देश की पूर्व राष्ट्रपति के बेटे की गाड़ी से दो करोड़ रूपये बरामद हुए. उन्होंने और भी बहुत किया. सूचना के अधिकार से बहुत कुछ बाहर आया. पर बेचारा मीडिया भी कब तक सरकारी लीपापोती को उघाड़ता, क्योंकि आप चुप थे.प्रधानमंत्री की नाक के नीचे कोयले, स्पेक्ट्रम (टू जी) और राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले हुए. मनमोहन सिंह जी ने इन पर चुप्पी साधे रखी. मीडिया कब तक इस पर लिखता रहता. सड़क पर कोई विरोध नहीं था, विपक्ष औपचारिकता कर
रहा था. ऐसे में आपकी चुप्पी ने मामले को ठंडा कर ही दिया न. सांसदों ने खुले आम पैसा लेकर नरसिम्हा राव की सरकार बचाई. पिछली मनमोहन सरकार को बचाने को दिए गए करोड़ों रूपये के बेग तो संसद में खोल कर दिखाए
गए. कई सांसदों ने पैसा लेकर सवाल पूछे, अपने विशेष फंड में से खर्च करने पर कमीशन माँगा. संसद की हाजिरी देखो तो पता लगे कि आधे सांसद भी सदनों में नहीं मिलते हैं. जो भी पहुंचे, उन्होंने कितने ठसके से लोकपाल का
मजाक उडाया था. वह जन लोकपाल का नहीं आपका मजाक था. पर आपको कोई फर्क नहीं पड़ा और आपने वैसे ही सांसदों को फिर चुनकर भेज दिया.
संसद पर दिन दहाड़े हमला हुआ, लेकिन हमले का आरोपी अफजल आज तक फांसी नहीं चढ़ सका है. पाकिस्तान से दस लड़के आराम से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में घुस गए और सैकड़ों बेगुनाहों को मार गए. उन आतंकियों में से बचे एक को फांसी देने से सरकार कतरा रही है और उसे मेहमान की तरह लेकर बैठी है. जिसे टी वी पर लोगों ने हमला करते देखा हो, उसे पता नहीं किस न्यायिक प्रक्रिया के तहत इतने समय तक जिन्दा रखा जा रहा है. लेकिन आपको क्या. देश की फ़ौज का जनरल अपनी आयु को लेकर संघर्ष करता रहा, ताकि कुछ दिन और पद पर रह सके. जबकि कई फ़ौजी अफसर मुंबई में कारगिल के शहीदों के लिए बने फ्लेट हड़प गए. कुछ ने सेना की जमीन ही बेच दी. हथियारों की खरीद भी तो मजाक बन गई है. पर आपको नहीं लगा कि ये विषय आपके मतलब के थे. देश की फ़ौज
का हाल बयां करते इन संकेतों से आपने किनारा ही रखा. विदेशी कम्पनियाँ भारत को ऐसे लूटने में लगी हैं, जैसे यह कोई जमीन का सूना टुकड़ा हो. देश के अंदर बैठे गद्दार इन विदेशियों से मिलकर अरबों रूपया बाहर भेज चुके हैं, पर आपको लगता है कि जैसे ये किसी और देश को लूट रहे हैं. आपको इससे क्या.
आपके घरों में अश्लीलता इस कदर पसर गई है कि घरों और कोठों में कोई फर्क नहीं रह गया है. टी वी पर, सिनेमा में, अखबार के विज्ञापनों में, एफ एम रेडियो पर या इंटरनेट पर ऐसा माहौल बना जाया रहा है कि जैसे अश्लीलता ही
अब शालीनता हो गई है. छद्म आधुनिकता के पैरोकार आपकी जिंदगी को नरक बनाने पर तुले हैं. वे कहते हैं कि जमाने के साथ चलने के लिए यह खुलापन आवश्यक है. जबकि हमारा पड़ौसी चीन ऐसा नहीं सोचता है. फर्क साफ़ दिखाई दे रहा है. वहां इन वाहियात किस्म की हरकतों पर रोक है और इसी कारण वहां के युवा विज्ञान और खेल में विश्व की अग्रिम पंक्ति में हैं और उनका देश आज विकास के नए पैमाने दुनिया को समझा रहा है. लेकिन आप गंभीर नहीं हैं. आप केवल कुढ़ के रह जाते हैं. दबी जुबान में फुसफुसाते हैं. अन्ना हजारे मैदान में कूदकर लोहा लेने को तैयार हुए लेकिन आपने साथ नहीं दिया. एक बार मीडिया के कहने पर बाहर आ गए, पर दूसरी बार आने की हिम्मत नहीं हुई. बाबा रामदेव के साथ भी आपने यही किया. अब शायद ही लंबे समय तक आपकी लड़ाई लड़ने कोई अन्ना या बाबा तैयार हो पायेगा. अगर हिम्मत करेगा भी तो व्यवस्था में बैठे नेता, अफसर और धनी लोग उसे पहले ही दबोच लेंगे, क्योंकि आपकी चुप्पी में उन्हें आपके डरपोक होने का अंदाज जो लग गया है.
लेकिन आप चुप क्यों हैं ? ईमानदारी से इन संभावनाओं पर नजर डालिए और स्वीकार कीजिये कि कौनसा कारण आपकी चुप्पी के लिए जिम्मेदार है. आपकी स्वीकारोक्ति आपके भीतर एक मौन क्रांति कर सकती है. आपका सही कारण को स्वीकार करना बड़ा चमत्कार कर सकता है.
२. आपको अपने आप पर विश्वास नहीं है. एक हजार साल से ओढ़ी हुई गुलामी की भावना से आप अभी भी ओतप्रोत हैं. आपको लगता है कि आप विरोध करने की काबिलियत नहीं रखते हैं. आप केवल बंद कमरे में आलोचना कर सकते हैं, चौपाल पर कोस सकते हैं या कलम घिस सकते हैं. गली–मोहल्ले में बाहर निकलना और दूसरों को निकालना आपके बस में नहीं है. यानि आप दोगले हैं. व्यवस्था से परेशान तो हैं, पर दूसरों के घर में भगतसिंह देखने के चक्कर में हैं ताकि आपकी समस्याएं बिना झंझट लिए सुलझ जाएँ.
५. आपको लगता है कि आपके लिए अपना परिवार ज्यादा महत्वपूर्ण है. यह भूलकर भी कि इसी परिवार के लिए ही तो आपको आवाज उठाने को बार बार कहा जा रहा है. या हो सकता है कि आप अपने परिवार के आराम के लिए दूसरे परिवारों का बलिदान चाह रहे हैं.
इनमें से जो भी कारण समझ आये, उसे स्वीकार कर लीजिए. मन का बोझ उतर जाएगा. आप हल्के हो जायेंगे, छद्म अहंकार से पीछा छूटेगा और आपकी सरलता आपके मन को मजबूती देगी. मैदान में नहीं आने के झूठे बहानों से मुक्ति
मिल जायेगी. दूसरों में नुक्श ढूँढने के लिए कुतर्कों की जरूरत समाप्त हो जायेगी, क्योंकि जो मैदान में निकल जाते हैं, उन्हें नुक्श निकालने की फुर्सत ही कहां होती है. मेरे माने तो अपनी चुप्पी का कारण ढूँढना और उसे स्वीकार करना बड़े साहस का काम है. इसमें कमजोरी नहीं देखनी चाहिए. मैं आपकी चुप्पी तुड़वाकर आपको हिंसा करने के लिए नहीं कह रहा हूँ. मैं तो अहिंसा के रास्ते से ही पक्का हल निकाले जाने का हामी हूँ. हिंसक क्रांतियों से कभी स्थायी हल नहीं निकलते हैं, जैसा दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका में हुआ है. ऐसी क्रांतियों से तो डिक्टेटर या तानाशाह ही पैदा होते हैं. और वैसे भी अब किस विदेशी ताकत के चंगुल से देश को मुक्त कराना है. अब तो अपने ही लोगों को नियंत्रित कर व्यवस्था को विकास के अनुकूल बनाना है.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ ऐसा ही एक प्रयास है, जो आपकी जुबान को वांछित भाषा देगा, आपके विश्वास को बढ़ाएगा और आपके भय को कम करेगा. बड़ी सरलता से. बिना अनशन, बिना लीला किये. बिना ज्ञापन दिए, बिना धरना दिए. आपको कोई रास्ता नहीं रोकना है, किसी बस के शीशे नहीं फोड़ने हैं. आपको चंदा भी इकठ्ठा नहीं करना है. हमारी योजना इतनी व्यवहारिक जो है. यह आपके मनोविज्ञान पर आधारित है. आपके इतिहास को देखकर बनी है. आपके सामजिक– सांस्कृतिक परिवेश को देखकर बनी है. अपना थोड़ा सा समय, ध्यान, विश्वास और सहयोग देकर आप अपने हाथों से अपनी किस्मत को संवार सकेंगे. राजस्थान में यह प्रयास सफल होगा तो दूसरे प्रदेशों के लोग भी इस रास्ते पर आगे बढ़ेंगे और एक दिन भारत भर में विकास की स्थायी लहर चलेगी. ऐसी लहर जो जनता के जागरण और सक्रियता पर आधारित होगी, न कि किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर होगी.
वंदे मातरम !
*(थू बोल तो सरी, स्व. कान दान जी कल्पित की कविता से ली गई प्रेरक पंक्ति है, जो मुझे निरंतर उत्साहित करती है.वहीं, भारतीय जन मानस को समझने के लिए मैंने महान् दार्शनिक ओशो के विचारों का सहारा लिया है.)
pls give me ans.
जाट को मारे जाट
या फिर करतार
जाट की मरोड़
भला कब दे तोड़
नट विधा आजाविय
जट विधा कुनिआव