2009-10 से शुरू हुए हमारे अभियान की अब तक की प्रगति कितनी है? कुछ खास नहीं। वजह? हमारी रणनीति, जिसके तहत हम इस अभियान को तीन चरणों में चलाना चाहते हैं? पहले चरण में हमें केवल अभिनव राजस्थान की धारणा को बाँटना है, इस विचार पर सहमति बनानी है। एक दम से मैदान में नहीं कूदना है। इस दृष्टि से अब तक लगभग एक हजार व्यक्तियों से पुस्तक एवं अखबार के माध्यम से सम्पर्क हुआ है। 2011 में हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे। अब तक की रिपोर्ट।
मूल चिन्तन अभिनव राजस्थान की अवधारणा को विकसित करने के लिए सम्पूर्ण राजस्थान को एक वृहत परिवार मानकर चलाना था और यह इतना आसान नहीं था। 7 करोड़ लोग, 1.5 करोड़ परिवार, 3 लाख 42 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल, विभिन्न भौगोलिक दशाएँ, खनिजों के भण्डार, कम वर्षा और गुलामी से ओतप्रोत इतिहास वाले प्रदेश को कैसे विकसित किया जाये? बरसों से चिन्तन चल रहा था परन्तु 2009 से लेखन प्रारम्भ किया, तो वर्ष भर में ‘अभिनव राजस्थान’ पुस्तक तैयार हो गयी। इस प्रयास में विवेकानन्द, अरविन्द, विजयसिंह पथिक, सुभाष चन्द्र बोस और ओशो से खूब प्रेरणा मिली है। समाज, शिक्षा, शासन, कृषि, उद्योग, प्रकृति एवं संस्कृति के सात सुरों पर हाथ रखा, तो विकास के मधुर संगीत का आभास होने लगा। लेकिन समस्या अब आयी।
हमारी कार्ययोजना के केन्द्र में बुद्धिजीवी वर्ग रखा गया था और ऐसे में प्रदेश में बुद्धिजीवी वर्ग तक कैसे पहुँचा जाये? कई मित्रों की मदद लेनी शुरू की, तो कुछ तार हाथ लगने लगे। लगभग 500 पते हाथ लगे और ‘अभिनव राजस्थान’ पुस्तक को इन बुद्धिजीवियों के पास पहुँचा दिया गया। प्रदेश में पढ़े लिखों की कमी नहीं है, परन्तु ये पढ़े लिखे आजकल केवल अखबार पढ़ते हैं और हस्ताक्षर से ज्यादा लिखते नहीं है। ऐसे में अपनी बात को आम जनता तक कौन पहुंचायेगा। लेकिन कमाल हो गया। हमने जिन महानुभावों को पुस्तक भेजी, उनकी उत्साहजनक प्रतिक्रियाओं ने हमारे मन में बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति सम्मान को और बढ़ा दिया। ऐसा लगता है कि हमने अभिनव राजस्थान के केन्द्र में बुद्धिजीवी वर्ग को रखकर कोई गलती नहीं की है। हमारा पहला प्रयोग सफल रहा। हमें यह लगने लगा कि एक बुद्धिजीवी जागृत हो जाये, सहमत हो जाये, तो वह एक हजार लोगों के बराबर है। इस दृष्टि से 500 विद्वान मित्रों का प्रारम्भ में ही जुड़ जाना, यानि 5 लाख लोगों का जुड़ना हुआ।
सहयोग में मावठ की वर्षा अलवर से साहित्यकार सुरेश पंडित, रेवतीरमन शर्मा और जीवनसिंह जुड़े, तो आज तक उनका स्नेह बरस रहा है। डीग से गोपाल प्रसाद मुद्गल शिक्षाविद् रहे हैं और शिक्षा के विषय में उनके अनुभवों का लाभ अभियान को मिलेगा। अजमेर से हिंदी साहित्य के पुरोधा बद्रीप्रसाद पांचोली, शिक्षाविद् भंवरलाल जोशी और समर्पित चिकित्सक डॉ. शिवदयाल पारीक ने अपने उद्गारों से अभियान को नये स्वर दिये हैं। उदयपुर से प्रसिद्ध कवि नन्द चतुर्वेदी, साहित्यकार ओंकार श्री, इतिहासकार विमला भण्डारी, कुसुम मेघवाल और जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता महेन्द्र भानावत के पत्रों ने अभियान को प्रासंगिक बताया है। जोधपुर से साहित्यकार राम प्रसाद दाधीच, सावित्री डागा, जैबा रशीद, तारा लक्ष्मण गहलोत तथा मदनमोहन माथुर भी प्रारम्भ से ही अभिनव राजस्थान अभियान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं। जयपुर के क्रांतिकारी स्तम्भ लेखक वेद व्यास भी समय-समय पर मार्गदर्शन देते रहे हैं। जैसलमेर के पंडित दीनदयाल ओझा भी प्रारम्भ से ही आशीर्वचन देते रहे हैं। जयपुर से राजाराम भादु व प्रमोद शर्मा, अजमेर के अनिल जैन, अलवर के सामाजिक कार्यकर्ता वीरेन्द्र विद्रोही, और जोधपुर के कवि अनिल अनवर व दिनेश सिंधल भी अभिनव राजस्थान को अपनी सधी हुई कलम से सतर्क किया है। बीकानेर से लेखक उत्तराध्यान कोचर और शिक्षाविद् एन.सी.आसेरी ने अपना समर्थन अभियान को दिया है। आसेरी जी के विश्वास पर तो एक वाकया याद आ जाता है। एक बार कहीं बारिश के लिए यज्ञ हो रहा था। लेकिन केवल एक बच्चा ही वहाँ छाता लेकर पहुँचा था। कितना विश्वास यज्ञ पर! आसेरी जी ने एक मनीऑर्डर भेजकर ऐसा ही विश्वास अभिनव राजस्थान अभियान पर जताया है। हालांकि हम बराबर मना करते हैं कि हमें अखबार के लिए धन की कोई आवश्यकता नहीं है। इसका आगे जिक्र करेंगे। अलवर की सर्वेश जैन के भी हम आभारी हैं कि उन्होंने अखबार में विज्ञापन के माध्यम से सहायता की पेशकश की है। अभी पिछले दिनों जोधपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष गोपाल भारद्वाज के फोन ने अभियान में नया जोश भर दिया है। भारद्वाज जी को हमारी कार्ययोजना बहुत पसन्द आयी है और उन्होंने अपने सहयोग का आश्वासन भी दिया है। कुछ विद्वान मित्रों से फोन पर वार्तालाप होते रहे हैं। इनमें परलिका (हनुमानगढ़) के राजस्थानी भाषा के कवि विनोद, श्रीमाधोपुर (सीकर) के दिलीप राष्ट्रवादी, कांकरोली से समाज शास्त्री और पर्यावरणविद् रचना तेलंग व अलवर से व्याख्याता अनुराधा शामिल हैं। विद्वान न्यायविद् जोधपुर के श्यामसुन्दर वैष्णव एवं मांगीलाल गौड़ भी अभियान से जुड़ चुके हैं। स्थानाभाव के कारण यहाँ पर हम सभी मित्रों के नाम नहीं लिख पा रहे हैं। किसी भी मित्र का महत्व कम आंकने का हमारा तनिक भी इरादा नहीं है। हमारी वेबसाइट पर सभी मित्रों के नाम पते, फोन उपलब्ध रहेंगे। कुल मिलाकर राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र से बुद्धिजीवियों ने हमारे उत्साह को बढ़ाने में कोई कसर नहीं रखी है। हमारे कुछ मित्रों ने बुद्धिजीवियों के दम पर भरोसा करने से सावधान किया था और कहा था कि ये केवल आलोचना करने में सिद्धहस्त हैं। परन्तु हमारे अनुभव ने बुद्धिजीवी वर्ग पर हमारी निर्भरता के सही ठहरा दिया है।
शिथिलता ? पिछले तीन-चार महीनों में अभियान में हमारी ओर से कुछ शिथिलता सी आ गयी थी। हमारे कई पाठक और शुभचिंतक सोच रहे होंगे कि साल -छ: महीने का जोश था, जो ठण्डा पड़ गया होगा। उनका सोचना स्वाभाविक भी है। परन्तु ऐसा है नहीं। वस्तुत: इन दिनों अभियान के लिए वित्तीय व्यवस्था के स्थायी प्रबन्ध पर ध्यान लगाने से यह आंशिक विराम लगा था। अभियान के लिए पत्र व्यवहार, समाचार पत्र, यात्राएँ आदि करनी पड़ेंगी और इसके लिए पैसे की आवश्यकता भी रहने वाली है। अखबार और वेबसाइट ‘रोचक राजस्थान’ अखबार हमारे बीच सबसे बड़ा सेतु है और अब इसका संचालन नियमित हो जाया करेगा। किसी भी हालत में इसके प्रकाशन में अब व्यवधान नहीं होगा। इसके पाठकों की संख्या भी अब बढ़ा दी जायेगी। थोड़ी समस्या इसके रजिस्ट्रेशन में भी आ रही है। दिल्ली के कार्यालय से बार-बार नयी-नयी कमियां निकाली जा रही है और हम उन्हें पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। शायद अब यह प्रक्रिया पूरी हो जाये।
रणनीति अब अंत में सबसे महत्वपूर्ण बात। अभिनव राजस्थान अभियान अब गति पकड़ेगा। इसलिए कुछ बातें आप जान लें।
1. यह पूर्णतया गांधीवादी विचारधारा से ओतप्रोत अभियान होगा। व्यवस्था परिवर्तन हमारा अडिग लक्ष्य होगा, लेकिन अराजकता की स्थिति में जाने के लिए हम समाज को नहीं झोंकेंगे। हमारी कार्ययोजना विस्तृत होगी, जो वर्तमान व्यवस्था में अपेक्षित सुधारों को व्यावहारिक बनायेगी। हम लोकलुभावने नारों से परे यथार्थ पर टिके रहेंगे और दृढ़ता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे।
2. हम कोई राजनैतिक दल खड़ा नहीं करेंगे, परन्तु एक प्रभावी समूह (प्रेशर ग्रुप) की तरह दोनों प्रमुख दलों – कांग्रेस और भाजपा को प्रदेश हित में सारगर्भित नीतियाँ बनाने के लिए आग्रह करेंगे। उत्पादन को बढ़ाने के लिए हम अपनी तरफ से कार्ययोजनाएँ बनाकर शासन को देंगे, केवल शासन की आलोचना नहीं करेंगे। ऐसा ही हम उद्योग, शिक्षा, समाज, प्रकृति, संस्कृति एवं शासन के क्षेत्रों के सम्बन्ध में करेंगे। हमारे सहयोगी बजट एवं योजनाओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे, इनका मतलब जनता को समझायेंगे और इनमें सुधार की सम्भावनाओं को सामने रखेंगे। योजनाओं के मूल्यांकन पर हम नजर रखेंगे और केवल योजनाओं पर किये गये खर्च को शासन की उपलब्धि नहीं मानेंगे।
3. हमारी भाषा में असंभव है, क्या होने वाला है, कौन सुनने वाला है, कौन करेगा, पहले भी ऐसे प्रयास सफल नहीं हुए, जनता ही उदासीन है, धीरे-धीरे सब हो जायेगा, जैसे नकारात्मक या निर्जीव वाक्यों का कोई स्थान नहीं होगा। सकारात्मकता हमारी नीति रहेगी। हम कुतर्कों से भी बचेंगे और निरर्थक बहस में भी समय जाया नहीं करेंगे। किसी एक विषय को पहले प्राथमिकता देने के मुरझाये सुझावों की भी हम अनदेखी करेंगे। हमारे लिए सातों क्षेत्र महत्वपूर्ण होंगे और हम इनमें एक साथ आगे बढ़ेंगे, ताकि परिणाम जल्दी दिखाई देने लगें। साथ ही हम अहंकार की बीमारी से दूर रहेंगे और इसे अपने कार्य में बाधा नहीं बनने देंगे। पीठ पीछे सहयोगियों की बुराइयों से भी बचेंगे। न ही हम मूल विषयों से भटक कर किसी और मुद्दे (जैसे भ्रष्टाचार, गरीबी, आरक्षण) में उलझेंगे।
4. हम भीड़ जुटाने की चिंता नहीं करेंगे, बल्कि छोटे-छोटे समूहों में सार्थक चिंतन करेंगे और निर्णयात्मक स्थिति के आसपास पहुँचते रहेंगे। अगर कल को जनता हमारी तरफ आकर्षित भी हो जाये, तो भी हम विनम्रता से आगे बढ़ते रहेंगे। जोश में होश नहीं खोयेंगे।
5. राजस्थान के विकास की बात करते समय हम किसी तुच्छ क्षेत्रीयता की भावना से भी दूर रहेंगे। राज ठाकरे के ‘मराठी मानुष’ या नरेन्द्र मोदी के ‘गरवी गुजरात’ जैसे नारों का हमारे अभियान में कोई स्थान नहीं होगा। हमारा यह मानना है कि अगर राजस्थान के लोग ऐसी हरकतों पर उतर आये, तो भारत में बचेगा ही क्या? हम तो भारत के प्रहरी हैं और बने रहेंगे। हाँ, भारत के सबसे बड़े प्रदेश होने के नाते इसकी मजबूती से भारत मजबूत अवश्य होगा। हमारी योजना से अन्य प्रदेश भी प्रभावित हों और आगे बढ़ें, ऐसी हमारी भावना रहेगी। अगले अंक से हमारी योजना के पन्ने एक-एक कर खुलेंगे, तो सब स्पष्ट होता जायेगा।
मैं तो इस रणनीति से हम आगे बढ़ने वाले हैं। जहाँ तक मेरा सवाल है, कुछ बातें स्पष्ट कर दूँ। मैं इस अभियान का नेतृत्व करने की ऐतिहासिक गलती तो नहीं करुंगा, लेकिन इस अभियान में एक सक्रिय भूमिका अवश्य निभाऊंगा। इस बारे में अपने कार्यक्रमों में मैं विस्तार से स्पष्ट भी करता जाऊंगा। फिर भी मैं कागजी बातें करने वाला व्यक्ति नहीं हूँ। 10 वर्षों तक एक अधिकारी के रूप में 4000 सहयोगियों के साथ काम किया है। भारत की वर्तमान में तथाकथित सबसे महत्वपूर्ण सेवा – भारतीय सिविल सेवा में रहा हूँ। अपने कार्य में तब भी मैंने अनेक नवाचार किये थे। इसके बाद मैंने 2003 से 2005 में अपनी आजीविका कमाने के लिए व्यवसाय प्रारम्भ किया है, क्योंकि अभिनव राजस्थान अभियान के लिए सिविल सेवा में रहना उचित नहीं था। व्यवसाय ठीक चल रहा है।
2005 से 2007 के मध्य मैंने नागौर ज़िले में सामाजिक सुधार के एक बड़े कार्यक्रम में सक्रिय भूमिका निभायी है। अभिनव राजस्थान के निर्माण की पहली सीढ़ी हम अभिनव समाज को ही मानते हैं। इस परिवर्तन के लिए आवश्यक जमीन मानते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए विवाह एवं मृत्यु पर सामाजिक परम्पराओं के नाम पर हो रहे दिखावे और अधिक खर्च के विरूद्ध यह आंदोलन छेड़ा गया था। हमारे आलोचकों ने हम पर राजनीति करने के आरोपों के साथ ही चरित्र हनन में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी, मगर हम काफी हद तक सफल रहे थे। आज भी ज़िले के ग्रामीण अंचल में मुझे खर्च कम करवाने वाले डॉक्टर के रूप में लोग पहचानते हैं। इस अभियान से हमारी अवधारणा का एक प्रायोगिक पक्ष मजबूत हुआ था तो करोड़ों रुपये की बचत भी ग्रामीण अंचल में हुई है। हमने जानबूझकर इस अभियान को प्रदेश स्तर पर महिमामंडित नहीं किया था, क्योंकि हमें कोई पुरस्कार नहीं चाहिये था। इस अभियान के विरोधी इसे असफल बता चुके हैं परन्तु हमारे पास पक्के आंकड़े और सबूत है जो इसे सफल साबित करते हैं। यहाँ पर यह बात इसलिए, ताकि हमारे पाठकों को अभिनव राजस्थान की बातें केवल आदर्श ना लगें। जनता के बीच जाने का हमें तनिक भी भय नहीं है, परन्तु हम योजना के साथ जाना चाहते हैं। मैं जानता हूँ कि समग्र राजस्थान की व्यवस्था में परिवर्तन करना और वास्तविक विकास के रास्ते पर प्रदेश को अग्रसर करना बड़ी चुनौती है। फिर भी मन विश्वास से भरा है और बुद्धिजीवी वर्ग की क्षमताओं पर भरोसा है। लगता है कि यह कार्य हम करके रहेंगे। व्यवस्था परिवर्तन के दौरान मुझे राजनीति, अपने स्वार्थ या अन्य आरोपों से दो चार होना पड़ेगा, यह भी मैं जानता हूँ, परन्तु अब इन बातों का मेरे लिए विशेष अर्थ नहीं होगा। 2005-07 में मैंने बहुत कुछ झेल लिया है। हाँ मेरी, महत्त्वाकांक्षाएँ हैं, परन्तु वे राजनीतिक ना होकर लोकनीतिक हैं। फिर भी मैं बुद्धिजीवी वर्ग के सक्रिय नियन्त्रण के पक्ष में हूँ ताकि प्रभाव के पद के आसपास पहुंचने से पड़ने वाले प्रभावों से सुरक्षा हो सके। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है जो पद एवं धन के आसपास पनप ही जाती है। मैं चुनावों से या जनता से दूर भागने का संकेत नहीं देना चाहता, परन्तु विधायक या सांसद बनना मेरे जीवन का लक्ष्य कतई नहीं है। हजारों लोग यहाँ पर विधायक और सांसद बन चुके हैं, परन्तु हम लाल बहादुर शास्त्री के अलावा कितनों का नाम आदर से ले सकते हैं।
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