मिसाइल किसी भी राडार की पकड़ में भी नहीं आती है. इतनी नीची रहती है. ब्रह्मोस की गति, निशाना और शक्ति का आज कोई तोड़ नहीं है. यही नहीं, तेज गति के कारण अमेरिकी या चीनी मिसाइलें इसे रास्ते में रोक भी नहीं सकती हैं.
इस मिसाइल को हमारे नए सुखोई लड़ाकू विमानों में भी फिट किया जा रहा है. सुखोई विमान की तकनीक भारत को बेचने वाले रूसियों ने कहा था कि ये मिसाइलें उन विमानों में फिट नहीं हो सकती हैं. पर भारत के वैज्ञानिक कहाँ हार मानते हैं. उन्होंने सुखोई विमान में ब्रह्मोस को फिट कर ही लिया है. जुगाड़ ! अब भारत ऐसा देश भी बन गया है जिसकी नौसेना, थलसेना और वायुसेना, सभी के पास इतनी तेज यानि सुपरसोनिक मिसाइल है. एक कदम आगे चलकर हमारे वैज्ञानिक हाइपरसोनिक(आवाज से पांच गुना तेज) ब्रह्मोस भी बनाने में लगे हैं. जल्दी ही सकारात्मक खबर आने वाली है. आने वाले वर्षों में हम भारत-रूस की इस साझा कम्पनी (ब्रह्मोस एरोस्पेस) के माध्यम से इस मिसाइल को विश्व के बाजारों में मित्र देशों को बेचने वाले भी हैं. पर हम पाकिस्तान और चीन को यह मिसाइल कतई नहीं देंगे ! इन भस्मासुरों से सावधान रहेंगे.
हम गर्व कर सकते हैं कि हमारा देश दुनिया के किसी भी देश से कम नहीं है. किसी भी मामले में. बस जरूरत इस बात की है कि हमारा मीडिया और हम स्वयं अपने देश की ताकत में, ज्ञान-विज्ञान में विश्वास रखें. हम ब्रह्मोस के जनक ए. शिवथानु पिल्लई को देश का सच्चा हीरो घोषित करें. सचिन तेंदुलकर या सलमान खान से ज्यादा पिल्लई जी जैसे होनहारों का मान-सम्मान करें. उनको केवल पद्मभूषण देना काफी नहीं है, उनकी टीम की सफलता और समर्पण की कहानी देश के गाँव-गाँव, मोहल्ले -मोहल्ले में सुनाएँ. मजबूत राष्ट्र का निर्माण तो इसी प्रकार होता है.
वन्दे मातरम. भारत माता की जय.
आप इस सम्बन्ध में और जानकारी के लिए BrahMos.com नामक वेबसाईट को खोल सकते हैं.
कहते हैं कि किसी भी समाज या देश का संचार तंत्र (मीडिया) निराशा का माहौल भी बना सकता है और अगर चाहे तो आशा की किरणें भी बिखेर सकता है. मतलब यह कि अखबार और चेनल चाहें तो दिनभर घटिया ख़बरों से हमें यह अहसास करवा सकते हैं (करवा भी रहे हैं ) कि इस देश और समाज में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. नेता ख़राब, अफसर भ्रष्ट, स्कूल-अस्पताल-सड़क बदहाल. दुष्कर्म-हत्या-आत्महत्या-आतंकवाद चारों तरफ या आरोप-प्रत्यारोप या फिर पाकिस्तान-चीन का हौवा. लेकिन अगर मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे तो ख़बरें अच्छी और उत्साहवर्धक भी हो सकती हैं. ईमानदार अफसरों या नेताओं के बारे में छप सकता है. किसी किसान या शिक्षक की मेहनत का जिक्र भी हो सकता है.किसी वैज्ञानिक की उपलब्धि समाज को बताकर नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा सकता है. केवल निष्पक्षता के नाम पर गन्दगी छापने या दिखाए जाने में क्या तुक है ? इससे समाज को क्या लाभ हो रहा है ? बलात्कार या भ्रष्टाचार की खबर में चटकारे लेने जैसा क्या है ? लेकिन मेरा अर्थ यह भी नहीं है कि इन ख़बरों को न छापा जाए या दिखाया जाए. मेरा अर्थ सीधा सा यह है कि बुरी ख़बरों को बहुत ज्यादा प्राथमिकता देने की आवश्यकता नहीं है. घर में कोई बात गलत हो भी जाती है तो उसे ढोल पीटकर बाहर नहीं कहा जाता है. अमेरिका और योरोप के विकसित देश यही कर रहे हैं. वहां का मीडिया समाज और देशहित में ख़बरों के चयन और स्तर को लेकर गंभीर रहता है. हमें भी ऐसा करना चाहिए.