मेड़ता में अच्छाई की मार्केटिंग (19 जून 2011)
हमारा यह स्पष्ट मानना है कि अच्छाई भी फैलायी जानी चाहिये। केवल बुराई को कोसना काफी नहीं है। अंधेरे को कोसने की बजाय दिया जलाना अधिक सार्थक होता है। अंधेरा तभी खत्म होगा। 25 दिसम्बर 2011 को मेड़ता शहर में, मीरां की नगरी में अभिनव राजस्थान अभियान के साथी यही करने वाले हैं। सरकार की कमजोरियों व गलत नीतियों की बातें न कर, उस दिन एक सकारात्मक योजना जनता और शासन और मीडिया के समक्ष रखी जायेगी। राजस्थान के नागरिकों की तरफ से शासन का, विकास का एजेंडा तय किया जायेगा। एक सक्रियता से भरा विचार मन्थन होगा, जिसमें जिम्मेदारी भी झलकेगी। उम्मीद का दिया जलाया जायेगा।
जैसा कि यह आम सभा मेड़ता शहर में ही होने वाली है, और उसमें अभी 6 महीने शेष हैं, तो सोचा गया कि उसकी रिहर्सल हो जाये। यहीं पर, उस अंदाज में, परन्तु छोटे स्तर पर। कुछ मित्रों ने मिलकर योजना बनायी कि शहर के लिए अच्छा काम करने वाली संस्थाओं एवं व्यक्तियों का शहर की तरफ से सम्मान किया जाना चाहिये। विचार देखते ही देखते आकर्षक बन गया और 35 संस्थाओं एवं व्यक्तियों का चयन किया गया। इनके बारे में विस्तृत जानकारियाँ एकत्र की गयीं। इतनी रोचक सामग्री इकट्ठी हो गयी, जिसका शहर में बरसों से रहते हुए भी अंदाज तक न था। फिर अभिनव राजस्थान अभियान की मंशा के अनुरूप मंच पर बैठने वालों की सूची बनी। एक अध्यक्षीय मंडल बनाया गया, जिसमें शहर के 7 प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे।
19 जून 2011 को 5 बजे कार्यक्रम प्रारम्भ हो गया। कार्यक्रम में शहर के लगभग 600 व्यक्ति मौजूद हुए। कार्यक्रम के गरिमामय होने का प्रचार-प्रसार पहले ही हो गया था और इसका असर यह पड़ा कि शहर के अनेक संभ्रांत नागरिक बरसों बाद किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में देखे गये। आयोजन स्थल के रूप में स्थानीय मीरां स्मारक को चुना गया था। मंच पर स्थानीय रामस्नेही पीठ के गादिपति श्री रामकिशोर जी महाराज का सान्निध्य था। अध्यक्षीय मण्डल में शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी श्री नथमल बिड़ला, मीरां महोत्सव समिति के अध्यक्ष श्री सोहन लाल घांची, पेंशनर समाज के अध्यक्ष हाजी श्री सरदार खां जोया, वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीरां शोध संस्थान के संस्थापक श्री दीपचन्द सुथार, वरिष्ठ साहित्यकार एवं राज्य सम्मान से अलंकृत शिक्षक श्री मांगीलाल पाण्डे और शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कर सलाहकार श्री पुखराज मोदी की गरिमामयी उपस्थिति को देखकर शहरवासी खासे उत्साहित थे। वहीं उपखण्ड अधिकारी श्री सुरेंद्र कुमार जाट एवं नगरपालिका अध्यक्ष श्री अनिल थानवी विशेष मेहमानों के रूप में बैठे थे।
अध्यक्षीय मण्डल के हाथों सम्मान ग्रहण करने वालों में सबसे पहले वे छात्र-छात्राएँ थे, जिन्होंने प्रदेश स्तर पर विभिन्न परीक्षाओं में शहर का नाम रोशन किया था। इनके बाद सांस्कृतिक क्षेत्र में विशेष योगदान करने वाले चारभुजा जागरण मण्डल (सत्संग), शाकम्भरी कला केन्द्र (नाट्य) एवं राम रहीम कला मण्डल (कुचामनी ख्याल)का सम्मान किया गया। उद्घोषणा के लिए श्री शब्बीर अमन, अभिनय के लिए श्री बी. के. सागर, राजस्थानी एलबमों के निर्माण के लिए श्री धनराज सोनी तथा राजस्थानी फिल्मों के प्रचारक श्री नन्दू श्री मंत्री सम्मानित हुए। साहित्य के क्षेत्र में बाल साहित्यकार एवं जाने माने कार्टूनिस्ट श्री चांद मोहम्मद घोसी को प्रशस्ति पत्र दिया गया। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार श्री मूलराज व्यास ‘एक प्राणी’ का उनके योगदान के लिए विशेष सम्मान किया गया। व्यास जी के सम्मान में सारा सदन खड़ा हुआ और उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अभिनन्दन पत्र पढ़ा गया।
सम्मान के दूसरे चरण में चिकित्सा सेवा में योगदान के लिए मीरां सेवा संस्थान, सीताराम काबरा ट्रस्ट, यूनिक संस्थान एवं जागरूक सेवा संस्थान को सम्मानित किया गया। ये संस्थाएँ शहर में चिकित्सा एवं रक्तदान के लिए विशेष शिविर लगाती रहती है। विकलांगों के कल्याण के लिए श्री हनुमान राम रियाड़ को प्रशस्ति पत्र दिया गया। इसके बाद शहर की चार सरोवर समितियों को सम्मानित किया गया, जिनके प्रयासों से शहर के ऐतिहासिक तालाबों का सौन्दर्यकरण एवं संरक्षण हो पाया है। पेयजल में फ्लोराइड की समस्या से जूझते शहर के लिए अब ये चारों सरोवर वरदान साबित हो रहे हैं। सुबह-शाम इन सरोवरों पर पनघट की जीवन्तता देखने लायक होती है। इसके साथ शहर में वृक्षारोपण के क्षेत्र में अग्रणी ‘संकल्प’ संस्था का भी करतल ध्वनि से सम्मान हुआ।
कार्यक्रम 9 बज कर 40 मिनिट पर समाप्त हुआ। यानि लगातार 4 घंटे 40 मिनिट तक चला। कोई फूहड़ बात नहीं, कोई भद्दा नाच गाना नहीं। और कमाल यह रहा कि कार्यक्रम की समाप्ति तक सभी 600 व्यक्ति अपने स्थान से हिले तक नहीं। महंत श्री रामकिशोर जी ने अपने प्रवचन में यह बात भी कही कि इस प्रकार की गरिमा, संयम और एकाग्रता उन्होंने पहली बार देखी है। कथाओं में भी लोग -बाग आते-जाते रहते हैं, इतनी तन्मयता से टिक कर नहीं बैठते। अच्छाई के मान-सम्मान के इस कार्यक्रम का यह प्रभाव पड़ा कि शहरवासी गंदी राजनीति, प्रशासन का निकम्मापन, सफाई-लाईट-पानी की परेशानियाँ, समाज में फैली बुराईयाँ भूल से गये और अच्छाई के आनंद में डूब गये। अभिनव राजस्थान अभियान का इस प्रयास ने शहर को एक परिवार का रूप तो दिया ही, एक नयी सोच, एक आशा और एक सकारात्मकता भी दे दी। मंच का संचालन एडवोकेट जुगल किशोर वैष्णव ने किया, तो संस्थाओं और व्यक्तियों का विस्तृत परिचय एवं उनके योगदान का वर्णन डॉ. अशोक चौधरी ने किया। कार्यक्रम के खर्च का बीड़ा शहर के चारभुजा कॉम्प्लेक्स के व्यापारियों, बैंकों एवं अधिवक्ताओं ने उठाया। यह भी एक नया प्रयोग था, जिससे प्रेरित होकर अन्य बाजारों के व्यापारियों ने भी आगे के कार्यक्रम आयोजित करने की सहर्ष इच्छा जता दी। 25 दिसम्बर 2001 को मीरां नगरी आपको सजी हुई मिलने वाली है, जब प्रदेश भर के बुद्धिजीवियों की उपस्थिति में 30-35 हजार लोग अभिनव राजस्थान की कार्ययोजना पर मुहर लगायेंगे।
बिजोलिया (भीलवाड़ा) एवं मेनाल (चित्तौड़) का दौरा (13 जून)
अभिनव राजस्थान में हम हमारी सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की बात करते हैं। ऐसी ही दो धरोहरों को देखने के लिए अपने मित्र श्री सुखाराम खदाव एवं भास्कर के पत्रकार श्री एम.एल. सुवालाल के साथ बिजोलिया एवं मेनाल का भ्रमण किया गया। यह सम्पूर्ण क्षेत्र उपरमाल कहलाता है, जहाँ प्राचीन समय में परमारों का शासन था। उनकी समृद्धि के प्रतीक मंदिर अभी भी ठीक-ठाक हालत में इस क्षेत्र में मौजूद हैं। इन मंदिरों की कला देखकर अंदाज लगा सकते हैं कि उस युग में कैसा जीवन रहा होगा। राजस्थान के पश्चिम में प्रतिहारों के स्वर्णिम शासन की झलक आप ओसियाँ के मन्दिर में देख सकते हैं, तो दक्षिण में सोलंकियों की समृद्धि माउंट आबू के देलवाड़ा मन्दिरों में दिखाई दे जाती है। परेशानी इस बात की है कि राजस्थान की संस्कृति के नाम पर अभी भी मध्यकालीन महलों को पेश किया जाता है, जो केवल मुगलों-अंग्रेजों की गुलामी का अहसास कराते हैं। बिजोलिया, मेनाल, ओसियां, देलवाड़ा आदि स्थान अब भी पर्यटन सर्किट (स्थलों) से अनौपचारिक रूप से बाहर ही रखे हुए हैं।
बिजोलिया की यात्रा करते समय भारत के पहले सफल किसान आंदोलन और उसके प्रणेता महान किसान नेता श्री विजय सिंह पथिक की याद आ गयी। बिजोलिया आन्दोलन सत्याग्रह का एक सफल प्रयोग था, ऐसा गाँधी जी ने कहा था। गांधी जी ने कहा था कि उनके प्रयोग सफल नहीं हुए थे, मगर बिजोलिया के लोगों ने इससे कामयाबी हासिल की थी। पथिक जी ही आधुनिक राजस्थान के वास्तविक निर्माता थे। लेकिन गांधी जी के शिष्यों श्री जमनालाल बजाज और श्री हरिभाऊ उपाध्याय ने अँग्रेजों व मेवाड़ रियासत के साथ मिलकर पथिक जी को किनारे कर दिया। कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर सुभाष चन्द्र बोस के साथ भी बाद में ऐसा ही हुआ था। विडम्बना देखिये कि जिन पथिक जी ने राजस्थान में वास्तविक स्वतन्त्रता आन्दोलन शुरू किया था, उन्हीं को आजादी के बाद कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। निर्दलीय लड़े और हारे। यहाँ तक कि वे बिजोलिया के सरपंच का चुनाव भी हार गये। राजनैतिक कुटिलता तब भी इतनी भारी थी और भारत माँ के सच्चे सपूतों को ऐसे दिन अनेक बाद देखने पड़े थे। पथिक जी का एक उपेक्षित सा स्मारक एक पार्क के बीच में है। ऐसी ही दशा शाहपुरा में बारहठ परिवार के तीन क्रांतिकारियों – श्री केसरीसिंह, श्री जोरावरसिंह व श्री प्रतापसिंह के स्मारकों की है।
बिजोलिया का शिव को समर्पित महाकाल मंदिर एवं उसके पास बना मंदाकिनी कुण्ड परमारों के स्थापत्य कला, मन्दिर निर्माण कला के सच्चे प्रतिनिधि हैं। भूमिज शैली में बने मंदिरों में प्रत्येक पत्थर ऐसे तराशा गया है कि जैसे मूर्तियां बोल ही पड़ेंगी। ऐसा ही मंदिर मेनाल (महानाल) का है। मेनाल तो खजुराहो शैली का उत्कृष्ट नमूना भी है। बिजोलिया की तरह यहाँ भी गुम्बदों की जगह शिखर हैं, जो प्राचीन भारतीय शैली को व्यक्त करते हैं। कुछेक लोगों का कहना है कि गुम्बद मुग़लों की देन हैं लेकिन गुंबद कलश पदम शिखर शैली मंदिरों के आंतरिक शिल्प तथा प्राचीन दक्षिण भारतीय व दक्षिण एशियाई मंदिरों में पाए जाने के कारण यह तथ्य परीक्षणीय है। बिजोलिया एवं मेनाल के मन्दिरों की कलाकारी पर विस्तृत शोध की जरूरत है। हिंदु मंदिर शैली के लिए यहां देखें। मेनाल मन्दिर के पास मेनाल नदी का झरना भी है, जो दृश्य को अत्यंत मनोरम बना देता है। पास में ही जोगनिया माता के मंदिर में क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था है। इन स्थानों के विस्तृत चित्र आप हमारी वेबसाइट के अभिनव संस्कृति भाग पर देख सकते हैं। लेकिन बिजोलिया शहर की हालत राजस्थान के अन्य कस्बों की तरह हैं। सड़कें, अस्पताल, पेयजल, शिक्षा आदि की उपेक्षा हो रही है। कुटीर उद्योग भी ठप्प हो गये हैं। बस बाजार जैसे तैसे चल रहा है या फिर आसपास विन्ध्या पर्वत माला को खोदकर पत्थरों को बेचने का काम होता है।
अखबार और वेबसाइट
अब हमारा अखबार 3000 लोगों तक पहुँच रहा है। अनेक मित्रों के फोन और पत्र मिले हैं, जिनका जिक्र अगले अंक में करेंगे। एक रोचक बात आपको बता दें। डेढ़ वर्षों से अखबार पढ़ रहे लोगों की प्रतिक्रिया को इस वाक्य से परिभाषित किया जा सकता है – आशंका, और अविश्वास के बीच उत्सुकता की लहर। कुछ को लग रहा है कि उन्हें यह अखबार क्यों भेजा जा रहा है, उनका पता कहाँ से मिला। उन्हें बताते चलें कि प्रदेश भर के बुद्धिजीवियों तक पहुंचने के प्रयास में उनका पता हाथ लगा है। कई पाठक सोच रहे होंगे कि विज्ञापनों के लिए अखबार चला होगा। कुछ पाठक संपादक के मंतव्य पर भी टकटकी लगाये बैठे होंगे, अनुमान लगा रहे होंगे। कुछ इस पर हो रहे खर्च की राशि को लेकर भी शंकित होंगे, जबकि हमने बार-बार लिखा है कि एक कोचिंग संस्थान चला कर हम राशि जुटा रहे हैं। कई मित्र अभिनव राजस्थान अभियान को मात्र एक अच्छी कल्पना मानकर भी चुप होंगे। कभी लगता है कि एक उमस सी पैदा हो रही है। जो भी हो, अब तक इतने मित्रों ने स्नेह बरसाया है कि उत्साह बढ़ता जा रहा है। 25 दिसम्बर की आम सभा अब आसान कार्य लग रही है।
हमारी वेबसाइट भी प्रदीप जी पाराशर और कुलदीप जी चौहान ने संभाल ली है। उनके जोश और समर्थन ने तो अभियान की गति ही बढ़ा दी है। पाठकों से आग्रह है कि www.abhinavrajasthan.org को बराबर देखते रहें। अब साइट पर हमारे कार्यक्रमों, अब तक के सभी लेखों, अखबार के संस्करणों तथा अभियान के साथियों की सूची मौजूद है। अगस्त और सितम्बर के व्यापक सम्पर्क के तहत प्रदेश के कई कस्बों में मित्रों से अनौपचारिक मुलाक़ातों एवं बैठकों की योजना है, जो भी मित्र उचित समझें, सम्पर्क करें।