२. गलत धारणा- विकास का अर्थ है-सड़कों, नालियों, भवनों का निर्माण. पानी-बिजली-स्कूल-अस्पताल की सुविधाएं.
यह वही खेल है जैसे वोटतंत्र को लोकतंत्र कहकर असली बात को दबा दिया गया है.
विकास का पहला और महत्त्वपूर्ण अर्थ है कि हमारे औसत परिवार की, गाँव की, शहर की, प्रदेश की और देश की आमदनी इतनी हो कि मौजूदा महंगाई के दौर में भी हम आवश्यक सुविधाओं को आराम से अफोर्ड कर सकें. एक एक शब्द महत्त्वपूर्ण है. औसत परिवार, आमदनी और महंगाई !
औसत परिवार की आमदनी बढे तो विकास है, नहीं तो कुछ लोगों के मजे में विनाश और शोषण के बीज छुपे होते हैं.
आमदनी बढ़ेगी तो ही सुविधाएं कोई मायने रखेगी वरना उधार के पैसे हमारा परिवार या देश कब तक सुविधाएं जुटाएगा और वह भी स्वाभिमान के साथ.
महंगाई को नजरअंदाज करके आमदनी बढ़ने को ढिंढोरा पिटने का क्या फायदा ? बड़ी आमदनी को महंगाई खा गई तो आराम कहाँ हुआ ?
और यह आमदनी बढ़ेगी- उत्पादन से, जिसे भारत में झुठलाया जा रहा है. खेत का, फेक्टरी का उत्पादन बढ़ेगा तो ही घर में, देश में पैसा आएगा. वरना हवा में पैसा नहीं बनता है. सिंपल है.
जब अपनी आमदनी बढ़ेगी तो हम सड़कें, स्कूल , अस्पताल चाहेंगे जैसे बना लेंगे, जब चाहेंगे बना लेंगे. तब हमें इनके लिए जापान से या विश्व बैंक से उधार नहीं लेना पड़ेगा.
'अभिनव राजस्थान' में राजस्थान का उत्पादन बढ़ाना पहली प्राथमिकता है. इसी वजह से है क्योंकि हमें 'असली विकास' की दरकार है. हमें खेत को संभालना है, पशुओं को संभालना है, कुटीर उद्योगों को संभालना है. यह वर्तमान शासकों या शोषकों की तरह उधार के पैसे से मजे करके अगली पीढ़ी को गुलाम और मजदूर बनाकर नहीं छोडना है !
समझने की कोशिश कीजियेगा. हमारे मित्रों को तो यह समझना ही है. हम ही तो नया राजस्थान बनाने वाले हैं.
वंदे मातरम !