राजस्थान के वास्तविक विकास को समर्पित ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ 30 अक्टूबर को मेड़ता शहर में सैकड़ों प्रबुद्ध नागरिकों की उपस्थिति में प्रारंभ हुआ है. प्रदेश के उत्पादन को बढ़ाने के लिए आवश्यक जनहितेषी नीतियों एवं योजनाओं के निर्माण के लिए यह अभियान प्रदेश के सभी अंचलों में चलेगा. लेकिन किसी एन जी ओ जैसे ढकोसले से दूर इस अभियान में जिम्मेदार नागरिक अपने दम पर ही कार्य करेंगे. किसी दूसरे देश की मदद या किसी शोषक कंपनी के चंदे से अभियान को नहीं चलाया जायेगा. बल्कि यह अभियान तो सहयोगियों के स्वयं के संसाधनों पर आधारित और सादगी भरा होगा. अभियान में कोई औपचारिक संगठन या पद प्रणाली भी नहीं होगी. हाँ, कुछ मित्र एक ओपन एंडेड सिस्टम में, खुले भाव से अभियान की दिशा और दशा पर नजर रखेंगे.
प्रथम चरण में इस अभियान के तहत मेड़ता क्षेत्र के ग्यारह गांवों में सर्वेक्षण का कार्य जल्दी ही शुरू किया जा रहा है. इन गांवों में प्रत्येक परिवार से मिलकर शिक्षा, समाज, कृषि और कुटीर उद्योगों के बारे में चर्चा की जायेगी. इन विषयों पर चल रही सरकारी नीतियों के बारे में उनके विचार जाने जायेंगे. अभियान के कार्यकर्ता घर घर जाकर यह पता करेंगे कि सरकारी नीतियां धरातल पर कितनी खरी उतरती हैं. यह पता किया जायेगा कि आमजन की इन क्षेत्रों के बारे में क्या अपेक्षाएं हैं और ये नीतियां उन अपेक्षाओं के कितनी अनुरूप हैं.
शिक्षा के क्षेत्रमें ये प्रश्न पूछे जायेंगे –
1. क्या आप अपने बच्चों के लिए मुफ्त में शिक्षा चाहते हैं या कक्षा के अनुरूप 100 (प्राथमिक), 200 (माध्यमिक), 500 (उच्च माध्यमिक) या 1000 रुपये (महाविद्यालय) एक महीने के देकर अच्छी शिक्षा चाहते हैं ? क्या आप चाहते हैं कि इतनी रकम देकर प्रत्येक कक्षा पर एक अध्यापक हो और नियमित अध्ययन की सुचारू व्यवस्था हो ? या आप मुफ्त में जैसी भी मिले, वैसी शिक्षा चाहते हैं ?
2. क्या आप चाहते हैं कि आपके बच्चों को बिना पढ़े ही आठवीं तक पास कर दिया जाए ? इससे बच्चों की नींव कमजोर रहने की आपको कोई परवाह नहीं है या यह निर्णय आपसे बिना पूछे ही कर दिया गया है ?
3. सरकार सभी बच्चों को स्कूल भेजने को कहती है, अध्यापक भी शत-प्रतिशत नामांकन के लिए दौड़भाग करते रहते हैं, फिर भी आप में से कई अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं. क्या आपको इसकी फिक्र नहीं है या आपके अपने कारण हैं ? क्या इसका कोई दूसरा तरीका हो सकता है जिससे नामांकन भी पूरे हो जाएँ और आपकी समस्या भी दूर हो जाए ? क्या आपको लगता है कि स्कूल की छुट्टियाँ बरसात के दिनों में हों जिससे बच्चे खेती की सीजन के दौरान आपकी मदद कर सकें ?
4. क्या आप अपने बच्चों को घर पर ठीक से खिलापिला नहीं सकते हैं , जिसके कारण सरकार को उनके लिए स्कूल में खाना पका कर खिलाना होता है ? क्या आपको लगता है कि स्कूलों में पोषाहार के कारण पढाई का स्तर गिरा है ?
समाजसे जुड़े इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढें जायेंगे –
1. क्या आप वर्तमान सामाजिक रीति रिवाजों पर होने वाले खर्च से खुश हैं या मंहगाई के युग में ये खर्चे आपकी कमर तोड़ रहे हैं ? कौन कौन से खर्चे आपको अनुचित लगते हैं ?
2. क्या आप अपने घर के समारोह में प्रत्येक जान पहचान वाले व्यक्ति को बुला कर भीड़ करने को ठीक मानते हैं या आपके अनुसार केवल अभिन्न मित्रों और रिश्तेदारों को ही आमंत्रित करना चाहिए ?
3. क्या आप इन खर्चों के कारण जमीन बेचने को ठीक मानते हैं ?
कृषिसे जुड़े इन मुद्दों पर ग्रामीणों की राय जानी जायेगी –
1. क्या खेती वाकई में घाटे का सौदा है ? अगर ऐसा है तो आप इसके लिए किन कारणों को जिम्मेदार मानते हैं ?
2. आपके माने सरकार ऐसा क्या कर दे कि खेती के व्यवसाय में आपको अच्छा लाभ मिल सके और आप अपने परिवार के साथ समृद्ध जीवन जी सकें ?
कुटीर उद्योगोंसे जुड़े परिवारों यथा कुम्हारों, सुथारों, रैगरों, दर्जियों तथा लुहारों से पूछा जाएगा कि –
1. अपने धंधों के चौपट होने के पीछे आप लोग क्या कारण मानते हैं ? कच्चे माल की कमी या उचित मूल्य और बाजार की कमी ? या कुछ और ? क्यों आपका अपने पैतृक धंधों से मोहभंग हो रहा है ?
2. आपके अनुसार सरकार क्या कर दे कि आपके धंधे फिर चल पड़ें ?
आप कह सकते हैं कि इन प्रश्नों के जवाब तो हम सब को मालूम हैं. नहीं हैं. हमें नहीं पता है कि गांव में रह रहा एक ब्राह्मण, जाट, राजपूत, गुर्जर, मीणा या मेघवाल परिवार कैसी जीवन द्रष्टि रखता है, क्या सपने देखता है, क्या परेशानियां झेलता है, किस घुटन से दो चार होता है. हम अपनी द्रष्टि से उनके जीवन को देखते हैं, जो अक्सर गलत साबित होती है. और जब ऐसी ही समझ, नीतियां और योजनाएं बनाने वाले रखते हैं तो उसके परिणाम निराशाजनक आते हैं. फिर उन नीतियों के सही क्रियान्वित नहीं होने का रोना रोकर बुद्धिजीवी अखबार भरते रहते हैं और जनता निराशा से इन बे-सिरपेर की बातों को पढती रहती है .‘अभिनव राजस्थान अभियान’ का मानना है कि नीतिकारों ने अपने मन से नीतियां बना दीं, योजनाएं बना दीं. उनकी नीयत पर संदेह तो उचित नहीं है. हो सकता है कि वे जनहित में ही सोचकर नीतिनिर्माण करते रहे होंगे. लेकिन नीतिनिर्माण की उनकी प्रक्रिया पर संदेह अवश्य होता है. पता नहीं किस बच्चे के माँ बाप ने उनको कहा है कि हमें मुफ्त में शिक्षा चाहिए, वह चाहे जैसी भी हो. कौनसे माँ बाप उनको यह कह गए कि घर में खाने को नहीं है, कुछ खाने को दोगे तो हमारे बच्चे स्कूल आ जायेंगे. आप अचंभित होंगे यह जानकर कि जिन्हें सरकार ने गरीब जानकर उन पर ‘दया’ खा रखी है, वे इन नीतियों पर क्या विचार रखते हैं. लेकिन इन प्रश्नों के उत्तर उनसे जुड़े परिवारों से जानने के अभी तक प्रयास नहीं किये गए हैं. आजाद भारत की यह सबसे बड़ी समस्या बन गयी है.
यहाँ यह भी स्पष्ट करते चलें कि इस सर्वे का उद्धेश्य केवल मीन मेख निकालना या आलोचना करना नहीं है, बल्कि इस सर्वे के मध्यम से अभियान में जनता और शासन के बीच सेतु निर्माण का ही कार्य होगा. वहीँ दूसरी ओर सुनी सुनायी या हवाई बातों पर भी हम यकीन नहीं करना चाहते हैं, बल्कि हम तो हकीकत के धरातल पर अपनी धारणाएं बनाना चाहते हैं. हमारा यह भी मानना है कि केवल योजनाओं के क्रियान्वन में खामियां निकाल कर हम मूल विषय से भटक रहे हैं. हाँ, सही क्रियान्वन योजना की सफलता के लिए आवश्यक है, परन्तु योजना का निर्माण ही अगर गलत आधार पर हुआ है, तो सही क्रियान्वन भी अपेक्षित परिणाम नहीं देगा. मसलन नरेगा योजना का निर्माण. यह इतने गलत आधार पर हो गया है कि लाख झूठे प्रचार के बावजूद भी यह योजना गरीबी और बेरोजगारी कम करने की दिशा में विशेष सफल नहीं हो पाई है. इसका कारण असफल क्रियान्वन या भ्रष्टाचार नहीं है, जैसा कहा जा रहा है. आप भी सोचिये कि नरेगा में मिलाने वाली अधिकतम राशि 11900 रुपये भी अगर किसी परिवार को एक वर्ष में मिल जाए , तो उसकी कितनी आवश्यकताएँ पूरी हो जायेंगी. लेकिन सभी प्रचार माध्यम इसमें भ्रष्टाचार के पीछे पड़ गए हैं और यह सोचते हैं कि उन्होंने अपनी बुद्धिमता का कमाल कर दिया है. योजना ही गलत है, इस पर बहुत कम बोला और लिखा जा रहा है, क्योंकि प्रचार माध्यमों को मनचाहे विज्ञापन मिल रहे हैं. लगभग ऐसा ही हाल मिड दे मील, कृषि विकास योजना, लघु एवं कुटीर उद्योग विकास योजना आदि सैंकडों योजनाओं के साथ हुआ है. एक ही बात दोहराई जा रही है कि योजनाओं का पैसा नीचे तक पूरा नहीं पहुँच नहीं रहा है. अरे, पहुँच गया भी तो उससे कौनसा भारत निर्माण हो जाएगा.
मित्रों, नीति और योजना निर्माण पर पिछले पांच दशकों से काम ही बंद पड़ा है. हमारे जन प्रतिनिधियों ने यह काम छोड़ दिया है और उनमें से अधिकतर ‘राज’ करने में ही व्यस्त हैं. जो भी सरकारी अधिकारी अपनी ‘समझ’ से बना देते है, वही नीति, वही योजना. सफल रहे या असफल, कौन चिंता करता है. लाल बहादुर शास्त्री जी के जाने के बाद से ही यह हाल है. देश में केवल गरीबी और बेरोजगारी मिटाने का खेल चल रहा है. खेल ही है, क्योंकि पांच दशकों में किसी भी योजना से किसी एक व्यक्ति या परिवार की गरीबी नहीं मिट पाई है. अगर गरीबी मिटी है तो उनकी अपनी मेहनत से. किसी को रोजगार मिला है तो अपने प्रयासों से. और जिस काम से गरीबी और बेरोजगारी मिट सकती है, वह है-उत्पादन में वृद्धि. खेती और उद्योग के उत्पादन में वृद्धि. लेकिन यह कैसे हो, इस पर बेचारे अधिकारी क्या नीति बनाएँ, क्या योजना बनाएँ. जब जनता के प्रतिनिधि ही लापरवाह हैं, तो वे क्या करें. बस, खानापूर्ति कर देते हैं.
इसलिए ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ में नीतियों और योजनाओं के निर्माण पर सर्वाधिक जोर रहेगा. लेकिन योजनाएं बनेंगी, जन भागीदारी से. जनता की समझ से. तभी वे व्यवहार में सफल होंगी. जनता को मूर्ख मानने की परम्परा हमें तोडनी होगी. भारत के गांव गांव में समझदारों की कमी नहीं है, जो कारगर नीतियां बनाने में शासन को सहयोग कर सकते हैं. उन पर विश्वास करने भर की देर है.
इस प्रयोजन से ही यह पहल की जा रही है, क्योंकि केवल बातें करना या सुझाव देना अभिनव राजस्थान अभियान कि रणनीति नहीं हैं. व्यवहार में काम करके दिखाना हमारी रणनीति है. इसी रणनीति के तहत इस सर्वे का कार्य मेड़ता के आसपास के कुछ चुनिन्दा गांवों से शुरू किया जायेगा. जिन गांवों में ये सर्वेक्षण किये जायेंगे, उनके नाम हैं- खेडूली, धौलेराव, कलरू, बडायली, बडगांव, दत्ताणी, मोर्रा, डूकिया, चावण्डिया, गैमलियावास तथा रोहिसा. इन गांवों में सर्वेक्षण के पश्चात एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जायेगी, जिसे दिसम्बर में मेड़ता शहर में 25 दिसम्बर को आयोजित होने वाले अभियान के महासम्मेलन में प्रस्तुत किया जाएगा. उसी दिन यह घोषणा होगी कि हम राजस्थान के लोग अपने लिए किस प्रकार की शासन व्यवस्था चाहते है. चाहते हैं, माँगते नहीं. अगले अंक में भी आप इस सर्वे की रोचक रिपोर्ट पढेंगे.
इस प्रयोजन से ही यह पहल की जा रही है, क्योंकि केवल बातें करना या सुझाव देना अभिनव राजस्थान अभियान कि रणनीति नहीं हैं. व्यवहार में काम करके दिखाना हमारी रणनीति है. इसी रणनीति के तहत इस सर्वे का कार्य मेड़ता के आसपास के कुछ चुनिन्दा गांवों से शुरू किया जायेगा. जिन गांवों में ये सर्वेक्षण किये जायेंगे, उनके नाम हैं- खेडूली, धौलेराव, कलरू, बडायली, बडगांव, दत्ताणी, मोर्रा, डूकिया, चावण्डिया, गैमलियावास तथा रोहिसा. इन गांवों में सर्वेक्षण के पश्चात एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जायेगी, जिसे दिसम्बर में मेड़ता शहर में 25 दिसम्बर को आयोजित होने वाले अभियान के महासम्मेलन में प्रस्तुत किया जाएगा. उसी दिन यह घोषणा होगी कि हम राजस्थान के लोग अपने लिए किस प्रकार की शासन व्यवस्था चाहते है. चाहते हैं, माँगते नहीं. अगले अंक में भी आप इस सर्वे की रोचक रिपोर्ट पढेंगे.
समाज हित – आदिकाल से ही समाज की प्राथमिक आवश्यकता रही है परन्तु एक ओर जहां समाज पग-पग पर हमारा मार्गदर्शक है, सम्बल है वहीं दूसरी ओर समाज की व्यवस्थाओं को काल व परिस्थितियों को दरकिनार करके पारम्परिक रूप से ढोने के फलस्वरूप किशान रूढियों के मकडझाल में फंसता हैा मनुष्य परम सत्ता का अंश है परन्तु जब तक उसका परिचय नही हो पाता तब तक हीन भावना से ग्रसित होकर अपने अहम के पोषण के लिये दिखावा करता है उसी दिखावे के प्रव़ति से आज मेडता के आस-पास का देहात व्यापक फिजुलखर्ची की समस्या से ग्रसित हैा आज किशान शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास के स्थान पर इस क्षेत्र के लोग तनाव की जिन्दगी जीने को मजबूर हैा ऐसी रूढियां व दिखावा जिनका किशान की मूलभूत आवश्यकताओं से दूर तक का रिश्ता नजर नही आता है फिर भी उसको पूरा करने के लिए जी जान से यहां के लोग पूर्ण करने में लगे रहते हैा ऐसे में इस विषय पर गम्भीर चिन्तन आज की महत्ती आवश्यकता हैा आध्यात्म की दष्टि से एक-एक किशान का जीवनकाल अत्यन्त महत्वपूर्ण है, बलदेवराम जी मिर्धा, नाथुराम जी मिर्धा आदि ने हमें रचनात्मक दिशा दी परन्तु रूढियों के मकडझाल व दिखावे की चका चौंध में चुंधियाया किशान आज सरजन के स्थान पर तनाव ग्रस्त जीवन जीने को विवश हैा आज रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, आध्यात्म, विज्ञान, आदि के बजाय अपनी पारम्परिक रूढियों के प्रति आज का किशान ज्यादा गंभीर हैा