मीडिया की कई ख़बरें सनसनी sensation के चक्कर में,
अक्सर सच्चाई को ढक देती है.
कई बार समाज का, किसी व्यक्ति, या संस्था का बड़ा नुकसान भी हो जाता है.
दुष्कर्म, बलात्कार, दुर्घटना, धोखाधड़ी, रिश्वत आदि की ख़बरें.
हम रोज सुबह ऐसी ख़बरें पढते हैं. अनजाने में ही सही शीर्षक के माध्यम से सन्देश को सच्चा साबित कर दिया जाता है. कोर्ट से पहले. अधिकतर खबर का आधार पुलिस में लिखी रिपोर्ट होता है. सही-गलत का अभी पता नहीं पर खबर का शीर्षक फैसला सुनाता नजर आता है.
शीर्षक- अध्यापक ने किया नाबालिग छात्रा से छेड़कानी का प्रयास.
बड़ा सा शीर्षक. फैसला हो गया है. छेड़छाड़ का प्रयास हुआ है. दूसरा पक्ष नहीं छपता है. मीडिया तहकीकात करने घटनास्थल पर नहीं जाता है. क्यों जाएँ ? हमारे पास आधार है, पुलिस की रिपोर्ट. हम क्यों सच्चाई बताने में लगें. और पब्लिक कहती है, देखो क्या जमाना आ गया है. शिक्षक (सारे !) कैसे हो गए हैं. अब बच्चियों को क्या पढ़ने भेजें. अध्यापक के चाहने वाले (?), रिश्तेदार कहते हैं कि यह इसने ठीक नहीं किया. समाज में ठाले बैठे कंटक माहौल को गर्माते हैं और स्कूल पर ताला लगा देते हैं और ‘न्याय’ की मांग करते हैं. मजे लेते हैं. और आप वहाँ ढूँढने जाओगे तो क्या मिलेगा ? अध्यापक ज्यादा ही strict सख्त है, पढाने की जिद करता है और इससे उसके साथी और नाकारे बच्चे नाराज रहते हैं !. लेकिन हो गया उस टीचर का काम तमाम. पुलिस वाले भी उसको सींचकर मानते हैं. क्या करें, गुरूजी, आरोप गंभीर है. सेवा करो या फंसो. शिक्षक संगठन साथ देते नहीं हैं.
शीर्षक- लापरवाह ट्रकचालक ने मोटरसाइकिल सवार को कुचला.
ट्रक वाला लापरवाह है, साबित हो गया. उसके ट्रक को गुस्साई भीड़ जला दे तो इसमें क्या गलत है. वह कोई इस देश का नागरिक थोडा ही है. उसने ‘हत्या’ की है जैसे. उसकी कोई जातीय दुश्मनी थी जैसे. और हकीकत क्या निकलेगी ? तीन जने बाइक पर सवार थे, पीये हुए थे, तेज गति से चल रहे थे, बिना हेलमेट थे, अचानक ट्रक के सामने आ गए. ट्रक वाला कम गति में सीधे सीधे चल रहा था ! लेकिन रहा ट्रक वाला ! गलती उसी की है. भीड़ छोटे वाहन के साथ. पुलिस और नेता भीड़ के साथ ! मुआवजा, मुक़दमा ट्रक वाले पर.
ऐसे ही कई ख़बरों में झगडों में मोबाइल और सोने की चेन छीनने का आरोप पक्का लगता है. दुष्कर्मी अक्सर बिस्कुट खिलाकर बेहोश करते हैं और कई महीने तक बिना मर्जी के महिला को अपने कब्जे में रख लेते हैं ! यही नहीं खेत पर कब्ज़ा जमाए व्यक्ति असली मालिक द्वारा जातिसूचक शब्दों से प्रताड़ित करने की बात कहकर विषय को ही मोड़ देता है और मीडिया को भी !
यह देश ऐसे ही मजे में चल रहा है जी.
अक्सर ऐसी चटपटी खबरें हम रोज पढते हैं. मात्र पुलिस रिपोर्ट के सहारे पत्रकारिता होती है. इस पत्रकारिता से पब्लिक प्रभावित होती है, न्यायपालिका और कार्यपालिका पर भी असर पड़ता है. इसलिए इस पोस्ट के माध्यम से ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ मीडिया से सच्चाई का साथ देने का आग्रह करता है. देश और समाज के हित में. मात्र सेंसेशन के लिए कुछ बेक़सूर परिवारों की सिसकियाँ बड़ा सौदा है. जेलों में झूठे मुकदमों में पड़े कई पिताओं के बच्चे भी इस देश से न्याय की उमीद रखते हैं.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’
सच्चाई के लिए जनजागरण.