हवा चल रही है पूरब-पच्छम
अब जब 25 दिसम्बर 2011 की तारीख निश्चित हो गयी है, तो सारा ध्यान और ऊर्जा इसी की तैयारी में लग रही है। आपको फिर याद दिला दें कि 25 दिसम्बर 2011 को मेड़ता शहर के पंचायत समिति मैदान में एक विशाल आमसभा होगी। इसमें 20 हजार से अधिक लोगों की जागरूक एवं सक्रिय भागीदारी रहेगी। प्रदेशभर के बुद्धिजीवी – साहित्यकार, शिक्षाविद्, न्यायविद्, चित्रकार, कवि-कलाकार, चिकित्सक, अभियन्ता, वकील आदि इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ायेंगे। मंच पर वरिष्ठ बुद्धिजीवियों को बिठाया जायेगा। आम लोगों की भागीदारी पहली बार इतने बड़े स्तर पर और इतने खास मकसद के लिए सुनिश्चित की जायेगी। कई जिलों के सैंकड़ों गाँवों और कस्बों से नागरिक इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे। पहली बार प्रदेश का बुद्धिजीवी वर्ग और आमजन साथ बैठेंगे और राजस्थान के भविष्य पर सार्थक घोषणा करेंगे। यही कमी देश की सत्ता के हस्तान्तरण के बाद मुख्य रूप से समस्याओं की गहराई में है। बुद्धिजीवी, जनता से जुड़ नहीं पा रहे हैं। इससे योजनाएँ ढंग से नहीं बन रही है, और शासन से जनता का लगाव नहीं हो पा रहा है, शासन में बैठे लोग मनमानी कर लेते हैं और अफसर भी जनता के मालिक होने के अंग्रेजी सामंती भ्रम में जी रहे हैं। लेकिन सभा में आलोचनाओं से परे सकारत्मक सोच एवं विश्लेषण पर जोर रहेगा।
इस सभा में अभिनव राजस्थान के सात विषयों, सात सुरों – समाज, शिक्षा, शासन, कृषि, उद्योग, प्रकृति और संस्कृति पर सात विद्वान एजेण्डे का संक्षिप्त, सारगर्भित और सरल रूप जनता, मीडिया और शासक वर्ग के सामने रखेंगे। इसे जनता की ईच्छा बताया जायेगा, मांग नहीं बतायेंगे। मांगे किससे? लोकतंत्र है, तो हमारा भविष्य हमें ही तय करना है। याचना, निवेदन कब तक करेंगे? फिर प्रत्येक विषय पर एक प्रतिष्ठित कवि या शायर अपने रोचक और निराले अंदाज में बोलेंगे। बात विषय से हटकर नहीं होगी। अब पाकिस्तान, नेताओं, अफसरों, मुन्नी-शीला या भ्रष्टाचार से आगे बोलना है। अगली पीढ़ी के सुनहरे भविष्य के लिए बोलना है। कवियों-शायरों का अन्दाज इतना मनमोहक होगा कि 20 हजार लोग 6 घंटे तक हिलेंगे नहीं और उनके जीवन की यह यादगार और मार्मिक घटना बन जायेगी। कवियों से आग्रह रहेगा कि वे आमजन की भाषा-राजस्थानी का भी खुलकर प्रयोग करें, ताकि जनमानस हमारी बात को सहजता से समझ सके। हमसे अच्छे से जुड़ सके। मंच का संचालन भी ओजस्वी वक्ता करेंगे। आप कह सकते हैं कि यह साधारण चुटकुले बाजी वाला कवि सम्मेलन न होकर एक जीवन्त कार्यक्रम होगा, जिसमें कवि-शायर प्रदेश-देश के भविष्य के लिए अपनी तड़प, और समर्पण लोगों के दिल तक पहुँचा देंगे। ऐसा काम 1947 के तुरंत बाद हो जाना चाहिए था, परन्तु बुद्धिजीवी और जनता के बीच की खाई ने सब गड़बड़ कर दिया। इस सभा के दौरान् नागौर जिले के जनकवि रहे स्व. कानदान कल्पित की दो कविताओं की भव्य प्रस्तुति होगी। ‘आजादी रा रखवालां, सुता ही मत रहिजो रे, आवेला कई मोड़ मारग पर भैता ही रहिजो रे, चलता ही रहिजो रे।’ दूसरी कविता होगी – ‘देश देखभाल री, इण बाग रे रूखाल री, झूठी थूं गुंजाश बिना साख क्यूं भरी। थूं बोल तो सरी, जुबान खोल तो सरी।’ पहली कविता बुद्धिजीवियों को चेताने के लिए, तो दूसरी उनको उलाहना देने के लिए होगी। श्री सत्यपाल सांदू, कानदान जी की रचनाओं को प्रामाणिकता से प्रस्तुत करते रहे हैं। उनसे इस कार्यक्रम के लिए विशष आग्रह किया जा रहा है। सभा के बीच में हमारे महान् कवि स्व. कन्हैयालाल सेठिया की रचना ‘धरती धोरां री’ की संगीतमय प्रस्तुति होगी। सेठिया जी के मूल निवास सुजानगढ़ की टीम से इसके लिए आग्रह किया गया है।
6 घंटे का यह कार्यक्रम समय की सीमा, गरिमा और अनुशासन की परिधि में होगा। आजतक चुनावी सभाएँ, आरक्षण के लिए सभाएँ या मेलों की सभाएँ होती आयी हैं, परन्तु इतने विशाल स्तर पर जनता और बुद्धिजीवियों का राजस्थान के भविष्य पर चिन्तन अनोखा होगा, ऐतिहासिक होगा। आप सभी आज से ही सस्नेह आमन्त्रित हैं। इस कार्यक्रम के बाद प्रदेश के अन्य कस्बों में भी ऐसी ही सभाएँ होंगी। 2012 में शासन का एजेन्डा बुद्धिजीवी ही तय करेंगे, बस उनमें आत्मविश्वास जगने की देरी है। उन्हें यह मान लेना है कि उनकी सकारात्मक बात को अनसुना करने की हिम्मत किसी भी राजनीतिक दल या शासन प्रणाली में नहीं है। अभी वे इसी नकारात्मक धारणा के मारे आगे नहीं हा रहे हैं कि कितनी ही मेहनत कर लो, कोई सुनने वाला नहीं है। जबकि यह आधारहीन बात है, जिम्मेदारी से भागने वाली बात है। कब बुद्धिजीवियों ने ठीक से प्रयास किया और कब नहीं माना गया। केवल मनगढ़न्त बातों से प्रयास को टालना अब अगली पीढ़ी के लिए घातक हो जायेगा। लेकिन ध्यान रखें। हमारा उद्देश्य किस नये राजनैतिक दल के गठन का नहीं है। हमारा स्पष्ट मानना है कि देश हित में दो ही पार्टियाँ ठीक है। क्षेत्रीय दलों से लोकतंत्र को, देश की एकता को नुकसान होगा। गठबन्धन आज की आवश्यकता नहीं है, बल्कि राष्ट्रीयता के अभाव में क्षेत्रवाद के उभरने का संकेत मात्र है। हम केवल प्रभाव डालकर शासन का एजेन्डा बदलना चाहते हैं, वहीं क्षेत्रीयता या वाद से भी हमें पूरा परहेज है। हम तो भारत की मजबूती के लिए राजस्थान को मजबूत चाहते हैं।
परलिका प्रवास (22 अप्रेल-24 अप्रेल)
इधर 25 दिसम्बर की सभा की तैयारी की शुरूआत के रूप में हमारा पहला पड़ाव लोकदेवता गोगाजी का पवित्र स्थान गोगामेड़ी रहा। गोगामेड़ी के पास ही परलिका गाँव है, जो नोहर (हनुमानगढ़) के पास है। इसी गाँव में रात्रि विश्राम रहा। हमें पहली बार पढ़े-लिखों की बस्ती देखने को मिली। हम अक्सर यह दोहराते हैं कि हमारे तथाकथित पढ़े-लिखे लोग अखबार की चटपटी-सतही खबरों से अधिक कुछ नहीं पढ़ते हैं और हस्ताक्षर से अधिक कुछ नहीं लिखते हैं। बस हेकड़ी है कि हमारे पास नौकरी है या डिग्री है और इस कारण से हम पढ़े लिख हैं। वास्तविक ज्ञान में अनपढ़ों से भी पीछे। परन्तु परलिका वाकई में पढ़े लिखे लोगों का गाँव है। 2 हजार घरों की बस्ती में आप सैकड़ों लोगों को साहित्य पढ़ते देख सकते हैं। यहाँ के कई निवासी अच्छे लेखक भी हैं। आप कह सकते हैं कि यह बुद्धिजीवियों की नगरी है। यहाँ के जवान भी कई विषयों पर गम्भीरता से बात करते हैं। देश-प्रदेश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाएँ यहाँ आती हैं और उन्हें रूचिपूर्वक पढ़ा जाता है।
परलिका में हमारे मेजबान जनकवि श्री विनोद स्वामी रहे। 33 वर्ष के स्वामी इस क्षेत्र में अपने काव्य की विशेष पहचान रखते हैं। उनसे 25 दिसम्बर की मेड़ता की आमसभा को लेकर विस्तार से चर्चा हुई। यहीं पर साहित्यकार श्री रामस्वरूप ‘किसान’ हमारे साथ दिन भर रहे। ‘किसान’ जी के दोहे इस क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं और जनता की जबान पर चढ़े हैं। यहीं पर साहित्यकार श्री सत्यनारायण सोनी से आत्मीय मुलाकात हुई। सोनी जी अध्यापक हैं और राजस्थानी भाषा के लिए उनका समर्पण और कृतित्व प्रशंसनीय है। यहीं के बसन्त बेनीवाल में जाने क्यों भगतसिंह जैसा व्यवस्था के विरूद्ध विद्रोही भी दिखाई दिया। बसंत जी भी दो दिन तक हमारे साथ बने रहे। उधर नोहर में डॉ. भरत ओला से मिलना हुआ। ओलाजी साहित्य अकादमी से पुरूस्कृत हैं और उनका राजस्थानी संस्कृति और परम्पराओं पर उत्कृष्ट लेखन रहा है। सभी मित्रों से 25 दिसम्बर की सभा को लेकर खुलकर चर्चा हुई।
गोगामेड़ी
परलिका के पास ही है – गोगामेड़ी। अभिनव राजस्थान अभियान की शुरूआत गोगाजी के स्थान से हो, इस भाव से गोगामेड़ी जाना हुआ। आपको जानकारी होगी कि उत्तर-पश्चिम भारत में किसान पारम्परिक रूप में अपने हल पर गोगाजी के नाम की ताती (धागा) बांधकर और तेजाजी को समर्पित तेजागान से कृषि कार्य की शुरूआत करते आये हैं। उन्हीं गोगाजी के दर्शन कर धन्य हो गया। गोगाजी चौहान 11 वीं सदी में गायों की रक्षा करते शहीद हो गये थे। उनके पुत्र केसरिया कुँवर जी भी इस युद्ध में काम आ गये थे। इस बलिदान का जनमानस पर इतना गहरा असर पड़ा था, कि गोगाजी लोकदेवता हो गये। उनकी वीरता के मुसलमान भी कायल हो गये और उन्होंने उन्हें जाहेर पीर (वास्तविक पीर) घोषित कर दिया। आज दोनों समुदायों की आस्था का केन्द्र बने गोगामेड़ी में हिन्दू और मुस्लिम पुजारी संयुक्त रूप से पूजा करते हैं, गोगाजी की सेवा करते हैं। गोगामेड़ी, अभिनव राजस्थान के लिए एक ओर तरह से भी महत्वपूर्ण है। हमारे संस्कृति के विषय में हमने स्थानीय पर्यटन को महत्व देने की बात कही है। 7 करोड़ देशी पर्यटकों को हम 7 लाख विदेशियों से अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं। इस लिहाज से हमने एक बाहरी और एक अन्दरूनी देशी पर्यटन वृत्त (रिंग) की योजना बनाई है। इन वृत्तों के द्वारा हमारे धार्मिक आस्था के केन्द्र – मन्दिर, मस्जिद, दरगाह, गुरूद्वारा आदि एक दूसरे से जुड़ जायेंगे और इन स्थानों तथा इनको जोडऩे वाले रास्तों पर देशी पर्यटकों के लिए आधुनिक सुविधाएँ विकसित की जायेंगी। गोगामेड़ी, बाहरी पर्यटन वृत्त का पहला स्थान है, जहाँ से इस वृत्त की शुरूआत होगी। अभी वहाँ सुविधाओं का घोर अभाव है। अभिनव राजस्थान में गोगामेड़ी राजस्थान के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थानों में गिना जायेगा। बड़ा दु:ख हुआ जब देखा कि गोगामेड़ी जाने वाली मुख्य सडक़ अत्यन्त बुरे हाल में थी।
राजस्थानी भाषा के लिए संघर्ष पर चर्चा
इस यात्रा में मेरे साथ राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेश समन्वयक श्री राजेन्द्र सिंह बारहठ का होना, सोने में सुहागा साबित हुआ। बारहठ जी को जब पता चला कि अभिनव राजस्थान में राजस्थानी भाषा को संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल करवाने की बात प्रमुखता से की जायेगी, तो उन्हें प्रसन्नता हुई। हमारा यह स्पष्ट मानना है कि विद्यार्थी का मानसिक विकास मातृभाषा में शिक्षा से सुगमता से और तीव्रता से होता है। अब आप घर में राजस्थानी बोल रहे हैं और स्कूल में आपके बच्चे को हिन्दी या अंग्रेजी बोलनी है तो दुविधा रहती है। पंजाब, गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू, उड़ीसा, महाराष्ट्र आदि लगभग सभी राज्यों में यह समस्या नहीं है। घर में पंजाबी, स्कूल में पंजाबी, घर में गुजराती, स्कूल में गुजराती। उत्तरप्रदेश में घर में हिंदी, स्कूल में हिंदी, तमिलनाडू में घर में तमिल, स्कूल में तमिल। अलग-अलग भाषाओं से केवल राजस्थान का विद्यार्थी जूझता है। तिहरी गुलामी से त्रस्त रहे ‘विशेष राज्य’ राजस्थान को अब भी राष्ट्रीय स्तर पर उचित सम्मान नहीं मिल पा रहा है। अंग्रेज और मुगल भी इस राज्य को अपनी आरामगाह समझा करते थे, तो आज भी यही हाल है। यहाँ से कोईभी बूटा सिंह, राम जेठमलानी, धर्मेन्द्र, देवीलाल, बलराम जाखड़, आनंद शर्मा, चन्द्रेश कुमारी, ज्योति मिर्धा, सचिन पायलट, वसुन्धरा राजे, दुष्यन्तसिंह आदि चुनाव जीत सकते हैं। इनके लिए राजस्थान में जन्म लेना, यहाँ रहना या यहाँ की भाषा बोलना आवश्यक नहीं है। इसीलिए राजस्थान की भाषा और संस्कृति सौतेलेपन के शिकार हुए हैं। वरन् क्या कारण है कि आज भी राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिली है। कब तक हमारे बच्चे स्कूलों में ज्ञान प्राप्त करने की बजाय हिन्दी-अंग्रेजी भाषा के शब्द सीखने और अनुवाद करने में लगे रहेंगे? घर, गाँव-कस्बे के आसपास गूँज रहे शब्द उनकी शिक्षा में नहीं है। ऊना को ऊष्ण कहना, आडे को अनुप्रस्थ कहना, या काकी को चाची कहने का प्रयास कब तक चलता रहेगा? हम मानते हैं कि हिन्दी व अंग्रेजी भाषाएँ जाननी आज के परिपे्रक्ष्य में जरूरी हैं, परन्तु राजस्थानी को नहीं जानना, नहीं बोलना, नहीं लिखना किस तरह का न्याय है? क्यों पंजाबी बोलना गंवारूपन नहीं है, पिछड़ापन नहीं है, गुजराती बोलना पिछड़ापन नहीं, तमिल नहीं है और राजस्थानी बोलना-लिखना पिछड़ापन मान लिया गया है?
प्रशासन से दूरी बढ़ाने में भी यह भाषागत समस्या सहयोग करती है। एक गाँव-कस्बे का व्यक्ति हिंदी-अंग्रेजी बोलने या पढ़ नहीं पाने के कारण परेशान रहता है। अपेन ही प्रदेश में वह अपनी भाषा के नाम पर कितनी कीमत चुकाता है?
बारहठ जी के साथ मैंने डीडवाना व सुजानगढ़ में राजस्थानी भाषा पर कई मित्रों से चर्चा की। डीडवाना क्षेत्र के जाने-माने कवि श्री गजादान चारण तथा डॉ. भंवर कसाना (सम्पादक – ओलख) से अभिनव राजस्थान की 25 दिसम्बर की सभा के संचालन को लेकर मंत्रणा भी हुई।
आप यह भी कह सकते हैं कि मैं राजस्थानी में लिख क्यों नहीं रहा हूँ? तो स्पष्ट कर दूँ कि मेरा तो हिन्दीकरण-अंग्रेजीकरण कब का हो चुका है। मैंने भी भाषा की परेशानियाँ झेली हैं, परन्तु तीव्र इच्छाशक्ति से पार पा गया। वरन् मैं तो एम.बी.बी.एस. पास करने पर भी ठीक से हिन्दी
नहीं बोल पाया। आज भी मेरी हिन्दी में ‘राजस्थानी टच’ आ ही जाता है। मैं उत्तरप्रदेश या बिहार के बन्धु की तरह हिंदी नहीं बोल पाऊँगा। लेकिन यह व्यवस्था का प्रश्र है। एक मेरे या आपके बोलने-लिखने से राजस्थानी भाषा राजकाज की भाषा नहीं बन पायेगी। बड़ा राजनैतिक-प्रशासनिक निर्णय आवश्यक है और अभिनव राजस्थान में इसे गम्भीरता से लिया जायेगा।
बीकानेर प्रवास (30 अप्रेल-1 मई)
राजस्थानी संस्कृति से सराबोर, दूध की नदियाँ बहाती, सावन में सुहाती भुजिया-रसगुल्ला के स्थानीय उद्योग से हमारी विश्व में शान बढ़ाती और ऊन की विश्वस्तरीय मंडी, बीकानेर नगरी का यह संक्षिप्त और प्रथम दौरा था। प्रसिद्ध लेखक चिंतक और समाजसेवी श्री यू.सी. कोचर के सान्निध्य में कुछ मित्रों से अभिनव राजस्थान अभियान और 25 दिसम्बर की सभा के सम्बन्ध में प्रारम्भिक बातचीत हुई। शिक्षाविद् श्री एन.सी.आसेरी, जाने माने शायर कवि अर्शद अली ‘असद’, प्रोफेसर डॉ. मदन सैनी, श्री सुभाष चौधरी और श्री गोमाराम से खुलकर संवाद हुआ। यहीं पर श्री प्रदीप पाराशर से भी बहुप्रतीक्षित वार्ता हुई। पाराशर जी रेल्वे में अनुवादक हैं और कम्प्यूटर व इन्टरनेट में इन्हें महारत हासिल है। इन्होंने हमारी वेबसाइट www.abhinavrajasthan.org में कई सुधार सुझाये हैं, स्वयं भी इसमें कई सुधार कर रहे हैं। हम काफी समय से इस अभियान के इस पक्ष को मजबूत करना चाह रहे थे। अब पाराशर जी इसकी कमान संभालने को सहर्ष तैयार हो गये हैं।
कोटा दौरा (2 मई-6 मई)
कोटा के अपने प्रवास के दौरान चित्रकार श्री मदन मीणा से अभिनव राजस्थान के ‘लोगो’ या प्रतीक चिह्न के सम्बन्ध में चर्चा हुई। अजमेर के अभिनव राजस्थान के मित्र श्री अनिल जैन ने इस सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सुझाव दिया था। मदन जी राजस्थान के विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं पर पैनी नजर रखते हैं। अभी पिछले साल नवम्बर (2010) में मदन जी लंदन होकर आये हैं। वहाँ पर इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ‘तेजा गान’ की विलुप्त होती जा रही विधा पर पत्रवाचन किया था और वीडियो के माध्यम से इस गान की बारीकियों को समझाया था। मदन जी कंजरों, के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन पर भी गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। मदन जी और हमारे अनन्य मित्र कोटा के मेडिकल ज्यूरिस्ट डॉ. अशोक मूंदड़ा के साथ हमने कोटा शहर में कंसुआ स्थित शिव मन्दिर को देखा। अभिनव राजस्थान में हम हमारी समृद्ध प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर जोर दे रहे हैं और आठवीं सदी का यह मन्दिर ऐसी ही अद्भुत धरोहर है। वस्तुत: यह शिव मन्दिर इस क्षेत्र में कभी शासक रहे परमारों के वैभव व संस्कृति का आभास कराता है। परिहारों की स्वर्णिम कला भी तो राजस्थान भर में बिखरी पड़ी है। कंसुआ के खण्डहरनुमा मन्दिर से प्राचीन कोटा (कोट्या भील के अकेलगढ़) की समृद्धि झलकती है। इस क्षेत्र में पहाड़ी क्षेत्रों में भीलों का और मैदानी क्षेत्र में परमारों का शासन था। परमारों के लोकतंत्र आधारित गणराज्य राजस्थान के मालवा (मध्यप्रदेश) से लगते सभी क्षेत्रों में थे। यहाँ भी ऐसा ही था। लेकिन बारां, झालावाड़ व कोटा के परमार शासकों, भील शासकों और बूंदी के मीणा शासकों पर इतिहासकारों की कम ही मेहरबानी रही है। 16 वीं शताब्दी में इस क्षेत्र में आये हाड़ों की गाथा गाते-गाते, शताब्दियों पुरानी सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत के साथ अन्याय किया गया है। राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र में ऐसा हुआ है। इसीलिए तो आम राजस्थानी अभी भी गुलामी की भावना में रंगा, सामन्तपरस्त व्यक्तित्व लेकर बैठा है। कंसुआ के शिव मन्दिर को अगर प्रामाणिकता से पेश किया जाये, तो यह इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण पर्यटक केन्द्र बन सकता है। अभिनव राजस्थान में यही किया जाने वाला है। लेकिन वर्तमान में कंसुआ के शानदार मन्दिर के चारों ओर गंदगी फैली है, अव्यवस्था फैली है। स्थानीय लोगों को भी नहीं पता कि वे किस धरा पर विराजमान हैं।
रोचक राजस्थान अखबार
हमारे अखबार से अब तक 2000 मित्र प्रत्यक्ष रूप से जुड़ चुके हैं। फोन पर प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं, पत्र भी आ रहे हैं, एक जोश सा नजर आने लगा है। वेबसाइट www.abhinavrajasthan.org पर भी फीडबैक मिलने लगा है। अगले अंक से 7 अंकों में विषयवार सामग्री होगी, ताकि 25 दिसम्बर तक हमारे विचारों में एकरूपता आ सके। वरन् तर्क-कुतर्कों के जाल में हम अपनी ऊर्जा बिखेर देंगे। हो सकता है, बरसों से मानस पटल पर जम चुकी धारणाएँ एक दम से न बदलें, फिर भी इनका बदलना, समाधान के लिए आवश्यक है। शिक्षा से ही विकास की जगह उत्पादन से ही विकास की आवाज बुलंद करनी होगी। कहना होगा कि उत्पादन बढ़ाये बगैर शिक्षितों को कहाँ पर काम देंगे। इसका मतलब यह नहीं कि शिक्षा पर जोर नहीं होगा। होगा, परन्तु उत्पादन प्राथमिकता पर होगा। उत्पादन बढ़ा, तो शिक्षा अपने आप बढ़ जायेगी। लेकिन वर्तमान शिक्षा के बढऩे से, उत्पादन आवश्यक स्तर तक नहीं बढ़ पा रहा है, जिससे बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है। बस ऐसे ही हमें सार्थक, प्रमाणिक, चिंतन करना है। तभी हम आगे बढ़ पायेंगे।
अलवर के श्री रेवतीरमन शर्मा और बीकानेर के श्री धरम प्रकाश ने अखबार में केवल सम्पादक के लेख होने की बात पर सचेत किया है। हो सकता है, कई अन्य पाठक भी उनसे सहमत हों। परन्तु यहाँ पर इतना स्पष्ट कर दें कि हम भी चाहते हैं कि अन्य मित्र लिखें। हमारा तो भार हल्का हो जायेगा। लेकिन यह ध्यान रखें कि यह अखबार ‘मिशन’ के लिए है और बरसों के शोध व चर्चाओं के बाद मिशन के विषय और लक्ष्य तय हैं। इन्हीं विषयों और लक्ष्यों पर लिखे जाने से हमें फायदा होगा। वरन् हम विषय से भटक जायेंगे। हमारा लिखना परिवर्तन के लिए हो, केवल पढऩे-पढ़ाने तक सीमित न हो। पृष्ठ 2 पर छपे लेख इशारा मात्र हैं। शायद पाठक मेरी भावना को समझेंगे। इसी भावना के साथ सस्नेह, मित्रों के लेख आमंत्रित करता हूँ। साथ ही आग्रह कि अपने-अपने स्थानों पर अभिनव राजस्थान पर परिचर्चाएँ आयोजित करें। हम प्रत्येक स्थान पर आने को तैयार हैं।