एक सामान्य भारतीय या राजस्थानी व्यक्ति कहेगा कि यह संभव ही नहीं है. कुछ नहीं बदल सकता, सब ऐसे ही चलेगा. वह मान ही नहीं सकता कि इस देश में, इस प्रदेश में कुछ अच्छा हो सकता है. रोज के अखबार भी उसकी इस धारणा को मजबूत करते रहते हैं. आसपास के लोग भी इस निराशा को गहरा करते हैं. घपले, भ्रष्टाचार, राजनेताओं की करतूतें, संसद और विधानसभा का गिरता स्तर, न्यायपालिका और सेना पर बढ़ता संदेह, बेरोजगारी-गरीबी की बढ़ती चुभन, शिक्षा-स्वास्थ्य के बुरे हाल. बाबाओं और कंपनियों की धोखाधड़ी. यानि दिन भर देश-प्रदेश का यही दृश्य उसकी आँखों के सामने घूमता रहता है. ऐसे मैं आप कोई सकारात्मक या आशावादी बात उसे कहो भी तो, उसकी प्रतिक्रिया कैसी होती है ?
कभी वह भलमनसत के कारण चुपचाप आपकी बात सुन लेता है, कोई प्रतिक्रिया नहीं करता. मन ही मन अविश्वास की दीवार बना कर अपनी धारणाओं का बचाव करता है. कभी वह आपको नकार देता है. कह देता है कि पहले भी आप जैसे कई आये और गए, यह देश ऐसे ही चलने वाला है. कभी उसे अपनी बुद्धि के अहंकार पर चोट सी महसूस होती है, तो वह आपकी बात का कोई तोड़ ढूंढ लाता है. या फिर उसे आपके इरादों में कोई खोट नजर आने लगती है और वह सहज भाव से इस तर्क को सब तरफ परोसने में लग जाता है. वह पूछ बैठता है कि इसमें आपका क्या निजी स्वार्थ है, आप ही क्यों इस प्रकार परेशान हो रहे हो. कभी वह इतिहास के किसी पुराने चरित्र को लाकर आपके सामने खड़ा कर देता है और उसके सामने आपको बौना बताकर बात समाप्त करना चाहता है.
ये सब सामान्य व्यवहार के लक्षण हैं. इसे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से समझें. एक हजार सालों की गुलामी झेल चुकी कौम मान ही नहीं सकती कि यहाँ कुछ नया हो सकता है. एक हजार वर्ष किसको कहते हैं. इतने लंबे समय तक आपको अपने देश के बारे में सोचने की आजादी ही नहीं थी. सल्तनत, मुग़ल या अंग्रेजी-सामंती काल में आपको बस जैसे तैसे गुजर बसर करना था. सोचना एक गुनाह था. जो सोचना था, आप इससे पहले सोच चुके थे. वेद, पुराण, उपनिषद, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि इस गुलामी के काल के पहले की सोच पर, आजादी की सोच पर आधारित ज्ञान के पुंज थे. परन्तु इस एक हजार वर्षों की गुलामी के दौर में हमने सोचना बंद कर दिया. केवल चापलूसी की. कुतर्कों से गुलामी को स्वामिभक्ति ठहराकर उसका गुणगान किया. चाणक्य जैसे व्यक्ति की सोच की गलत व्याख्याएं कीं और उस महान राष्ट्र निर्माता की बातों को भी कुटिलता के अंदाज में प्रस्तुत कर दिया. यही नहीं गुलामी के वशीभूत होकर हमने पश्चिम से आयी तुच्छ जानकारियों (ज्ञान नहीं !) को श्रेष्ठ माना और हमारे ज्ञान को अन्धविश्वास कह दिया.
स्वाभाविक है कि इतने लंबे समय की जीवनशैली इतनी सरलता से नहीं छूटने वाली थी. सोचने की आदतें इतनी आसानी से बदलने वाली नहीं हैं. उस पर एक बड़ी ऐतिहासिक भूल हमारे देश की आजादी के नाम पर हो गई, जब अरविन्द, सुभाष चंद्र बोस और लोहिया जैसे क्रांतिकारी लोग हाशिए पर चले गए और आजादी मात्र सत्ता परिवर्तन तक सिमट गयी. लगा ही नहीं कि आजादी आई. मात्र शासक बदलने का अहसास हुआ, जो अभी भी कायम है. शासन से अपनापन किसी मजबूत देश की पहली आवश्यकता होती है, लेकिन हमारे यहाँ इतिहास के उस खेल के कारण वह अहसास आज तक नहीं पनप पाया. हम आज भी सोचते हैं कि यह “राज’ किसी और का है, हमारा नहीं. इस ‘किसी और’ के रूप में हमने राजाओं और अंग्रेजों की जगह नेताओं और अफसरों की तस्वीरें अपने दिमाग में फिट कर ली हैं.
ऐसी स्थिति में ‘अभिनव राजस्थान’ की अवधारणा पर विश्वास करना कितना कठिन होगा, समझा जा सकता है. समझना आवश्यक भी है क्योंकि ‘अभिनव राजस्थान’ का विचार समग्र क्रांति करने वाला है. यह भ्रष्टाचार मिटाने या काला धन वापस लाने जैसा कोई लोकलुभावना नारा या स्टंट नहीं है. न ही या किसी चमत्कार के भरोसे है. इस विचार का आधार गंभीर चिंतन और विस्तृत योजना है, जिसमें नागरिकों की सक्रिय और समझ भरी भागीदारी आवश्यक होगी. केवल दूसरों पर आरोप लगाने वालों, तमाशे देखने वालों या अपनी निष्क्रियता के बहाने ढूँढने वालों के भरोसे ‘अभिनव राजस्थान’ नहीं बनेगा. अभिनव राजस्थान बनेगा तो आत्मविश्वास से लबरेज जागरूक नागरिकों के भरोसे, जिन्हें एक मंच पर लाने का काम हम करके रहेंगे. तब ‘अभिनव राजस्थान’ को बनने से कोई नहीं रोक पायेगा. और यह जल्दी ही होकर रहेगा. पहले ही बहुत देर हो चुकी है.
क्या है अभिनव राजस्थान का विचार ?
सरकार या शासन व्यवस्था हम इसलिए बनाते हैं क्योंकि कई काम ऐसे हैं, जो हमें सामूहिक रूप से करने ही पड़ते हैं, अकेले दम पर उन कामों के लिए अधिक धन और ऊर्जा खर्च होते हैं. यही मूल बात है और इसके लिए हमें राजनीति शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता नहीं है. यही वह बात है जिस पर हमें एक सजग और जिम्मेदार नागरिक की तरह बात करनी होती है. गंभीरता से सोचिये कि एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश के नागरिक के तौर पर आपके परिवार की सामान्य और मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं, जिनके लिए हम सरकार चुनते है और उसको चलाने के लिए टेक्स देते हैं ?
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हम चाहते हैं कि सरकार हमारे देश-प्रदेश के संसाधनों के उपयोग से उत्पादन की ऐसी नीति बनाकर चले, जिसके माध्यम से सभी परिवारों को आगे बढ़ने के बराबर अवसर मिलें. इन अवसरों का उपयोग हम अपने परिवार के लिए रोजगार जुटाने में करें, अपनी आमदनी बढानें में करें. ध्यान रहे कि केवल अवसर मिलें, खैरात न बंटे. खैरात से तो नाकारापन बढ़ेगा.
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हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों के लिए शिक्षा के ऐसे प्रबंध हों कि अपने घर में रहते हुए वे उच्च शिक्षा के स्तर तक विश्वास के साथ पहुंचें. उन्हें ऐसी शिक्षा मिले जिससे प्राप्त ज्ञान का उपयोग वे रोजगार के अवसरों को भुनाने में करें और परिवार की समृद्धि को बढ़ा पायें.
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हम चाहते हैं कि अस्वस्थ होने पर हमारे परिवार के स्तरीय ईलाज की व्यवस्था स्थानीय स्तर (ब्लॉक, पंचायत समिति) पर हो. पेटदर्द या बुखार की साधारण दवाइयां मुफ्त न मिलें लेकिन गंभीर बीमारियों का ईलाज सभी के लिए मुफ्त हो ताकि उनसे परिवारों को मानसिक व आर्थिक नुकसान से रहत मिल सके.
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हम चाहते हैं कि हमें शुद्ध पानी पर्याप्त मात्र में घर पर मिले.
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हम चाहते हैं कि हमारी सड़कें सुरक्षित एवं आरामदायक परिवहन के लायक हों.
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हम चाहते हैं कि हमारे परिवार को समाजकंटकों से सुरक्षा मिले.
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हम चाहते हैं कि हमारी प्रकृति और संस्कृति अगली पीढ़ी के लिए अक्षुण रहे.
अब आप बताईये कि इन चाहतों में से कौनसी चाहत जायज नहीं है, जिसकी अपेक्षा हमें सरकार से नहीं करनी चाहिए. आप कह सकते हैं कि यह तो एक आदर्श स्थिति है, जिसकी केवल कल्पना की जा सकती है. नहीं महाशय, इसी धरती पर हमीं जैसे हाथ पैरों वालों ने यह आदर्श स्थिति लगभग छू कर देख ली है. उन्हीं को तो हम विकसित देश कहते हैं. चीन, जापान, जर्मनी, फ़्रांस, इंग्लैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इजरायल, सिंगापुर, न्यूजीलैंड, औस्ट्रेलिया आदि देश यह सब कर चुके हैं. फिर हम यह सब क्यों नहीं कर सकते हैं ? यहाँ हम का मतलब है-आप और हम सब. केवल नेताओं और अफसरों पर जिम्मेदारी डालकर मत बचियेगा, जो अब तक हो रहा है.
कैसा हाल है राजस्थान का अभी ?
आप यह देखिये कि राजस्थान में हमारे अब तक के शासकों ने क्या किया है.
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उत्पादन ठप्प पड़ा है क्योंकि शासन की नीतियां उत्पादन को बढ़ावा देने वाली ही नहीं हैं. खेती और उद्योग की हालत खराब है. सरकार अखबारों में और नेता भाषणों में केवल झूठी तसल्लियाँ देते हैं. वास्तविक स्थिति अत्यंत नाजुक है. इससे रोजगार के अवसर कम हैं. युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं. हमारे उद्योगपति और श्रमिक प्रदेश से बाहर पलायन कर रहे हैं.
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सरकारी स्कूल और कॉलेज की शिक्षा व्यवस्था का जितना बुरा हाल हो सकता था, हो चुका है. सरकार ने अपने हाथ झाड़ लिए हैं और पूरे प्रदेश को निजी हाथों में सौंप दिया है. शिक्षा के अधिकार में गरीब बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25 पतिशत आरक्षण ने साफ़ कर दिया है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा अच्छी नहीं रह गयी है. सरकार खुद गर्व से (?) कहती है कि इस व्यवस्था से निजी स्कूलों में गरीब बच्चे भी ‘अच्छी शिक्षा’ पा सकेंगे.
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सरकारी अस्पतालों का मतलब एक भवन से है, जहाँ ईलाज के नाम पर आपको सिर्फ परेशानी मिल सकती है. उस परेशानी का साफ़ इशारा है कि आप वहां से भाग कर किसी निजी दुकान की शरण लो और मरने से बचो. गंभीर बीमारी है तो, मरीज के साथ परिवार की बर्बादी भी निश्चित है.
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पीने का पानी राजस्थान के अधिकाँश हिस्सों में जहरीला हो चुका है. भारी मात्रा में फ्लुओराइड व अन्य लवण किसी भी जांच के नतीजे में मिलेंगे. इनसे स्वास्थ्य पर इतने हानिकारक प्रभाव पड़ रहे हैं कि जिस दिन उनका खुलासा होगा, प्रदेश में हाहाकार मच जाएगा. तब हमें पता चलेगा कि कितनी ही बीमारियों और शारीरिक परेशानियों की जड़ तो यह विषैला पानी ही है.
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अधिकतर सड़कें दोतरफा होने से असुरक्षित हैं. गड्ढों के कारण भी सफर मुश्किल रहता है.
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पुलिस हमारे परिवारों को कितनी सुरक्षा देती है, इसका अहसास तो किसी समस्या के आने पर ही किसी परिवार को हो पाता है. तब उन्हें लगेगा कि ‘अपराधियों में भय और आमजन में विश्वास’ की बात सही है या इसका उल्टा है.
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राजस्थान की प्रकृति और संस्कृति का कितना नुकसान सरकार की अनदेखी से हुआ है, इसे आसपास कहीं भी देखा जा सकता है. पहाड़ नंगे हो चुके हैं, नदियाँ सूख गई हैं, झीलों और तालाबों की जगह कॉलोनियां बन चुकी हैं. संस्कृति के पहरेदार कलाकार मजदूरी से पेट पाल रहे हैं, तो घरों में सांस्कृतिक प्रदूषण भीषण रूप ले चुका है. टी वी, इन्टरनेट और अखबारों ने घर में ऐसे दृश्य पैदा कर दिए हैं कि अब घरों के सामने कोठे अधिक सभ्य जान पड़ते हैं.
अंतिम निर्णय कब होगा ?
ऐसे में एक सजग नागरिक के तौर पर सोचिये कि हम क्यों कर जनप्रतिनिधि चुनते हैं और क्यों कर टेक्स के रूप में शासन चलाने का उन्हें खर्चा देते हैं. हमारी बाकी सारी चर्चाएँ, बहस या बुद्धिमता का अहंकार व्यर्थ है. अगर हम स्कूल के लिए टेक्स देते हैं और अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाते हैं, तो यह मूर्खता नहीं है क्या ? अगर हम अस्पताल का खर्चा टेक्स के रूप में उठाते हैं और ईलाज किसी निजी दुकान में करवाते हैं तो यह सही है क्या ? जब अच्छी सड़क पर जाते है और टोल टेक्स देते हैं, तो फिर हमने सेल्स टेक्स और परिवहन टेक्स किसके लिए दिया था ? टेक्स देकर भी पीने का पानी क्यों नहीं ? पुलिस को वेतन हम देते हैं, तो फिर उससे डरते क्यों हैं ? सुरक्षा के लिए फिर रिश्वत क्यों देनी पड़ती है ?
अभिनव राजस्थान की अवधारणा इन्हीं गंभीर बातों पर टिकी है. इस अवधारणा को व्यावहारिकता में ढालने के लिए हमने विस्तृत योजना बनाई है. पिछले कई अंकों में हम इस योजना को प्रकाशित भी कर चुके हैं और यह हमारी वेबसाइट abhinavrajsthan.org पर भी उपलब्ध है. इस योजना को जबरदस्त समर्थन भी मिल रहा है. इसी जनसमर्थन के दम पर अभिनव राजस्थान के निर्माण की रणनीति पर अंतिम निर्णय दिसम्बर 2012 के सम्मेलन में लिया जाएगा.
आप जुडना चाहते हैं तो स्वागत है, हिम्मत करिये. पत्र लिखिए या फोन करिये. डरने की आवश्यकता नहीं है. हम आपको कोई अनशन करने को नहीं कहेंगे, न ही नारे लगाने को, न ही बेवजह तालियाँ बजाने को. हम आपको जेल भरने की मूर्खता करने को भी नहीं कहेंगे. ये सारे नाटक तो हो लिए. अब यह सब नहीं करना है. अब तो ‘राज’ हमारा अपना है. हम किसके सामने अनशन करें ? हमें तो केवल और केवल अपनी आँखों और दिल को विश्वास से भरना है, ‘राज’ को अपना मानकर उसकी नीतियों में परिवर्तन पूरे हक और जिम्मेदारी से करवाना है, मूल मुद्दों पर जनजागरण करना है, एक मंच पर आना है और अपनी आवाज को जनता की आवाज बनाना है. बस यह हम किस ढंग से करते हैं, उसी पर ‘अभिनव राजस्थान’ का निर्माण टिका होगा. फिर किसी अशोक गहलोत या वसुंधरा के भरोसे राजस्थान की किस्मत नहीं होगी, हम सब अपनी किस्मत के निर्णय स्वयं करेंगे. वैसे भी गहलोत और वसुंधरा की राजस्थान के वास्तविक विकास की कोई गंभीर सोच या विजन अभी तक सामने भी नहीं आई है, मात्र लच्छेदार बातें ही वे और उनके दल करते हैं. उनका लक्ष्य एक ही है-किसी भी कीमत पर राज में बने रहना. और हमारा लक्ष्य है- ‘अभिनव राजस्थान’.
sir isme hum koi aapki kis prakar madad kar sakte hai plsssssssssssss kir ji jawab dena.
hamara id hai – dharmraj043@gmail.com