जनजागरण का एक सफल प्रयोग
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में हमारा मुख्य नारा है- आपां नहीं तो कुण?आज नहीं तो कद ?
इस बात को कई मंचों से दूसरे रूप में भी कहा- सुना जाता रहा है. कागजों पर लिखा-पढ़ा भी जाता है. वक्ता कहते हैं, लेखक लिखते हैं, कि जब तक जनता में जागृति नहीं आयेगी, हमारी समस्याएं हल नहीं होंगी, भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा, देश का विकास नहीं होगा. लेकिन वक्ता महोदय, लेखक महोदय, जो अधिकाँश ‘विद्वान’ ही होते हैं, इस जनता में स्वयं को शामिल नहीं मानते हैं. वे कहते हैं, हमारा फर्ज था, जनता को चेताना, जनता को होशियार करना. हमने फ़र्ज़ निभा दिया, लेकिन जनता ही नाकारा है, तो क्या हो सकता है. अपनी अकर्मण्यता को छुपाने के लिए गढे तर्कों से वे एक गहरी आत्मतुष्टि भी पा जाते हैं.
परन्तु मित्रों, ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में तो रणनीति ही दूसरी है. यहाँ तो खुद मर कर मोक्ष प्राप्त करने का लक्ष्य हमने तय कर रखा है. अब जबकि अभियान की औपचारिक शुरुआत 30 अक्टूबर 2011 से हो ही चुकी है, तो फिर किसका इन्तजार करें. किस भगत सिंह को आवाज दें कि वो फिर से जन्म लें, और हमारी आजादी को बचाने के लिए फिर से बलिदान दे. किस महाराणा प्रताप को फिर बुलाकर अपने स्वाभिमान की रक्षा करवाएं. ‘मायड थारो पूत कठे, महाराणा प्रताप कठे’ गीत गाने का अर्थ महाराणा के प्रति सम्मान नहीं है. हमारा निकम्मापन है. सम्मान होता तो हम काम पर न निकल पड़ते ? सम्मान होता तो हम भारत माता की इज्जत को नीलाम होते देख पाते? खुले आम देश में लूट मची देख पाते ? इसलिए मित्रों, अभिनव राजस्थान में हम उन महान आत्माओं के प्रति सच्चा सम्मान दिखाएँगे, उनके बताए मार्ग पर चलेंगे, उनसे सच्ची प्रेरणा लेंगे. केवल उनके गीत ही नहीं गायेंगे.
मेड़ता शहर में रेल्वे की समस्याएँ
इसी भावना के अनुरूप हमने हमारे जनजागरण के पहले प्रयोग के रूप में एक स्थानीय समस्या को चुना, जिससे आमजन बरसों से परेशान है. यह समस्या हमारे कस्बे मेड़ता शहर यानि मीरां नगरी में रेल्वे से सम्बंधित है. आपको ध्यान दिला दें, मेड़ता शहर को मेडता रोड़ से जोड़ती एक छोटी लाईन है, जो 15 किमी लंबी है. इस लाईन पर एक डिब्बानुमा ‘रेल बस’ चल चलती है. कभी यहाँ पर चार डिब्बों की ट्रेन चलती थी, लेकिन रेल्वे ने कम सवारियों की दुहाई देकर उस सुविधा को रेल बस के नाम से समेट दिया. लेकिन समय के साथ मेड़ता शहर और आसपास के क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ी, तो दूसरी ओर मेड़ता रोड़ से होकर जाने वाली रेलगाड़ियों की संख्या भी बढ़ गयी. नतीजन रेल बस से सफर करने वाले यात्रियों की संख्या भी कई गुना हो गयी. अब हालत यह है कि रेल बस की 75 सवारी की क्षमता के मुकाबले लगभग 250 लोग सफर करते हैं. इस नारकीय सफर में बूढों, बच्चों और महिलाओं की तो हालत ही खराब हो जाती है. जिनके पास अपने साधन हैं, वे तो इस रेल बस से सफर करने के बारे में सोचते भी नहीं हैं. वहीँ अनेक लोग बसों में अधिक किराया देकर भी इससे बचते हैं. ऐसे में रेल प्रशासन क्या कर रहा है ? वह तो इस रेल बस को ही बंद करने की फ़िराक में है ताकि न रहे बांस और न बजे बाँसुरी.
समस्या का दूसरा और पेचीदा पक्ष मेड़ता-पुष्कर रेल लाईन के न जुडने का है. 1905 में रेल लाईन मेड़ता शहर तक आई थी. तब से आज तक 106 वर्ष बीत गए हैं. एक इंच भी लाईन आगे नहीं बढ़ी है. कई बार सर्वे हो चुके हैं, लेकिन शायद बंगाल-बिहार के आगे राजस्थान के नेता कमजोर पड़ते होंगे. वरन अब तक यह लाईन जुड जाती और राजस्थान में आजादी के बाद की रेल्वे की यह सबसे बड़ी उपलब्धि होती. आपको बता दें कि इस लाईन के जुडने से राजस्थान के उत्तरी क्षेत्र (गंगानगर, हनुमानगढ़ व बीकानेर) मध्य एवं दक्षिणी क्षेत्र (अजमेर, भीलवाडा व उदयपुर) से सुगमता से जुड जायेंगे. वहीँ राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र (जोधपुर व बीकानेर) देश के कई प्रान्तों- मध्यप्रदेश, आँध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिसा आदि से अजमेर-रतलाम के रास्ते सीधे जुड जायेंगे. केवल 56 किमी का यह टुकड़ा जुडने से राजस्थान में व्यापक बदलाव आएंगे. यात्री सुविधाएँ बढेंगी तो माल परिवहन भी सुगम और सस्ता होगा. देशी और विदेशी पर्यटन भी बढ़ेगा. लेकिन राजस्थान के नेताओं का दिल्ली में आज भी वही हाल है, जो अंग्रेजी या मुगलिया दौर में था. केवल हाजिरी बजाने का. ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण परियोजना फाइलों में अटकी पडी है. मेड़ता का स्थानीय स्वार्थ यह है कि इस लाईन के जुडने पर मेड़ता शहर एक महत्त्वपूर्ण स्थान बन जाएगा. यहाँ का विकास तेजी से होगा तो भारत के पर्यटन के नक़्शे पर भी यह स्थान मीरां की कर्मभूमि होने के कारण उभर सकेगा.
‘अभिनव राजस्थान अभियान’ की पहली आमसभा
ऐसा नहीं है कि इस समस्या पर हमारा ही ध्यान गया है. बातें हमारे शहर में रोज होती हैं. कोई भी नागरिक रेल बस से यात्रा करके लौटता है, तो रेल्वे को खूब कोसता है. चौकियों और चौपालों पर लोग कहते हैं- क्या करें शहर का कोई धणी धोरी नहीं है, कोई भी इस समस्या को हल करने में रुचि नहीं लेता है, आदि-आदि. जैसा कि भारत में आम है, इस ‘कोई’ में भी शिकायत करने वाले लोग खुद को शामिल नहीं करते हैं. यह ‘कोई’ और हो तो मजे हो जाएँ. खुद को कुछ नहीं करना पड़े ! खैर जी, ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के कार्यकर्त्ताओं ने इस मामले में हुंकार भरी-आपां नहीं तो कुण ? आज नहीं तो कद ? जनजागरण शुरू कर दिया गया और शहर के नागरिकों से एकजुट होकर समस्या को खुद सुलझाने का आव्हान कर दिया गया. अखबार, पेम्पलेट, एस एम एस और सभी जातियों -समाजों एवं संस्थाओं के अध्यक्षों के नाम व्यक्तिगत पत्र. फिर दो दिन हमारे कार्यकर्त्ताओं का सघन जनसंपर्क. एक आम सभा रखी गयी, 27 नवंबर 2011 के दिन, रविवार को. स्थान रखा गया, रेल्वे स्टेशन के सामने गाँधी चौक. एक नया प्रयोग यह किया गया कि आम सभा का समय भी निश्चित किया गया- शाम 5 से 7 बजे. समय की कीमत को समझते हुए. ऐसा नहीं कि 5 बजे की सभा 7 बजे शुरू हो, और 9-10 बजे खत्म हो.
आप ताज्जुब करेंगे, कि सभा ठीक सवा 5 बजे शुरू हो गयी. लोग तो 4 बजे से ही आना शुरू हो गए थे. 5 बजे तक तो पूरा सभास्थल खचा-खच भर गया था . मंच पर स्थानीय विधायक, ब्लॉक कॉंग्रेस अध्यक्ष, नगर भाजपा अध्यक्ष, नगर कॉंग्रेस अध्यक्ष, बार एसोसिएशन अध्यक्ष और व्यापार मंडल अध्यक्ष आसीन थे. मंच के पास एक ही चित्र था, भारत माता का. सीमित वक्ता रखे गए. सभी वक्ताओं ने एक स्वर में इस रेल बस की समस्या के समाधान पर अपने विचार रखे. अपने सहयोग का भरोसा दिया. आगे की रणनीति तय की. एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाया. अंत में सभास्थल पर ही रेल्वे और स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों को शहर के नागरिकों की तरफ से पत्र दिया गया. ठीक सवा 7 बजे यह कार्यक्रम संपन्न हो गया.
आमसभा का प्रभाव
अब जानिये कि क्या विशेष रहा इस प्रयोग में.
- एक लंबे अरसे बाद मेड़ता शहर के नागरिक किसी समस्या के समाधान के लिए एकजुट हुए. लगभग 1500 नागरिकों का इस तरह से जुटना हर किसी को अचंभित कर रहा था. इस एकजुटता से नागरिकों का मनोबल बढ़ा, यह साफ़ नजर आ रहा था. ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के बैनर तले समूचा शहर एक परिवार सा लग रहा था.
- कार्यक्रम का संपूर्ण खर्च स्थानीय गाँधी चौक के व्यापारियों ने किया. यह एक नया अनुभव था, जब शहर के लिए संघर्ष करने की भावना बलवती हुई. ये व्यापारी और ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के कार्यकर्त्ता जिस प्रकार दौड दौड कर उपस्थित नागरिकों को चाय पिला रहे थे, वह नजारा देखते ही बनता था.
- सभा के बाद स्थानीय सांसद ने अपना पूरा समर्थन जनभावना को देते हुए दिल्ली में रेल मंत्री से इस सम्बन्ध में बात की. उन्होंने रेल्वे की परामर्श समिति में भी यह मुद्दा जोर शोर से उठाया, जिस पर उन्हें सकारात्मक आश्वासन मिला. एक गौण हो चुका विषय जनसमर्थन से पुनः महत्त्वपूर्ण हो गया.
- एक हफ्ते बाद एक प्रतिनिधिमंडल शहर के नगरपालिका अध्यक्ष के नेतृत्व में जोधपुर जाकर संभागीय रेल प्रबंधक से मिला. रेल प्रबंधक ने तथ्यों और आंकड़ों से प्रभावित होकर रेल बस के स्थान पर डी एम यू चलाने का प्रस्ताव तैयार करने का पक्का भरोसा दिया. वैसे भी यह पहला मौका था, जब मेड़ता शहर से चलकर नागरिक जोधपुर तक रेल्वे की समस्या के लिए गए थे.
- अभियान के सकारात्मक रवैये ने सभी को प्रभावित किया. सभी दलों के प्रतिनिधि खुल कर आगे आये. प्रशासन भी इस तरह के जनजागरण से प्रभावित हुआ. अधिकारपूर्वक लेकिन जिम्मेदारी से विषय को रखने का यह प्रयोग, जनता और शासन के बीच सेतु बन गया.
हमारे प्रयास जारी हैं और इस समस्या के समाधान तक सतत जारी रहेंगे. चित्रों में आप इस सभा की झलक देख सकते हैं और साथ ही अभिनव राजस्थान अभियान का अपना सतरंगी प्रतीक चिन्ह (लोगो) भी आपको लुभाएगा. इसलिए कि आप भी अपने कस्बे या गांव में किसी समस्या को लेकर अभिनव राजस्थान अभियान की रणनीति और सहयोग का उपयोग कर सकते हैं. लेकिन सावधानी इतनी सी कि आपको जनजागरण के लिए घर से बाहर निकल कर गलियाँ नापनी पड़ेगी, मन निर्मल रखना पड़ेगा और समर्पण का भाव आपकी आँखों से दिखना चाहिए.