30 अक्तूबर 2011 (रविवार) की सुबह हमारे क़स्बे मेड़ता सिटी के लिए एक सुनहरा संकेत दे रही थी. जगह जगह ‘अभिनव राजस्थान’ के प्रतीक चिन्ह के बैनर लगे थे. इन्द्रधनुषी विकास के सात रंगों को दर्शाते बैनर को नागरिक बड़ी उत्सुकता और अचम्भे से देख रहे थे. पहले कभी इसके बारे में अधिकतर नागरिकों ने नहीं सुना था. हाँ, आमजन के लिए भूमिका के रूप में सुबह ही अखबार के साथ ‘अभिनव राजस्थान’ के बारे में एक छोटा पेम्पलेट जरूर हर घर तक पहुंचा था. राजस्थान के असली विकास को समर्पित अभियान की भूमिका इस पेम्पलेट में दर्शाई गयी थी. शहर और आसपास के अनेक पाठकों को जरूर इस अभियान की पहले से जानकारी थी. वहीँ लगभग 1000 गणमान्य नागरिकों को अभियान के शुभारंभ के कार्यक्रम में आमंत्रण पत्र भी भेजा गया था.
सुबह 11 बजे मीरां स्मारक में क्षेत्र के विशिष्टजन जुटने लगे थे. देखते ही देखते पांडाल खचा-खच भर गया. एक उत्सुकता का माहौल बन रहा था. अभी तक लोग धार्मिक कथाओं में, कवि सम्मेलनों में, सम्मान समारोहों में या सामाजिक-राजनैतिक समारोहों में जाते रहे हैं. उन समारोहों में लोग जाते आये हैं, उनमें क्या होगा, इसका काफी कुछ अंदाज उन्हें पहले से ही रहता है. लेकिन यह एक ऐसा अवसर था, जिसका प्रयोजन, जिसका उद्धेश्य नया था. सभी को यह भी बता दिया गया था कि कार्यक्रम लगभग 3 घंटे तक चलेगा. तो ऐसे में जिज्ञासा स्वाभाविक थी. फिर भी कमाल देखिये कि सैकड़ों लोग जम कर बैठ गए थे. जब कुछ अच्छा होना होता है, तो सृष्टि इसी प्रकार की रचना करने लगती है. यह रचना इस अवसर पर प्रगट होती दिखाई दे रही थी. पंडाल पर नजर दौडाई तो जान पड़ा कि क्षेत्र के संभ्रांत लोग बहुत समय के बाद इतनी बड़ी संख्या में किसी समारोह में आये हैं. साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद, व्यवसायी, समाजसेवी, चिकित्सक, अभियंता, अधिकारी-कर्मचारी. सभी थे. जाति-धर्मं के संगम का रूप भी पंडाल में अपनी छटा बिखेर रहा था. चारों तरफ ‘अभिनव राजस्थान’ की धारणा को दर्शाते चित्रों को भी निहारा जा रहा था.
मंच सजा, तो अभिनवता के फूलों की महक सी छाने लगी. मंच पर क्षेत्र के सात उच्च माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाचार्य ‘अध्यक्षीय मंडल’ में बैठे थे. ‘अभिनव राजस्थान’ की इस अवधारणा से यह व्यवस्था मेल खाती दिखी, जिसमें हम शिक्षक को अधिक सम्मान देने का जिक्र करते हैं. ‘अतिथि मंडल’ में क्षेत्र के सात जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी बैठे. साथ में बैठे, कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, मुख्य कवि और मुख्य सूत्रधार. माँ सरस्वती के सम्मुख दीप प्रज्वलन के पश्चात मंचासीनों का स्वागत हुआ. अत्यंत सादगी से. कोई माला नहीं, कोई साफा नहीं. केवल ‘अभिनव राजस्थान’ का प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया.
कार्यक्रम का शुभारंभ गजाननजी की वंदना से हुआ. क्षेत्र के जाने माने शास्त्रीय गायक श्री नेमीचंद रोहिसा ने अपने सुरीले अंदाज से श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया. नेमीचंद जी इस क्षेत्र में रागों और रागनियों के चंद जानकारों में गिने जाते हैं. शोर मचाने वाले गायकों की मारा मारी से दूर शास्त्रीय गायन की झलक से ही कार्यक्रम की गरिमा का अहसास होने लगा था. इसके बाद मैंने ‘अभिनव राजस्थान’ की अवधारणा और हमारे ‘अभियान’ की कार्ययोजना के बारे में संक्षेप में बताया. विस्तृत विवरण के लिए एक पत्रक सभी आगंतुकों को बाद में वितरित कर दिया गया.
काव्य के रंग भरने के लिए तभी मंच पर श्री सत्यपाल सांदू आये और स्व. श्री कानदान कल्पित की अमर रचना ‘आजादी रा रुखावालां, सूता ही मत रहिजो रे’ प्रस्तुत की. देश के नागरिकों को आजादी का महत्व बताती इस रचना ने श्रोताओं को हिला कर रख दिया.
“आजादी खातर माँ बहनां, कांकड में बांठां रुलगी,
हथलेवे मेँहदी लाग्योडी, ओरां रे हाथां चढगी,
नुवें दिन कामन, काला काग उडाती ही रहगी,
माँवाँ री बेटां रे खातर, पुर्सोडी थाल्यां रहगी.
बलिदानां री मूंगी घड़ियाँ, याद करिजो रे.
आजादी रा रुखावालां, सूता ही मत रहिजो रे.”
ये पंक्तियाँ सुनकर जिनकी रगों में खून बह रहा था, वह दौड़ा. जिनके दिल में संवेदना थी, वह आँखों के रास्ते निकल गयी.
फिर मैंने राजस्थान के गौरवशाली अतीत के बारे में बोला, प्रदेश के वर्तमान हालात और भविष्य की संभावनाओं पर मेरे विचार रखे. भूमिका तैयार की, राजस्थान के ‘लोक कवि’ स्व.श्री कन्हैया लाल सेठियाके उस गीत की, जिसे हम बचपन से गुनगुनाते आये हैं. ’आ तो सरगां ने सर्मावे, इन पर देव रमण ने आवे, धरती धोरां री’ वाकई में राजस्थान का प्रतिनिधि गीत है. स्थानीय युवा और प्रतिभाशाली गायक श्री रूपचंद जोशी ने मंझे हुए अंदाज में राजस्थान की संस्कृति और प्रकृति का चित्रण इस गीत के माध्यम से किया , तो तालियों से स्वतः ही संगत मिलने लगी. ध्यान रहे कि हमने कह रखा था कि अगर कोई कार्यक्रम या वक्तव्य मन को भा जाए, तो ही ताली बजानी है, मजबूरी में नहीं. अक्सर देखा जाता है कि नीरस माहौल में भी लोगों को तालियाँ बजाने की गुहार मंचों से लगाई जाती है.
अब बुद्धिजीवियों का नंबर लगना था. आजादी के बाद उन्होंने जिस प्रकार अपनी जिम्मेदारी से दूर भागना शुरू कर दिया है, उस पर चोट होनी थी. मात्र आलोचना को बुद्धिमता माने बैठे और छद्म ज्ञान के अहंकार से भरे मन पर चोट करनी थी. सत्यपाल जी सांदू फिर माइक पर थे.
“देश देखभाल री, इन बाग रे रुखाल री,
झूठी तू बिना गुन्जाश, साख क्यूँ भरी,
तू बोल तो सरी, जुबान खोल तो सरी.”
कविता के बीच बीच में तालियों की सरगम बता रही थी कि असर कितनी गहराई तक हो रहा था. बरसों बाद शहर में ऐसा गरिमामय कार्यक्रम देखकर नगरवासी अभिभूत लग रहे थे.
कार्यक्रम जिस स्थान ‘मीरां स्मारक’ में रखा गया था, उसके बारे में भी जान लें. यह वही भवन है, जिसके आंगन में मीरां की कृष्ण भक्ति जगी थी. यह मीरां के दादा का भवन था, जहाँ के धार्मिक वातावरण में मीरां के रूप में एक विलक्षण कृष्ण भक्त का अवतरण हुआ था. मीरां की डोली यहीं से उठी थी. लेकिन मीरां सांसारिक सीमाओं को कब की लाँघ चुकी थीं और कृष्ण को ही अपना सब कुछ माँ बैठी थीं. इसी स्थान पर हमारे अभियान का शुभारंभ होना एक सुखद संयोग ही था. और इस संयोग पर मीरां का भजन आवश्यक था, या कहिये कि परम आवश्यक था. इस आवश्यकता की पूर्ति करने मंच पर फिर आये श्री नेमीचंद रोहिसा और उनके साथ संगत में बैठे एडवोकेट श्री जुगल वैष्णव व पत्रकार श्री घनश्याम कौशिक. तबले पर किशनगढ़ के श्री गजानंद ने साथ दिया. मीरां का रंग चढने लगा, तो स्थानीय विधायक श्री सुखराम मेघवाल भी नहीं बचे. जनता की मांग पर उन्होंने भी एक सुरीला भजन मीरां को समर्पित कर दिया.
भजन के बाद 10 मिनिट का चाय का ब्रेक. चलते कार्यक्रम के बीच में चाय या नाश्ते की गलत परम्परा को तोड़ा गया. ब्रेक के बाद समारोह के मुख्य वक्ता श्री गजादान चारण ने अपना भाषण शुरू किया, तो जैसे सदन में बौद्धिकता का प्रकाश फ़ैलने लगा. ओजस्वी आवाज के धनी गजादान जी डीडवाना के बांगड़ कॉलेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हैं. लेकिन वे राजस्थानी भाषा पर भी विशेष पकड़ रखते हैं. राजस्थानी, हिंदी और संस्कृत का अनूठा संगम प्रस्तुत करते गजादान जी ने ‘अभिनव राजस्थान’ की अवधारणा का विश्लेषण किया, तो ‘अभियान’ के सामने आने वाली संभावित चुनौतियों को भी रेखांकित किया. गजादान जी ने ‘अभियान’ की भाषा सरल रखकर आमजन से जुड़ाव का महत्त्व बताया. श्रोता मंत्रमुग्ध थे और भाषण को शब्द दर शब्द सुन रहे थे. उन्हें मुख्य वक्ता के सम्मान का अर्थ भी समझ आ रहा था.
अगले पड़ाव पर हनुमानगढ़ जिले के परलिका गांव के जन कवि श्री विनोद स्वामी की बारी थी. उनकी राजस्थानी कविताओं के संग्रह ‘प्रीत कमेरी’ का विमोचन इसी मंच से हुआ. स्थानीय साहित्यकार श्री दीपचंद सुथार, शिक्षाविद श्री मांगीलाल पांडे, कवि श्री करणीसुत लखावत, राजस्थानी भाषा संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष श्री लक्ष्मणदान कविया तथा संयोजक श्री राजेन्द्रसिंह बारहट के हाथों यह विमोचन हुआ. विमोचन के बाद स्वामीजी ने जब अपनी कविताओं की झलक प्रस्तुत की तो, तालियाँ बरसने लगी. वाह-वाह की आवाजें काफी समय बाद शहर के किसी कार्यक्रम में सुनाई दीं. उनकी कविता ‘बाई’ ने तो श्रोताओं को उनका बचपन याद दिला दिया. कैसे बड़ी बहन ‘बाई’ अपने नन्हे से भाई का ध्यान रखाती है, उसे गोद में लेकर घूमती है. स्वामीजी मंच से जाने लगे तो जैसा कि पहले ही लग गया था, उन्हें वापस आना ही पड़ा. अब उन्होंने एक मध्यम स्तरीय परिवार की व्यथाओं को जैसे चित्रित सा कर दिया. हम खुश थे कि चलिए एक धारणा तो बलवती हुई कि अच्छे साहित्य की क़द्र कम नहीं हुई है. ध्यान केवल प्रस्तुतीकरण का रखना है. खुशी इस बात की भी हुई कि विनोदजी की पुस्तक खरीदने के लिए लाइन लग गयी. सुखद अनुभव रहा. ‘अभिनव राजस्थान’ में ऐसे ही नजारों को देखने की हमारी अपेक्षा है.
‘आपां नहीं तो कुण ? आज नहीं तो कद ?’ का नारा हमारे पाठक प्रारंभ से अपने अखबार में पढ़ते आये हैं. इस वाकया के रचियता श्री इन्दरदान देथा भी मंच की शोभा बढ़ा रहे थे. इस अवसर पर उनका सम्मान भी किया गया. स्थानीय उपखंड अधिकारी श्री सुरेन्द्रकुमारने उन्हें सम्मानित करते हुए ‘अभियान’ की सकारात्मक भावना को सराहा. उन्होंने शासन और जनता के बीच स्वस्थ समन्वय से उनके द्वारा किये गए प्रयासों का जिक्र किया. सुरेंद्रजी के प्रयासों से मेड़ता शहर के तालाब पुनः जीवंत हो गए हैं, तो सांप्रदायिक सद्भाव भी मजबूत हुआ है. उनकी बात का समर्थन करते हुए स्थानीय पुलिस उपाधीक्षक श्री अर्जुन सिंह ने भी ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के छोटे से कदम को लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम बताया. मंचस्थ शिक्षाविदों का प्रतिनिधित्व करते हुए श्री लीलाधर सोनी ने ‘अभिनव राजस्थान’ में बन रही नीतियों की गंभीरता और व्यावहारिकता की प्रशंसा की. उन्हीं के साथी श्री जरीफ पठान ने शेरोशायरी ले अंदाज में कौमी एकता पर जोर दिया. कार्यक्रम के समापन के लिए शहर की नगरपालिका के अध्यक्ष श्री अनिल थानवी माइक पर आये और उन्होंने दिसम्बर में ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के विशाल कार्यक्रम के लिए तैयारियों में सहयोग का वादा किया.
न जाने कब चार बज गए पता ही नहीं चला. आगंतुक अब भी जम कर बैठे थे. कार्यक्रम समापन की घोषणा हुई, तो जैसे अनमने भाव से वे उठे. एक ही बात सबकी जुबान पर थी कि कैसे पांच घंटे तक बैठे रह गए. कोई फूहडता नहीं, हल्के स्तर की बातें नहीं. फिर भी रुचि का यह आलम. गरिमा के ऐसे ऊँचे स्तर तक पहुँच कर ‘अभिनव राजस्थान अभियान’ के पहले पड़ाव पर इस प्रकार विश्राम हुआ.
डॉ. अशोक चौधरी
doctor saab ghar me saadi hone ke karan ni aa sakyo par o lekh padh kar lagyo jane sare karyakarm me mojud riyo aapne dhanyavaad ar subh kamnava
कार्यक्रम में मै मौजूद था इसमें गैर राजनितिक, प्रत्येक समाज के लोगो का प्रतिनिधित्व था सभी समाज/धर्मो के लोग एक परिवार जैसे लग रहे थे जिसमें किसी समाज/धर्म पर कटाक्ष नही किया गया तथा सभी समाजों/धर्मो के लोगो के अच्छी जानकारीयां दी तथा लोगो जाग्रत करने का प्रयास किया जो अनवरत चलता रहेगा जिसमें वर्तमान में डॉ श्री अशोक जी चौधरी साहब अभिनव राजस्थान की टीम गांवो में जाकर वस्तुस्िथति की जानकारी ले रही है तथा मिटींगो का आयोजन किया जा रहा है
समाज हित – आदिकाल से ही समाज की प्राथमिक आवश्यकता रही है परन्तु एक ओर जहां समाज पग-पग पर हमारा मार्गदर्शक है, सम्बल है वहीं दूसरी ओर समाज की व्यवस्थाओं को काल व परिस्थितियों को दरकिनार करके पारम्परिक रूप से ढोने के फलस्वरूप किशान रूढियों के मकडझाल में फंसता हैा मनुष्य परम सत्ता का अंश है परन्तु जब तक उसका परिचय नही हो पाता तब तक हीन भावना से ग्रसित होकर अपने अहम के पोषण के लिये दिखावा करता है उसी दिखावे के प्रव़ति से आज मेडता के आस-पास का देहात व्यापक फिजुलखर्ची की समस्या से ग्रसित हैा आज किशान शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक विकास के स्थान पर इस क्षेत्र के लोग तनाव की जिन्दगी जीने को मजबूर हैा ऐसी रूढियां व दिखावा जिनका किशान की मूलभूत आवश्यकताओं से दूर तक का रिश्ता नजर नही आता है फिर भी उसको पूरा करने के लिए जी जान से यहां के लोग पूर्ण करने में लगे रहते हैा ऐसे में इस विषय पर गम्भीर चिन्तन आज की महत्ती आवश्यकता हैा आध्यात्म की दष्टि से एक-एक किशान का जीवनकाल अत्यन्त महत्वपूर्ण है, बलदेवराम जी मिर्धा, नाथुराम जी मिर्धा आदि ने हमें रचनात्मक दिशा दी परन्तु रूढियों के मकडझाल व दिखावे की चका चौंध में चुंधियाया किशान आज सरजन के स्थान पर तनाव ग्रस्त जीवन जीने को विवश हैा आज रोटी, कपडा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, आध्यात्म, विज्ञान, आदि के बजाय अपनी पारम्परिक रूढियों के प्रति आज का किशान ज्यादा गंभीर हैा