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लोकतंत्र की पहली जरूरत

अपने क्षेत्र को जानो, अपने शहर-गांव-गली को जानो
                                                                        डॉ. अशोक चौधरी  94141-18995
पिछले दिनों मैं डीडवाना (नागौर) में था। शहर के प्रबुद्ध नागरिकों की एक अनौपचारिक बैठक थी। हम ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के बारे में चर्चा करने को इकट्ठे हुए थे। बातों-बातों में शहर की समस्याओं पर बात होने लगी। कुछ मित्रों ने कहा कि शहर में एक बड़े गंदे तालाब से सभी परेशान हैं। खूब बदबू आती है और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। मैंने भी वह तालाब देख रखा था और डीडवाना में घुसते ही इस गंदे पानी के दर्शन से किसी भी आगंतुक का मूड खराब हो जाता है। लेकिन मैंने मित्रों से पूछा कि इस तालाब की गन्दगी को हटाने के लिए क्या सरकारी प्रयास चल रहे हैं, इस सम्बन्ध में किसी फ़ाइल या कागज को आप लोगों ने देखा या पढ़ा है क्या। स्पष्ट है कि सबका जवाब न में था। उन्होंने कोई सरकारी फ़ाइल नहीं देखी थी। किसी और शहर में अगर इस प्रकार की चर्चा होगी तो यही जवाब आने वाला है। स्थानीय आवश्यक जानकारियां अक्सर हमारे पास होती ही नहीं हैं। ऐसा लगता है कि हम अपने शहर, गांव या क्षेत्र के बारे में बहुत ही कम जानते हैं। यही हमारी एक नागरिक के रूप में सबसे बड़ी कमजोरी होती है, जिसका जाने-अनजाने फायदा स्वार्थी लोग उठा लेते हैं। यही कमजोरी है जो हमें ‘राज’ से दूर करती है। ‘राज’ से यह दूरी ही भ्रष्टाचार की असल जननी है। सोचा तो यह गया था कि सूचना का अधिकार आने से इस मामले में मदद मिलेगी और हमारे नागरिक सूचनाओं से प्राप्त जानकारियों से अपने रोज के मसले हल कर लेंगे। लेकिन बिना प्रशिक्षण के ऐसा हो नहीं पा रहा है। अभी भी लोग सूचना लेने से डरते हैं या फिर उदासीन हैं। या माहौल न बन पाने के कारण भी चुप बैठे हैं। हम यह माहौल बनाने का काम कर देंगे। डर और उदासीनता भी कम कर देंगे।


‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हमने अपना पहला लक्ष्य बना रखा है- जागरूक सहयोगियों का संगठन। जागरूक सहयोगी ही हमारे अभियान को वांछित गति दे पायेंगे। हमारे ये सहयोगी अपने अपने क्षेत्रों, अपने शहर या गांव के बारे में कुछ मूलभूत जानकारियाँ जुटाएंगे, सूचना के अधिकार से। 30 दिसम्बर 2012 के हमारे सम्मेलन में हम उन्हें विस्तार से उन जानकारियों के बारे में बताएँगे, जो अति आवश्यक हैं। वर्ना अवांछित जानकारियों का पुलिंदा इकठ्ठा करने का कोई अर्थ नहीं निकलेगा। हम उन्हें कुछ प्रमुख विभागों के क्रियाकलापों की जानकारी देंगे और बताएंगे कि कौन कौन से कागज उनके पास होने आवश्यक हैं। उन्हें सूचना के अधिकार का सदुपयोग(!) करना सिखाएंगे और इस अधिकार से कार्यालयों का निरीक्षण करना भी समझायेंगे। अभी इस बारे में लोगों को वाकई में बहुत कम जानकारी है। लोह अभी भी इस अधिकार के बारे में कम ही जानते हैं और कार्यालयों के निरीक्षण की तो अधिकाँश को जानकारी ही नहीं है। वे केवल कुछ कागजों की फोटोकॉपी लेने को ही इस अधिकार का मतलब समझते हैं। जबकि यह फोटोकॉपी लेने वाला काम तो बिल्कुल ही सतही है। इससे आगे बढ़ना है, तभी इस अधिकार का मर्म पता लगेगा, अर्थ पता लगेगा। परन्तु यह काम कम से कम खर्च में कैसे हो पाए, यह भी हम बताएंगे। साथ ही हम यह भी तय करेंगे कि यह सारा काम सकारात्मक भाव से हो। ऐसा न हो कि हम अधिकारियों के खिलाफ मोर्चे खोलने से अपने काम की शुरुआत कर बैठें। हालांकि थोड़ी बहुत तकलीफ तो साहब लोगों को होगी पर हम उन्हें समझायेंगे कि हमारा ईरादा उन्हें परेशान करने का न होकर उनकी मदद करने का ही है। हम इन कागजों का इस्तेमाल संभल कर करेंगे, जिम्मेदारी से करेंगे।


                 इससे क्या होगा ? बहुत बड़ा काम हो जाएगा। एक तो यह होगा कि सरकारी कार्यालय का भय थोड़ा कम होगा। जब हमारा कोई सहयोगी एक बार किसी कार्यालय का निरीक्षण कर लेगा तो यह उसके लिए आंखें खोलने वाला अनुभव होगा। बहुत ही अद्भुत। अधिकार से किसी सरकारी फ़ाइल को देख लेना भी अपने ‘राज’ के होने का अहसास देगा, जो अभी बिल्कुल भी नहीं है। दूसरे हमारे सहयोगी जानकारी के हथियार से लबरेज होंगे। जानकारी पास में होगी तो उसकी बात में अलग ही दम होगा। उसकी चाल में, बात करने में अजब सा विश्वास होगा। यह विश्वास जानकारी से ही आएगा। अभी तो वह हवाई फायर कर रहा है, इसलिए कुछ भी बोल देता है, लेकिन जानकारी पास में होने पर उसके बोलने का अंदाज भी गंभीर होगा। अभी वह हर किसी नेता-अफसर से प्रभावित हो जाता है, डर भी जाता हैं, उसकी बेसिरपैर की आलोचना भी कर देता है। पर जानकारी पास में होगी तो यह डर खत्म हो जाएगा। आंख से आंख मिलाकर बात करने का हौसला आ जाएगा। ऐसे में वह यह नहीं कहेगा कि फलां रोड़ टूटी हुई है और सरकार कुछ नहीं कर रही है। तब वह कहेगा, कि यह रोड़ फलां साल में इतने रूपये से बनी है, इन शर्तों पर बनी है, इतनी जल्दी कैसे टूट गई ! तब वह किसी नेता या अफसर के सामने गुहार नहीं लगवाएगा कि नेताजी, साहब जी रोड़ बनवा दो या ठीक करवा दो। वह कहेगा कि यह कागज़ पकड़ो और उच्च अधिकारियों से बात करो। क्योंकि समस्या यह भी है न कि अभी के नेता भी तो जानकारियों के अभाव में खाली पीली हवा मार रहे हैं ! वे भी तो हममें से ही निकले हैं।

               मेरा दावा है कि ऐसी स्थिति आते ही समां बदलने वाला है। जागरूक नागरिक ही तो लोकतंत्र की नींव होता है। अभी इसी की कमी है। परन्तु जब हमारे 35 अभिनव कस्बों के चुनिन्दा सहयोगियों के पास अपने क्षेत्र-शहर-गांव से जुड़ी जानकारियों का एक फोल्डर होगा तो अलग ही नजारा बन जाएगा। उनके पास सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, पुलिस, राजस्व, शिक्षा, समाज कल्याण, सिंचाई, कृषि, उद्योग आदि प्रमुख विभागों की खास खास जानकारियों का बड़ा ही रोचक संग्रह होगा। ऐसा संग्रह जो उस क्षेत्र की, उस शहर-गांव की कहानी अपनी भाषा में कह देगा। जब ऐसा संग्रह लोगों के बीच जाएगा तो उनकी चर्चा के विषय बदल जायेंगे। चर्चा का स्तर ऊंचा हो जाएगा। अब वे अपनी गली में बनी सड़क पर अलग और गंभीर बात करेंगे। अब वे नगरपालिका या पंचायत समिति के विकास की समीक्षा कर पायेंगे। अब वे पुलिस और तहसीलदार के काम को असलियत में जान पायेंगे। वे जान पायेंगे कि स्थानीय अस्पताल और स्कूल में क्या क्या होता है, अधिकारी यहां क्या क्या देखकर जाते हैं और क्या लिख कर जाते हैं। अब वे केवल अखबार की जानकारी पर निर्भर नहीं होंगे, नेताओं के भाषण में जानकारी नहीं देखेंगे। बल्कि अपनी जानकारियों से वे मीडिया को खबर देंगे। अपने कागजों से उल्टे नेताजी को शिक्षित करेंगे।

‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के पहले पायदान पर ऐसे ही प्रशिक्षित सहयोगियों की टीम चुने हुए कस्बों और गाँवों में खड़ी करनी है। यह टीम जनता की प्रहरी का काम करेगी। सरकार किसी की भी आये, यह टीम अपने क्षेत्र के विकास पर जानकारी की टोर्च घुमाती रहेगी। लेकिन यह टीम थोथी पब्लिसिटी या छिछले व्यवहार से परहेज करेगी। जिम्मेदारी से बात करेगी। और यही तरीका है, लोकतंत्र को मजबूत करने का, जो आजादी के समय सोचा गया था। यही काम था जो उस समय करने का था और जो अभी तक नहीं हो पाया है। यही वजह है कि राज से, शासन से बेवजह दूरी बनी हुई है। इसी वजह से भ्रष्टाचार है, अक्षमता है। यह दूरी ही भ्रष्टाचार के मूल में है। इसी के कारण राजनेता जनता को छलते हैं। इसी के दम पर कुछ ‘सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता या आर टी आई एक्टिविस्ट’ अपने चमत्कार दिखा रहे हैं। लेकिन जब यह दूरी कम हो जायेगी, तो ऐरा गैरा व्यक्ति हमारा नेता भी नहीं बन पायेगा। सक्षम व्यक्ति ही मैदान में टिकेगा। फालतू लोग भाग जायेंगे। इतना होते ही लगभग काम हो जाएगा। तब हर जागरूक एक्टिविस्ट बन जायेगा और यह चमत्कार से ज्यादा जवाबदेही का काम बन जाएगा। और यह जानकारी एक तरह से कछुआ छाप अगरबत्ती का काम भी करेगी। मच्छर राज नहीं कर पायेंगे, जानकारी के धुंए से भाग जायेंगे !

पर यह ध्यान रखें कि ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का अंतिम लक्ष्य राजस्थान का उत्पादन बढ़ाना है और उसे नहीं भूलना है। इस पहले पायदान पर रुक नहीं जाना है। यही अंतिम लक्ष्य न बनकर रह जाए। क्योंकि सब तरफ ईमानदारी हो जाए लेकिन नीतियां और योजनाएं बनाने का काम रुक गया तो भी बहुत नुकसान होगा। इस पायदान पर रूकना नहीं है। यहां तो बस जागरूक सहयोगी तैयार करने हैं जो राज को, शासन को समझते हों। तभी वे अपने असली काम, योजना निर्माण को अंजाम दे सकेंगे। तभी उनका दिमाग योजना बनाने में लगेगा। अभी तो वे बाहर से तमाशा भर देख रहे हैं। ‘अभिनव राजस्थान’ में वे मैदान के बीच होंगे और खेल के नियम बदल कर रख देंगे।
पुनश्चः मेड़ता शहर में 30 दिसम्बर  2012 के सम्मेलन में जरूर पधारें। अभी से नोट कर लें। 

About Dr.Ashok Choudhary

नाम : डॉ. अशोक चौधरी पता : सी-14, गाँधी नगर, मेडता सिटी , जिला – नागौर (राजस्थान) फोन नम्बर : +91-94141-18995 ईमेल : ashokakeli@gmail.com

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2 comments

  1. बहुत सकारात्मक प्रयास ,,,,,,,,,

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