गलत धारणा- भारत में लोकतंत्र है . (share)
आप जब 'अभिनव राजस्थान अभियान' में काम करने वाले हैं तो आपको कुछ धारणाओं पर स्वयं भी मनन करना है. 'लोकतंत्र' ऐसी ही एक धारणा है.
अभी भारत में लोकतंत्र नहीं है. यह जिसे व्यवस्था में जमे लोग 'लोकतंत्र' कहते हैं, यह एक छलावा है. यह महज एक 'वोटतंत्र' है. इसका गलत ढंग से महिमामंडन करके हमें ठगा जा रहा है और बार बार दोहराने से हमें गलतफहमी भी हो रही है कि यहाँ लोकतंत्र है. तो फिर माजरा क्या है ?
सत्ता जब भारतीयों को दी गई तो व्यवस्था वही रही. पुरानी अंग्रेजी व्यवस्था या system. भारत के लिए एक शुद्ध भारतीय व्यवस्था की रचना टेढ़ा काम था और उसे टाल दिया गया, सत्ता प्राप्ति की जल्दी में, लालसा में. हमें बस एक अधिकार दिया गया कि हम इस व्यवस्था में काम करने वालों को चुन सकते हैं- वोट तंत्र.
लेकिन यह तंत्र हमारे नियंत्र में काम करे, हमारे हितों के लिए काम करे, इसकी पुख्ता व्यवस्था नहीं की गई. यानी 'लोकतंत्र' स्थापित करने का काम अधूरा रह गया. अब इस स्थिति में जो चालाक हैं, पैसे वाले हैं, वे तंत्र पर वैसे ही कब्ज़ा जमकर बैठ गए हैं, जैसे किसी प्लाट पर.
2005 में पहली बार भारत में लोकतंत्र की आहट, पदचाप सुनाई दी है और अरुणा राय को उसका श्रेय जाता है. सूचना के अधिकार ने संभावना पैदा की है कि हम लोकतंत्र स्थापित कर पायें.
लेकिन सत्ता में जमे लोग, व्यवस्था में मलाई खाते लोग कभी नहीं चाहेंगे कि इस अधिकार का प्रयोग जनता करे और तंत्र की मालिक बन जाय, जैसा संविधान में लिखा है. वे इस अधिकार के प्रयोग को बकवास कह रहे हैं, useless कह रहे हैं, black-mailing कह रहे हैं, विकास में रोड़ा कह रहे हैं. और प्रचार माध्यम भी चुप बैठे हैं. न्यायपालिका तो बल्कि विरोध में है !
ऐसे हालात में 'अभिनव राजस्थान अभियान' एक अलग रास्ता है जो सांप को मार देगा और लाठी भी नहीं तोड़ेगा !
आपको हर उस मंच पर यह बात कहना है कि अभी भारत में लोकतंत्र नहीं है. लोकतंत्र अब आएगा. राजस्थान में, भारत में.
वंदे मातरम !