जनता के लिए
डॉ.अशोक चौधरी 94141-18995
मैं समझ सकता हूँ कि आप शीर्षक से ही चौंक जायेंगे। लेकिन चौंकाना ही मेरा उद्देश्य नहीं है। कि कोई ऊटपटाँग बात कहूँ और पाठक आकर्षित होकर पढ़ ले। नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है। ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में कहां इतना समय है, चौंकाने के लिए, हल्ला मचाने के लिए, तमाशे के लिए। इस अभियान में तो गंभीरता ही गंभीरता है, जिम्मेदारी ही जिम्मेदारी है। तो फिर ऐसा क्यों कह रहा हूँ कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है इस देश में और वह भी इस समय जब हर मंच से इसके विरुद्ध आक्रोश जाहिर किया जा रहा है ? क्यों कह रहा हूँ यह विपरीत बात ? नहीं मैं विपरीत बात नहीं कह रहा हूं, मैं तथ्य बता रहा हूँ, गहराई के तल में झांक कर कह रहा हूं।
मैं कह रहा हूं कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं, जनता के लिए। जनता इस मुद्दे को महत्त्व नहीं दे रही है। कुछ बुद्धिजीवी(?), मीडिया के कुछ लोग, चौपालों पर चक्कलस करते कुछ लोग और सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ने के आदि लोग ही इसे गंभीर मुद्दा मान कर चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि यह देश की प्रमुख समस्या है। वे जब बोलते हैं तो जचते भी हैं, कवियों को इन बातों पर तालियाँ भी मिल जाती हैं। बोलने को तो सफ़ेद चोले-पाजामे पहने भारी शरीर वाले नेता भी भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल जाते हैं, बड़ी सफाई से, यह जानते हुए कि वे खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हैं ! यही तो मजा है इस देश में कि लोग मंच से जो भी बोलते हैं, उसे जनता नाटक समझ लेती है, अभिनय समझ लेती है। इसलिए नेताओं को भी इस दोगले व्यवहार से डर नहीं लगता। उन्हें पता है कि सभा में से कोई भी उठकर उनका हिसाब किताब नहीं मांगेगा। हालाँकि राजनीतिक पार्टियाँ और खासकर विपक्षी पार्टियां, बहुत ही संभल कर इस विषय पर बोलती हैं। सावधानी से, सत्तापक्ष के साथ स्थापित मर्यादा(?) में। पत्थर फेंकते वक्त उन्हें अपने शीशे का मकान याद आ जाता है और वे पत्थर की बजाय फूलों से वार करने में ही बेहतरी समझते हैं। जैसे क्लास में बच्चे कागज़ के हवाई जहाज बनाकर फेंकते हैं न, स्कूल में !
जनता के लिए यह मुद्दा नहीं है। अगर ऐसा होता तो आजादी के बाद के अब तक के सबसे बड़े खुलासों के बाद जनता सड़कों पर आ जाती। संसद में नोट लहराए गए, सांसदों को सवाल पूछने या नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह को वोट के बदले पैसे दिए गए, कुछ मंत्रियों को सेम्पल के तौर पर जेल भेज गया, टू जी, सी डब्ल्यू जी और कोयला के कांड हुए। नेहरु परिवार की आकूत संपत्ति बताई गई। इतना कुछ हो गया पर जनता चुपचाप अपने काम पर लगी रही। बाहर नहीं निकली। बाबा और अन्ना चिल्लाते रहे कि बाहर निकलो, क्रांति करो, जेल भरो, दूसरी आजादी लानी है, पर जनता के कानों पर जूँ नहीं रेंगी। रॉबर्ट वाड्रा की संपत्ति के कागज़ अरविन्द केजरीवाल ने लहराए, पर जनता हंस कर टाल गई। केजरीवाल या डॉ. स्वामी अगर वे कागज भी बता देंगे जिनमें स्पष्ट होगा कि सोनिया और राहुल के पास अम्बानी से भी ज्यादा पैसा है, तो भी जनता को क्या। पत्ता भी नहीं हिलेगा। इसलिए मैं कहता हूँ कि भ्रष्टाचार इस देश की जनता के लिए आज मुद्दा नहीं है। लेकिन हम जनता की इसमें गलती निकालकर खुश हो जाएं, तो भी गलत होगा। क्योंकि जनता और हम अलग-अलग नहीं हैं। हम भी उसमें शामिल हैं। अख़बारों में कॉलम लिखनेवाले या चेनल पर बहस करते विद्वान अक्सर यही करते हैं। जनता यह नहीं करती, जनता वह नहीं करती। वे खुद को जनता से अलग मान कर लिखते-बोलते हैं। जैसे वे तो अपनी गली-मोहल्ले में बड़ा तीर मारते हों। इसलिए जनता के लिए मुद्दा क्यों नहीं है, हमें इसे जानना होगा। यह मान कर कि हम भी इस जनता में शामिल हैं !
पहला कारण है, हमारी एक हजार साल की गुलामी, जिसने हमारे आत्मविश्वास को तोड़ कर रख दिया है। आत्मा तक गुलामी घुस चुकी है, खून की को तो बात छोड़िये। खून में गुलामी होती तो नई पीढ़ी में नए खून में बाहर निकल जाती। ऐसी गुलामी पसंद और डरी हुई कौम को कोई एक दम से विद्रोह करने को कहेगा तो अपनी हंसी ही उड़वायेगा। ऐसे जनता बाहर नहीं आयेगी। कैसे आयेगी ? ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हम इसीलिये जनता को धीरे धीरे हिम्मत करने को कहेंगे। मनोचिकित्सक जैसे साँप का डर भगाते हैं न, वैसे ही। पहले प्लास्टिक का सांप हाथ में देते हैं, मरीज छूकर देखता है, तो डर थोड़ा कम होता है। ऐसे करते-करते एक दिन वह मरीज ज़िंदा सांप को हाथ में ले लेता है ! हम पहले हमारी साथियों को ‘राज’ के थोड़ा नजदीक ले जायेंगे। कार्यालय में घुसना सिखाएंग, सरकारी कागज को पढ़ना बताएँगे। फिर आगे बढ़ेंगे।
दूसरा कारण, जो जनता की उदासीनता का है, वह है- अविश्वास। कई बार धोखे होने के कारण, उसे अब किसी पर भी विश्वास नहीं हो पा रहा है। आप कांग्रेस को बेईमान कहते हैं तो जनता के सामने भाजपा के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं की तस्वीरें उभर जाती हैं। उसे समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी दिखाई दे जाती है। अब ऐसा लगता है कि किसी भी दिन किसी भी पार्टी के बड़े नेता की बेईमानी अखबार में छप सकती है। अभी तक नहीं छपी है तो उसकी किस्मत है या मीडिया और विपक्ष से साँठ-गाँठ अच्छी है। अब अधिकतर एन जी ओ भी अपनी साख खो चुके हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के विरूद्ध कोई भी प्रदर्शन करता है तो उस पार्टी या संगठन के कार्यकर्ताओं के अलावा कोई बाहर नहीं आता है। तो फिर ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हम क्या नया करेंगे ? इस अभियान में हमारे साथी पहले जनता का डर खत्म करेंगे और फिर जनता की जानकारी को बढ़ायेंगे। निडरता के साथ जनजागरण का प्रकाश जब फैलेगा तो अविश्वास का अँधेरा छंटने लगेगा। तब जनता बाहर आयेगी और ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ जनता को मंच देगा, जिस पर जनता अपने आपको व्यक्त करेगी। विकास की भूख को व्यक्त करेगी। जनता कहेगी कि उसे विकास चाहिए। भ्रष्टाचार नहीं चाहिए। ध्यान दें कि इस प्रक्रिया में जनता पहले बाहर आयेगी और फिर हम बाहर आयेंगे। बांस-बल्लियाँ लिए हुए ! मंच को सजाने। ऐसी निडर और जागी हुई जनता की अभिव्यक्ति ही नए राष्ट्र के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगी। सही तरीका यही होगा।
तीसरा कारण है भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण। जब से पंचायती राज, सर्वशिक्षा, मिड डे मील और नरेगा आये हैं, भ्रष्टाचार भी गुटखे की तरह गांव-गांव, गली-गली में पहुँच गया है। यह सत्ता का विकेन्द्रीकरण न होकर भारतीय शैली में भ्रष्टाचार का विकेन्द्रीकरण हो गया है। नरेगा के मजदूर से लेकर प्रधानमंत्री के कार्यालय के अधिकारी तक भ्रष्टाचार, एक सुरंग के माध्यम से जुड़ गया है। आम जनता इस सुरंग के ऊपर चलती रहती है, जो महसूस तो हर पल होती है, पर दिखाई नहीं देती है। भ्रष्टाचार की खुली नालियां आजकल कम रह गई हैं। मीडिया और न्यायपालिका ने बंद करवा दी हैं। हां, मीडिया का जब भी मन करता है, तब इस सुरंग में छेद कर जनता को अपने स्वार्थ के हिसाब से कुछ-कुछ दिखा देता है। एक झलक, ताकि सुरंग में चलने वाले यात्री मीडिया का भी ध्यान रखें और उससे डरते रहें। यानी अब इस हमाम में नंगों की संख्या बढ़ गयी है ! ऐसे में जनता का विद्रोह तो गांव-गली में ही दब जाता है। छोटी रस्सी को तोड़ना कठिन भी होता है। लंबी रस्सी आसानी से टूट जाती है। नरेगा का मजदूर, पोषाहार या भवन निर्माण का प्रभारी अध्यापक, नगरपालिका का पार्षद, अध्यक्ष, प्रधान या सरपंच-पटवारी-ग्रामसेवक तो बिलकुल छाती पर ही मूंग दल रहे होते हैं। उनसे लड़ना कठिन होता है। भ्रष्टाचार का नाम लेते ही गांव-गली में ही ये लोग घूरने लगते हैं ! तो क्या करें इनका ? ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में क्या इलाज है, इनका ? अभिनव ही इलाज होगा जी। जब हमारी जनता निडर होगी, जगी हुई होगी तो जो प्रकाश फैलेगा, उससे स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। चोरियां करने वालों को मुंह छिपाते या हाथ उठाये आप देखेंगे। एक आम माफीनामे की घोषणा जनता करेगी। आज से सब बंद करो। अपना काम ईमानदारी से करो। जो बीत गया उसे भूल जाओ। इसके बाद भी जो इधर उधर छुपेंगे, ऐसे मच्छर हमारे ‘यज्ञ’ के धुंए के कारण बाहर आ जायेंगे। फिर भी कुछ नकटे मच्छर बचने की कोशिश करेंगे तो इस यज्ञ के धुंए में दम तोड़ देंगे।
निष्कर्ष यह है, सार यह है कि जनता के लिए भ्रष्टाचार मुद्दा नहीं है, आज। आज के मुद्दे हैं- कम आमदनी, महँगाई और बेरोजगारी। जिससे हर आम परिवार जूझ रहा है। और उस विषय पर कोई भी दल या संगठन गंभीरता से नहीं बोल रहा है। भ्रष्टाचार के इस हल्ले से एक साधारण परिवार अपनी आमदनी में बढ़ोतरी नहीं देख पा रहा है। कहीं कनेक्शन नहीं बन पा रहा है। इसलिये वह उदासीन है। उसे तो घर में बैठी कंवारी लड़की, बेरोजगार लड़का और टूटा फूटा घर दिखाई दे रहा है, खाली बैंक अकाउंट दिखाई दे रहा है। उसे पड़ोसी के घर में खड़ी गाडियां दिखाई दे रही है ! इसलिए इन हवाई बातों पर उसका ध्यान नहीं जा रहा है। ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का इसी वजह से मुख्य मुद्दा है-उत्पादन बढ़ाना। खेत और घरेलू उद्योग का उत्पादन बढ़ाना। इसी से आमदनी बढ़ेगी, महंगाई और बेरोजगारी कम होगी। भ्रष्टाचार तो हमारे लिए एक सरदर्द की तरह का लक्षण है जिसे हम पहले मिटा देना चाहते हैं, चलते चलते, ताकि इस दर्द से राहत पाकर जनता विकास के असली मुद्दे पर बात कर सके। उसे विकास की बात करने का विश्वास हो सके।
मित्रों, आपसे आग्रह है कि 30 दिसम्बर के मेड़ता सम्मेलन में अवश्य आएं ताकि ‘अभिनव राजस्थान’ के निर्माण का सपना पूरा करने में निर्णायक कदम हम उठा सकें। वंदे मातरम्
मुझे लग रहा है सर कि आज के माहौल को देखकर आपको भी कॉमरेड होना ही पङेगा । यह मैं नहीं आपके वक्तव्यों में झलक रही कुछ कुछ आक्रामकता से अन्दाजा हो रहा है । खैर जो भी हो , आपके विचार मुझे बहुत पसंद है ।
कॉमरेड संज्ञा रूस चीन की साम्यवादी सत्ता के भौतिकतावादी मार्क्स दर्शन से उपजी है जबकि लेखक निरंतर सामाजिक, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय मूल्यों के महत्त्व को इंगित करते हुए आंदोलन के स्थान पर अभियान की तरफ ले जाने की बात कह कह रहे हैं। राज नारायण जी शर्मा को इसमें आक्रामकता के दर्शन हो रहे हैं तथा वामपंथ दिख रहा है जबकि वाम या दक्षिण से ऊपर अद्वैत भाव को भयमुक्ति का साधन बनाकर गणराज्य व्यवस्था का अभिनव स्वरूप कैसे बनेगा का मार्ग दर्शाया गया है। फिर भी राज नारायण जी शर्मा धन्यवाद के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने प्रतिक्रिया दी है। गणराज्य परंपरा में संवाद पक्ष का अपना ही महत्त्व है।
it`s amazing………..
i don`t hv words 4 dis………
really SIR G did paper is so good n also different……..
इस सहजता और सरलता के लिए कोई शब्द नहीं है मेरे पास। बस ऐसा लगता है, जैसे हम यह बातें सिर्फ सोचते हैं और आप लिखते ही नहीं बल्कि उनको सच करने में जुटे हैं। आपके जज्बे को सलाम है सर।
maine aaj tak logon ko nek karyo par bolte or likhte hue hi dekha he……par aapko nek karya karte hue bhi dekh raha hu…….salam ashok sir