मुझे हिन्दू-मुस्लिम एकता में कोई रुचि नहीं.
मुझे नहीं लगता कि इस विषय का अलग से महिमामंडन होना चाहिए.
इस देश में रहने वाले सभी समूहों को प्रेम से रहना चाहिए.
और देश को मजबूत करना चाहिए, जीवन को समृद्ध बनाना चाहिए.
मैं समझता हूँ कि यह इस देश में एक बड़ा nonsense विषय है. अंग्रेजों और जिन्नाह जैसे लोगों ने अपने स्वार्थों की खातिर भारत में हिन्दू और मुस्लिम के रूप में दो वर्गों को पहचान दी. अपनी चतुराई के कारण वे इसमें सफल भी हुए. अंग्रेजों ने तो जाट रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट, गोरखा-सिख-मराठा रेजिमेंट जैसे समूह भी सेना में बनाकर समाज का औपचारिक वर्गीकरण किया. फिर दलितों को कहा गया कि तुम अलग हो. सबको समझाया गया कि तुम अलग अलग हो, तुम्हारे interest किसी 'भारत राष्ट्र' नाम की पहचान से बड़े हैं !
भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के बाद नए देशी अंग्रेजों ने भी पुरानी अंग्रेजी चाल से सत्ता में बने रहने के लिए ये नुख्से आजमाए. कौंग्रेस ने मुस्लिमों और दलितों को इस झांसे में साथ रखा कि वही एक पार्टी है जो उनके हितों की रक्षा करेगी. हित कितने सधे, यह आज किसी भी मुस्लिम या दलित बस्ती के नजारे से स्पष्ट हो जाएगा. कौंग्रेस की चाल सत्ता के भूखे अन्य दलों ने भी पकड़ ली. उधर अन्य जातियां भी वर्ग विभाजन के जहर के असर से स्थानीय स्तर पर अपना वोट खराब करती रही और नाकारा लोगों को चुनती रहीं.
इसलिए मुझे यह एकता के शब्द से allergy है. यह एकता शब्द ही कहता है कि कहीं कोई विभेद है ! क्यूं हो एकता. 85 प्रतिशत और 15 प्रतिशत में क्या एकता ? सब अपना अपना काम करें. अपने ढंग से जियें. क़ानून सबके लिए समान हो. बस. मुसलमान यहाँ वैसे ही रहें और रहते हैं, जैसे ब्राह्मण, जाट, राजपूत, माली, हरिजन आदि रहते हैं. अपने रिवाज निभाएं, जैसे बाकी सभी वर्ग निभाते हैं. तुष्टीकरण के झांसे से अब बचें. और ईराक या फिलिस्तीन की पंचायती से भी बचें.
और जो मुस्लिम वर्ग का विरोध करते हैं, वे भी एक तरह से इस विभाजन को स्वीकार करते हैं, महत्त्व देते हैं. इस विभाजन को इस विरोध से हवा देते हैं. अच्छा होगा कि वे इस विभाजन को avoid करें. नकार दें. इस विभाजन पर ध्यान ही न दें. भारत की श्रेष्ठ परम्पराओं को आगे बढाने में लगें, बेहिचक.
राजनेता तो सत्ता के लिए इस तरह के विभाजन देश और समाज में आज भी चाहते हैं. उन्हें अभी विकास के नाम पर जीतने का भरोसा नहीं है क्योंकि वह मेहनत का काम है.वे इस short cut को छोड़ने को अभी तैयार नहीं हैं. मुझे तो ताज्जुब हुआ कि अरविन्द केजरीवाल भी इस short cut में उतर लिए. भाजपा ने भी अपने यहाँ अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ बना रखे हैं.
लेकिन मीडिया को यह रास्ता देश हित में छोड़ना चाहिए. क्या बात बात में दो सम्प्रदाय, दो सम्प्रदाय ? क्या शान्ति ? काहे को अंग्रेज बनते हो ? जो गलत काम करता है, उसे क़ानून निष्पक्षता से रोके. और social media को तो शुरू से ही यह रास्ता भारत में नहीं अपनाना चाहिए.
'अभिनव राजस्थान' इन विभाजनों से ऊपर विकास का ताना बुनेगा. भारत की प्रकृति और संस्कृति को आधार बनाकर.
वन्दे मातरम् !